2. मीराबाई
• ब्रजभूमि • समर्पण •सद्गुरु महिमा• उपदेश
ब्रजभूमि (सप्रसंग व्याख्या)
1. आली म्हाने लागे वृन्दावन नीको
प्रसंग:
यह पद मीराबाई द्वारा रचित है और उनकी रचना ‘ब्रजभूमि’ शीर्षक के अंतर्गत आती है। इसमें उन्होंने वृंदावन की पवित्रता और सुंदरता का वर्णन किया है।
व्याख्या:
मीरा कहती हैं कि उन्हें वृंदावन बहुत अच्छा लगता है। वहाँ हर घर में तुलसी और ठाकुर जी की पूजा होती है, और गोविंद जी के दर्शन होते हैं। यमुना में निर्मल जल बहता है और भोजन में दूध-दही मिलता है, जो वृंदावन के सात्विक जीवन को दिखाता है। मीरा कहती हैं कि श्रीकृष्ण रत्नसिंहासन पर विराजमान हैं और उनके मुकुट पर तुलसी सुशोभित है। कुंजों में घूमती हुई राधिका को कृष्ण की मुरली की ध्वनि सुनाई देती है। मीरा के प्रभु गिरधर नागर हैं और वह कहती हैं कि भजन के बिना मनुष्य का जीवन व्यर्थ है।
समर्पण (सप्रसंग व्याख्या)
2. हेरी मैं तो प्रेम-दिवाणी, मेरो दरद न जाणे कोय
प्रसंग:
यह पद मीराबाई द्वारा रचित है और ‘समर्पण’ शीर्षक के अंतर्गत संकलित है। इसमें मीरा ने अपने प्रेम की पीड़ा और विरह का वर्णन किया है।
व्याख्या:
मीरा कहती हैं कि वह प्रेम की दीवानी हैं और उनकी पीड़ा को कोई नहीं जानता। घायल की पीड़ा केवल वही जानता है जिसे चोट लगी हो, और जौहरी ही जौहर के गुण को जानता है। मीरा कहती हैं कि उनकी सेज (शय्या) सूली पर है और वह उस पर कैसे सो सकती है। उनके प्रियतम की सेज गगन-मंडल पर है, तो उनसे मिलना कैसे संभव है। वह कहती हैं कि इस पीड़ा से व्याकुल होकर वह वन-वन भटक रही हैं, लेकिन उन्हें कोई वैद्य (उपचार करने वाला) नहीं मिला। मीरा के अनुसार, यह रोग केवल उस साँवले (श्रीकृष्ण) से मिलने पर ही समाप्त होगा।
सद्गुरु महिमा (सप्रसंग व्याख्या)
3. पायो जी मैनें राम-रतन धन पायो
प्रसंग:
यह पद मीराबाई द्वारा रचित है और ‘सद्गुरु महिमा’ शीर्षक के अंतर्गत आता है। इसमें मीरा ने सद्गुरु की कृपा से प्राप्त हुए राम नाम रूपी अमूल्य धन का वर्णन किया है।
व्याख्या:
मीरा कहती हैं कि उन्हें राम नाम रूपी धन मिल गया है। उनके सद्गुरु ने कृपा करके उन्हें यह अमूल्य वस्तु प्रदान की है। उन्होंने जन्म-जन्मांतर की पूँजी प्राप्त कर ली है और संसार की अन्य सभी वस्तुओं को खो दिया है। यह धन ऐसा है जिसे कोई चोर चुरा नहीं सकता और यह दिन-प्रतिदिन बढ़ता जाता है। मीरा कहती हैं कि ‘सत्य‘ की नाव में बैठकर और सद्गुरु रूपी मल्लाह की मदद से वह भवसागर को पार कर पाई हैं। अंत में वह अपने प्रभु गिरधर नागर का हर्षित होकर यश गाती हैं।
उपदेश (सप्रसंग व्याख्या)
4. नहिं ऐसो जनम बारंबार
प्रसंग:
यह पद मीराबाई द्वारा रचित है और ‘उपदेश’ शीर्षक के अंतर्गत संकलित है। इसमें मीरा ने मानव जीवन की श्रेष्ठता और इसके क्षणभंगुर होने का वर्णन किया है।
व्याख्या:
मीरा कहती हैं कि ऐसा मानव जीवन बार-बार नहीं मिलता। यह शायद किसी पुण्य के कारण ही मिला है, इसलिए इसे व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए। यह जीवन पल-पल घटता है, जिसके बीतने में देर नहीं लगती। जिस तरह वृक्ष से टूटा हुआ पत्ता दोबारा डाल पर नहीं जुड़ सकता, उसी तरह यह जीवन भी एक बार जाने पर वापस नहीं आता। संसार रूपी सागर की धारा बहुत गहरी और तेज़ है। मीरा सलाह देती हैं कि ‘राम नाम‘ की नाव बनाकर इस संसार रूपी सागर को पार किया जा सकता है। अंत में वह कहती हैं कि यह दुनिया एक ऐसी बाजी है जहाँ कभी जीत होती है तो कभी हार। इस दुनिया में संत और ज्ञानी पुकार-पुकार कर यह उपदेश देते हैं कि यह जीवन केवल चार दिनों का है।
अभ्यास प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. मीराबाई ने ब्रज भूमि की पवित्रता व सुंदरता का कैसे बखान किया है?
उत्तर- मीराबाई ने ब्रजभूमि की पवित्रता का बखान करते हुए कहा है कि उन्हें वृंदावन बहुत अच्छा लगता है। वहाँ हर घर में तुलसी की पूजा होती है और ठाकुर जी के दर्शन होते हैं। यमुना का निर्मल जल और भोजन में दूध-दही का सात्विक जीवन वृंदावन की सुंदरता को दर्शाता है।
प्रश्न 2. मीरा के विरह में अलौकिक प्रेम के दर्शन होते हैं – स्पष्ट करें।
उत्तर- मीरा का विरह अलौकिक है क्योंकि वह अपने प्रियतम (श्रीकृष्ण) की पीड़ा में इतनी व्याकुल हैं कि उन्हें कोई उपचार नहीं मिल रहा है। उनके अनुसार, उनकी यह पीड़ा तभी समाप्त होगी जब वह अपने साँवरे (श्रीकृष्ण) से मिलेंगी। यह पीड़ा और मिलन की चाह लौकिक न होकर, आत्मा का परमात्मा से मिलन है।
प्रश्न 3. मीरा ने ‘वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु‘ में किस अमूल्य वस्तु का वर्णन किया है?
उत्तर- मीरा ने ‘वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु‘ में ‘राम-रतन धन‘ (राम नाम रूपी धन) का वर्णन किया है। यह एक ऐसी अमूल्य वस्तु है जिसे कोई चोर चुरा नहीं सकता और यह दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जाता है।
प्रश्न 4. पाठ्य-पुस्तक में संकलित पदों के आधार पर मीराबाई की भक्ति भावना एवं विरह का चित्रण करें।
उत्तर- मीरा की भक्ति में पूर्ण समर्पण और प्रेम का भाव है। वह अपने प्रभु से मिलने के लिए वन-वन भटकती हैं और उनकी पीड़ा को कोई नहीं समझ पाता। उनका विरह अलौकिक है और वे मानती हैं कि उनकी पीड़ा का एकमात्र उपचार उनके प्रियतम श्रीकृष्ण से मिलना है।