निम्नलिखित में संधि-विच्छेद / संधि कीजिए :-
संधि | संधि-विच्छेद | संधि-विच्छेद | संधि |
चरणामृत | चरण + अमृत | प्रति + एक | प्रत्येक |
पुस्तकालय | पुस्तक + आलय | गज + आनन | गजान |
मुनीश | मुनि + ईश | सु + अच्छ | स्वच्छ |
लघूत्तर | लघु + उत्तर | वन + ओषधि | वनौषधि |
दशमेश | दशम + ईश | यदि + अपि | यद्यपि |
यथेष्ट | यथा + इष्ट | शिष्ट + आचार | शिष्टाचार |
लोकोक्ति | लोक + उक्ति | गुरु + आगमन | गुर्वागमन |
पर्यावरण | परि + आवरण | सूर्य + उदय | सूर्योदय |
उपर्युक्त | उपरि + उक्त | अति + अंत | अत्यंत |
इत्यादि | इति + आदि। | मत + एक्य | मतैक्य |
प्रश्न 1. संधि किसे कहते हैं ?
उत्तर: संधि का सामान्य अर्थ है-मेल। जब दो ध्वनियाँ आपस में मिलती हैं, तब वे एक नया रूप ग्रहण करती हैं, प्रक्रिया को संधि कहते हैं । ; जैसे-
i) सत्य + अर्थ = सत्यार्थ, अ + अ = आ
(ii) महा + ईश = महेश, आ + ई = ए
(iii) पर + उपकार = परोपकार, अ + उ = ओ
(iv) सदा + एव सदैव, आ+ ए = ऐ
उपर्युक्त पहले उदाहरण में सत्य + अर्थ के मेल से एक नया शब्द बना – सत्यार्थ।
यहाँ ‘सत्य’ के अंतिम स्वर ‘अ’ तथा ‘अर्थ’ के आरंभिक स्वर ‘अ’ का मेल होने से एक नयी ध्वनि – ‘आ’ बनी है ।
दूसरे उदाहरण में ‘महा’ + ‘ईश’ के मेल से एक नया शब्द बना ‘महेश’।
यहाँ ‘महा’ के अंतिम स्वर ‘आ’ तथा ‘ईश’ के आरंभिक स्वर ‘ई’ का मेल होने से एक नयी ध्वनि-‘ए’ बनी है।
तीसरे उदाहरण में ‘पर’ + ‘उपकार’ के मेल से एक नया शब्द बना-‘परोपकार’ ।
यहाँ ‘पर’ के अंतिम स्वर ‘अ’ तथा ‘उपकार’ के आरंभिक स्वर ‘उ’ के मेल होने से एक नयी ध्वनि- ‘ओ’ बनी है ।
चौथे उदाहरण में ‘सदा’ + ‘एव’ के मेल से एक नया शब्द बना – सदैव ।
यहाँ ‘सदा’ के अंतिम स्वर ‘आ’ तथा ‘एव’ के आरंभिक स्वर ‘ए’ के मेल होने से एक नयी ध्वनि- ‘ऐ’ बनी है ।
प्रश्न 2. संधि की परिभाषा दीजिए।
उत्तर: परिभाषा: जब दो ध्वनियाँ आपस में मिलती हैं, तब वे एक नया रूप ग्रहण करती हैं, प्रक्रिया को संधि कहते हैं।
प्रश्न 3. संधि-विच्छेद किसे कहते हैं?
उत्तर: दो वर्णों अथवा ध्वनियों के मेल से जो एक शब्द बनता है, उसे दुबारा से पहले वाली स्थिति में ले आना संधिविच्छेद कहलाता है । जैसे-
(i) सत्यार्थ = सत्य + अर्थ (ii) महेश = महा + ईश (iii) परोपकार = पर + उपकार (iv) सदैव सदा + एव
ऊपर के उदाहरणों में दो वर्णों अथवा ध्वनियों के मेल से संधि की गयी थी किंतु इन उदाहरणों में संधि के नियमों को हटाकर वर्णों को फिर पहली अवस्था में लाया गया है ।
प्रश्न 4. संधि के कितने भेद हैं?
उत्तर: संधि के तीन भेद हैं-
(i) स्वर संधि
(ii) व्यंजन संधि
(iii) विसर्ग संधि।
(i) स्वर संधि- स्वरों का स्वरों के साथ मेल होने पर उनमें जो परिवर्तन आता है, उसे स्वर संधि कहते है ; जैसे हिम + आलय हिमालय : इसमें ‘हिम’ के अंतिम स्वर ‘अ’ तथा ‘आलय’ के आरंभिक स्वर ‘आ’ स्वरों का मेल (अ + आ) हुआ है और एक नई ध्वनि ‘आ’ बनी है ।
(ii) व्यंजन संधि- व्यंजन और व्यंजन अथवा स्वर और व्यंजन के मेल से व्यंजन में जो परिवर्तन आता है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं; जैसे- जगत् + नाथ = जगन्नाथ: इसमें ‘जगत्’ के अंतिम ‘त्’ और ‘नाथ’ के आरम्भिक ‘न’ अर्थात दो व्यंजनों ‘त्’ + ‘न’ की संधि से ‘न्न’ एक नया रूप बना है।
(iii) विसर्ग संधि-विसर्ग (:) विसर्ग का मेल किसी स्वर अथवा व्यंजन के साथ होने पर विसर्ग में जो परिवर्तन होता है, उसे विसर्ग संधि कहते हैं । ; जैसे- निः+आशा = निराशा – यहाँ ‘नि:’ के अंत में विसर्ग (:) का मेल ‘आशा’ के आदि में ‘आ’ स्वर के साथ होने पर ‘रा’ एक नया रूप बना है।
पाठ्यक्रम में केवल स्वर संधि है, इसलिए इस पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
स्वर संधि
प्रश्न 1. स्वर संधि किसे कहते हैं? इसके कितने भेद हैं?
उत्तर: स्वर के बाद स्वर के मेल से उनमें जो परिवर्तन होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं । स्वर संधि के पाँच भेद हैं –
1. दीर्घ संधि
2. गुण संधि
3. वृद्धि संधि
4. यण संधि
5. अयादि संधि।
1. दीर्घ संधि – परिभाषा- जब दो एक समान स्वर परस्पर निकट-निकट आ जाते हैं तो दोनों मिलकर उसी वर्ण का दीर्घ स्वर बनाते हैं। इसे दीर्घ संधि कहते हैं।
(क) मत + अनुसार = मतानुसार (अ + अ = आ)
छात्र + आवास = छात्रावास (अ + आ = आ)
चिकित्सा + आलय = चिकित्सालय (आ + आ = आ)
परीक्षा + अर्थी = परीक्षार्थी ( आ + अ = आ)
अन्य उदाहरण
स्व + आधीन = स्वाधीन
भाव + अर्थ = भावार्थ
परम + अणु = परमाणु
देव + आलय = देवालय
विश्राम + आलय = विश्रामालय
सचिव + आलय = सचिवालय
जन + आदेश = जनादेश
यथा + अवसर = यथावसर
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
यथा + अर्थ = यथार्थ
सेवा + अर्थ = सेवार्थ
परा + अस्त = परास्त
दया + आनंद = दयानंद
वार्ता + आलाप = वार्तालाप
सदा + आचार = सदाचार
(ख) अति + इव = अतीव (इ + इ = ई)
रवि + इंद्र = रवीन्द्र (इ + ई = ई)
नारी + इच्छा = नारीच्छा (ई + इ = ई)
रजनी + ईश = रजनीश ( ई + ई = ई)
अन्य उदाहरण
कपि + इंद्र = कपींद्र
रवि + इंद्र = रवींद्र
मुनि + ईश्वर = मुनीश्वर
प्रति + ईक्षा = प्रतीक्षा
मुनि + ईश = मुनीश
अवनी + इंद्र = अवनींद्र
नारी + इच्छा = नारीच्छा
रजनी + ईश = रजनीश
सती + ईश = सतीश
नदी + ईश = नदीश
(ग) गरु + उपदेश = गुरूपदेश (उ + उ = ऊ)
सिंधु + ऊर्मी = सिंधूर्मि ( उ + ऊ = ऊ)
वधू + उत्सव = वधूत्सव ( ऊ + उ = ऊ)
सरयू + ऊर्मी = सरयूर्मि (ऊ + ऊ = ऊ)
अन्य उदाहरण
गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
सु + उक्ति = सूक्ति
लघु + ऊर्मि = लघूर्मि
भू + उत्सर्ग = भूत्सर्ग
भू + उद्धार = भूद्धार
भू + ऊर्जा = भूर्जा
2. गुण संधि
(i) जब ‘अ’ या ‘आ’ के आगे ‘इ’ या ‘ई’ हो तो दोनों को मिलाने से ‘ए’ बनता है।
(ii) जब ‘अ’ या ‘आ’ के आगे ‘उ’ या ‘ऊ’ हो तो दोनों को मिलाने से ‘ओ’ बनता है।
(iii) जब ‘अ’ या ‘आ’ के आगे ऋहो तो ‘अर’ बनता है।
क. वीर + इंद्र = वीरेन्द्र ( अ + इ = ए)
नर + ईश = नरेश ( अ + ई = ए)
यथा + इष्ट = यथेष्ट ( आ + इ = ए)
रमा + ईश = रमेश ( आ + इ = ए)
अन्य उदाहरण
धर्म + इंद्र = धर्मेंद्र
ज्ञान + इंद्र = ज्ञानेंद्र
रूप + ईश = रूपेश
गण + ईश = गणेश
राजा + इंद्र = राजेंद्र
महा + इंद्र = महेंद्र
राजा + ईश = राजेश
महा + ईश्वर = महेश्वर
ख. सर्व + उदय = सर्वोदय (अ + उ = ओ)
जल + ऊर्मि = जलोर्मि (अ + ऊ = ओ)
महा + उत्सवः = महोत्सव (आ +उ = ओ)
गंगा + ऊर्मि (आ +ऊ =ओ)
अन्य उदाहरण
सह + उदर = सहोदर
सूर्य + उदय = सूर्योदय
लंका + ईश्वर = लंकेश्वर
नर्मदा + ईश्वर = नर्मदेश्वर
पर + उपकार = परोपकार
सागर + ऊर्मि = सागरोर्मि
सूर्य + ऊष्मा = सूर्योष्मा
महा + उदय = महोदय
गंगा + उदक = गंगोदक
यमुना + ऊर्मि = यमुनोर्मि
रंभा + ऊरू = रंभोरू
ग. देव + ऋषि = देवर्षि (अ+ ऋ = अर्)
महा + ऋषि = महर्षि (आ + ऋ = अर्)
अन्य उदाहरण
सप्त + ऋषि = सप्तर्षि
ब्रह्म + ऋषि = ब्रह्मर्षि
राजा + ऋषि = राजर्षि
3. वृद्धि संधि
(i) जब ‘अ’, ‘आ’ के आगे ‘ए’ अथवा ‘ऐ’ हों तो उन्हें मिलाकर ‘ऐ’ हो जाता है।
(ii) जब ‘अ’, ‘आ’ के सामने ‘ओ’ अथवा ‘औ’ के होने की स्थिति में दोनों को मिलाने से ‘औ’ हो जाता है।
(क) हित + एषी = हितैषी (अ + ए = ऐ)
मत + ऐक्य = मतैक्य (अ + ऐ = ऐ)
तथा + एव = तथैव (आ + ए = ऐ)
महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य (आ + ऐ = ऐ)
अन्य उदाहरण
लोक + एषणा = लोकैषणा
देव + ऐश्वर्य = दैवश्वर्य
परम + ऐश्वर्य = परमैश्वर्य
सदा + एव = सदैव
रमा + ऐश्वर्य = रमैश्वर्य
राजा + ऐश्वर्य = राजैश्वर्य
(ख) दंत + ओष्ठ = दंतौष्ठ (अ+ ओ = औ)
महा + ओज = महौज (आ+ ओ = औ)
परम + औषध = परमौषध (अ + औ = औ)
महा + औध = महौध (आ + औ = औ)
अन्य उदाहरण
जल + ओध = जलौध
परम + ओजस्वी = परमौजस्वी
परम + औदार्य = परमौदार्य
वन + औषध = वनौषध
महा + औत्सुक्य = महौत्सुक्य
4. यण संधि
(क) जब ‘इ’ या ‘ई’ के बाद ‘इ’ वर्ण के अतिरिक्त कोई अन्य स्वर आ जाए तो ‘इ’ या ‘ई’ का परिवर्तन ‘य’ में हो जाता है।
(ख) जब ‘उ’ या ‘ऊ’ के बाद ‘उ’ वर्ण के अतिरिक्त कोई अन्य स्वर आ जाए तो ‘उ’ या ‘ऊ’ का परिवर्तन ‘व’ में हो जाता है।
(ग) जब ‘ऋ’ के बाद ‘ऋ’ वर्ण के अतिरिक्त कोई अन्य स्वर आ जाए तो ‘ऋ’ का परिवर्तन ‘र’ में हो जाता है। इसे यण संधि कहते हैं।
क. अति + अधिक = अत्यधिक ( इ+ अ = य)
अभि + आगत = अभ्यागत (इ + आ = या)
प्रति + एक = प्रत्येक (इ + ए = ये)
प्रति + उत्तर = प्रत्युत्तर (इ + उ = यु)
अन्य उदाहरण
अति + अंत = अत्यंत
अति + आचार = अत्याचार
परि + आवरण = पर्यावरण
इति + आदि = इत्यादि
वि + आयाम = व्यायाम
देवी + आलय = देव्यालय
उपरि + उक्त = उपर्युक्त
मति + उदय = मत्युदय
वि + ऊह = व्यूह
नि + ऊन = न्यून
ख. सु + अल्प = स्वल्प (उ + अ = व)
सु + आगत = स्वागत (उ + आ = वा)
अनु + इति = अन्विति (उ + इ = वि)
अनु + एषण = अन्वेषण (उ + ए = वे)
अन्य उदाहरण
सु + अच्छ = स्वच्छ
गुरु + आज्ञा = गुर्वाज्ञा
सु + अल्प = स्वल्प
अनु + ईक्षण = अन्वीक्षण
ग. मातृ + अनुमति = मात्रानुमति (ऋ+ अ = र)
पितृ + आदेश = पित्रादेश (ऋ+ आ = रा)
पितृ + उपदेश = पित्रुपदेश (ऋ+ उ = रु)
मातृ + ईश = मात्रीश (ऋ + ई = री)
अन्य उदाहरण
पितृ + आनंद = पित्रानंद
पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
मातृ + उपदेश = मात्रुपदेश
मातृ + इच्छा = मात्रिच्छा
5. अयादि संधि
(i) जब ‘ए’ या ‘ऐ के बाद ‘ए’ वर्ण के अतिरिक्त कोई अन्य स्वर आता है तो ‘ए’ का ‘अय्’ और ‘ऐ’ का ‘आय्’ हो जाता है।
(ii) जब ‘आ’ या औ’ के बाद ‘ओ’ वर्ण के अतिरिक्त कोई अन्य स्वर आता है तो ‘ओ’ का ‘अव’ तथा ‘औ’ का ‘आव’ हो जाता है।
उदाहरणक.
(i) ने + अन = नयन (ए + अ = अय्)
नै + अक = नायक (ऐ + अ = आय्)
अन्य उदाहरण
चे + अन = चयन
गै + अन = गायन
(ii) पो + अन = पवन (ओ + अ = अव्)
हो + अन = हवन (ओ + अ = अव्)
भो + इष्य = भविष्य (ओ + इ = अवि)
पौ + अक = पावक (औ + अ = आव)
भौ + उक = भावुक (औ को आव् + उ = आवु)
नौ + इक = नाविक (औ को आव् + इ = आवि)
अन्य उदाहरण
गै + इका = गायिका
नै + इका = नायिका
भो + अन = भवन
हो + अन = हवन
पो + इत्र = पवित्र
भो + इष्य = भविष्य
पौ + अन = पावन
पौ + अक = पावक
नौ + इक = नाविक
भौ + उक = भावुक
उक्त पाँचों स्वर संधियाँ हिंदी में संस्कृत से आई हैं। इनके अतिरिक्त हिंदी की अपनी कुछ स्वर संधियाँ और भी हैं।