पाठ – 1
कबीर दोहावली
1) साच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदे साच है, ताके हिरदे आप।।
प्रसंग :- प्रस्तुत दोहा कबीर दास जी की रचना ‘कबीर दोहावली’ में से लिया गया है।
व्याख्या – कबीर दास जी कहते हैं कि इस जगत में सत्य के मार्ग पर चलने से बड़ी कोई तपस्या नहीं है और न ही झूठ बोलने से बड़ा कोई पाप है क्योंकि जिसके हृदय में सत्य का निवास होता है उसके हृदय में साक्षात् परमात्मा का वास होता है।
2) साधू भूखा भाव का, धन का भूखा नाहिं।
धन का भूखा जो फिरै, सो तो साधू नाहिं।।
प्रसंग :- प्रस्तुत दोहा कबीर दास जी की रचना ‘कबीर दोहावली’ में से लिया गया है।
व्याख्या :- कबीर दास जी कहते हैं कि संतजन तो भाव के भूखे होते हैं, और धन का लोभ उनको नहीं होता। जो साधू धन का भूखा बनकर घूमता है वह साधू हो ही नहीं सकता।
3) जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय।
जैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय।।
प्रसंग :- प्रस्तुत दोहा कबीर दास जी की रचना ‘कबीर दोहावली’ में से लिया गया है।
व्याख्या:- कबीरदास कहते हैं कि जैसा भोजन करोगे, वैसा ही मन का निर्माण होगा और जैसा जल पियोगे वैसी ही वाणी होगी। इसी प्रकार जो जैसी संगति करता है वैसा ही बन जाता है।
4) संत ना छाड़े संतई, जो कोटक मिले असंत।
चंदन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत।।
प्रसंग :- प्रस्तुत दोहा कबीर दास जी की रचना ‘कबीर दोहावली’ में से लिया गया है।
व्याख्या :- सज्जन को चाहे करोड़ों दुष्ट पुरुष मिलें फिर भी वह अपने भले स्वभाव को नहीं छोड़ता। चन्दन के पेड़ से साँप लिपटे रहते हैं, पर वह फिर भी अपनी शीतलता नहीं छोड़ता।
5) पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित हुआ न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़ै सु पंडित होय।।
प्रसंग :- प्रस्तुत दोहा कबीर दास जी की रचना ‘कबीर दोहावली’ में से लिया गया है।
व्याख्या:- कबीर जी कहते हैं कि इस संसार में सभी लोग किताबें पढ-पढ़कर संसार को छोड़ कर चले गए लेकिन कोई भी पंडित नहीं बन पाया। पंडित या ज्ञानी व्यक्ति वही कहलाता है जिसने ईश्वर के साथ प्रेम के ढाई अक्षरों का ज्ञान प्राप्त कर लिया हो। जिस व्यक्ति ने प्रेम के ये ढाई अक्षर समझ लिए हों वही असली पंडित है।
6) बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।
प्रसंग :- प्रस्तुत दोहा कबीर दास जी की रचना ‘कबीर दोहावली’ में से लिया गया है।
व्याख्या:- कबीर जी कहते हैं कि मैं बुरे व्यक्ति की खोज में चला गया लेकिन मुझे कोई भी बुरा व्यक्ति नहीं मिला। जब मैंने अपने अंदर झाँक कर देखा तो मुझसे बुरा कोई नहीं था। अर्थात हर इंसान में कोई न कोई बुराई ज़रूर होती है हमें दूसरों में बुराइयाँ नहीं ढूँढनी चाहिएँ।
7) धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।।
प्रसंग :- प्रस्तुत दोहा कबीर दास जी की रचना ‘कबीर दोहावली’ में से लिया गया है।
व्याख्या:- कबीर जी कहते हैं कि हमें हर काम धीरे- धीरे धैर्य रखते हुए करना चाहिए। कबीर जी उदाहरण देते हुए समझाते हैं कि अगर माली किसी फल के पेड़ में सौ घड़ा पानी डाल दे तो उस पेड़ पर शीघ्र फल नहीं लगेंगे फल तो उसमें ऋतु आने पर ही लगेंगे।
8) जाति ना पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान ।।
प्रसंग :- प्रस्तुत दोहा कबीर दास जी की रचना ‘कबीर दोहावली’ में से लिया गया है।
व्याख्या :- कबीर जी कहते हैं कि हमें कभी भी साधु की जाति नहीं पूछनी चाहिए बल्कि उसका ज्ञान जानना चाहिए। क्योंकि तलवार खरीदते समय कभी भी म्यान का मूल्य नहीं आँका जाता उसी प्रकार साधु को भी उसकी जाति से नहीं ज्ञान से आँका जाता है।
9) कबीर तन पंछी भया, जहाँ मन तहां उड़ी जाइ।
जो जैसी संगती कर, सो तैसा ही फल पाइ।।
प्रसंग :- प्रस्तुत दोहा कबीर दास जी की रचना ‘कबीर दोहावली’ में से लिया गया है।
व्याख्या:- कबीर कहते हैं कि संसारी व्यक्ति का शरीर पक्षी बन गया है और जहाँ उसका मन होता है, शरीर उड़कर वहीं पहुँच जाता है। वास्तव में जो जिस संगति में रहता है, उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है।
10) अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप ।।
प्रसंग :- प्रस्तुत दोहा कबीर दास जी की रचना ‘कबीर दोहावली’ में से लिया गया है।
व्याख्या :- कबीर जी कहते है कि न तो ज़रूरत से अधिक बोलना अच्छा है और न ही ज़रूरत से ज़्यादा चुप रहना ही ठीक है। जिस प्रकार बहुत अधिक बारिश भी अच्छी नहीं होती और बहुत तेज़ धूप भी अच्छी नहीं होती।
11) माला तो कर में फिरै, जीभ फिरै मुख मांहि।
मनुवा तौ चहुँ दिशि फिरै, यह तो सुमिरन नांहि।।
प्रसंग :- प्रस्तुत दोहा कबीर दास जी की रचना ‘कबीर दोहावली’ में से लिया गया है।
व्याख्या:- कबीर जी कहते हैं कि हाथ में माला फेरने और मुख में जीभ से भजन करते समय यदि व्यक्ति का मन चारों दिशाओं में भटकता रहता है तो वह ईश्वर का सच्चा सिमरन नहीं होता। सिमरन करते समय मन एकाग्र होना चाहिए।
12) काल्ह करै सो आज कर, आज करै सो अब्ब।
पल में परलै होयगी, बहुरि करैगो कब्ब ।।
प्रसंग :- प्रस्तुत दोहा कबीर दास जी की रचना ‘कबीर दोहावली’ में से लिया गया है।
व्याख्या:- कबीर जी कहते हैं कि हमें जो कार्य कल करना है उसे आज ही कर लें और जो कार्य आज करना है उसे अभी कर लें। क्योंकि जीवन बहुत छोटा होता है अगर पल भर में प्रलय (विपरीत समय) आ जाए तो तब वह काम कैसे करोगे।
अभ्यास विषय – बोध
प्रश्न 1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए:
(i) कबीर के अनुसार ईश्वर किसके हृदय में वास करता है ?
उत्तर-कबीर जी के अनुसार ईश्वर सच्चे व्यक्ति के हृदय में वास करता है।
(ii) कबीर ने सच्चा साधु किसे कहा है ?
उत्तर-कबीर जी ने सच्चा साधु उसे कहा है जो भाव का भूखा होता है, जिसे धन-दौलत का लालच नहीं होता।
(iii) संतों के स्वभाव के बारे में कबीर ने क्या कहा है?
उत्तर- कबीर जी कहते हैं कि संत अपनी सज्जनता कभी नहीं छोड़ते चाहे वे कितने भी बुरे स्वभाव के व्यक्तियों से मिलते रहें। चाहे संत को बुरे लोगों के साथ रहना भी पड़े, उन पर बुराई का प्रभाव नहीं होता।
(iv) कबीर ने वास्तविक रूप से पंडित/विद्वान किसे कहा है?
उत्तर-कबीर जी के अनुसार जिस व्यक्ति ने स्वयं को ईश्वर के प्रति अर्पित कर के प्रेम के ढाई अक्षर पढ़ लिए हैं वही वास्तविक रूप से पंडित/विद्वान् है।
(v) धीरज का संदेश देते हुए कबीर ने क्या कहा है ?
उत्तर-कबीर जी ने कहा है कि सभी काम धीरज धारण करने से होते हैं, इसलिए मनुष्य को अपने जीवन में धीरज रखना चाहिए, जिस प्रकार अनुकूल ऋतु आने पर वृक्ष पर फल अपने आप आ जाते हैं उसी प्रकार मनुष्य के सभी कार्य भी सही समय आने पर हो जाते हैं।
(vi) कबीर ने सांसारिक व्यक्ति की तुलना पक्षी से क्यों की है?
उत्तर-कबीर जी ने सांसारिक व्यक्ति की तुलना पक्षी से की है क्योंकि जैसे पक्षी आसमान में इधर-उधर उड़ता रहता है वैसे ही मानव का चंचल मन भी कभी स्थिर नहीं रहता।
(vii) कबीर ने समय के सदुपयोग पर क्या संदेश दिया है?
उत्तर- कबीर जी ने समझाया है कि मनुष्य को अपना काम कल पर नहीं टालना चाहिए अपितु तुरंत कर लेना चाहिए क्योंकि कल का पता नहीं होता, भविष्य तो सदा अनिश्चित होता है।
भाषा – बोध
वर्ण – विच्छेद
बराबर – ब्+ अ + र्+ आ+ ब्+ अ + र् + अ
भोजन – भ्+ ओ+ ज्+ अ+ न्+ अ
पंडित – प् + अं+ ड्+ इ+ त्+ अ
म्यान – म्+ य् + आ +न्+ अ
बरसना – ब्+ अ + र्+अ+ स्+ अ+न्+ आ