(क) विषय बोध
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक- दो पंक्तियों में दीजिए:-
(i) मुन्नी के लिए पाजेब कौन लाया?
उत्तर- मुन्नी के लिए पाजेब उसकी बुआ लाई।
(ii) मुन्नी को पाजेब मिलने के बाद आशुतोष भी किस चीज़ के
लिए ज़िद करने लगा?
उत्तर- मुन्नी को पाजेब मिलने के बाद आशुतोष भी साइकिल के लिए
ज़िद करने लगा।
(iii) लेखक की पत्नी को पाजेब चुराने का संदेह सबसे पहले किस पर हुआ?
उत्तर- लेखक की पत्नी को पाजेब चुराने का संदेह सबसे पहले अपने नौकर बंसी पर हुआ।
(iv) आशुतोष को किस चीज़ का शौक था ?
उत्तर- आशुतोष को पतंग उड़ाने का शौक था।
(v) वह शहीद की भाँति पिटता रहा था। रोया बिल्कुल नहीं था …..
उपर्युक्त संदर्भ में बताइए कि कौन पिटता रहा ?
उत्तर- उपर्युक्त संदर्भ में छुन्नू की बात हो रही है कि गलती न होने पर भी वह बिना रोए चुपचाप पिटता रहा।
(vi) गुम हुई पाजेब कहाँ से मिली?
उत्तर- गुम हुई पाजेब आशुतोष की बुआ की बास्केट की जेब से मिली जो गलती से उसी के साथ चली गई थी।
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन-चार पंक्तियों में दीजिए
(i) लेखक को आशुतोष पर पाजेब चुराने का संदेह क्यों हुआ?
उत्तर- आशुतोष को पतंग उड़ाने का बहुत शौक था। बातों-बातों में इस बात का पता चला कि उस शाम आशुतोष पतंग और डोर का पिन्ना लाया था। लेखक ने सोचा सम्भवतः आशुतोष को पाजेब कहीं पड़ी हुई मिल गई होगी और उसने पाजेब बेचकर अपनी पतंग का सामान खरीद लिया होगा।
(ii) पाजेब चुराने का संदेह किस-किस पर किया गया?
उत्तर- पाजेब चुराने का संदेह सर्वप्रथम घर के नौकर बंसी पर गया। उसने साफ इन्कार कर दिया। तब आशुतोष से पूछताछ शुरू हुई। उसने भी कई तरह से टालमटोल करने की चेष्टा की। आशुतोष के सन्दर्भ में छुन्नू का नाम भी चर्चा में रहा। फिर आशुतोष ने पाजेब पतंग वाले को ग्यारह आने पैसे में बेच देने की बात कही। परन्तु अंत में पता चला कि पाजेब गलती से बुआ के साथ चली गई थी।
(iii) आशुतोष ने चोरी नहीं की थी फिर भी उसने चोरी का अपराध स्वीकार किया। इसका क्या कारण हो सकता है?
उत्तर- आशुतोष ने सचमुच पाजेब की चोरी नहीं की थी लेकिन उसके पिता को आशुतोष पर ही संदेह हो रहा था। उससे इस संबंध में बार बार प्रश्न पूछे गये,डराया धमकाया गया, पिटाई की गयी,कोठरी में बंद किया गया । यही कारण हो सकता है कि इन सब बातों से तंग आकर उसके बाल मन ने चोरी न करने के बावजूद भी चोरी का अपराध स्वीकार कर लिया।
(iv) पाजेब कहाँ और कैसे मिली?
उत्तर-वास्तव में पाजेब की न तो चोरी हुई थी, न ही उसे कहीं किसी के पास रखा गया था और न ही उसे किसी पतंग विक्रेता के यहाँ बेचा गया था। वस्तुस्थिति यह थी कि आशुतोष की बुआ जिसने वह पाजेब मुन्नी के लिए खरीदी थी उस दिन सायंकाल को जब अपने घर जाने लगी तो भूल से एक पाजेब उनकी बास्कट में उनके साथ चली गई थी।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छः सात पंक्तियों में दीजिए
(1) आशुतोष का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर- आशुतोष पाजेब‘ कहानी का मुख्य पात्र है । उसके चरित्र के माध्यम से कहानीकार ने बाल मनोविज्ञान को उजागर किया है ।अन्य बच्चों की तरह वह भी बहन को पाजेब मिलने पर खुद साइकिल लेने की जिद करता है इस तरह से एक हाथी बालक है बहन को पाजेब मिलने पर खुश भी होता है उसे पतंग उड़ाने का बहुत शौक है इसी शौक के कारण उस पर पाजेब चुराने का संदेह किया जाता है कि उसने पाजेब बेचकर पतंग उड़ाने के लिए सामान खरीदा था अपना अपराध ना होते हुए भी दबाव के कारण उसका बाल मन इतना डर जाता है कि वह अपराध स्वीकार कर लेता है उसे डराया धमकाया जाता है पिटाई की जाती है कोठरी में बंद किया जाता है लेकिन वह चुपचाप सब सहन करता है। कहीं कहीं उसके स्वभाव में उद्दंडता भी आ जाती है इस तरह उसका पूरा चरित्र बाल मनोविज्ञान से प्रभावित है ।
2. आशुतोष के माता-पिता ने बिना किसी मनोवैज्ञानिक सूझबूझ के आशुतोष के प्रति जो व्यवहार किया- उसे अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर- आशुतोष के माता-पिता ने उसके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया था। बाल मनोविज्ञान के अनुसार अपराध वृत्ति को प्रेम पूर्ण व्यवहार से जीता जा सकता है, आतंक से उसे दबाना ठीक नहीं । मगर आशुतोष के माता-पिता ने उस पर पाजेब चुराने का इल्जाम लगाया। केवल संदेह के आधार पर भी उसे डराया- धमकाया ,पिटाई की , कोठरी में बंद भी किया । जब कि आशुतोष ने चोरी की भी नहीं थी। जिस पाजेब को चुराने का इल्जाम उस पर लगाया गया था वह अजीब तो बुआ के पास से मिली। आशुतोष को ऐसे ही मानसिक रूप से प्रताडित किया गया। इस तरह हम देखते हैं कि जो व्यवहार आशुतोष के माता-पिता के द्वारा किया गया वह बिल्कुल अनुचित था।
3. आशुतोष के किन कथनों और कार्यों से संकेत मिलता है कि उसने पाजेब नहीं चुराई थी ?
उत्तर – आशुतोष के व्यवहार की बहुत सी बातों से संकेत मिलता है कि उसने पाजेब नहीं चुराई थी । जैसे पाजेब गुम होने का पता चलने पर वह स्वयं ट्रक व बॉक्स के नीचे घुस कर ढूंढने में सहायता कर रहा था अनेक प्रश्न पूछे जाने पर कभी हां कभी ना में उत्तर दे रहा था दबाव में आकर पतंग वाले का और चुन्नू का नाम ले तो दिया लेकिन उनके पास पूछने जाने के लिए टालमटोल कर रहा था इन बातों से उसकी बेगुनाह होने का सबूत मिलता है
4) “प्रेम से अपराध वृत्ति को जीता जा सकता है, आंतक से उसे दबाना ठीक नहीं है
से है …..” इस वाक्य का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – इस वाक्य का आशय है कि अपराध वृत्ति को दबाने के लिए दंड का सहारा उचित नहीं। दण्ड व्यक्ति को उदण्ड बनाने का काम करता है। उसमे जिद्दीपन आ जाता है। प्यार से व्यक्ति दूसरे के दिल को पिघला कर उसके मन की बातों को जान लेता है तथा उसकी अपराध वृति को अपने प्यार से जीत लेता है। इस तरह से उसके चरित्र में सुधार की संभावना बनी रहती है।
(ख) भाषा-बोध
प्रश्न 1. निम्नलिखित वाक्यों में उपयुक्त स्थान पर उचित विराम चिह्न का प्रयोग कीजिए –
(i) बुआ ने कहा छी-छी तू कोई लड़की है
बुआ ने कहा, छी-छी ! तू कोई लड़की है?.
(ii) मैंने कहा छोडिए भी बेबात बात बढ़ाने से क्या फायदा
मैंने कहा, ” छोड़िए भी , बेबात बात बढ़ाने से क्या फायदा!”
(ii) मैंने कहा क्यों रे तू शरारत से बाज नहीं आयेगा
मैंने कहा, “क्यों रे, तू शरारत से बाज़ नहीं आयेगा?”
प्रश्न 2 .नीचे लिखे मुहावरों के अर्थ समझकर इनका अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
(1) खुशी का ठिकाना न रहना (बहुत प्रसन होना) पाजेब मिलने पर मुन्नी की खुशी का ठिकाना न रहा।
टस से मस न होना (अपनी जिद्द पर अड़े रहना) कई लोग अपनी बात से तनिक भी टस से मस नहीं होते है।
(1) चैन की सांस लेना (राहत महसूस करना) कोरोना वायरस ख़त्म होने पर ही हम सब चैन की सांस लेंगे।
(iv) मुँह फुलाना (रूठ जाना, नाराज होना) छोटी- छोटी बातों पर मुँह फुलाना अच्छी बात नहीं होती।
प्रश्न 3. नीचे लिखे वाक्यों का हिंदी में अनुवाद कीजिए
( I ) ਸ਼ਾਮ ਹੋਣ ਤੇ ਬੱਚਿਆਂ ਦੀ ਭੂਆ ਚਲੀ ਗਈ
संध्या होने पर बच्चों की बुआ चली गई।
( II ) ਸੱਚ ਕਹਿਣ ਵਿੱਚ ਘਬਰਾਉਣ ਨਹੀਂ ਚਾਹੀਦਾ।
सच कहने से घबराना नहीं चाहिए।
( III ) ਉਸ ਦਿਨ ਭੁੱਲ ਨਾਲ ਇਹ ਇੱਕ ਪਜੇਬ ਮੇਰੇ ਨਾਲ ਚਲੀ ਗਈ ਸੀ।
उस दिन भूल से यह एक पाजेब मेरे साथ चली गई थी।
( IV ) ਬਜ਼ਾਰ ਵਿੱਚ ਇਕ ਨਵੀਂ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਜੇਬ ਚਲੀ ਹੈ।
बाज़ार में एक नई प्रकार की पाजेब चली है।
लेखन:- दीपक कुमार, हिंदी मास्टर, स.मि. स्कूल मानवाला, बठिंडा
संशोधन : डॉ सुमन सचदेवा, हिंदी अध्यापिका,स.ह. स्कूल (लड़के) मंडी हरजीराम, मलोट
संयोजक: दीपक कुमार, हिंदी मास्टर, स.मि. स्कूल मानवाला, बठिंडा