पाठ 1 तुलसीदास दोहावली (कक्षा दसवीं)

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पाठ 1 तुलसीदास दोहावली (कक्षा दसवीं)

        गोस्वामी तुलसीदास भक्तिकाल के सिरमौर राम-भक्त कवि हैं। रामचरितमानसतुलसीदास जी की कालजयी रचना है। तुलसीदास जी एक श्रेष्ठ कवि और सच्चे लोकनायक हैं इनकी अधिकांश रचनाएँ अवधीभाषा में लिखी गई हैं। इस पाठ में रामभक्त तुलसीदास द्वारा रचित कुल दस दोहे संकलित हैं, जिनमें भगवान राम का महिमागान किया गया है।

                                                श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।

                                                बरनउँ रघुबर विमल जसु, जो दायकु फल चार ।।      1

पाठ 1 तुलसीदास दोहावली (कक्षा दसवीं)

प्रसंग:- प्रस्तुत दोहा तुलसीदासकृत दोहावलीमें से लिया गया है। यह दोहाहनुमान चालीसा’ का प्रथम दोहा है। इस दोहे में तुलसीदास जी भगवान श्रीराम की भक्ति से प्राप्त होने वाले लाभ के बारे में बता रहे हैं।

व्याख्या :- तुलसीदास जी लिखते हैं कि अपने गुरू  के कमल रूपी सुंदर चरणों की धूल सेमैंअपने मन के दर्पण को साफ़ करता हूँ और तत्पश्चात प्रभु राम जी का निर्मल यशगान करता हूँ। ऐसा करने से चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त होते हैं।

                                                राम नाम मनी दीप धरु, जीह देहरी द्वार ।

                                                तुलसी भीतर बाहर हूँ, जो चाहसि उजियार ।।    2

प्रसंग :- प्रस्तुत दोहा तुलसीदास द्वारा रचित दोहावलीमें से लिया गया है । इस दोहे में राम-भक्त कवि तुलसीदास ने भक्तजनों को अपने हृदय में श्रीराम नाम का दीपक जलाने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या :- तुलसीदास जी कहते हैं कि यदि मनुष्य अपने मन के भीतर और बाहर दोनों स्थानों पर उजाला करना चाहता है तो राम नाम रूपी मणि दीपक को हृदय में धारण करना चाहिए। ऐसा करने से अज्ञान रुपी अन्धकार नष्ट हो जाता  है और ज्ञान रुपी उजाला प्राप्त हो जाता है

                                                जड़ चेतन गुन दोषभय, बिस्व कीन्ह करतार ।

                                                संत हंस गुन गहहिं पय, परिहरि बारि विकार  ।।     3

प्रसंग:- प्रस्तुत दोहा तुलसीदासद्वारा रचित दोहावलीमें से लिया गया है। इस दोहे में कवि ने संतों के स्वभाव का उल्लेख किया है।

व्याख्या:- तुलसीदास जी लिखते हैं कि ईश्वर ने इस समस्त जड़-चेतन संसार को गुण और दोष से युक्त बनाया है, लेकिन संतों में हंस के समान नीर-क्षीर विवेक होता है। इसी विवेक का प्रयोग करके संत दोष रूपी जल को त्यागकर गुण रूपी दूध को ग्रहण करते हैं।

                                                प्रभु तरुतर कपि डार पर, ते किये आपु समान

                                                तुलसी कहुँ न राम से, साहिब सील निधान ।।    4

प्रसंग :- प्रस्तुत दोहा तुलसीदास कृत दोहावलीमें से लिया गया है। इस दोहे में भगवान श्रीराम की उदारता का वर्णन किया गया है।

व्याख्या :- कवि कहता है कि प्रभु श्रीराम जी बहुत महान और उदार हैं। भगवान श्रीराम स्वयं तो वृक्षों के नीचे रहते थे और बन्दर पेड़ों की डालियों पर रहते थे, परन्तु फिर भी ऐसे बंदरों को भी उन्होंने अपने समान बना लिया ऐसे उदार, शीलनिधान प्रभु श्रीराम जैसे स्वामी दुनिया में अन्यत्र कोई नहीं है।

                                                तुलसी ममता राम सो, समता सब संसार

                                                राग न रोष न दोष दुःख, दास भए भव पार ।।     5

प्रसंग:- प्रस्तुत दोहा तुलसीदासद्वारा रचित दोहावलीमें से लिया गया हैइस दोहे में कवि ने श्रीराम के प्रति आस्था भाव रखने की प्रेरणा दी है

व्याख्या:- तुलसीदास जी कहते हैं कि श्रीराम में ममता रखनी चाहिए और संसार के सभी प्राणियों के प्रति समता का भाव रखना चाहिए  इससे मनुष्य राग, रोष, दोष, दुःख आदि से मुक्त हो जाता है इस प्रकार श्रीराम का दास होने के कारण व्यक्ति भवसागर से पार हो जाता है

                                                 गिरिजा संत समागम सम, न लाभ कछु आन

                                                बिनु हरि कृपा न होइ सो, गावहिं वेद पुरान ।।      6

प्रसंग:- प्रस्तुत दोहा तुलसीदास द्वारा रचित दोहावलीमें से लिया गया है इस दोहे में कवि ने संत-समागम की महिमा का वर्णन किया है।

व्याख्या:- तुलसीदास लिखते हैं कि शिवजी पार्वती को संतों के सम्मलेन की महिमा का वर्णन कर रहे हैं। संतों के साथ बैठकर उनके विचार सुनने से ज्यादा लाभकारी दुनिया में कुछ भी नहीं है संत समागम भी श्रीराम की कृपा के बिना नहीं मिलता, ऐसा वेद-पुराणों में कहा गया है।

                                                पर सुख संपत्ति देख सुनि, जरहिं जे जड़ बिनु आगि

                                                तुलसी तिन के भाग ते, चलै भलाई भागि ।।    7

प्रसंग :- प्रस्तुत दोहा तुलसीदासद्वारा रचित दोहावलीसे लिया गया हैइस दोहे में कवि ने दूसरों से ईर्ष्या न करने की सीख दी है

व्याख्या:- तुलसीदास लिखते हैं कि जो मूर्ख लोग दूसरों के सुख और संपत्ति को देखकर ईर्ष्या से जलते रहते हैं, उन लोगों के भाग्य से भलाई स्वयं ही भाग जाती है। तात्पर्य यह है कि दूसरों की प्रगति को देखकर जलने वालों का कभी भी भला नहीं होता

                                                सचिव वैद गुरु तीनि जो, प्रिय बोलहिं भयु आस

                                                राज, धर्म, तैन तीनि कर, होइ बेगिही नास ।।     8

प्रसंग:- प्रस्तुत दोहा तुलसीदासद्वारा रचित दोहावलीमें से लिया गया है इस दोहे में कवि ने चापलूस सलाहकारों से घिरे हुए राजा की संभावित दुर्दशा का वर्णन किया है।

व्याख्या:- कवि कहते हैं कि यदि किसी राजा का मंत्री, वैदय और गुरु – ये तीनों राज-  भय से अथवा किसी लोभ-लालच से उसकी बात जैसी है वैसी ही मान लेते हैं अर्थात उसकी हाँ में हाँ मिलाते हैं तो उसके राज्य,धर्म और शरीर तीनों शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं इसलिए ऐसे चापलूस सलाहकारों से बचना चाहिए।

                                                साहब ते सेवक बड़ो , जो निज धर्म सुजान

                                                राम बाँध उतरे उदधि , लांघि गए हनुमान ।।     9

प्रसंग :- प्रस्तुत दोहा तुलसीदासद्वारा रचित है । इस दोहे में कवि ने सच्चे और समर्पित भक्त की प्रशंसा की है।

व्याख्या :- तुलसीदास लिखते हैं कि वह सेवक तो स्वामी से भी बड़ा होता है जो अपने धर्म का पालन सच्चे मन से करता हैइसी बात को स्पष्ट करते हुए कवि कहते हैं कि स्वामी श्रीराम तो सागर पर पुल बंधने के बाद ही समुद्र पार कर सके परन्तु उनके सेवक हनुमान तो बिना पुल के ही समुद्र को लाँघ गए।

                                                बिनु बिस्वास भगति नहि, तेहिं विनु द्रवहिं न राम

                                                राम कृपा बिनु सपनेहुँ, जीवन लह विश्राम ।।      10

प्रसंग :-  प्रस्तुत दोहा तुलसीदास द्वारा रचित दोहावलीमें से लिया गया है। इस दोहे में कवि ने भगवान श्रीराम पर पूर्ण विश्वास रखते हुए भक्ति करने का सन्देश दिया है।

व्याख्या:- तुलसीदास लिखते हैं कि सच्चा भक्त भगवान पर अटूट विश्वास रखता है। बिना भगवान पर विश्वास किये प्रभ-कृपा प्राप्त करना संभव ही नहीं है। भगवान राम की कृपा के बिना स्वप्न में चैन नहीं मिलता इसलिए प्रभु श्रीराम पर अखंड विश्वास रखते हुए भक्ति करना ही सब प्रकार से लाभकारी होता है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दें :

1) तुलसीदास जी के अनुसार भगवान राम जी के निर्मल यश का गान करने से कौन-कौन से चार फल प्राप्त होते हैं?
उत्तर :-  भगवान राम जी के निर्मल यशगान करने से धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष चार फल प्राप्त होते हैं।

2)  मन के भीतर और बाहर उजाला करने के लिए तुलसी कौन सा दीपक हृदय में रखने की बात करते हैं?
उत्तर:- मन के भीतर और बाहर उजाला करने के लिए तुलसी राम-नाम रूपी मणियों का दीपक हृदय में रखने की बात करते हैं।

3) संत किस की भाति नीर-क्षीर विवेक करते है?
उत्तर:- संत हंस की भांति नीर-क्षीर विवेक करते हैं।

4) तुलसीदास के अनुसार भवसागर को कैसे पार किया जा सकता है?
उत्तर :- भगवान राम जी से सच्चा प्रेम करके भवसागर को पार किया जा सकता है ।

5) जो व्यक्ति दूसरों के सुख और समृद्धि को देखकर ईर्ष्या से जलता है, उसे भाग्य में क्या मिलता है?
उत्तर:- जो व्यक्ति दूसरों के सुख और समृद्धि को देखकर ईर्ष्या से जलता है;  उसके भाग्य से भलाई और खुशहाली भाग जाती है ।

6) रामभक्ति के लिए गोस्वामी तुलसीदास किसकी आवश्यकता बतलाते हैं?
उत्तर:- रामभक्ति के लिए गोस्वामी तुलसीदास सच्चे और अटूट विश्वास की आवश्यकता बतलाते हैं ।

भाषा-बोध:

1) विपरीत शब्द लिखें :-
सम्पत्ति          विपत्ति
सेवक           स्वामी
भलाई           बुराई
लाभ              हानि

2) भाववाचक संज्ञा बनाएं
दास            दासता
गुरु             गुरुत्व
निज           निजता
जड़           जड़ता।

3) विशेषण बनाएं :
धर्म           धार्मिक
भय           भयानक
मन            मानसिक
दोष           दोषी

लेखन:- पंकज माहर, हिंदी अध्यापिका, स.मा.सी.से.स्कूल, लाडोवाली रोड़, जालंधर
शोधक:- राजन हिंदी अध्यापक सिमस स्कूल, लोहारका कलां, अमृतसर

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