पाठ-14 मुहावरे और लोकोक्तियाँ
कुछ प्रचलित मुहावरे
- अंग-अंग मुसकाना (बहुत प्रसन्न होना) कक्षा में प्रथम आने पर उसका अंग-अंग मुसकरा रहा था।
- अंगारे उगलना (कठोर बातें करना) वह तो अपने मुँह से हमेशा अंगारे उगलता रहता है।
- अंधे की लकड़ी (एकमात्र सहारा) श्रवण अपने माता-पिता के लिए अंधे की लकड़ी था।
- अकल चकराना (कुछ समझ में न आना) गणित का प्रश्न-पत्र देखते ही सुमन की अकल चकरा गई।
- ज़रा अकल के अकल के घोड़े दौड़ाना (तरह-तरह के विचार करना) घोड़े दौड़ाओ, तभी इस मुसीबत से पार हो सकते हो ।
- अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना (अपनी प्रशंसा आप करना) तुम्हें अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना शोभा नहीं देता ।
- आँखें चुराना (छिपना) – जबसे उसने मुझसे 5000 /- रुपये उधार लिए हैं, वह मुझसे आँखें चुराता फिरता है।
- आँखों पर बिठाना (सम्मान करना) जब श्री रामचन्द्र जी 14 सालों का वनवास काटकर अयोध्या वापिस आये तो लोगों ने उन्हें आँखों पर बिठा लिया।
- आँख खुलना (होश आना) जब धीरे-धीरे रिश्तेदारों ने रमेश की सारी संपत्ति हथिया ली, तब कहीं जाकर उसकी आँखें खुलीं ।
- आँसू पीकर रह जाना (घोर मुसीबत पड़ने पर भी शाँत रहना / आँखों में आँसू न आने देना) – भाई की घोर गरीबी को देखकर बहन आँसू पीकर रह गयी।
- आग-बबूला होना (बहुत गुस्सा होना) परशुराम शिव धनुष को टूटा हुआ देखकर आग-बबूला हो उठे।
- आग में पानी डालना (क्रोध को शांत करना / झगड़ा मिटाना) तुमने महेन्द्र और नरेश की लड़ाई में बीच-बचाव करके आग में पानी डालने का काम किया है।
- आसमान टूट पड़ना (भारी मुसीबत आना) भयंकर बाढ़ में उसका घर बह गया, मानो उस पर आसमान टूट पड़ा हो ।
- आसमान सिर पर उठाना (शोर करना) अध्यापक जब कक्षा में नहीं थे तो बच्चों ने आसमान सिर पर उठा लिया।
- ईमान बेचना (बेईमानी करना) हमें किसी भी कीमत पर अपना ईमान नहीं बेचना चाहिए ।
- ईद का चाँद होना (बहुत कम या बहुत समय बाद दिखाई देना) अरे भाई! तुम तो ईद का चाँद हो गये हो ।
- कलेजा ठंडा होना (संतोष हो जाना) – जब बेटे के हत्यारों को फाँसी की सज़ा सुनाई गयी, तब माँ का कलेजा ठंडा हो गया ।
- कलेजे पर साँप लोटना (ईर्ष्या से जलना) जब जगदीश सिंह दसवीं कक्षा में पूरे राज्य में प्रथम आया, तो संदीप के कलेजे पर साँप लोटने लगा।
- कान का कच्चा (सुनते ही किसी बात पर विश्वास करना) अधिकारी को कान का कच्चा नहीं होना चाहिए ।
- कान पर जूँ तक न रेंगना (कुछ असर न होना) मैंने अपने छोटे भाई को बहुत समझाया, किन्तु उसके कान पर जूं तक नहीं रेंगी।
- खटाई में पड़ना (अनिश्चय/अनिर्णय की स्थिति में) इतने लम्बे समय से मेरी तरक्की का मामला खटाई में पड़ा हुआ है।
- ख्याली पुलाव बनाना (कल्पना करते रहना) बेटा! पढ़ते-लिखते तो हो नहीं, केवल ख्याली पुलाव बनाने से ही कक्षा में अव्वल नहीं आ सकोगे 2
- गिरिगट की तरह रंग बदलना (सिद्धांतहीन व्यक्ति) मुझे गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले बिल्कुल पसंद नहीं है ।
- गुड़ गोबर होना (बना काम बिगड़ना) आज भारत और इंग्लैंड के बीच क्रिकेट का फाइनल मैच था, किंतु मूसलाधार बारिश ने सब गुड़ गोबर कर दिया ।
- घड़ों पानी पड़ना (शर्मिंदा होना) चोरी के जुर्म में जब पुलिस ने पुत्र को पकड़क लिया, तो उसके पिता पर घड़ों पानी पड़ गया।
- चादर देखकर पैर पसारना (आमदनी के अनुसार खर्च करना) मेरा बेटा बहुत सुखी है, क्योंकि वह हमेशा चादर देखकर पैर पसारता है।
- चेहरे से हवाइयाँ उड़ना (बुरी तरह से घबरा जाना) जब उसकी चोरी पकड़ी गयी तो उसके चेहरे से हवाइयाँ उड़ने लगीं ।
- छिपा रुस्तम (साधारण दिखने वाला गुणी व्यक्ति) हम तो उसे कमज़ोर समझते थे, किंतु वह तो छिपा रुस्तम निकला जो 800 मीटर की दौड़ में सोने का तमगा जीत आया ।
- छोटा मुँह बड़ी बात (बढ़-चढ़कर बातें करना) क्यों छोटे मुँह बड़ी बात करते हो? तुम्हें उस जैसे सज्जन पुरुष के बारे में ऐसी अनुचित बातें नहीं करनी चाहिएं ।
- ज़मीन आसमान एक करना (कोशिश करने में कोई भी कसर न छोड़ना) रमिंदर सिंह ने यह दौड़ जीतने के लिए ज़मीन आसमान एक कर दिया था ।
- जान पर खेलना (जोखिम उठाना) सीमा पर भारतीय सैनिक जान पर खेलकर हमारी सुरक्षा करते हैं ।
- झख मारना (बेकार समय खराब करना) तुम यहाँ बैठे झख ही मारते रहोगे या कोई काम भी करोगे।
- टेढ़ी उँगली से घी निकालना (बलपूर्वक काम करना) अपने वायदे के अनुसार तुम मेरी रकम लौटा दो, नहीं तो मुझे टेढ़ी ऊँगली से घी निकालना आता है।
- ठगा सा रह जाना (हैरान होना) कश्मीर की प्राकृतिक सुंदरता को देखकर मैं ठगा-सा रह गया।
- डूबती नैया पार लगाना (मुसीबत से निकालना) गणित विषय में मुझे मेरे अध्यापक ने अतिरिक्त समय में पढ़ाकर मेरी डूबती नैया पार लगा दी ।
- ढोल की पोल (बाहरी दिखावा) उसकी बहादुरी तो ढोल की पोल है, देखना, एक दिन खुल ही जाएगी।
- तलवे चाटने (खुशामद करना) – आखिर बाबू गोपाल प्रसाद ने अपने अफ़सर के तलवे चाटकर तरक्क पा ही ली ।
- ताँता बँधना (लगातार होना) – नौकरी पानी के लिये बेरोज़गारों का ताँता बँधा हुआ है।
- थाली का बैंगन (अस्थिर विचारों वाला / सिद्धांतहीन व्यक्ति) जो व्यक्ति थाली के बैंगन होते हैं, वे किसी के सच्चे मित्र नहीं होते।
- दाँत काटी रोटी (घनिष्ठ मित्रता) जय और वीरू में दाँत काटी रोटी है।
- दालभात में मूसलचंद (दो लोगों के बीच दखल देना) मैं और विकास बातचीत करके मतभेद दूर कर लेंगे, पर कृपा करके तुम दालभात में मूसलचंद न बनो।
- यदि कोई भी देश हमारी शांति भंग धज्जियाँ उड़ाना (नष्ट – भ्रष्ट करना) करेगा तो हम उसकी धज्जियाँ उड़ा देंगे।
- – धुन का पक्का (पक्के इरादे वाला) अनिल अवश्य अपने काम में सफल हो जाएगा क्योंकि मैं जानता हूँ कि वह धुन का पक्का है।
- नाक – भौ चढ़ना (नखरे करना) – घर में तो तुम हर सब्ज़ी को देखकर नाक-भौं चढ़ाते हो पर अब देखूँगी, हॉस्टल में सब कुछ कैसे नहीं खाओगे।
- नाक कटना (प्रतिष्ठा नष्ट होना) – बेटा, ऐसा काम मत करना जिससे मेरी नाक कट जाए।
- पत्थर पर लकीर (पक्की बात) लाला खेमराज ने जो कह दिया, उसे पत्थर पर लकीर समझना।
- फूंक-फूंक कर कदम रखना (बहुत सोच-समझ कर काम करना) भैया, तुमने अपना नया-नया कारोबार खोला है, इसलिए तुम्हें फूँक – फूँककर कदम रखना चाहिए ।
- फूला न समाना (बहुत खुश होना) – कबड्डी का मैच जीतकर हमारे स्कूल की टीम फूली नहीं समा रही थी।
- बात का धनी (वायदे का पक्का) – यदि भूपेंद्रपाल ने तुम्हें कह दिया है कि वह तुम्हारी मदद करेगा तो उसकी बात का यकीन करो, क्योंकि वह बात का धनी है।
- बीड़ा उठाना (संकल्प करना) जब सभी मुख्य बल्लेबाज़ आउट हो गए तो कप्तान ने मैच को जीतने का बीड़ा उठाया ।
- भरी थाली में लात मारना (लगी लगाई रोज़ी छोड़ना) अरे! जब तक और अच्छी नौकरी नहीं मिलती तब तक इसी नौकरी को करते रहो । भला कोई भरी थाल में लात मारता है !
- मिज़ाज ठीक करना (अकड़ दूर करना) अगर तुम्हारे पिता जी का लिहाज़ न होता तो मैं दो मिनट में तुम्हारे मिज़ाज ठीक कर देता ।
- रुपया उड़ाना (बेकार में धन खर्च करना) यदि तुम्हें नहीं पढ़ना तो क्यों अपने माता-पिता के रुपये उड़ा रहे हो ।
- लोहे के चने चबाना (बहुत कठिनाई से सामना करना) पाक सेना को भारतीय सेना के साथ टक्कर लेते समय लोहे के चने चबाने पड़े।
- वीरगति को प्राप्त होना (मर जाना) भारत को अंग्रेज़ों से स्वतंत्रता दिलाने में अनेक देशभक्त वीरगति को प्राप्त हुए।
- इस तरह शेखी बघारना शेखी बघारना (अपने मुँह अपनी प्रशंसा करना) अच्छी बात नहीं ।
- शैतान के कान कतरना (बहुत चालाक होना) – शीशपाल तो शैतान के भी कान कतरने वाला है, बेचारे कुलवीर की उसके सामने बिसात ही क्या है?
- सिर धड़ की बाज़ी लगाना (प्राणों की भी परवाह न करना) सैनिक देश की रक्षा के लिए सदैव सिर धड़ की बाज़ी लगा देते हैं ।
- हाथ धोकर पीछे पड़ना (काम करने की धुन लगना) – लोकेश जिस काम के पीछे हाथ धोकर पड़ जाता है, उसे वह पूरा करके ही दम लेता है।
- हाथ को हाथ न सूझना (कुछ दिखाई न देना) यहाँ इतना अँधेरा है कि हाथ को हाथ नहीं सूझता।
नीचे दिये गये मुहावरों के अर्थ समझकर वाक्य बनाइए: (अभ्यास मुहावरे हल सहित)
1) अँगूठा दिखाना (कुछ देने से साफ इन्कार कर देना) जब राजेश को पैसों की आवश्यकता पड़ी तो उसके सभी मित्रों ने अँगूठा दिखा दिया।
2) आड़े हाथों लेना (अच्छी तरह काबू करना) चोरी करते पकड़े जाने पर राहुल को पुलिस ने आड़े हाथों लिया।
3) ईमान बेचना (बेईमानी करना) आजकल एक ईमानदार मित्र का मिलना बहुत मुश्किल है। ऐसा लगता है, जैसे सब ने अपना ईमान बेच दिया हो।
4) उड़ती चिड़िया पहचानना (रहस्य की बात तत्काल जानना) तुम सुरेन्द्र से कुछ भी छुपा नहीं सकते। वह तो उड़ती चिड़िया को पहचान लेता है।
5) ओखली में सिर देना (जान बूझकर मुसीबत में फँसना) आजकल के नौजवान नशा करके ओखली में सिर दे रहे हैं। इसके परिणाम तो भुगतने ही पड़ेंगे।
6) काया पलट होना (बिल्कुल बदल जाना) राम जब से विदेश से लौटा है, उसकी तो काया ही पलट गई है।
7) कलई खुलना (रहस्य प्रकट हो जाना) अब धीरे-धीरे लोगों के सामने सभी राजनैतिक दलों की कलई खुलने लगी है।
8) गले मढ़ना (जबरदस्ती किसी को कोई काम सौंपना) दीपक, यह काम तुम्हारा है, तुम इसे मेरे गले मत मढ़ो।
9) घास खोदना (व्यर्थ समय बिताना) एक विद्यार्थी का समय बड़ा मूल्यवान होता है। उसे घास खोदने से बचना चाहिए।
10) टका-सा जवाब देना (कोरा उत्तर देना) जब मैंने गीता से हिंदी की पुस्तक माँगी तो उसने टका-सा जवाब दे दिया।
11) दाँत खट्टे करना (बुरी तरह हराना) भारत ने कई बार अपने दुश्मनों के दाँत खट्टे किए हैं।
12) दाल में काला होना (गड़बड़ होना) आज पुलिस ने संजय को तस्करी के आरोप में हिरासत में ले लिया। उसकी हरकतों से पहले ही लगता था कि दाल में कुछ काला है।
13) नाव पार लगाना (कोशिश सफल होना) रणवीर की सहायता से ही मेरी नाव पार लगी है, नहीं तो मैं इस बार फेल हो जाता।
14) पेट पर लात मारना (रोज़गार से वंचित करना/रोज़ी रोटी छीन लेना) कोरोना की बीमारी ने बहुत से लोगों के पेट पर लात मारी है।
15) फलना फूलना (सुखी और सम्पन्न होना) सभी माता-पिता यह चाहते हैं कि उनके बच्चे सदा फलें-फूलें।
16) बाज़ी मारना (सफल होना) मेहनती व्यक्ति हमेशा बाज़ी मार लेते हैं।
17) भेड़ की खाल में भेड़िया (देखने में सरल तथा भोला-भाला किंतु असल में खतरनाक) असलम को देखकर कोई नहीं कह सकता कि वह किसी की हत्या कर सकता है। वह तो भेड़ की खाल में भेड़िया निकला।
18) माथा ठनकना (संदेह होना) उसे देखते ही मेरा माथा ठनक गया था कि वह ज़रूर कुछ गड़बड़ करेगा।
19) रुपया ठीकरी कर देना (बेकार में रुपये खर्च करना) नरेश ने बहुत पुरानी कार खरीद कर रुपया ठीकरी कर दिया। अब वह हमेशा खराब रहती है।
20) हाथों के तोते उड़ना (हैरान होना) पुलिस को देखते ही चोरों के हाथों के तोते उड़ गए।
कुछ प्रचलित लोकोक्तियाँ
- अंत भले का भला (भला करने वाले का भला होता है) सबके सुखदुःख में काम आने वाले देवेन्द्र सिंह को जब अचानक चार लाख रुपये की आवश्यकता पड़ी तो उसके दफ्तर के सह-कर्मचारियों ने मिलकर चार लाख रुपये का प्रबंध कर दिया, सच है, अंत भले का भला ।
- अधजल गगरी छलकत जाए (कम गुण वाला व्यक्ति दिखावा बहुत करता है) गोपाल बातें तो ऐसी करता है जैसे वह अंग्रेज़ी में बहुत माहिर है, पर वास्तव में जब वह अंग्रेज़ी बोलता है तो अनेक गलतियाँ करता है । इसे ही कहते हैं अधजल गगरी छलकत जाए।
- अब पछताए होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गई खेत (समय निकल जाने पर पछताने से क्या लाभ) सारा साल तुम पढ़े नहीं और फेल हो गए। अब पछताए होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गई खेत ।
- आँखों देखी मक्खी नहीं निगलते (जान बूझकर कोई बुरा या हानिकारक काम नहीं करते) जब पता चल ही गया है कि तुम्हारा लड़का नशेड़ी है, तो अब यह शादी नहीं होगी क्योंकि आँखों देखी मक्खी नहीं निगलते ।
- आँवले का खाया और बड़े का कहा बाद में सीख देता है (आँवाला खाने में कसैला और बड़ों की शिक्षा सुनने में कड़वी ज़रूर लगती है पर दोनों का फायदा भविष्य में पता चलता है) अभी तो तुम्हें अपने माता-पिता की बातें कड़वी लगती हैं, किन्तु भविष्य में जाकर इनकी बातों की कीमत पता चलेगी, क्योंकि आँवले का खाया और बड़े का कहा बाद में सीख देता है ।
- आम के आम गुठलियों के दाम (दुगना लाभ) सतिंद्र सिंह नौकरी के लिए इंटरव्यू देने आगरा गया था और साथ ही ताजमहल भी देख आया । इसे कहते हैं – आम के आम गुठलियों के दाम ।
- आग लगने पर कुआँ खोदना (मुसीबत पड़ने पर ही प्रयत्नशील होना) सारा साल आवारागर्दी करते रहे, अब परीक्षा सिर पर आ गई तो पढ़ना शुरु कर दिया। किसी ने सच ही कहा है- आग लगने पर कुआँ खोदना |
- ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया (सभी एक समान नहीं होते) शीला का बड़ा बेटा तो दसवीं की परीक्षा में पूरे जिले में प्रथम आया है, किंतु छोटा बेटा आठवीं में फेल हो गया । सच है ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया ।
- ऊँची दुकान फीका पकवान (केवल ऊपरी दिखावा करना) शहर के बीचों बीच एक दुकान बहुत बड़ी थी और उसके बाहर लिखा था- यहाँ बढ़िया कपड़े मिलते हैं। पर सारी दुकान देख ली और देखा कि सारा घटिया दर्जे का माल था | इसे ही कहते हैं, ऊँची दुकान फीका पकवान ।
- एक हाथ से ताली नहीं बजती (अकेला व्यक्ति झगड़े का कारण नहीं होता) देखो, तुमने भी कुछ ज़रूर कहा होगा तभी तो रामपाल ने तुमसे झगड़ा किया है- एक हाथ से ताली नहीं बजती ।
- एक बार भूले सो भूला कहाये, बार-बार भूले सो मूर्खानंद कहाये (एक बार गलती पर सावधान हो जाना चाहिए, किंतु फिर वही गलती करना मूर्खता कहलाती है) देखो बेटा ! बार-बार तुम गणित के पेपर में वहीं गलतियाँ करते हो, यह कोई अच्छी बात नहीं, तुम्हें समझना होगा कि एक बार भूले सो भूला कहाये, बार-बार भूले सो मूर्खानंद कहाये।
- कमली ओढ़ने से फकीर नहीं होता (ऊपरी दिखावा या ढोंग व्यर्थ है, उससे वास्तविकता नहीं आती) अतुल ऊपर-ऊपर से मीठा बोलता है, किंतु मोहल्ले में सबसे मेरी चुगलियाँ करता है। सच है, कमली ओढ़ने से फकीर नहीं होता ।
- करे कोई भरे कोई (अपराध की सज़ा दूसरे को मिलना) दुकान में चोरी तो प्रीतम ने की, किंतु सज़ा महेश को भुगतनी पड़ी, करे कोई भरे कोई ।
- खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे (अपमान का बदला दूसरों से लेना) भैया को पिता जी ने डाँटा था, अब वह अपना गुस्सा मुझ पर निकालने लगा । किसी ने ठीक ही कहा है- खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे ।
- घर की मुर्गी दाल बराबर (सरलता से उपलब्ध का आदर नहीं होता) अमन के पास दूर-दूर से विद्यार्थी पढ़ने के लिए आते हैं, पर घर में उसका अपना बेटा गगनदीप उससे पढ़ता नहीं | इसे ही कहते हैं, घर की मुर्गी दाल बराबर ।
- जान है तो जहान है (जीवित रहने पर ही संसार है) इतने ज्यादा बीमार हो, पहले तंदरुस्त हो जाओ फिर अपने कारोबार को भी देख लेना भई यह जान लो कि जान है तो जहान है ।
- जैसी करनी वैसी भरनी (जो जैसा करता है, उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है) रिश्वत लेने वाले मंगतराम को आज सी.बी.आई. ने रँगे हाथ पकड़ लिया। इसे ही कहते हैं, जैसी करनी वैसी भरनी ।
- जाये की पीर माँ को होती है (जो जिस वस्तु को पैदा करता है, उसके नुकसान पर उसे जितना दुःख होता है, उतना किसी दूसरे को नहीं) मैंने विज्ञान प्रदर्शनी के लिए मॉडल बनाया था, किंतु उसे लेकर जाते समय एक दम बारिश आई और वह खराब हो गया और तुम कहते हो कि चिंता न करो, तुम्हें नहीं पता कि जाये की पीर माँ को होती है ।
- जिसके घर में माई उसकी राम बनाई (जिसकी माँ जीवित है, उसे किसी बात की दुःख / चिंता नहीं) जब से मोहसिन की माँ का देहाँत हआ तब से सभी रिश्तेदारों ने भी उससे किनारा कर लिया, सच ही है जिसके घर में माई उसकी राम बनाई ।
- न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी (कारण के नष्ट होने पर कार्य न होना) तुम सारा दिन सी.डी. लगाकर वीडियो गेम्स खेलते रहते हो, आज मैं इसे तुम्हारे दोस्त को वापिस कर आती हूँ । न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी ।
- नाच न जाने आँगन टेढ़ा (काम करना नहीं आना और बहाने बनाना) चार्वी के जन्म दिन की पार्टी में सभी ने नेहा को कहा कि कोई गाना सुनाइए, तो वह बोली, ‘आज मेरा गला खराब है’। फिर मेधावी के जन्म दिन पर उसे कहा तो कहने लगी कि मुझे गाना याद नहीं है। सच है, नाच न जाने आँगन टेढ़ा ।
- पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होती (सब एक जैसे नहीं होते) कुछ भ्रष्ट लोगों के कारण सभी को भ्रष्ट कहना ठीक नहीं है, क्योंकि पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं।
- बगल में छुरी मुँह में राम-राम (भीतर से शत्रुता और ऊपर सी मीठी बातें) मोहनलाल वैसे तो बड़े अदब से बात करता है, किंतु सारा दिन अफसर से मेरी चुगलियाँ करता रहता है । सच में, मोहनलाल पर बगल में छुरी मुँह में राम-राम वाली कहावत लागू होती है ।
- बार – बार चोर की, एक बार शाह की (कभी न कभी चालाकी पकड़ी ही जाती है) कुलविंद्र सिंह की दुकान से हर रोज़ कोई न कोई चीज़ चोरी हो जाती, पर चोर का पता ही न चलता था। एक दिन कुलविंद्र सिंह ने महीना पहले ही रखे नये नौकर को रँगे हाथ पकड़ लिया। सच है, बार-बार चोर की, एक बार शाह की ।
- बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख (माँगे बिना अच्छी वस्तु की प्राप्ति हो जाती है, माँगने पर साधारण भी नहीं मिलती) बैंक कर्मचारियों ने अपनी माँगों के लिए कलमबद्ध हड़ताल कर दी, पर उन्हें क्या मिला?इनसे तो बिजली कर्मचारी अच्छे रहे, उनका वेतन बढ़ा दिया गया । किसी ने सच ही कहा है कि बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख ।
- मन न मिले तो मिलना कैसा, मन मिला तो तजना कैसा (जिससे मन न मिले उससे मिलने का क्या लाभ? और जिससे मन मिल जाए उसे छोड़ना क्यों) सुमित को मैं दो साल से जानता हूँ पर वह मेरा मित्र नहीं बन पाया और सुशील को इस स्कूल में आए दस दिन भी नहीं हुए और वह मेरा मित्र बन गया है, सच है, मन न मिले तो मिलना कैसा, मन मिला तो तजना कैसा ।
- मान न मान मैं तेरा मेहमान (ज़बरदस्ती किसी का मेहमान बनना) सुरेश मुझे थोड़ा बहुत ही जानता था । एक दिन सुरेश शिमला घूमने आया तो मेरे घर सपरिवार आ गया और कहने लगा कि तीन-चार दिन अब तुम्हारे घर पर ही रहेंगे। मैंने मन ही मन कहा, अजब आदमी है, मान न मान मैं तेरा मेहमान |
- संभाल अपनी घोड़ी, मैंने नौकरी छोड़ी (स्वाभिमानी व्यक्ति कभी किसी भी मूल्य पर अपना अपमान नहीं सहता) सुनीता कल स्कूल नहीं आयी थी, इसलिए सुषमा की कॉपी से देखकर काम कर रही थी । अभी उसने काम पूरा भी नहीं किया था पर सुषमा बार-बार कॉपी देने की बात जता रही थी तो सुनीता ने बिना काम पूरा किए उसकी कॉपी वापिस करते हुए उससे कहासंभाल अपनी घोड़ी, मैंने नौकरी छोड़ी ।
- हाथों से नाखून कहाँ दूर हो सकते हैं (जिनसे बहुत नज़दीकी रिश्ता हो उन्हें छोड़ा नहीं जा सकता) अरे, बड़े भाई की बात का बुरा मानकर उससे बोलचाल बंद क्यों कर दी? हाथों से नाखून कहाँ दूर हो सकते हैं। 30. हाथी को गन्ने ही सूझते हैं (स्वार्थी व्यक्ति को सदा अपने स्वार्थ सिद्ध करने से ही मतलब होता है) मोहन तुम्हारा यह काम नहीं करेगा, क्योंकि वह तो हर काम करने से पहले यह देखता है कि उसे इसमें लाभ होगा कि नहीं । सच है, हाथी को गन्ने ही सूझते हैं ।
नीचे दी गई लोकोक्तियों के अर्थ समझकर वाक्य बनाइए: (अभ्यास लोकोक्तियाँ हल सहित)
1) अशर्फ़ियाँ लुटें और कोयलों पर मोहर (एक ओर तो लापरवाही से खर्च करना और दूसरी ओर पैसे-पैसे का हिसाब रखना) सतीश हर रोज़ होटलों में दारू और जुए पर हज़ारों रुपये उड़ा देता है लेकिन बेचारे मज़दूरों को उनका वेतन देने की बात आती है तो बहाने बनाने लगता है। इसे कहते हैं अशर्फ़ियाँ लुटें और कोयलों पर मोहर।
2) आगे कुआँ पीछे खाई (दोनों ओर संकट) बदमाशों ने कुलबीर को रास्ते में घेर लिया और उससे कहने लगे कि या तो वह अपना सारा सामान उनके हवाले कर दे या गोली खाने के लिए तैयार हो जाए। कुलबीर के लिए तो वैसी ही बात हो गई कि आगे कुआँ पीछे खाई।
3) उल्टे बाँस बरेली को (विपरीत काम करना) राजू अपने दोस्त सें मिलने दिल्ली से आगरा गया और दिल्ली से उसके लिए पेठा ले गया। इसी को कहते हैं उल्टे बाँस बरेली को।
4) एक और एक ग्यारह होते हैं (एकता में बल है) हमें सब के साथ मिलजुल कर रहना चाहिए। किसी ने सच ही कहा है कि एक और एक ग्यारह होते हैं।
5) एक अनार सौ बीमार (वस्तु थोड़ी, माँग ज़्यादा) एक कारखाने में चपड़ासी के एक पद लिए आवेदन माँगे गए तो वहाँ दो हज़ार से भी अधिक लोगों ने आवेदन किया। यह तो वही बात हुई कि एक अनार और सौ बीमार।
6) ओस चाटे प्यास नहीं बुझती (कम वस्तु से तृप्ति नहीं होती) रमेश बेटे के विवाह में बहुत सोच-सोचकर कंजूसी से खर्च कर रहा था तो उसके पिता ने उसे कहा कि वह हाथ ज़रा खुला रखे, यहाँ ओस चाटने से प्यास नहीं बुझती।
7) कंगाली में आटा गीला (मुसीबत पर मुसीबत) एक दुर्घटना में गजेंद्र का एक हाथ कट गया और ऊपर से कोरोना के कारण नौकरी भी चली गई। इसी को कहते हैं कंगाली में आटा गीला।
8) कागज़ हो तो हर कोई बाँचे, भाग न बाँचा जाए (कागज़ पर लिखा तो पढ़ा जा सकता है किंतु किस्मत में लिखा नहीं) सावित्री का सारा जीवन ही दुखों में बीता। बचपन में ही माता-पिता चल बसे। लोगों के घरों में कामकाज करते हुए बचपन बीता। विवाह हुआ तो पति शराबी और जुआखोर निकला। बुढ़ापे में बच्चों ने भी सहारा नहीं दिया। सच ही है कि कागज़ हो तो हर कोई बाँचे, भाग न बाँचा जाए।
9) खोदा पहाड़ निकली चुहिया (बहुत मेहनत करने पर कम फल प्राप्त होना) सतीश लाखों रुपये कमाने की चाह में गाँव का सब कुछ बेचकर शहर आया पर केवल पंद्रह सौ रुपये मासिक की नौकरी मिली। इसे कहते हैं – खोदा पहाड़ निकली चुहिया।
10) गंगा गए गंगादास, जमना गए जमनादास (सिद्धांतहीन व्यक्ति) आजकल के अधिकतर नेताओं के पास कोई सिद्धांत नहीं है। वे अपने स्वार्थ के लिए किसी भी दल का दामन थाम सकते हैं। उनका हाल ऐसा है कि गंगा गए गंगादास, जमना गए जमनादास।
11) घमंडी का सिर नीचा (अहंकारी को सदा मुँह की खानी पड़ती है) रावण के पास ज्ञान, भक्ति, शक्ति, सत्ता, धन, सेना सब कुछ था। परंतु उसके अहंकार ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा। सच ही है कि घमंडी का सिर नीचा।
12) चोर के घर मोर (चालाक का अधिक चालाक से सामना होना) राम लाल अपने आप को बहुत चालाक समझता है, किसी को अपने सामने बात नहीं करने देता। परंतु इस बार राजीव के सामने उसकी एक न चली। इसी को कहते हैं चोर के घर मोर।
13) जाको राखे साइयां मार सके न कोय (जिसका परमात्मा रक्षक हो, उसे कोई नहीं मार सकता) इतनी भयानक दुर्घटना में साहिल का जीवित बच जाना किसी चमत्कार से काम नहीं है। तभी तो कहते हैं कि जाको राखे साइयां मार सके न कोय।
14) डूबते को तिनके का सहारा (मुसीबत में थोड़ी सी मदद भी बहुत मायने रखती है) जब राहुल के पिता जी के दिल का ऑप्रेशन हुआ तो उसके सभी दोस्तों ने थोड़े-थोड़े रुपये इकट्ठे कर के उसकी सहायता की। बेशक रुपये बहुत ज़्यादा नहीं थे परंतु राहुल के लिए बहुत मायने रखते थे। उसके लिए तो यही रुपये डूबते को तिनके का सहारा थे।
15) दूर के ढोल सुहावने (दूर से सब अच्छा लगता है) सूरज सुरीला मेरा मनपसंद गायक है। परंतु उसे निजी तौर पर मिलने पर उसके व्यवहार से मैं बहुत दुखी हुआ। किसी ने सच ही कहा है कि दूर के ढोल सुहावने लगते हैं।
16) नीम हकीम खतरा जान (अधूरा ज्ञान हानिकारक होता है) बलजीत बड़ी डींगें हाँकता था कि वह बहुत अच्छा मोबाईल मेकैनिक है। लेकिन जब मैंने उसे अपना मोबाईल ठीक करने के लिए दिया तो उसने उसे और भी खराब कर दिया। सच ही कहते हैं कि नीम हकीम खतरा जान।
17) प्यासा कुएँ के पास जाता है, कुआँ प्यासे के पास नहीं (जिसे सहायता लेनी होती है, वह सहायता देने वाले के पास स्वयं जाता है) राधा ने मुझसे पूछा कि तुम पढ़ने के लिए गीता के पास क्यों जाती हो, वह तुम्हें पढ़ाने तुम्हारे पास क्यों नहीं आती? तो मैंने उत्तर दिया कि प्यासा कुएँ के पास जाता है, कुआँ प्यासे के पास नहीं।
18) मन चंगा तो कठौती में गंगा (मन पवित्र हो तो घर ही तीर्थ के समान) मेरे पिता जी कभी किसी तीर्थ स्थान की यात्रा के लिए नहीं जाते। जब मैंने उनसे इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि उनके लिए तो उनका कर्म ही सबसे बड़ी पूजा और घर ही सबसे बड़ा तीर्थ है। वे तो यह मानते हैं कि मन चंगा तो कठौती में गंगा।
19) साँप मरे, लाठी न टूटे (हानि भी न हो और काम भी बन जाए) कम वेतन के कारण वह कई बार स्कूल को छोड़ने के बारे में सोच चुका था परंतु बच्चों की पढ़ाई का नुकसान भी नहीं करना चाहता था। वह कुछ ऐसा उपाय चाहता था जिससे साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।
20) होनहार बिरवान के होत चीकने पात (महान व्यक्ति की महानता के लक्षण बचपन से ही दिखाई देने लगते हैं) कार्तिक सात वर्ष का है। वह पढ़ाई में तो अव्वल है ही इसके साथ ही संगीत, खेल, चित्रकला, समान्य ज्ञान आदि में भी उसका कोई मुकाबला नहीं। वह बड़ा होकर अवश्य अपने माता-पिता और अध्यापकों का नाम रौशन करेगा। सच ही कहते हैं कि होनहार बिरवान के होत चीकने पात।