पाठ- 11 अपठित गद्यांश

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पाठ – 11 ( अपठित गद्यांश)

1) इस संसार में प्रकृति द्वारा मनुष्य को दिया गया सबसे अमूल्य उपहार ‘समय’ है। ढह गई इमारत को दोबारा खड़ा किया जा सकता है; बीमार व्यक्ति को इलाज द्वारा स्वस्थ किया जा सकता है ; खोया हुआ धन दोबारा प्राप्त किया जा सकता है; किन्तु एक बार बीता समय पुनः नहीं पाया जा सकता। जो समय के महत्त्व को पहचानता है, वह उन्नति की सीढ़ियाँ चढ़ता जाता है। जो समय का तिरस्कार करता है, हर काम में टालमटोल करता है, समय को बर्बाद करता है, समय भी उसे एक दिन बर्बाद कर देता है। समय पर किया गया हर काम सफलता में बदल जाता है जबकि समय के बीत जाने पर बहुत कोशिशों के बावजूद भी कार्य को सिद्ध नहीं किया जा सकता। समय का सदुपयोग केवल कर्मठ व्यक्ति ही कर सकता है, लापरवाह, कामचोर और आलसी नहीं। आलस्य मनुष्य की बुद्धि और समय दोनों का नाश करता है। समय के प्रति सावधान रहने वाला मनुष्य आलस्य से दूर भागता है तथा परिश्रम, लगन व सत्कर्म को गले लगाता है। विद्यार्थी जीवन में समय का अत्यधिक महत्त्व होता है। विद्यार्थी को अपने समय का सदुपयोग ज्ञानार्जन में करना चाहिए न कि अनावश्यक बातों, आमोद-प्रमोद या फैशन में।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

प्रश्न 1. प्रकृति द्वारा मनुष्य को दिया गया सबसे अमूल्य उपहार क्या है ?
उत्तर – प्रकृति द्वारा मनुष्य को दिया गया सबसे अमूल्य उपहार समय है।

प्रश्न 2. समय के प्रति सावधान रहने वाला व्यक्ति किससे दूर भागता है ?
उत्तर – समय के प्रति सावधान रहने वाला व्यक्ति आलस्य से दूर भागता है।

प्रश्न 3. विद्यार्थी को समय का सदुपयोग कैसे करना चाहिए?
उत्तर – विद्यार्थी को समय का सदुपयोग ज्ञानार्जन में करना चाहिए।

प्रश्न 4. ‘कर्मठ’ तथा ‘तिरस्कार’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर – 1) कर्मठ – परिश्रमी  2) तिरस्कार – अपमान।

प्रश्न 5. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर – प्रकृति का अमूल्य उपहार –  समय।

2) हर देश, जाति और धर्म के महापुरुषों ने ‘सादा जीवन और उच्च विचार’ के सिद्धांत पर बल दिया है, क्योंकि हर समाज में ऐश्वर्यपूर्ण, स्वच्छंद और आडम्बरपूर्ण जीवन जीने वाले लोग अधिक हैं। आज मनुष्य सुख-भोग और धन-दौलत के पीछे भाग रहा है। उसकी असीमित इच्छाएँ उसे स्वार्थी बना रही हैं। वह अपने स्वार्थ के सामने दूसरों की सामान्य इच्छा और आवश्यकता तक की परवाह नहीं करता जबकि विचारों की उच्चता में ऐसी शक्ति होती है कि मनुष्य की इच्छाएँ सीमित हो जाती हैं। सादगीपूर्ण जीवन जीने से उसमें संतोष और संयम जैसे अनेक सद्गुण स्वतः ही उत्पन्न हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त उसके जीवन में लोभ, द्वेष और ईर्ष्या का कोई स्थान नहीं रहता। उच्च विचारों से उसका स्वाभिमान भी बढ़ जाता है जो कि उसके चरित्र की प्रमुख पहचान बन जाता है। इससे वह छल-कपट, प्रमाद और अहंकार से दूर रहता है। किन्तु आज की इस भाग-दौड़ वाली जिंदगी में हरेक व्यक्ति की यही लालसा रहती है कि उसकी जिंदगी ऐशो-आराम से भरी हो। वास्तव में आज के वातावरण में मानव पश्चिमी सभ्यता, फैशन और भौतिक सुख साधनों से भ्रमित होकर उनमें संलिप्त होता जा रहा है। ऐसे में मानवता की रक्षा केवल सादा जीवन और उच्च विचार रखने वाले महापुरुषों के आदर्शों पर चलकर ही की जा सकती है।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
प्रश्न 1. हर देश जाति और धर्म के महापुरुषों ने किस सिद्धांत पर बल दिया है ?
उत्तर -हर देश, जाति और धर्म के महापुरुषों ने ‘सादा जीवन और उच्च विचार’ के सिद्धांत पर बल दिया है।

प्रश्न 2. अपने स्वार्थ के सामने मनुष्य को किस चीज़ की परवाह नहीं रहती ?
उत्तर – अपने स्वार्थ के सामने मनुष्य को दूसरों की सामान्य इच्छा और आवश्यकता की भी परवाह नहीं रहती।

प्रश्न 3. सादगीपूर्ण जीवन जीने से मनुष्य में कौन-कौन से गुण उत्पन्न हो जाते हैं?
उत्तर- सादगीपूर्ण जीवन जीने से मनुष्य में संतोष और संयम के गुण उत्पन्न हो जाते हैं।

प्रश्न 4. ‘प्रमाद’ तथा ‘लालसा’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर – 1) प्रमाद – नशा 2) लालसा – अभिलाषा।

प्रश्न 5. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर – सादा जीवन उच्च विचार।

3) मनुष्य का जीवन कर्म-प्रधान है। मनुष्य को निष्काम भाव से सफलता-असफलता की चिंता किए बिना अपने कर्त्तव्य का पालन करना है। आशा या निराशा के चक्र में फँसे बिना उसे लगातार कर्त्तव्यनिष्ठ बना रहना चाहिए। किसी भी कर्त्तव्य की पूर्णता पर सफलता अथवा असफलता प्राप्त होती है। असफल व्यक्ति निराश हो जाता है, किन्तु मनीषियों ने असफलता को भी सफलता की कुंजी कहा है। असफल व्यक्ति अनुभव की सम्पत्ति अर्जित करता है, जो उसके भावी जीवन का निर्माण करती है। जीवन में अनेक बार ऐसा होता है कि हम जिस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए परिश्रम करते है, वह पूरा नहीं होता है। ऐसे अवसर पर सारा परिश्रम व्यर्थ हो गया-सा लगता है और हम निराश होकर चुपचाप बैठ जाते हैं। उद्देश्य की पूर्ति के लिए पुन: प्रयत्न नहीं करते। ऐसे व्यक्ति का जीवन धीरे-धीरे बोझ बन जाता है। निराशा का अंधकार न केवल उसकी कर्म-शक्ति, बल्कि उसके समस्त जीवन को ही ढँक लेता है। मनुष्य जीवन धारण करके कर्म-पथ से कभी विचलित नहीं होना चाहिए। विघ्न बाधाओं की, सफलता-असफलता की तथा हानि-लाभ की चिंता किए बिना कर्त्तव्य के मार्ग पर चलते रहने में जो आनंद एवं उत्साह है, उसमें ही जीवन की सार्थकता है।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
प्रश्न 1. कर्त्तव्य-पालन में मनुष्य के भीतर कैसा भाव होना चाहिए?
उत्तर- कर्तव्य-पालन में मनुष्य के भीतर सफलता-असफलता की चिंता को त्याग कर केवल कर्त्तव्य के पालन का भाव होना चाहिए।

प्रश्न 2. सफलता कब प्राप्त होती है?
उत्तर- सफलता की प्राप्ति तब होती है जब मनुष्य बिना किसी आशा या निराशा के चक्र में फँसे हुए निरंतर अपने कार्य में लगा रहता है।

प्रश्न 3. जीवन में असफल होने पर क्या करना चाहिए?
उत्तर- जीवन में असफल होने पर कभी भी निराश-हताश नहीं होना चाहिए और निरंतर अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कार्य करते रहना चाहिए।

प्रश्न 4. ‘निष्काम’ और ‘मनीषियों’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर – 1) निष्काम – निरीह मनीषियों – पंडितों/विद्वानों।

प्रश्न 5. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर- जीवन में कर्म का महत्त्व।

4) व्यवसाय या रोज़गार पर आधारित शिक्षा व्यावसायिक शिक्षा कहलाती है। भारत सरकार इस दिशा में सराहनीय भूमिका निभा रही है। इस शिक्षा को प्राप्त करके विद्यार्थी शीघ्र ही अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है। प्रतियोगिता के इस दौर में तो इस शिक्षा का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। व्यावसायिक शिक्षा में ऐसे कोर्स रखे जाते हैं जिनमें व्यावहारिक प्रशिक्षण अर्थात प्रैक्टिकल ट्रेनिंग पर अधिक ज़ोर दिया जाता है। यह आत्मनिर्भरता के लिए एक बेहतर कदम है। व्यावसायिक शिक्षा के महत्त्व को देखते हुए भारत व राज्य सरकारों ने इसे स्कूल स्तर पर शुरू किया है। निजी संस्थाएँ भी इस क्षेत्र में सराहनीय भूमिका निभा रही हैं। कुछ स्कूलों में तो नौवीं कक्षा से ही व्यावसायिक शिक्षा दी जाती है परन्तु बड़े पैमाने पर इसे ग्यारहवीं कक्षा से शुरू किया गया है। व्यावसायिक शिक्षा का दायरा काफी विस्तृत है।
विद्यार्थी अपनी पसन्द व क्षमता के आधार पर विभिन्न व्यावसायिक कोर्सों में प्रवेश ले सकते हैं। कॉमर्स-क्षेत्र में कार्यालय प्रबन्धन, आशुलिपि व कम्प्यूटर एप्लीकेशन, बैंकिंग, लेखापरीक्षण, मार्किटिंग एण्ड सेल्ज़मैनशिप आदि व्यावसायिक कोर्स आते हैं। इंजीनियरिंग क्षेत्र में इलैक्ट्रिकल, इलैक्ट्रॉनिक्स, एयर कंडीशनिंग एन्ड रेफरीजरेशन एवं ऑटोमोबाइल टेक्नॉलोजी आदि व्यावसायिक कोर्स आते हैं। कृषि क्षेत्र में डेयरी उद्योग, बागबानी तथा कुक्कुट (पोल्ट्री) उद्योग से सम्बन्धित व्यावसायिक कोर्स किए जा सकते हैं। गृह-विज्ञान क्षेत्र में स्वास्थ्य, ब्यूटी, फैशन तथा वस्त्र उद्योग आदि व्यावसायिक कोर्स आते हैं। हैल्थ एंड पैरामैडिकल क्षेत्र में मैडिकल लैबोरटरी, एक्स-रे टेक्नॉलोजी एवं हेल्थ केयर साइंस आदि व्यावसायिक कोर्स किए जा सकते हैं। आतिथ्य एवं पर्यटन क्षेत्र में फूड प्रोडक्शन, होटल मैनेजमैंट, टूरिज्म एन्ड ट्रैवल, बेकरी से सम्बन्धित व्यावसायिक कोर्स किए जा सकते हैं। सूचना तकनीक के तहत आई.टी. एप्लीकेशन कोर्स किया जा सकता है। इनके अतिरिक्त पुस्तकालय प्रबन्धन, जीवन बीमा, पत्रकारिता आदि व्यावसायिक कोर्स किए जा सकते हैं।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
प्रश्न 1. व्यावसायिक शिक्षा से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर –  व्यवसाय या रोज़गार पर आधारित शिक्षा व्यावसायिक शिक्षा कहलाती है।

प्रश्न 2. इंजीनियरिंग क्षेत्र में कौन-कौन से व्यावसायिक कोर्स आते हैं?
उत्तर – इंजीनियरिंग क्षेत्र में इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स, एयर कंडीशनिंग एंड रेफ्रिजरेशन एवं ऑटोमोबाइल टेक्नोलॉजी आदि व्यवसायिक कोर्स आते हैं।

प्रश्न 3. आतिथ्य एवं पर्यटन क्षेत्र में कौन-कौन से कोर्स किए जा सकते हैं?
उत्तर – आतिथ्य एवं पर्यटन क्षेत्र में फूड प्रोडक्शन, होटल मैनेजमेंट, टूरिज्म एंड ट्रैवल, बेकरी से संबंधित व्यावसायिक कोर्स किए जा सकते हैं।

प्रश्न 4. ‘क्षमता’ तथा ‘विस्तृत’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर – 1) क्षमता – शक्ति  2) विस्तृत – विशाल

प्रश्न 5. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर –  व्यवसायिक शिक्षा से संबंधित कोर्स।

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1 Review
  • Prabhleen kaur says:

    Very nice and helpful for us . 🙏 Thanks

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