पाठ 2 मीराबाई (पदावली)
बसौ मेरे नैनन में नन्द लाल।
मोहनि मूरति साँवरी सूरति नैना बनै विसाल।
मोर मुकुट मकराकृत कुंडल अरुण तिलक दिये भाला
अधर सुधारस मुरली राजति उर वैजन्ती माल।
छुद्र घंटिका कटि तट सोभित नुपूर शब्द रसाल।
मीरा प्रभु सन्तन सुखदाई भक्त बछल गोपाल।। (1)
प्रसंग: प्रस्तुत पद हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक में संकलित मीराबाई द्वारा रचित ‘पदावली’ में से लिया गया है। इस पद में मीराबाई ने श्री कृष्ण की मन को मोहित करने वाली सुंदर छवि का वर्णन करते हुए उन्हें भक्तों की रक्षा करने वाला कहा है।
व्याख्या: मीराबाई कहती हैं कि हे नंद के पुत्र श्री कृष्ण, आप मेरी आँखों में बस जाओ। आपकी मन को मोहित करने वाली सुन्दर छवि, साँवली सूरत व बड़ी-बड़ी आँखें हैं। आपने मोर के पंखों का बना मुकुट व मछली की आकृति के कुंडल धारण किये हैं। आपके माथे पर लाल रंग का तिलक लगा है। आपके होठों पर अमृत रस गोलने वाली वाली मुरली है जबकि आपके हृदय पर वैजन्ती फूलों की माला है। छोटी-छोटी घंटियाँ आपकी कमर पर बंधी हैं, पाँवों में छोटे-छोटे घुधरू बँधे हैं, जिनकी ध्वनि मन को आकर्षित करती है। मीरा के प्रभु श्री कृष्ण का यह रूप संतो को सुख देने वाला तथा भक्तों की रक्षा करने वाला है।
मेरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।
तात मात भ्रात बंधु, आपनो न कोई।
छोड़ि दई कुल की कानि, कहा करै कोई।
संतन ढिग बैठि बैठि, लोक लाज खोई।
अँसुअन जल सींचि सींचि, प्रेम बेलि बोई।
अब तो बेलि फैल गई, आनंद फल होई।
भगत देखि राजी भई, जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल गिरधर, तारौ अब मोही। (2)
प्रसंग: प्रस्तुत पद हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक में संकलित मीराबाई द्वारा रचित ‘पदावली’ में से लिया गया है। इस पद्यांश में श्री कृष्ण महिमा का वर्णन किया गया है।
व्याख्या – मीरा ने श्री कृष्ण को अपना सर्वस्व मानते हुए कहती हैं कि गोवर्धन पर्वत को उठाने वाले श्री कृष्ण ही मेरे अपने हैं और दूसरा कोई नहीं। जिनके सिर पर मोर के पंखों का सुन्दर मुकुट है वही कृष्ण मेरे पति हैं। पिता-माता भाई-बन्धु कोई मेरा अपना नहीं। मैंने कुल की झूठी मर्यादा छोड़ दी है-मुझे अब मुझे कोई कुछ नहीं कह सकता। संतों की संगति में रहकर मैंने लोक-लाज को छोड़ दिया है। श्री कृष्ण रूपी प्रेम की बेल को मैंने अपने आँसुओं से सींचा है। अब प्रेम की बेल खिल गई है और जिससे आनन्द रूपी फल देने लगी है। मीरा कहती है भक्तों को देखकर उसे खुशी मिलती है-संसार का झमेला तो दुःख देने वाला है। मीरा कहती है कि मैं कृष्ण की दासी हूँ वही मुझे इस संसार रूपी सागर से पार करें।
अभ्यास हल सहित
(क) विषय-वोध
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए:-
प्रश्न (1) श्री कृष्ण ने कौन सा पर्वत धारण किया था?
उत्तर- श्री कृष्ण ने ‘गोवर्धन पर्वत’ को धारण किया था।
प्रश्न (2) मीरा किसे अपने नयनों में बसाना चाहती है?
उत्तर- मीरा श्री कृष्ण को अपने नयनों में बसाना चाहती है।
प्रश्न (3) श्री कृष्ण ने किस प्रकार का मुकुट और कुण्डल धारण किए हैं?
उत्तर- श्री कृष्ण ने मोर के पंखों का बना मुकुट व मकर की आकृति का कुण्डल धारण किया है।
प्रश्न (4) मीरा किसे देखकर प्रसन्न हुई और किसे देख कर दु:खी हुई ?
उत्तर- मीरा भक्तों को देखकर प्रसन्न हुई और संसार का झमेला देख दु:खी हुई।
प्रश्न (5) संतों की संगति में रहकर मीरा ने क्या छोड़ दिया?
उत्तर- संतों की संगति में रहकर मीरा ने लोक-लाज को छोड़ दिया।
प्रश्न (6) मीरा अपने आँसुओं के जल से किस बेल को सींच रही थी?
उत्तर-मीरा अपने आँसुओं के जल से श्री कृष्ण के प्रेम की बेल को सींच रही थी।
प्रश्न (7) पदावली के दूसरे पद में मीराबाई गिरिधर से क्या चाहती है?
उत्तर-पदावली के दूसरे पद में मीराबाई गिरिधर से चाहती है कि इस संसार रुपी सागर से उसका उद्धार किया जाए।
(ख) भाषा-बोध
1. निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखें :-
भाल मस्तक, ललाट, माथा
प्रभु परमात्मा, ईश्वर, ईश
जगत संसार, विश्व, जग
वन कानन, जंगल, अरण्य
2. निम्नलिखित भिन्नार्थक शब्दों के अर्थ लिखकर वाक्यों में प्रयोग कीजिए:-
(i) कुल (पूरा) मेरे पास कुल दस रुपए हैं।
कूल (नदी का किनारा) नदी के कूल पर आम के वृक्ष लगे थे।
(ii) कटि (कमर) तालाब का पानी कटि तक गहरा था।
कटी (गुजरी) राम की जिंदगी बीमारी में ही कटी।
लेखन: डॉ.सुमन सचदेवा, हिंदी अध्यापिका, स.ह. स्कूल (लड़के),मंडी हरजीराम, मलोट