पाठ 5 गाता खग (सुमित्रानन्दन)

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सप्रसंग व्याख्या

गाता खग प्रातः उठकर    

सुंदर, सुखमय जग-जीवन!

गाता खग संध्या -तट पर

मंगल, मधुमय जग-जीवन। (1)

प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक-10 में सकंलित सुमित्रानन्दन पंत की कविता गाता खगमें से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवि ने प्रकृति के विविध स्वरूपों का वर्णन किया है।

व्याख्या- कवि कहता है कि प्रभात के समय पक्षी उठकर मधुर गीत गाता है और संसार के लोगों के सुखी एंव समृद्ध जीवन की कामना करता है। संध्या यानि शाम के समय वह कल्याणकारी और मधुमय जीवन के गीत गाता है।

कहती अपलक तराविल

अपनी आँखों का अनुभव,

अवलोक आँख आँसू की

भर आतीं आँखें नीरव! (2)

प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक-10 में सकंलित सुमित्रानन्दन पंत की कविता गाता खगमें से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवि ने प्रकृति के विविध स्वरूपों का वर्णन किया है।

व्याख्या- कवि कहता है कि तारों की पंक्तियाँ अपनी आँखों से देखा हुआ अनुभव बताती हैं। वे मानव के दुःख और आँसू देखकर चुपचाप ओस के रूप में मानो स्वयं भी आँसू बहाती हैं।

हँस मुख प्रसून सिखलाते

पल भर है, जो हँस पाओ,

अपने उर की सौरभ से

जग का आँगन भर जाओ। (3)

प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में सकंलित सुमित्रानन्दन पंत की कविता गाता खगमें से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवि ने प्रकृति के विविध स्वरूपों का वर्णन किया है।

व्याख्या- कवि कहता है कि मुस्कुराते हुए फूल मानव को यह सन्देश देते हैं कि ये जीवन बहुत छोटा है और हमें सदा मुस्कुराते रहना चाहिए। वह हमें यह सन्देश देते हैं कि संसार में आशा और उम्मीद की खुशियाँ बाँटकर संसार के आँगन को मुस्कराहट से भर दो।

उठ-उठ लहरें कहतीं यह

हम कूल विलोक ने पाएँ,

पर इस उमंग में बह-बह

नित आगे बढ़ती जाएँ। (4)

प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में सकंलित सुमित्रानन्दन पंत की कविता गाता खगमें से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवि ने प्रकृति के विविध स्वरूपों के माध्यम से मनुष्य को जीवन में आशावादी बनने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या- कवि कहता है कि पानी की लहरें उठ-उठकर मानव को बिना असफलता या किसी डर की परवाह किए बिना आगे बढ़ते रहने का संदेश देती हैं चाहे पानी की लहरों को किनारा नहीं दिखता पर वे फिर भी इसी आशा और विश्वास के साथ आगे बढ़ती जाती हैं कि उन्हें किनारा अवश्य मिलेगा, वे अपने लक्षय किनारे को अवश्य पा लेंगी। पानी की लहरें उमंग में बिना रुके आगे ही आगे बढ़ती रहती हैं।

कँप कँप हिलोर रह जाती

रे मिलता नहीं किनारा।

बुद्बुद् विलीन हो चुपके

पा जाता आशय सारा। (5)

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित प्रकृति के कवि पंत जी की कविता गाता खगमें से ली गई हैं। इसमें कवि ने प्रकृति के उद्खों के माध्यम से मनुष्य को आशावादी बनने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या-लहरें काँपती-काँपती ही रह जाती हैं परंतु उन सभी को किनारा तो नहीं मिल पाता। इधर पानी का बुलबुला चुपचाप पानी में ही विलीन होकर जीवन का सारा उद्देश्यों समझ जाता है कि यह जीवन नश्वर है, यहीं उत्पन्न होना है और यहीं समाप्त होना है।

 (क) विषय-बोध

1.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए :

प्रश्न 1. पक्षी प्रातः उठकर क्या गाता है?

उत्तर-पक्षी प्रातः उठकर संसार के समस्त प्राणियों के सुख एवं समृद्ध जीवन की कामना के गीत गाता है।

प्रश्न 2. तारों की पंक्तियों की आँखों का अनुभव क्या है?

उत्तर-तारों की पंक्तियाँ मानव के दु:ख और आँसू देखकर ओस के रूप में स्वयं भी आँसू बहाती हैं।

प्रश्न 3. फूल हमें क्या सन्देश देते हैं?

उत्तर-फूल हमें हमेशा मुस्कराने का सन्देश देते हैं।

प्रश्न 4. लहरें किस उमंग में आगे बढ़ती जाती हैं?

उत्तर-लहरें अपने लक्ष्य अर्थात किनारे से मिलने की आस में उमंग के साथ आगे बढ़ती जाती हैं।

प्रश्न 5. बुलबुला विलीन होकर क्या पा जाता है?

उत्तर-बुलबुला विलीन होकर अपने जीवन के अंतिम लक्ष्य को पा जाता है।

II. निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए

(ख) भाषा-बोध

I. निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखें:

खग   पक्षी, विहग, पंछी, नभचर।

प्रसून  पुष्प, फूल, कुसुम, सुमन।

उरहृदय, छाती, मन, चित्त।

किनारातट, कूल , तीर, कगार, कछार।

II. निम्नलिखित शब्दों की भाववाचक संज्ञा बनाएं:

सुन्दर              सुन्दरता

अपना              अपनापन

हँसना              हँसमुख

नीरव              नीरवता

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