सत्संगति दो शब्दों से मिलकर बना है- ‘सत’ और ‘संगति’। सत का अर्थ है – अच्छा और संगति का अर्थ है -साथ इसीलिए सत्संगति का अर्थ है – अच्छे लोगों का साथ। अच्छे लोगों का साथ प्राप्त करना ही सत्संगति कहलाता है। संगति का मनुष्य के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
मनुष्य जिस प्रकार की संगति में रहता है, वैसा ही बन जाता है अच्छी संगति से मनुष्य में अच्छे गुणों का विकास होता है और बुरी संगति से बुरी आदतें आती है। सत्संगति से हमारे अंदर सच्चाई, ईमानदारी, अनुशासन, कर्तव्य पालन आदि अनेक अच्छे गुण पैदा होते है। इन अच्छे गुणों के पैदा होने पर बुरी आदतें अपने आप छूट जाती हैं। सत्संगति एक पारस है जो जीवनरूपी लोहे को सोना बना देती है। महात्मा बुद्ध की संगति में आने के बाद अंगुलिमाल डाकू सब पाप छोड़ कर संत बन गया था। भगवान राम की संगति में आने पर विभीषण लंका का राजा बन गया था। जहाँ संगति हमारे जीवन को संवार देती है, वही कुसंगति में पड़ जाने से सब कुछ बर्बाद हो जाता है। कुसंगति में पड़ा व्यक्ति अपने लक्ष्य से भटक जाता है। ऐसा व्यक्ति जीवन में कभी कामयाब नहीं हो सकता और बाद में हमेशा पछताता हैं। अतः हमें कुसंगति से हमेशा बचना चाहिए। अपने मित्रों का चुनाव करते समय हमें हमेशा ध्यान रखना चाहिए। ऐसे मित्रों से बचना चाहिए, जो हमें गलत रास्ते पर ले कर जाएँ। हमें सदा यही कोशिश रहनी चाहिए कि हम अच्छे लोगों की सत्संगति में रहें। तभी हम जीवन में उन्नति कर सकते हैं।