सरदार भगत सिंह (कक्षा -आठवीं )

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सरदार भगत सिंह (कक्षा -आठवीं )

भारत देश क्रांतिकारियों और वीरों की जन्म-भूमि है। हमारे देश भारत को आज़ाद करवाने के 

लिए कई देश-भक्तों ने अपने बलिदान दिए हैं। सरदार भगत सिंह का नाम इन देशभक्तों में प्रमुख रूप से लिया जाता है।

bhgat singh जन्म व माता-पिता- भगत सिंह जी का जन्म 28 सितंबर, 1907 को पंजाब के ज़िला लायलपुर में बंगा गाँव में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। भगत सिंह जी के पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती था। जिस दिन भगत सिंह पैदा हुए, उनके पिता व चाचा को जेल से रिहा किया गया था । इसी खुशी में उनकी दादी ने उनका नाम भागों वाला रखा था। बाद में उन्हें भगत सिंह कहा जाने लगा।

बचपन व शिक्षा- भगत सिंह जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गाँव में ही पूरी की थी। उन्होंने 1917 में डी.ए.वी कॉलेज से अपनी हाई स्कूल की परीक्षा पास की थी। भगत सिंह हिंदी, उर्दू, पंजाबी तथा अंग्रेज़ी के अलावा बांग्ला भाषा भी जानते थे। बचपन से उनमें देशप्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी थी। एक बार बचपन में भगत सिंह जी ने अपने पिता की बंदूक को खेत में गाड़ दिया था। जब पिता ने इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि एक बंदूक से कई बंदूके पैदा होंगीं और इन्हें मैं अपने साथियों में बाँट दूँगा। इनसे हम अंग्रेज़ों से लड़ेंगें और भारत माता को आज़ाद करवाएंगे। 
क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना- 13 अप्रैल 1919 को जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड ने भगत सिंह को बहुत प्रभावित किया। इस दु:खद घटना के बाद उन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना आरंभ कर दिया। लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई को छोड़कर भगत सिंह जी ने भारत की आज़ादी के लिए सन् ‌ 1926 को नौजवान भारत सभा की स्थापना की। लाला लाजपतराय जी की मृत्यु का बदला लेने का निश्चय किया। उन्होंने लाहौर में सांडर्स को मारा।
असेंबली में बम फेंकना- ब्रिटिश सरकार के शोषण व ग़लत नीतियों के प्रति विरोध प्रकट करने के लिए सरदार भगत सिंह और बटुकेश्वर ‍दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को केंद्रीय विधानसभा में एक धमाके वाला खाली बम फेंका। वे वहाँ  से भागे नहीं बल्कि इंकलाब ज़िन्दाबाद के नारे लगाते रहे। सरदार भगत सिंह जानते थे कि अंग्रेज़ी सरकार इस जुर्म में फांसी की सज़ा देगी, परंतु वे अपनी कुर्बानी से देश में जागृति लाना चाहते थे। आज़ादी की लौ को सारे देश में जगाना चाहते थे।
भगत सिंह की शहादत- 17 अक्टूबर, 1930 को सरदार भगत सिंह ,राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सज़ा सुना दी गई। 23 मार्च सन् 1931 के लाहौर जेल में उन्हें फांसी दे दी गई।
उपसंहार- भगत सिंह को शहीदे-ए-आज़म कहा जाता है। उन्होंने केवल 22 साल की उम्र में ही खुशी-खुशी अपने जीवन का बलिदान दे दिया। आज भी सारा देश उनकी कुर्बानी याद करते हुए उनके आगे नतमस्तक होता है। 

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