पाठ-10 अपठित गद्यांश (कक्षा नौवीं)
1) निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़ें तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें :
जगदीश चंद्र बसु जीव-विज्ञान के साथ-साथ अन्य विषयों गणित, संस्कृत, लैटिन आदि में भी असाधारण थे। इसी कारण उन्हें कॉलेज में छात्रवृत्ति भी मिली। उन्हें सन् 1884 में कैम्ब्रिज से प्राकृतिक विज्ञान में स्नातक की उपाधि मिली। इसके बाद वे स्वदेश लौट आए। यहाँ आकर कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में भौतिकी के प्रोफेसर नियुक्त हुए। इस कॉलेज में भारतीय अध्यापकों को अंग्रेज़ी अध्यापकों की अपेक्षा कम वेतना मिलता है। जगदीश चंद्र बसु बड़े स्वाभिमानी थे। उन्होंने इस बात का विरोध किया। वे तीन साल तक इस कॉलेज में अध्यापन व अनुसंधान कार्य करते तो रहे परन्तु बिना वेतन के। अन्त में उनकी काम के प्रति निष्ठा और उत्साह देखकर कॉलेज के संचालकों को उनके प्रति अपनी राय बदलनी पड़ी और पूरा वेतन दिया जाने लगा। अतः भारतीय अध्यापकों के प्रति इस कॉलेज में जो ग़लत रवैया था, उसको उन्होंने सर्वथा बदल दिया।
प्रश्न 1. जगदीश चंद्र बसु को कॉलेज से छात्रवृत्ति क्यों मिली?
उत्तर : जगदीश चंद्र बसु को जीव-विज्ञान के साथ-साथ गणित, संस्कृत, लैटिन आदि विषयों में असाधारण प्रतिभा के लिए कॉलेज से छात्रवृत्ति मिली।
प्रश्न 2. जगदीश चंद्र बसु किस विषय के प्रोफेसर नियुक्त हुए?
उत्तर : जगदीश चंद्र बसु भौतिकी (भौतिक विज्ञान) के प्रोफेसर नियुक्त हुए।
प्रश्न 3. जगदीश चंद्र बसु को पूरा वेतन क्यों दिया जाने लगा?
उत्तर : जगदीश चंद्र बसु भारतीय अध्यापकों को अंग्रेज़ी अध्यापकों के मुकाबले कम वेतन देने के विरोध में तीन साल तक बिना वेतन के पढ़ाते रहे। अंतत: कॉलेज प्रबंधकों को उन्हें पूरा वेतन देना पड़ा।
प्रश्न 4. ‘असाधारण’ तथा ‘अनुसंधान’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर : असाधारण विशेष
अनुसंधान खोज
प्रश्न 5. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर : जगदीश चंद्र बसु : जीवन और संघर्ष
2) निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़ें तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें :
संसार में ऐसे-ऐसे दृढ़ चित्त मनुष्य हो गए हैं जिन्होंने मरते दम तक सत्य की टेक नहीं छोड़ी, अपनी आत्मा के विरुद्ध कोई काम नहीं किया। राजा हरिश्चंद्र के ऊपर इतनी-इतनी विपत्तियाँ आईं, पर उन्होंने अपना सत्य नहीं छोड़ा। उनकी प्रतिज्ञा यही रही –
“चंद्र टरै, सूरज टरै, टरै जगत् व्यवहार ।
पै दृढ़ श्री हरिश्चंद्र को, टरै न सत्य विचार |”
महाराणा प्रताप सिंह जंगल-जंगल मारे-मारे फिरते थे, अपनी स्त्री और बच्चों को भूख से तड़पते देखते थे, परंतु उन्होंने उन लोगों की बात न मानी जिन्होंने उन्हें अधीनतापूर्वक जीते रहने की सम्मति दी, क्योंकि वे जानते थे कि अपनी मर्यादा की चिन्ता जितनी अपने को हो सकती है, उतनी दूसरे को नहीं। एक बार एक रोमन राजनीतिक बलवाइयों के हाथ में पड़ गया। बलवाइयों ने उससे व्यंग्यपूर्वक पूछा, अब तेरा किला कहाँ है ?” उसने हृदय पर हाथ रखकर उत्तर दिया, “यहाँ।” ज्ञान के जिज्ञासुओं के लिए यही बड़ा भारी गढ़ है ।
प्रश्न 1. संसार के किन लोगों ने मरते दम तक सत्य का साथ नहीं छोड़ा?
उत्तर : संसार के दृढ़ चित्त लोगों ने मरते दम तक सत्य का साथ नहीं छोड़ा।
प्रश्न 2. महाराणा प्रताप सिंह ने अपनी स्त्री और बच्चों को भूख से तड़पते देखकर भी लोगों की बात क्यों नहीं मानी?
उत्तर : क्योंकि वे जानते थे कि अपनी मर्यादा की चिन्ता जितनी अपने को हो सकती है, उतनी दूसरे को नहीं।
प्रश्न 3. राजा हरिश्चंद्र की क्या प्रतिज्ञा थी?
उत्तर : राजा हरिश्चंद्र की प्रतिज्ञा थी कि परिस्थितियां चाहे कैसी भी हों वे कभी सत्य का मार्ग नहीं छोड़ेंगे।
प्रश्न 4. ‘सम्मति’ तथा ‘मर्यादा’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर : सम्मति = राय, सलाह
मर्यादा = गौरव, सम्मान
प्रश्न 5. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर : सद्मार्ग : एक चुनौती
3) निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़ें तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें :
वल्लभभाई की विलायत जाकर बैरिस्टरी की परीक्षा पास करने की इच्छा आरंभ से ही थी। वे अपनी प्रैक्टिस में से कुछ रुपया भी इसके निमित्त बचाकर रखने लगे और इस संबंध में उन्होंने एक विदेशी कंपनी से पत्र व्यवहार भी जारी रखा। जब विदेशी कंपनी ने उनकी विदेश यात्रा की स्वीकृति का पत्र उन्हें भेजा तो वह पत्र उनके बड़े भाई के हाथ पड़ गया। अंग्रेज़ी में दोनों का नाम वी. जे. पटेल होने के कारण यह गड़बड़ी हो गई। विट्ठलभाई ने जब वल्लभभाई से कहा कि मैं तुमसे बड़ा हूँ, मुझे पहले विदेश जाने दो, तो वल्लभभाई ने न केवल उन्हें जाने की अनुमति दी बल्कि उनके ख़र्च का उत्तरदायित्व भी अपने ऊपर ले लिया। इस घटना के तीन वर्ष बाद जब सन् 1908 में बड़े भाई विलायत से वापस लौट आए, तभी वल्लभभाई सन् 1910 में विलायत जा सके। बड़े भाई के लिए इतना त्याग करना उनके व्यक्तित्व की विशालता का परिचायक है।
प्रश्न 1. वल्लभभाई की विलायत जाकर कौन-सी परीक्षा पास करने की इच्छा थी?
उत्तर : वल्लभभाई की विलायत जाकर बैरिस्टरी की परीक्षा पास करने की इच्छा थी।
प्रश्न 2. विदेशी कम्पनी द्वारा विदेश यात्रा की स्वीकृति का पत्र भेज देने पर भी वल्लभभाई विदेश क्यों नहीं गये?
उत्तर : बड़े भाई की विदेश जाने की इच्छा का सम्मान करते हुए वल्लभभाई विदेश नहीं गये।
प्रश्न 3. वल्लभभाई विदेश कब गये?
उत्तर : वल्लभभाई सन् 1910 में विदेश गये।
प्रश्न 4. ‘निमित्त’ तथा ‘अनुमति’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर : निमित्त = कारण
अनुमति = आज्ञा
प्रश्न 5. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर : वल्लभभाई पटेल का व्यक्तित्व
4) निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़ें तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें :
यह संसार क्षण-भंगुर है। इसमें दुःख क्या और सुख क्या? जो जिससे बनता है, वह उसी में लय हो जाता है – इसमें शोक और उद्वेग की क्या बात है? यह संसार जल का बुद्बुदा है, फूटकर किसी रोज़ जल में ही मिल जायेगा, फूट जाने में ही बुद्बुदे की सार्थकता है। जो यह नहीं समझते, वे दया के पात्र हैं। रे मूर्ख लड़की, तू समझ| सब ब्रह्माण्ड ब्रह्मा का है और उसी में लीन हो जायेगा। इससे तू किसलिए व्यर्थ व्यथा सह रही है? रेत का तेरा भाड़ क्षणिक था, क्षण में लुप्त हो गया, रेत में मिल गया। इस पर खेद मत कर, इससे शिक्षा ले। जिसने लात मारकर उसे तोड़ा है, वह तो परमात्मा का केवल साधन मात्र है। परमात्मा तुझे नवीन शिक्षा देना चाहते हैं। लड़की, तू मूर्ख क्यों बनती है? परमात्मा की इस शिक्षा को समझ और परमात्मा तक पहुँचने का प्रयास कर|
प्रश्न 1. लेखक के अनुसार यह संसार क्या है ?
उत्तर : लेखक के अनुसार यह संसार क्षण-भंगुर है।
प्रश्न 2. लड़की को किस बात पर खेद था ?
उत्तर : लड़की को उसका भाड़ तोड़े जाने पर खेद है।
प्रश्न 3. लेखक ने किसे परमात्मा का केवल साधन मात्र कहा है?
उत्तर : लेखक ने भाड़ तोड़ने वाले को केवल साधन मात्र कहा है।
प्रश्न 4. ‘क्षणिक’ तथा ‘नवीन’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर : क्षणिक = क्षण भर रहने वाला
नवीन = नया
प्रश्न 5. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर : संसार का सत्य
5) निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़ें तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें :
सन् 1908 ई. की बात है। दिसंबर का आखिर या जनवरी का प्रारंभ होगा। चिल्ला जाड़ा पड़ रहा था। दो-चार दिन पूर्व कुछ बूँदा-बाँदी हो गई थी, इसलिए शीत की भयंकरता और भी बढ़ गई थी। सायंकाल के साढ़े तीन या चार बजे होंगे। कई साथियों के साथ मैं झरबेरी के बेर तोड़-तोड़कर खा रहा था कि गाँव के पास से एक आदमी ने ज़ोर से पुकारा कि तुम्हारे भाई बुला रहे हैं, शीघ्र ही घर लौट जाओ। मैं घर को चलने लगा। साथ में छोटा भाई भी था। भाई साहब की मार का डर था इसलिए सहमा हुआ चला जाता था। समझ में नहीं आता था कि कौन-सा कसूर बन पड़ा । डरते-डरते घर में घुसा। आशंका थी कि बेर खाने के अपराध में ही तो पेशी न हो। पर आँगन में भाई साहब को पत्र लिखते पाया। अब पिटने का भय दूर हुआ। हमें देखकर भाई साहब ने कहा- “इन पत्रों को ले जाकर मक्खनपुर डाकखाने में डाल आओ। तेज़ी से जाना, जिससे शाम की डाक में चिट्ठियाँ निकल जाएँ। ये बड़ी जरूरी हैं।”
प्रश्न 1. शीत की भयंकरता और क्यों बढ़ गयी थी?
उत्तर : दो-चार दिन पहले कुछ बूँदा-बाँदी हो जाने के कारण शीत की भयंकरता बढ़ गई थी।
प्रश्न 2. लेखक को घर किसने बुलाया था?
उत्तर : लेखक को घर उनके बड़े भाई ने बुलाया था।
प्रश्न 3. लेखक को घर जाने में किस का डर सता रहा था?
उत्तर : लेखक को घर जाने में बड़े भाई से पिटने का डर सता रहा था।
प्रश्न 4. ‘आशंका’ तथा ‘भय’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर : आशंका = शक़, संदेह
भय = डर
प्रश्न 5. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर : बड़े भाई का भय