पाठ 6 जड़ की मुसकान (हरिवंश राय बच्चन)

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Jad ki Muskan

 प्रसंग सहित व्यख्या

एक दिन तने ने भी कहा था,        

जड़ ?

जड़ तो जड़ ही है,

जीवन से सदा डरी रही है,

और यही है उसका सारा इतिहास

कि ज़मीन में मुँह गड़ाए पड़ी रही है

लेकिन मैं ज़मीन से ऊपर उठा,

बाहर निकला,

बढ़ा हूँ

मज़बूत बना हूँ,

इसी से तो तना हूँ।

प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित श्री हरिवंश राय बच्चन की कविता जड़ की मुस्कान में से ली गई हैं। इस कविता के माध्यम से कवि व्यक्ति को अपने मूल को सदा याद रखने की प्रेरणा देते हैं।

व्याख्या- एक दिन तने ने जड़ को सम्बोधित करते हुए कहा कि तू तो जड़ है यानि और ज़िन्दगी से सदा डरी रही है और तेरा यही इतिहास है कि तू धरती के अन्दर मुँह गड़ाए अर्थात मुँह छिपाए पड़ी है। तना अपने आप को महत्त्वपूर्ण बताते हुए कहता है कि मैं ज़मीन से ऊपर उठा, बाहर निकला, बढ़ा हूँ, मजबूत भी हूँ इसलिए आज मैं तनकर खड़ा हूँ।

एक दिन डालों ने भी कहा था,

तना?

किस बात पर है तना?

जहाँ बिठाल दिया गया था वहीं पर है बना;

प्रगतिशील जगती में तिल भर नहीं डोला है,

खाया है, मोटाया है, सहलाया चोला है;

लेकिन हम तने से फूटी,

दिशा-दिशा में गई

ऊपर उठीं,

नीचे आई

हर हवा के लिए दोल बनीं, लहराई,

इसी से तो डाल कहलाई।

प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित श्री हरिवंश राय बच्चन की कविता जड़ की मुस्कानमें से ली गई हैं। इस कविता के माध्यम से कवि व्यक्ति को अपने मूल को सदा याद रखने की प्रेरणा देते हैं।

व्याख्या- एक दिन तने से ही निकली हुई डालियों ने अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करते हुए तने को कहा कि तू किस बात का अभिमान कर रहा है। तुझे जहाँ बिठा दिया गया तू वहीं पर लहराती है। इस विकासशील युग में सभी आगे बढ़ते हैं लेकिन तू तो यहीं पर खाया-पीया और मोटापे से भरकर यही पड़ा रहा। कभी इधर-उधर डोला नहीं अर्थात् तूने कभी हवा में झूलने का, हिलने का आनन्द ही नहीं लिया। हम तुझ से ही निकली आज हवा के साथ-साथ झूलती हैं, इसीलिए हमारा नाम डाली है।

एक दिन पत्तियों ने भी कहा था,

डाल?

डाल में क्या है कमाल?

माना वह झूमी, झुकी, डोली है

ध्वनि-प्रधान दुनिया में

एक शब्द भी वह कभी बोली है ?

लेकिन हम हर-हर स्वर करती हैं

मर्मर स्वर मर्मभरा भरती हैं,

नूतन हर वर्ष हुई,

पतझर में झर

बहार-फूट फिर छहरती हैं,

विथकित-चित्त पंथी का

शाप-ताप हरती हैं।

प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित श्री हरिवंश राय बच्चन की कविता जड़ की मुस्कानमें से ली गई हैं। इस कविता के माध्यम से कवि व्यक्ति को अपने मूल को सदा याद रखने की प्रेरणा देते हैं।

व्याख्या- इन पंक्तियों में डाली पर उसी की पत्तियाँ व्यंग्य करते हुए कहती हैं कि तुम चाहे हवा में डोलती हो पर हर-हर की आवाज़ अर्थात पत्तों के सरसराने की आवाज़ तो हम हीं करती हैं। इस ध्वनि प्रधान दुनिया में तुम एक शब्द नहीं बोल सकती। हम हर पतझड़ में झड़ कर बहार के मौसम में फिर से नए रुप में उभरकर पथिकों के मन के दु:खों और उनके तन की तपन को दूर करती हैं ऐसा सामर्थ्य तुम में नहीं है।

एक दिन फूलों ने भी कहा था,

पत्तियाँ ?

पत्तियों ने क्या किया ?

संख्या के बल पर बस डालों को छाप लिया,

डालों के बल पर ही चल-चपल रही हैं,

हवाओं के बल पर ही मचल रही हैं

लेकिन हम अपने से खुले, खिले, फूले हैं—

रंग लिए, रस लिए, पराग लिए—

हमारी यश-गंध दूर-दूर-दूर फैली हैं,

भ्रमरों ने आकर हमारे गुन गाए हैं,

हम पर बौराए हैं।

सबकी सुन पाई है,

जड़ मुसकराई है।

प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित श्री हरिवंश राय बच्चन की कविता जड़ की मुस्कानमें से ली गई हैं। इस कविता के माध्यम से कवि व्यक्ति को अपने मूल को सदा याद रखने की प्रेरणा देते हैं

व्याख्या- फूल अपने आप को पत्तियों से श्रेष्ठ सिद्ध करते हुए पत्तियों पर व्यंग्य करते कहते हैं कि चाहे पत्तियों ने डालियों को भर दिया परन्तु उनका अस्तित्व डाली के कारण ही है। परन्तु हम फूल तो स्वयं खिले हैं फूले हैं, रस भरा है, पराग लिए हैं और हमारी सुगंध की प्रशंसा दूर-दूर तक फैली है। भँवरे आकर उनका गुणगान करते हैं। सभी हम पर पगलाए हुए हैं अर्थात् सभी भँवरे हम पर दीवाने हैं और पागलों की तरह हम पर अपना प्यार बरसाते हैं। जड़ उन सबकी बातें सुनकर मुस्कुरा देती है। क्योंकि जड़ को पता है कि इन सबका अस्तित्व उसके कारण ही है। परन्तु सब अपने घमण्ड में चूर हैं और अपने आप को ही श्रेष्ठ सिद्ध करना चाहते हैं।

अभ्यास के प्रश्न-उत्तर

(क) विषय-बोध

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए:

प्रश्न 1. एक दिन तने ने जड़ को क्या कहा ?

उत्तर- एक दिन तने ने जड़ से कहा कि वो तो निष्क्रिय है। वो ज़िन्दगी से सदा डरी रही है और धरती के अन्दर मुँह गड़ाए पड़ी रहती है।

प्रश्न 2. जड़ का इतिहास क्या है ?

उत्तर-जड़ का इतिहास यही है कि वह धरती के अन्दर मुँह गड़ाए पड़ी रहती है और वह निष्क्रिय है।

प्रश्न 3. डाली तने को हीन क्यों समझती है ?

उत्तर-डाली तने को हीन इसलिए समझती है क्योंकि उसे जहाँ बिठा दिया गया वो वहीं पर ही रहा। इस प्रगतिशील संसार में कभी भी इधर-उधर नहीं लहराया। खाखाकर मोटा हो गया।

प्रश्न 4. पत्तियाँ डाल की किस कमी की ओर संकेत करती हैं ?

उत्तर-पत्तियाँ डाल की कमी की ओर संकेत करके कहती हैं कि वे इस ध्वनि प्रधान दुनिया में कभी एक शब्द भी नहीं बोल पाईं।

प्रश्न 5. फूलों ने पत्तियों की चंचलता का आधार क्या बताया ?

उत्तर-फूलों ने पत्तियों की चंचलता का आधार डाली को ही बताया क्योंकि वे उसी के सहारे लहराती हैं और हवा में डोलती हैं।

प्रश्न 6. सबकी बातें सुनकर जड़ क्यों मुस्कुराई ?

उत्तर-सबकी बातें सुनकर जड़ मुस्करा पड़ती है क्योंकि तना, पत्ते, डाल, फूल जो

अपने को श्रेष्ठ सिद्ध करने में लगे हैं वे सब यह नहीं जानती कि उन सबका जीवन आधार केवल जड़ के कारण ही है। उसी के कारण उनकी सत्ता है।

 (ख) भाषा-बोध

I. निम्नलिखित शब्दों के विपरीतार्थक शब्द लिखें:-

जीवन                  मरण                            जड़               चेतन

मजबूत                कमजोर                      ऊपर              नीचे

II. निम्नलिखित शब्दों के विशेषण शब्द बनाएँ:-

इतिहास                ऐतिहासिक                  दिन               दैनिक

वर्ष                      वार्षिक                           रंग                रंगीन

रस                       रसिक

III. निम्नलिखित के शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखें:-

प्रगति      उन्नति, विकास,                 हवा        वायु, समीर,

ध्वनि       गूंज, आवाज़,                    फूल        पुष्प, सुमन, कुसुम

भ्रमर      भौंरा, भंवरा, अलि

IV. निम्नलिखित के शब्दों के अनेकार्थी शब्द लिखें:-

जड़        मुर्ख , आधार, स्थिर 

तना       शाखा, कसा हुआ, डटा हुआ

डाल        शाखा, डलिया

बोली      नीलामी, भाषा,

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