कुछ प्रचलित लोकोक्तियाँ (कक्षा – दसवीं पाठ्क्रम)
1. अपना लाल गंवाय के दर-दर माँगे भीख – (अपनी वस्तु लापरवाही से नष्ट करके दूसरों से माँगते फिरना): सोमपाल ने अपनी सारी दौलत तो जुए और लॉटरी में गँवा दी और अब लोगों से उधार लेकर गुज़ारा करता है। किसी ने ठीक ही कहा है– अपना लाल गंवाय के दर-दर माँगे भीख।
2. अधूरा छोड़े सो पड़ा रहे – ( जो कार्य बीच में ही छोड़ दिया जाता है वह प्राय: अधूरा रह जाता है) : सुनो, तुम जो भी काम शुरू करते हो उसे बीच में ही छोड़कर किसी दूसरे काम में लग जाते हो। क्या तुम नहीं जानते–अधूरा छोड़े सो पड़ा रहे ।
3. अपना कोढ़ बढ़ता जाय, औरों को दवा बताय- (जब कोई व्यक्ति दूसरों से जो कहे परंतु उसको स्वयं न करे या उसका स्वयं लाभ न उठाए) : लाला जगतराम जी, तुम दूसरों को सुबह-शाम सैर करने का उपदेश देते रहते हो किन्तु सैर न करने के कारण तुम्हारी स्वयं की तोंद तो बढ़ती ही जा रही है । इसे कहते हैं– अपना कोढ़ बढ़ता जाय, औरों को दवा । बताय ।
4. आसमान से गिरा खजूर में अटका – (एक संकट से छूटकर / बचकर दूसरे में फँस जाना): वह चोरी के मामले से छूटकर आया ही था कि हेराफेरी के मामले में फँस गया। इसे कहते हैं– आसमान से गिरा खजूर में अटका।
5. आँखों देखी सच्ची, कानों सुनी झूठी- (आँखों से देखी हुई बात सच होती है, कानों से सुनी हुई नहीं) : केवल सुनी सुनाई बात के आधार पर मोहनचंद को चोर कहना ठीक नहीं है। क्या तुम नहीं जानते – आँखों देखी सच्ची, कानों सुनी झूठी ?
6. ऊँट किस करवट बैठता है- ( नतीजा न जाने क्या हो) : भारत और श्रीलंका के बीच क्रिकेट मैच के फाइनल मैच को जीतने में कड़ी होड़ लगी हुई है। देखें, ऊँट किस करवट बैठता है।
7. एक तंदुरुस्ती हज़ार नियामत – (सेहत बहुत बड़ा धन है) : माँ ने अपनी पुत्री को कहा, ” पढ़ाई के साथ-साथ अपनी सेहत का भी ध्यान रखो क्योंकि एक तंदुरुस्ती हज़ार नियामत होती है । ”
8. ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डर- ( कठिन काम करने का निश्चय करके बाधाओं से न घबराना) अरी बहन ! जब नयी कोठी बनवानी शुरू कर ही दी है तो अब खर्चे से क्यों घबराती हो, ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डर ।
9. का वर्षा जब कृषि सुखाने- (असमय की सहायता लाभदायक नहीं होती) : अरे, चोर तो उसके घर से सब कुछ लूटकर भाग गये, अब पुलिस के आने से क्या फायदा । कहा भी है- का वर्षा जब कृषि सुखाने ।
10. कथनी नहीं करनी चाहिए – (जब कोई इंसान बातें तो बहुत करता है परन्तु करता कुछ भी नहीं): तुम हर बार बड़ी-बड़ी बातें करके हमारी वोटों से कॉलेज के प्रधान बन जाते हो
किंतु छात्रों की समस्याओं का कोई हल नहीं निकालते । याद रखो ! हमें इस बार कथनी नहीं, करनी चाहिए।
11. कौआ कोयल को काली कहे- (जब कोई व्यक्ति स्वयं दोषी होने पर भी दूसरे की बुराई करे तो उसके लिए व्यंग्य से ऐसा कहा जाता है) उस पर स्वयं तो भ्रष्टाचार के दोष तय हो चुके हैं किंतु वह दूसरों की सारा दिन बुराई करता रहता है, इसे कहते हैं–कौआ कोयल को काली कहे ।
12. क्या जन्म भर का ठेका लिया है ? (कोई भी इंसान किसी को जीवन भर सहायता नहीं दे सकता) : सुनो, जब तुम बेरोज़गार थे तो उसने तुम्हें अपने घर पर आश्रय दिया था किंतु अब नौकरी मिल जाने पर तो तुम्हें अपना ठिकाना ढूँढ़ ही लेना चाहिए। उसने तुम्हारा क्या जन्म भर का ठेका लिया है ?
13. काठ की हाँडी बार-बार नहीं चढ़ती – (कपटी व्यवहार सदैव नहीं किया जा सकता) : पिछली बार तुम हमें धोखा देने में कामयाब हो गये थे किंतु इस बार हम पूरी तरह सत्तर्क हैं । जानते नहीं–काठ की हाँडी बार-बार नहीं चढ़ती ।
14. कभी नाव गाड़ी पर कभी गाड़ी नाव पर – (समय / आवश्यकता पड़ने पर एक दूसरे की सहायता करना): एक दिन तुमने मेरी मदद की थी, आज मैं तुम्हारी मदद कर रहा हूँ। किसी ने ठीक ही कहा है– कभी नाव गाड़ी पर कभी गाड़ी नाव पर ।
15. घर का भेदी लंका ढाए – ( आपसी वैर विरोध घर का नाश कर देता है) : विभीषण ने श्रीरामचन्द्र से मिल कर रावण को मरवा कर लंका को नष्ट कराया था। सच है घर का भेदी लंका ढाए ।
16. जो गरजते हैं वे बरसते नहीं – (शेखी मारने वाले व्यक्ति कुछ नहीं करते) : रौनकलाल की धमकियों की तनिक भी चिंता न करना | क्या तुम नहीं जानते कि जो गरजते हैं वे बरसते नहीं ।
17. जोते हल तो होंवे फल – (मेहनती व्यक्ति को ही फल की प्राप्ति होती है) : सुखविन्द्र सिंह की बेटी ने साल भर कठिन परिश्रम किया, इसीलिए दसवीं की परीक्षा में पंजाब भर में प्रथम स्थान प्राप्त किया। सच है, जोते हल तो होवें फल ।
18. जाके पैर न फटे बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई- (जिसने स्वयं दुःख नहीं झेला, वह दुखियों का दुःख नहीं समझ सकता) : अमीर लोग महँगाई भरी जिंदगी में ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की मुसीबतों को क्या समझेंगे । ठीक ही कहा है–जाके पैर न फटे बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई ।
19. तेते पाँव पसारिए जेती लंबी सौर- (आय के अनुसार ही खर्च करना चाहिए ) : जब बेटे ने
अपने पिता से कहा कि यदि हमें भी औरों की तरह थोड़ा कर्ज़ लेकर ठाट-बाट का जीवन जीना चाहिए तब पिता जी ने उसे समझाते हुए कहा बेटा ! तेते पाँव पसारिए जेती लंबी सौर |
20. तुम जानो तुम्हारा काम जाने – ( बार-बार समझाने पर भी जब कोई न समझे और मनमानी करे तो उसे समझाना बेकार ही जाता है) : देखो, तुम मेरे गाँव के रहने वाले हो इसीलिए तुम्हें इतनी बार समझा-चुका हूँ कि छात्रावास के इन बुरे लड़कों की संगति छोड़ दो । यदि नहीं मानते तो तुम जानो तुम्हारा काम जाने ।
21. तू डाल-डाल मैं पात-पात – ( विरोधी की चाल समझना / अधिक चालाक होना) : कुश्ती प्रतियोगिता में दिनेश कोई भी पैंतरा अपनाता तो गुरमीत उसे पहले ही भाँप कर उसे नाकाम कर देता और मन ही मन कहता कि तू डाल-डाल मैं पात-पात।
22. नीम हकीम खतरा जान – (अधूरा ज्ञान हानिकारक होता है ) : जब तुम्हें कार ठीक करनी नहीं आती तो इसका सारा इंजन खोलकर क्यूं बैठ गये हो, क्या तुम्हें नहीं पता, नीम हकीम खतरा जान ?
23. नेकी कर दरिया में डाल – (किसी का उपकार करके उसे जताना नहीं चाहिए ) : भई, ठीक है तुमने गरीब गंगाराम की बेटी की शादी में उसे दो लाख रुपये देकर उसका भला किया किन्तु अब गाँव में सभी को बता क्यों रहे हो, क्या तुम नहीं जानते – – नेकी कर दरिया में डाल ।
24. नाम बड़े और दर्शन छोटे- (प्रसिद्धि के अनुसार गुण न होना): तुमने तो कहा था कि संगीता बहुत मधुर गाती है किन्तु उसे गाते हुए सुनकर तो यही लगता है कि नाम बड़े और दर्शन छोटे।
25. सीधी उंगली से घी नहीं निकलता – (निरी सिधाई से काम नहीं चलता): थानेदार ने चोर से कहा कि तुम प्यार से नहीं अपितु पिटाई से ही चोरी कबूल करोगे । किसी ने ठीक ही कहा है – – सीधी उंगली से घी नहीं निकलता।
नीचे दिए गए लोकोक्तियों के अर्थ समझकर वाक्य बनाइए : (अभ्यास कार्य)
1. अपना वही जो आवे काम (मित्र वही है जो मुसीबत में काम आए) सरदार सिंह की बेटी की शादी में जब उसे कुछ रुपयों की ज़रूरत पड़ी तब रविसिंह ने उसे मुंहमांगी रकम तुरंत दे दी तो सरदार सिंह कह उठा अपना वही जो आवे काम।
2. आग लगाकर पानी को दौड़ना (झगड़ा कराने के बाद स्वयं ही सुलह कराने बैठना) पहले तो संदीप रमन से लड़ती रही फिर स्वयं ही उसे मनाने लगी तो रमन ने कहा तुम तो आग लगा कर पानी को दौड़ने का काम कर रही हो।
3. उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे (अपराध करने वाला उल्टी धौंस जमाए) बलकार सिंह ने साइकिल से ठोकर मार कर वृद्ध को गिरा दिया और फिर उसे बुरा-भला कहने लगा, इसी को कहते हैं उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे।
4. ओस चाटे प्यास नहीं बुझती (अधिक आवश्यकता वाले को थोड़े-से संतुष्टि नहीं होती) हाथी का पेट एक केले से नहीं भरता उसे तो कई दर्जन केले खाने के लिए देने होंगे क्योंकि उसकी ओस चाटे प्यास नहीं बुझती।
5. कोठी वाला रोए छप्पर वाला सोए ( धनी प्रायः चिंतित रहते हैं और निर्धन निश्चिन्त रहते हैं) मनराज करोड़ों का मालिक है। उसे अपने धन की सुरक्षा की सदा चिंता बनी रहती है। जबकि सुखराज फक्कड़ है, इसलिए सदा खुश रहता है। इसलिए कहते हैं कि कोठी वाला रोये छप्पर वाला सोये।
6. बन्दर घुड़की, गीदड़ धमकी (झूठा रौब दिखाना) राजीव कुछ करता-धरता नहीं है बेकार ही सब को बंदर घुड़की, गीदड़ धमकी देकर डराता रहता है।
7. बीति ताहि बिसारि दे, आगे की सुध लेय (पुरानी एवं दुःखपूर्ण बातों को भूलकर भविष्य के लिए सावधानी बरतनी चाहिए) दविंदर को व्यापार में बहुत घाटा हुआ तो सिर पकड़ कर बैठ गया तब सेवा सिंह ने उसे समझाया कि बीति ताहि बिसारि दे, आगे की सुध लेय तब सब ठीक हो जाएगा।
8. मन चंगा तो कठौती में गंगा ( मन शुद्ध हो तो घर ही तीर्थ समान) अशुद्ध मन से तीर्थाटन करने से कोई लाभ नहीं होता, घर पर ही मानसिक शुद्धि हो जाए तो वही तीर्थाटन हो जाता क्योंकि मन चंगा तो कठौती में गंगा होती है।
9. सावन हरे न भादौं सूखे (सदा एक जैसी दशा रहना ) रेशम सिंह गरीबी में पाई-पाई के लिए मरता था, अब उसका व्यापार चमक उठा है तो भी वह पाई उत्तर: पाई के लिए मर रहा है, उसकी तो सावन हरे न भदौं सूखे जैसी हालत है
10. हमारी बिल्ली हमीं से म्याऊँ (सहायता प्रदान करने वाले को ही धमकाना) हरभजन की स्कूटर से टक्कर हो गई तो वह गिर पड़ा, सुजान ने उसे हाथ पकड़ कर उठाया तो वह उसी पर बरस पड़ा इसी को कहते हैं हमारी बिल्ली हमी से म्याऊँ।