पाठ 5 मैंने कहा पेड़ (कक्षा नौवीं)
सप्रसंग व्याख्या
मैंने कहा,” पेड़, तुम इतने बड़े हो,
इतने कड़े हो,
न जाने कितने सौ बरसों के आँधी-पानी में
सिर ऊँचा किए अपनी जगह अड़े हो।
सूरज उगता-डूबता है,चाँद मरता-छीजता है
ऋतुएँ बदलती हैं,मेघ उमड़ता-पसीजता है,
और तुम सब सहते हुए
संतुलित शांत धीर रहते हुए
विनम्र हरियाली से ढँके, पर भीतर ठोठ कठैठ खड़े हो।
प्रसंग :प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक में ‘अज्ञेय’ जी द्वारा रचित कविता ‘मैंने कहा, पेड़’ में से ली गई हैं। इस कविता में कवि किसी मज़बूत और बहुत बड़े पेड़ को देखकर उसकी मज़बूती के बारे में जानना चाहता है।
व्याख्या :कवि कहता है कि उसने पेड़ से पूछा कि अरे पेड़ ,तुम इतने बड़े हो, इतने सख्त और मज़बूत हो ।पता नहीं कि कितने सौ वर्षों से खड़े हो। तुमने सैकड़ों वर्ष की आँधी-तूफ़ान,पानी को अपने ऊपर झेला है पर फिर भी अपनी जगह पर सिर ऊँचा करके वहीं रुके हुए हो। प्रातः सूरज निकलता है और शाम को फिर डूब जाता है। रात के समय चाँद निकलता है वह कभी नष्ट होता है तो कभी उसका आकार कम होता है। ऋतुएँ आती है अपने रंग दिखा कर चली जाती है ।कभी आकाश में बादल उमड़ घुमड़ कर आ जाते हैं और कभी में बरसने के बाद अपना दया भाव प्रकट करते हैं। लेकिन तुम उन सब को अपने ऊपर से लेते हो ।विपरीत परिस्थितियों को तुम अत्यंत धैर्य से शांत रहकर झेल लेते हो। तुम अपने आपको विनीत और धैर्यवान बनकर हरे भरे पत्तों रूपी हरियाली से ढके रहते हो लेकिन भीतर से मजबूत हो, कठोर हो ।
काँपा पेड़, मर्मरित पत्तियाँ
बोली मानो, नहीं, नहीं ,नहीं ,झूठा
श्रेय मुझे मत दो !
मैं तो बार-बार झुकता ,गिरता, उखड़ता
या कि सूखा ठूँठ हो के टूट जाता
श्रेय है तो मेरे पैरों-तले इस मिट्टी को
जिसमें न जाने कहाँ मेरी जड़ें खोई हैं
ऊपर उठा हूँ उतना ही आश में
जितना कि मेरी जुड़ें नीचे दूर धरती में समाई हैं ।
श्रेय कुछ मेरा नहीं, जो है इस नाम ही मिट्टी का।
प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक में ‘अज्ञेय जी’ द्वारा रचित कविता ‘मैंने कहा, पेड़ ‘ से ली गई हैं। कवि ने पेड़ की मज़बूती और धैर्य की प्रशंसा की थी ,लेकिन पेड़ अपना बड़प्पन दिखाते हुए इसका श्रेय उस मिट्टी को देता है जिसमें उसकी जड़े दबी हुई हैं।
व्याख्या: जैसे ही कवि ने सैकड़ों वर्ष पुराने पेड़ की प्रशंसा की वैसे ही पेड़ काँपा और उसकी हरी-भरी पत्तियाँ मर्मर ध्वनि करती हुई मानो बोल पड़ी। उन्होंने कहा कि नहीं-नहीं मेरी लंबी आयु और मज़बूती का झूठा यश मुझे मत दो। मैं कब का नष्ट हो चुका होता। मैं तो बार-बार झुकता, गिरता ,उखड़ कर नष्ट होता या सूख कर पूरी तरह ठूँठ बनकर टूट चुका होता ।पर ऐसा हुआ नहीं- इसका श्रेय तो मेरे पैरों के नीचे की उस मिट्टी को है जिसमें मेरी जड़े खोयी हुई हैं ।न जाने कहाँ-कहाँ तक भी दूर-दूर तक फैली हुई हैं ।मैं तो उन्हीं की आशा में उतना ही ऊपर उठा जितनी दूरी तक मेरी जड़ें नीचे मिट्टी में समाई हुई हैं, फैली हुई हैं। पेड़ ने कहा कि उसकी मज़बूती और हरे-भरे पन का कोई श्रेय उसको नहीं है। इसका श्रेय तो केवल नामहीन मिट्टी को है जिसमें वह उगा था; अब खड़ा हुआ है।
3. और, हाँ, इन सब उगने-डूबने,
भरने-छीजने, बदलने, गलने ,पसीजने,
बनने-मिटने वालों का भी ;
शतियों से मैंने बस एक सीख पाई है;
जो मरण-धर्मा हैं वे ही जीवनदायी हैं।”
प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक में अज्ञेय जी द्वारा रचित कविता’ मैंने कहा, पेड़’ से ली गई है। कवि ने पेड़ से जब पूछा था कि उसकी मज़बूती और लंबी आयु का कारण क्या था तो पेड़ ने इसका श्रेय मिट्टी को दिया था। जिसमें उसकी जड़ें दूर-दूर तक फैली हुई थी। उसने प्रकृति को भी अपने होने का कारण माना था।
व्याख्या: पेड़ कवि से कहता है कि मिट्टी के अतिरिक्त सब को भी श्रेय देता हूँ। जिनके कारण वह लंबी आयु प्राप्त कर पाया है ।वह सूरज को भी यश देता है जो सुबह होते ही उठता है और उसे धूप के रूप में प्रकाश और गर्मी देता है और फिर शाम होते ही डूब जाता है ।चँद्रमा को भी श्रेय देता है जो रात्रि के अंधकार में कभी मरता है तो कभी जीता है। वह सभी ऋतुओं को भी श्रेय देता है जो लगातार बदलती रहती हैं। बादल उमड़ घुमड़ हुए आते हैं और अपनी दया के कारण पानी बरसाते हैं। वह उन बनने मिटने वाले बादलों की देन को स्वीकार करता है। पेड़ कहता है कि मैंने अपने पिछले सैंकडों से यही एक शिक्षा प्राप्त की है कि जो मरण-धर्मा है,वे ही सच्चे जीवन देने वाले हैं। वे आते हैं ,दूसरों का भला करते हैं और चले जाते हैं। उन्हीं के कारण अन्य जीवन के सुखों को प्राप्त करते हैं।
(क) विषय-बोध
प्रश्न 1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए:
प्रश्न (i) पेड़ आँधी-पानी में भी किस तरह से अपनी जगह खड़ा है ?
उत्तर: पेड़ आँधी-पानी में भी सिर्फ ऊँचा करके अपनी जगह पर इसलिए खड़ा रहता है क्योंकि उसका तना मज़बूत है और पृथ्वी उसकी जड़ों को जकड़ कर रखती है ।
प्रश्न (ii) सूरज, चाँद मेघ और ऋतुओं के क्या-क्या कार्य-कलाप हैं ?
उत्तर: सूरज सदा उगता डूबता है। चँद्रमा सदैव मरता और नष्ट होता है। अर्थात् घटता और बढ़ता है। मेघ उमड़ता है और बरस कर नष्ट हो जाता है। ऋतुएँ भी सदा बदलती रहती हैं ।
प्रश्न (iii) पेड़ में सहनशक्ति के अतिरिक्त और कौन-कौन से गुण हैं?
उत्तर: पेड़ सहनशील है। यह सदा संतुलित एवं धीर बना रहता है। पेड़ में लंबी आयु, विपरीत परिस्थितियों का आसानी से सामना करने की क्षमता, समझदारी, दूरदृष्टि और कृतज्ञता प्रकट करने के गुण हैं।
प्रश्न (iv) पेड़ के बढ़ने और जड़ों के धरती में समाने का क्या संबंध है?
उत्तर: पेड़ की जड़ें जितनी धरती में फैलेंगी और गहराई तक जाएँगी, पेड़ की उतनी ही ऊँचाई अधिक होगी ।
प्रश्न (v) पेड़ मिट्टी के अतिरिक्त और किस-किस को श्रेय देता है?
उत्तर: पेड़ मिट्टी के अतिरिक्त उन सभी को, जो उगते हैं, डूबते हैं ,मरते छिजते हैं ,जो निरंतर बदलते हैं और बरसते हैं, श्रेय देता है।
प्रश्न (vi) पेड़ ने क्या सीख प्राप्त की है?
उत्तर: पेड़ ने सीखा है कि ‘जो मरण-धर्मा हैं,वही जीवनदायी होते हैं।’
(ख) भाषा-बोध
प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों का वर्ण-विच्छेद कीजिए:
शब्द वर्ण-विच्छेद
पेड़ प्+ए+ड़्+अ
चाँद च्+आँ+द्+अ
मेघ म्+ए+घ्+अ
मिट्टी म्+इ+ट्+ट्+ई
सूरज स्+ऊ+र्+अ+ज्+अ
ऋतुएँ ऋ+त्+उ+एँ
पत्तियाँ प्+अ+त्+त्+इ+य्+आँ
जीवनदायी ज्+ई+व्+अ+न्+अ+द्+आ+य्+ई
प्रश्न 2. निम्नलिखित तद्भव शब्दों के तत्सम रूप लिखिए:
तद्भव तत्सम तद्भव तत्सम
मिट्टी मृतिका सूरज सूर्य
सिर शीश पानी जल
चाँद चंद्र पत्ता पत्र
सीख शिक्षा सूखा शुष्क
लेखन: रजनी गोयल, हिंदी अध्यापिका, स (क).स.स. स्कूल, रामां, बठिंडा