1. सूरदास • विनय के पद  • वात्सल्य भाव

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1.सूरदास

विनय के पद (सप्रसंग व्याख्या)

1. चरण कमल बन्दौ हरि राई

प्रसंग:

यह पद महाकवि सूरदास द्वारा रचित है और उनकी प्रसिद्ध कृति सूरसागरसे लिया गया है। यह पद “विनय के पद” शीर्षक के अंतर्गत आता है। इसमें सूरदास ने भगवान श्रीकृष्ण की अपार महिमा का गुणगान करते हुए उनके कमल रूपी चरणों की वंदना की है।

व्याख्या:

सूरदास कहते हैं कि वह भगवान श्री हरि (श्रीकृष्ण) के कमल रूपी चरणों की वंदना करते हैं। इन चरणों की कृपा से एक लँगड़ा व्यक्ति भी पहाड़ों पर चढ़ने का सामर्थ्य पा सकता है। एक अंधे व्यक्ति को सब कुछ दिखाई देने लगता है, बहरा सुनने लगता है, और गूंगा फिर से बोलने लगता है। उनकी कृपा से एक कंगाल या दरिद्र व्यक्ति भी अपने सिर पर छत्र धारण करके राजा की तरह चल सकता है। अंत में, सूरदास कहते हैं कि ऐसे करुणामय स्वामी के चरणों की वह बार-बार वंदना करते हैं।

2. प्रभु मोरे अवगुन चित न धरौ

प्रसंग:

यह पद भी सूरदास द्वारा रचित है और “विनय के पद” शीर्षक के अंतर्गत आता है। इसमें वह अपने आराध्य श्रीकृष्ण से अपने दोषों को अनदेखा करने और उन्हें भवसागर से पार उतारने की प्रार्थना करते हैं।

व्याख्या:

सूरदास प्रभु से कहते हैं कि वह उनके अवगुणों (दोषों) पर ध्यान न दें। वह कहते हैं कि हे प्रभु! आपका नाम ही समदरसी‘ (सबको समान भाव से देखने वाला) है, इसलिए अगर आप चाहें तो मुझे पार लगा सकते हैं। वह उदाहरण देते हुए कहते हैं कि एक नदी और एक नाला, दोनों का पानी गंदा होता है। लेकिन जब वे दोनों मिलकर एक हो जाते हैं, तो उन्हें सुरसरि‘ (देवनदी, गंगा) कहा जाने लगता है। इसी तरह, एक लोहा जो पूजा में रखा जाता है और दूसरा जिसे शिकारी के घर में रखा जाता है, दोनों को जब पारस पत्थर छूता है, तो वह उनके गुणों और अवगुणों पर ध्यान दिए बिना दोनों को खरा सोना बना देता है। सूरदास कहते हैं कि यह सारी दुनिया माया का एक भ्रमजाल है। इसलिए हे प्रभु, इस बार मुझे इस संसार रूपी सागर से पार उतारो, क्योंकि अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो आपकी प्रतिज्ञा (प्रण) टूट जाएगी।

वात्सल्य-भाव (सप्रसंग व्याख्या)

1. खेलन अब मेरी जात बलैया

प्रसंग:

यह पद सूरदास द्वारा रचित है और “वात्सल्य-भाव” शीर्षक के अंतर्गत आता है। इसमें कवि ने श्रीकृष्ण की बाल लीला का वर्णन किया है, जहाँ वह अपनी माँ यशोदा से बलराम भैया द्वारा चिढ़ाए जाने की शिकायत कर रहे हैं।

व्याख्या:

श्रीकृष्ण अपनी माँ से कहते हैं कि वह अब खेलने नहीं जा रहे हैं। वह शिकायत करते हैं कि जब भी वह लड़कों के साथ होते हैं तो बलराम भैया उन्हें चिढ़ाते हैं। वह उनसे कहते हैं कि उनके पिता वासुदेव हैं और देवकी उनकी माँ हैं। बलराम उन्हें यह भी कहते हैं कि नंद बाबा ने वासुदेव को कुछ देकर उन्हें मोल (खरीदा) लिया है। अब वह नंद बाबा को बाबाऔर यशोदा माँ को मैयाकहते हैं। इस तरह की बातें कहकर सभी ग्वाल-बाल भी उन्हें चिढ़ाते हैं, जिससे वह नाराज़ होकर वहाँ से चले आते हैं। इस बात को पीछे खड़े नंद बाबा सुन लेते हैं और हँसते हुए कृष्ण को गले लगा लेते हैं। सूरदास कहते हैं कि जब नंद बाबा ने बलराम को डांटा, तो कन्हैया मन ही मन बहुत खुश हुए।

2. मैया मेरी, मैं नहिं माखन खायो

प्रसंग:

यह पद भी सूरदास द्वारा रचित है और “वात्सल्य-भाव” शीर्षक के अंतर्गत आता है। इसमें बालकृष्ण अपनी माँ यशोदा के सामने माखन चोरी का आरोप लगने पर सफाई दे रहे हैं।

व्याख्या:

श्रीकृष्ण अपनी माँ यशोदा से कहते हैं कि माँ, मैंने माखन नहीं खाया है। वह बताते हैं कि सुबह होते ही माँ ने उन्हें गायों के पीछे मधुबन भेज दिया। वह चार पहर तक बंसीवट के जंगल में भटकते रहे और शाम को ही घर वापस आए। वह कहते हैं कि उनकी भुजाएँ छोटी हैं, इसलिए वह माखन की मटकी तक कैसे पहुँच पाते? वह आरोप लगाते हैं कि सारे ग्वाल-बाल उनके दुश्मन बन गए हैं और उन्होंने ही ज़बरदस्ती उनके चेहरे पर माखन लगा दिया है। कृष्ण आगे कहते हैं कि माँ तुम बहुत भोली हो और इन ग्वाल-बालों की बातों पर विश्वास कर लेती हो। वह कहते हैं कि तुम्हारे मन में कुछ और ही बात आ गई है, शायद तुम मुझे पराया बच्चा समझने लगी हो। इतना कहकर कृष्ण कहते हैं कि “यह लो अपनी लाठी और कंबल, तुमने मुझे बहुत नचाया है”। सूरदास कहते हैं कि यह सुनकर यशोदा माँ हंस पड़ीं और कृष्ण को गले लगा लिया।

प्रश्न 1. विनय पदके आधार पर सूरदास की भक्ति भावना को अपने शब्दों में स्पष्ट करें।

उत्तर- विनयपदों के आधार पर, सूरदास की भक्ति भावना श्री कृष्ण के प्रति पूर्ण समर्पण और असीम श्रद्धा को दर्शाती है। वे प्रभु की महिमा का गुणगान करते हैं, जिनकी कृपा से लंगड़ा व्यक्ति पहाड़ पर चढ़ सकता है और अंधा व्यक्ति सब कुछ देख सकता है। यह भक्ति शांत रस से परिपूर्ण है, जहाँ भक्त अपने प्रभु के चरणों की बार-बार वंदना करता है।

प्रश्न 2. खेलन अब मेरी जात बलैयामें श्री कृष्ण खेलने क्यों नहीं जाना चाहते हैं। संकलित पद के आधार पर उत्तर दें।

उत्तर- खेलन अब मेरी जात बलैयापद में श्री कृष्ण खेलने इसलिए नहीं जाना चाहते क्योंकि उनके बड़े भाई बलराम उन्हें चिढ़ाते हैं। बलराम उनसे कहते हैं कि उनके माता-पिता देवकी और वसुदेव हैं। बलराम की देखा-देखी सभी ग्वाल-बाल भी उन्हें चिढ़ाते हैं, जिससे कृष्ण दुखी होकर खेलने से मना कर देते हैं।

प्रश्न 3. जिय तेरे कछु भेद उपजि है जान परायो जायोपंक्ति में श्री कृष्ण माँ यशोदा से क्या कहना चाहते हैं? ‘परायो जायोकी व्याख्या करते हुए श्री कृष्ण जन्म की घटना का वर्णन करो।

उत्तर- इस पंक्ति में श्री कृष्ण माँ यशोदा से कहना चाहते हैं कि उनके मन में यह भेदभाव उत्पन्न हो गया है कि वह किसी और के पुत्र हैं, इसीलिए वह ग्वाल-बालों की झूठी बातों पर विश्वास कर लेती हैं। परायो जायोका अर्थ है पराया जन्मा हुआ। यह शब्द श्री कृष्ण के जन्म की घटना की ओर संकेत करता है, जहाँ उनका जन्म देवकी की कोख से हुआ था, लेकिन उन्हें कंस से बचाने के लिए नंद बाबा और यशोदा के पास लाया गया था।

प्रश्न 4. सूरदास ने बाल क्रीड़ा का मनोवैज्ञानिक रूप से कैसे वर्णन किया है?

उत्तर- सूरदास ने बाल क्रीड़ा का मनोवैज्ञानिक रूप से वर्णन किया है, जिससे लगता है मानो वह जन्म से अंधे नहीं थे। उन्होंने श्री कृष्ण की बाल सुलभ हरकतों, जैसे माखन चोरी का हठ, बलराम से शिकायतें करना, दूध न पीने का बहाना, और चाँद को खिलौने के रूप में लेने आदि का अत्यंत स्वाभाविक चित्रण किया है। यह चित्रण इतना जीवंत और यथार्थ है कि इसमें बाल मनोविज्ञान का गहरा ज्ञान झलकता है।

(ख) सप्रसंग व्याख्या करें

प्रश्न 5. चरण कमल बन्दौ हरि राई ………………………………… बार बार बन्दौं तिहिं पाई।।

प्रसंग:

यह पद महाकवि सूरदास द्वारा रचित है और उनकी प्रसिद्ध कृति सूरसागरसे लिया गया है। यह पद “विनय के पद” शीर्षक के अंतर्गत आता है। इसमें सूरदास ने भगवान श्रीकृष्ण की अपार महिमा का गुणगान करते हुए उनके कमल रूपी चरणों की वंदना की है।

व्याख्या:

सूरदास कहते हैं कि वह भगवान श्री हरि (श्रीकृष्ण) के कमल रूपी चरणों की वंदना करते हैं। इन चरणों की कृपा से एक लँगड़ा व्यक्ति भी पहाड़ों पर चढ़ने का सामर्थ्य पा सकता है। एक अंधे व्यक्ति को सब कुछ दिखाई देने लगता है, बहरा सुनने लगता है, और गूंगा फिर से बोलने लगता है। उनकी कृपा से एक कंगाल या दरिद्र व्यक्ति भी अपने सिर पर छत्र धारण करके राजा की तरह चल सकता है। अंत में, सूरदास कहते हैं कि ऐसे करुणामय स्वामी के चरणों की वह बार-बार वंदना करते हैं।

प्रश्न 6. खेलन अब मेरी जात बलैया, …………………………….. हरख कन्हैया।।

प्रसंग:

यह पद सूरदास द्वारा रचित है और “वात्सल्य-भाव” शीर्षक के अंतर्गत आता है। इसमें कवि ने श्रीकृष्ण की बाल लीला का वर्णन किया है, जहाँ वह अपनी माँ यशोदा से बलराम भैया द्वारा चिढ़ाए जाने की शिकायत कर रहे हैं।

व्याख्या:

श्रीकृष्ण अपनी माँ से कहते हैं कि वह अब खेलने नहीं जा रहे हैं। वह शिकायत करते हैं कि जब भी वह लड़कों के साथ होते हैं तो बलराम भैया उन्हें चिढ़ाते हैं। वह उनसे कहते हैं कि उनके पिता वासुदेव हैं और देवकी उनकी माँ हैं। बलराम उन्हें यह भी कहते हैं कि नंद बाबा ने वासुदेव को कुछ देकर उन्हें मोल (खरीदा) लिया है। अब वह नंद बाबा को बाबाऔर यशोदा माँ को मैयाकहते हैं। इस तरह की बातें कहकर सभी ग्वाल-बाल भी उन्हें चिढ़ाते हैं, जिससे वह नाराज़ होकर वहाँ से चले आते हैं। इस बात को पीछे खड़े नंद बाबा सुन लेते हैं और हँसते हुए कृष्ण को गले लगा लेते हैं। सूरदास कहते हैं कि जब नंद बाबा ने बलराम को डांटा, तो कन्हैया मन ही मन बहुत खुश हुए।

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