सप्रसंग व्याख्या
1. हम राज्य लिए मरते हैं।
सच्चा राज्य परंतु हमारे कर्षक ही करते हैं।
जिन के खेतों में है अन्न,
कौन अधिक उनसे संपन्न ?
पत्नी-सहित भी करते हैं वे,
वह वैभव भरते हैं।
सच्चा राज्य परंतु हमारे कर्षक ही करते हैं।
जिन के खेतों में है अन्न,
कौन अधिक उनसे संपन्न ?
पत्नी-सहित भी करते हैं वे,
वह वैभव भरते हैं।
प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘हिंदी पुस्तक-10′ में संकलित आधुनिक काल के राष्ट्रकवि ‘मैथिलीशरण गुप्त‘ द्वारा रचित महाकाव्य ‘साकेत‘ के नवम् सर्ग ‘हम राज्य लिए मरते हैं’ से अवतरित है। प्रस्तुत कविता में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला किसानों के सादे और शांतिपूर्ण जीवन की प्रशंसा कर रही है ।
व्याख्या: उर्मिला कहती है कि हम राज परिवार के लोग राज्य कलह के कारण दुःखी हैं। जबकि वास्तव में सच्चा राज्य हमारे किसान करते हैं। वे स्वयं अपने खेतों में अन्न उत्पन्न करते हैं। इसलिए किसानों से धनवान कोई नहीं। वह अपनी पत्नी संग जीवन यापन करते हैं। जबकि हम गृहक्लेश के कारण भी वियोग सह रहे हैं। अतः किसान हम से अधिक सुखी हैं।
2. हम राज्य लिए मरते हैं ।
वे गोधन के धनी उदार,
उनको सुलभ सुधा की धार,
सहनशीलता के आगर वे श्रम सागर तरते हैं।
हम राज्य लिए मरते हैं।
प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘हिंदी पुस्तक-10′ में संकलित आधुनिक काल के राष्ट्रकवि ‘मैथिलीशरण गुप्त‘ द्वारा रचित महाकाव्य ‘साकेत‘ के नवम् सर्ग ‘हम राज्य लिए मरते हैं’ से अवतरित है। प्रस्तुत कविता में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला किसानों के सादे और शांतिपूर्ण जीवन की प्रशंसा कर रही है ।
व्याख्या: उर्मिला किसानों की प्रशंसा करते हुए कहती है कि किसानों के पास अमृत की धारा के समान गाय का दूध सहज ही मिल जाता है। किसान सहनशीलता की मूर्ति है। वे सदैव परिश्रम करने में विश्वास रखते हैं। जबकि हम राज परिवार के सदस्य राज्य कलह के कारण दुःखी हैं।
3. यदि वे करें, उचित है गर्व,
बात बात में उत्सव-पर्व,
हमसे प्रहरी रक्षक जिनके,
बात बात में उत्सव-पर्व,
हमसे प्रहरी रक्षक जिनके,
वे किस से डरते हैं?
हम राज्य लिए मरते हैं ।
हम राज्य लिए मरते हैं ।
प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘हिंदी पुस्तक-10′ में संकलित आधुनिक काल के राष्ट्रकवि ‘मैथिलीशरण गुप्त‘ द्वारा रचित महाकाव्य ‘साकेत‘ के नवम् सर्ग ‘हम राज्य लिए मरते हैं’ से अवतरित है। प्रस्तुत कविता में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला किसानों के सादे और शांतिपूर्ण जीवन की प्रशंसा कर रही है।
व्याख्या: उर्मिला आगे कहती है कि यदि किसान अपने ऊपर गर्व या मान करते हैं तो इसमें कुछ भी अनुचित नहीं है। उनका ऐसा सोचना बिल्कुल उचित है। वह छोटी-छोटी बातों में खुशी का मौका तलाश लेते हैं। वह प्रतिदिन उत्सव या त्योहार मनाते हैं। जब हम जैसे लोग उनके रक्षक हैं तो उन्हें किसी से भयभीत होने की जरूरत नहीं। जबकि हम राज्य के लिए मरते हैं।
4. करके मीन मेख सब ओर,
शाखामयी बुद्धि तजकर वे मूल धर्म धरते हैं।
हम राज्य लिए मरते हैं ।
शाखामयी बुद्धि तजकर वे मूल धर्म धरते हैं।
हम राज्य लिए मरते हैं ।
किया करें बुध वाद कठोर,
प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘हिंदी पुस्तक-10′ में संकलित आधुनिक काल के राष्ट्रकवि ‘मैथिलीशरण गुप्त‘ द्वारा रचित महाकाव्य ‘साकेत‘ के नवम् सर्ग ‘हम राज्य लिए मरते हैं’ से अवतरित है। प्रस्तुत कविता में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला किसानों के सादे और शांतिपूर्ण जीवन की प्रशंसा कर रही है।
व्याख्या: प्रस्तुत पंक्तियों में उर्मिला किसानों के सरल व सादे जीवन की ओर संकेत करते हुए कहती है कि किसान व्यर्थ के वाद-विवाद को त्याग कर धर्म के मूल सिद्धांतों को अपनाते हैं। जबकि विद्वान लोग छोटी-छोटी बात पर बहस करते हैं। जबकि हम राजवंशी राज्य कलह के कारण दुःखी हैं।
5. होते कहीं वही हम लोग,
कौन भोगता फिर ये भोग ?
उन्हीं अन्नदाता के सुख आज दुःख हरते हैं।
हम राज्य लिए मरते हैं।
कौन भोगता फिर ये भोग ?
उन्हीं अन्नदाता के सुख आज दुःख हरते हैं।
हम राज्य लिए मरते हैं।
प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘हिंदी पुस्तक-10′ में संकलित आधुनिक काल के राष्ट्रकवि ‘मैथिलीशरण गुप्त‘ द्वारा रचित महाकाव्य ‘साकेत‘ के नवम् सर्ग ‘हम राज्य लिए मरते हैं’ से अवतरित है। प्रस्तुत कविता में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला किसानों के सादे और शांतिपूर्ण जीवन की प्रशंसा कर रही है।
व्याख्या: प्रस्तुत पंक्तियों में उर्मिला के मन की पीड़ा उजागर होती है। उर्मिला कहती है कि अगर हम राजवंशी न होकर किसान होते तो हमें राज्य कलह के कारण दु:ख न सहना पड़ता अर्थात् हम पति-पत्नी में भी वियोग में पड़ता। किसानों व राज्य के लोगों के कारण हम यह सह रहे हैं। उनके सुखों को देखकर हमारे दुःख दूर हो जाते हैं। लेकिन हम फिर भी राज्य कलह के कारण दुःख भोगते हैं।
(क) विषय-बोध
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए:
प्रश्न 1. प्रस्तुत गीत में उर्मिला किसकी प्रशंसा कर रही है?
उत्तर: प्रस्तुत गीत में उर्मिला किसानों के सरल एवं शांतिपूर्ण जीवन की प्रशंसा कर रही है।
प्रश्न 2.किसान संसार को समृद्ध कैसे बनाते हैं?
उत्तर: किसान अन्न पैदा करके संसार को समृद्ध बनाते हैं।
प्रश्न 3.किसान किस प्रकार परिश्रम रूपी समुद्र को धीरज से तैरकर पार करते हैं?
उत्तर: किसान सहनशील हैं। वह परिश्रम रूपी समुद्र को अपने परिश्रम और धैर्य से तैरकर पार करते हैं।
प्रश्न 4.किसान का अपने पर गर्व करना कैसे उचित है ?
उत्तर: किसान का अपने पर गर्व करना इसलिए उचित है क्योंकि वह समस्त संसार का अन्नदाता होता है।
प्रश्न 5.किसान व्यर्थ के वाद विवाद को छोड़कर किस धर्म का पालन करते हैं?
उत्तर: किसान व्यर्थ के वाद विवाद को छोड़कर मूल धर्म का पालन करते हैं।
प्रश्न 6. ‘हम राज्य लिए मरते हैं ‘में उर्मिला राज्य के कारण होने वाले किस कलह की बात कहना चाहती है?
उत्तर: उर्मिला राज्य के लिए श्री राम को वनवास दिए जाने तथा भरत को राज्य देने से उत्पन्न कलह की बात कहना चाहती है।
2.निम्नलिखित पद्यांश की सप्रसंग व्याख्या करें:
उत्तर: सप्रसंग व्याख्या पहले की जा चुकी है।
(ख) भाषा-बोध
1. निम्नलिखित शब्दों के विपरीत शब्द लिखें:
शब्द विपरीत शब्द शब्द विपरीत शब्द
संपन्न विपन्न धनी निर्धन
उदार अनुदार रक्षक भक्षक
सुलभ दुर्लभ उचित अनुचित
कठोर कोमल धर्म अधर्म
2.निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखें:
पत्नी – भार्या, अर्धांगिनी, ग्रहिणी, वधू
कर्षक – किसान, कृषक, खेतीहर, हलवाहा
सागर – समुद्र, सिंधु, जल्दी, रत्नाकर
उत्सव – समारोह ,पर्व, त्योहार
3.निम्नलिखित भिन्नार्थक शब्दों के अर्थ लिखकर वाक्य बनाइए:
अन्न – अनाज – किसान अन्य पैदा करते हैं ।
अन्य – दूसरा – इस पर नहीं किसी अन्य विषय पर बात करें।
उदार – दानी – करण बहुत ही उदार राजा था ।
उधार – ऋण – उसने मुझसे ₹100 उधार लिया।
लेखन: रजनी गोयल, हिंदी अध्यापिका, स (क). स. स. स्कूल, रामां, बठिंडा