10th Hindi Package 2 (2024-25)
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(vii) में ‘हिंदी पुस्तक- 10 में से निबन्ध एवं एकांकी के अभ्यासों में दिए भाग- ‘क‘ विषय बोध के अन्तर्गत केवल भाग ‘I’ में दिए गए प्रश्नों में से चार प्रश्न: (निबन्ध में से 2 तथा एकांकी में से 2) पूछे जाएँगे। प्रत्येक प्रश्न: एक अंक का होगा। 4 x1=4
भाग- (ख)
उत्तर: मित्र चुनने की।
उत्तर: क्योंकि उनकी हर बात हमें बिना विरोध के मान लेनी पड़ती है ।
उत्तर: हँसमुख चेहरा, बातचीत का ढंग, थोड़ी चतुराई या साहस ।
उत्तर: विश्वासपात्र मित्र से ।
उत्तर: चिंताशील मनुष्य प्रफुल्लित व्यक्ति का, निर्बल मनुष्य बली का तथा धीर पुरुष उत्साही पुरुष का।
उत्तर: चाणक्य का मुँह।
उत्तर: बीरबल की ओर।
उत्तर: कुसंगति रूपी ज्वर।
उत्तर: उसे लगता था कि राजदरबारी बनकर वह बुरे लोगों की संगति में पड़ जाता और उसकी आध्यात्मिक उन्नति नहीं हो पाती।
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उत्तर: उपाय बुरी संगति से दूर रहना ।
उत्तर: जब लेखक ने सोचा कि उसकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए उसके पास घर, पड़ोस, परिवार व समाज है और वह भी अनेक लोगों की ज़रूरतों को पूरा कर सकता है।
उत्तर: मानसिक विचारों और विश्वासों में हलचल उत्पन्न होना ।
उत्तर: लाला लाजपत राय जी की विदेश यात्राओं के दौरान भारत की गुलामी के अनुभव ने लेखक को हिला दिया।
उत्तर: मनुष्य के लिए संसार के सारे उपहार एवं साधन तब तक व्यर्थ है जब तक उसका देश गुलाम अथवा हीन है ।
उत्तर: युद्ध क्षेत्र में ‘जय’ बोलने वाले लोग सैनिकों का साहस बढ़ाते हैं जिससे उनकी जीत होती है।
उत्तर: खिलाड़ियों के उत्साह को बढ़ाती हैं जिससे वे अच्छा प्रदर्शन करते हैं ।
उत्तर: जापान के स्टेशन पर स्वामी रामतीर्थ खाने के लिए फल ढूँढ़ रहे थे।
उत्तर: तुर्की के राष्ट्रपति थे ।
उत्तर: मिट्टी की छोटी हाँडिया में पाव भर शहद ।
उत्तर: रंगीन सुतलियों से बुनी हुई खाट ।
उत्तर: शक्ति-बोध और सौंदर्य-बोध ।
उत्तर: शल्य महाबली कर्ण का सारथी था ।
उत्तर: पटना के स्टेशन पर एक बेंच पर बैठे देखा था।
उत्तर: एक सामान्य भारतीय कृषक का प्रतिनिधित्व करते थे।
उत्तर: भाई चक्रधर जी थे।
उत्तर: अपनी पन्द्रह सोलह पौत्रियों की ।
उत्तर: लेखिका प्रयाग से बारह सूपों का उपहार लेकर राष्ट्रपति भवन पहुंची थी।
उत्तर: कुछ उबले हुए आलू खाते देखकर ।
उत्तर: भ्रष्टाचार फैलने की बात दरबारियों से पूछी ।
उत्तर: विशेषज्ञों को सौंपा।
उत्तर: एक साधु को पेश किया।
उत्तर: एक तावीज दिखाया ।
उत्तर: साधु ने तावीज़ का प्रयोग कुत्ते पर किया ।
उत्तर: साधु बाबा को दिया गया।
उत्तर: दो तारीख को कार्यालय गये थे।
उत्तर: हिमालय पर जमी हुई बर्फ की शोभा को बहुत पास से देखने के लिए कौसानी गए थे।
उत्तर: कोसी नदी का ज़िक्र किया है ।
उत्तर : सोमेश्वर की घाटी के उत्तर में ऊँची पर्वतमाला के शिखर पर।
उत्तर : हिम दर्शन से छूमंतर हो गई।
उत्तर: डाक बंगले में ठहरे थे ।
उत्तर: बैजनाथ ।
उत्तर: गोमती नदी । For More PSEB study material Visit: – https://hindipunjab.com
उत्तर: सन् 1469 ईसवी को कार्तिक पूर्णिमा के दिन तलवंडी गाँव में हुआ जो कि अब पाकिस्तान में है।
उत्तर: माता का नाम तृप्ता देवी और पिता का नाम मेहता कालू था।
उत्तर: गुरु नानक देव जी ने छोटी सी आयु में ही पंजाबी, हिंदी, फारसी और संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त कर लिया था ।
उत्तर: पिता श्री मेहता कालू जी ने ।
उत्तर: उनके पिताजी ने इनकी शादी देवी सुलक्खनी से कर दी।
उत्तर: गुरु नानक देव जी के दो बेटे थे जिनका नाम था :- लखमीचंद और श्रीचंद।
उत्तर: इस्लामी देशों की यात्रा के दौरान आपने सांझे धर्म की शिक्षा दी ।
उत्तर श्री गुरु ग्रंथ साहिब में गुरु नानक देव जी के 974 पद और श्लोक हैं।
उत्तर :श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में मुख्य 31 राग हैं।
उत्तर: श्री गुरु नानक देव जी के जीवन के अंतिम वर्ष करतारपुर में बीते।
उत्तर: भाई गुरदास जी ने गुरु नानक देव जी के जन्म के संबंध में लिखा था:- ‘सुनी पुकार दातार प्रभु, गुरु नानक जगि माहिं पठाया’
उत्तर: गुरु नानक देव जी को पढ़ने के लिए पांडे के पास भेजा गया। मौलवी सैयद हुसैन तथा पंडित बृज नाथ जी से भी इन्होंने शिक्षा प्राप्त की थी।
उत्तर- दादा मूलराज के पुत्र की मृत्यु 1914 के महायुद्ध में सरकार की ओर से लड़ते-लड़ते हुई थी।
उत्तर- पारो ।
उत्तर- लाहौर शहर में ।
उत्तर- प्राइमरी तक । For More PSEB study material Visit: – https://hindipunjab.com
उत्तर – एक बरगद के पेड़ से की है।
उत्तर- क्योंकि वह टूटा-फूटा था।
उत्तर- क्योंकि वह उन्हें ईमानदार, कर्मनिष्ठ, मेहनतीऔर विश्वसनीय मानते थे।
उत्तर- क्योंकि उसे घर का काम नहीं करना आता था।
उत्तर- वह कहती है कि आप परिवार रूपी इस पेड़ की किसी डाली का टूट जाना पसंद नहीं करते। पर क्या आप यह चाहेंगे की पेड़ से लगी कोई डाली सूख कर मुरझा जाए।
उत्तर: सुमित्रा के पुत्र का नाम जयदेव है।
उत्तर: वाघा बॉर्डर पर सरकारी अफसरों के मारे जाने की खबर सुमित्रा माधवराम के घर रेडियो पर सुनती है।
उत्तर: जयदेव वाघा बॉर्डर पर डी. एस.पी. के पद पर नियुक्त था।
उत्तर: जय देव की पत्नी नीलम थी ।
उत्तर: वाघा बॉर्डर पर मारे जाने वाले सरकारी अफसरों में एक हेड कांस्टेबल और दूसरा सब इंस्पेक्टर था ।
उत्तर: जयदेव ने तस्करों को मार कर उनसे पाँच लाख रुपये का सोना छीना ।
उत्तर: जयदेव को स्वागत सभा में दस हज़ार रुपये देने के लिए सोचा गया।
उत्तर: मीना जयदेव की बहन थी।
उत्तर: जयदेव अभी वापस लौटा था और वह बहुत थका हुआ था। इसलिए नीलम चाहती थी कि वह थोड़ा आराम कर ले।
उत्तर: डी सी आकर सुमित्रा को खुशखबरी देते हैं कि जयदेव की वीरता और साहस के सम्मान में उसे सम्मानित किया जाएगा। गवर्नर साहब की तरफ से दस हज़ार रुपये की इनाम राशि भी दी जाएगी ।
उत्तर: कि उसकी इनाम राशि शहीद हुए अफसरों की विधवाओं को आधी-आधी बाँट दी जाए ।
(पाठ्य पुस्तक में से अन्य प्रश्न: ) (18)
प्रश्न:–2 में ‘हिंदी पुस्तक 10′ में से कहानी, निबन्ध एवं एकांकी के अभ्यासों में दिए भाग – ‘क‘ विषय बोध के अन्तर्गत केवल भाग ‘II’ में दिए गए प्रश्नों में से पाँच प्रश्न: ( प्रत्येक विधा में से एक प्रश्न: पूछना अनिवार्य) पूछे जाएँगे, जिनमें से तीन प्रश्नों के उत्तर देने होंगे। 3×2 =6
प्रश्न:–3 पाठ्य पुस्तक के ‘गद्य भाग‘ (कहानी, निबन्ध एवं एकांकी) के निबन्धात्मक प्रश्नों ( अभ्यासों में दिए भाग- ‘क‘ विषय बोध के अन्तर्गत केवल भाग ‘III’ में दिए गए प्रश्न:) में से पाँच निबन्धात्मक प्रश्न: (प्रत्येक विधा में से एक प्रश्न: पूछना अनिवार्य) पूछे जाएँगे, जिनमें से तीन प्रश्नों का उत्तर लगभग छह-सात पंक्तियों में लिखने के लिये कहा जाएगा। 3×4=12
भाग: ख
पाठ 7 कहानी ममता
प्रश्न: 1. ब्राह्मण चूड़ामणि कैसे मारा गया ?
उत्तर- ब्राह्मण चूड़ामणि रोहतास दुर्ग का मंत्री था। दुर्ग के अंदर बहुत सारी डोलियाँ प्रवेश कर रहीं थीं। मंत्री चूड़ामणि को उन पर शक हुआ। उसने डोलियों का आवरण खुलवाना चाहा। जिस पर पठानों ने इस बात को अपना अपमान समझा और तलवारें निकाल लीं। इस प्रकार उन पठानों से लड़ते हुए मंत्री चूड़ामणि मारा गया।
प्रश्न: 2. ममता ने झोपड़ी में आए व्यक्ति की सहायता किस प्रकार की ?
उत्तर- झोंपड़ी में आए व्यक्ति ने ममता से सहायता माँगी। पहले तो उसने मना किया पर बाद में अतिथि धर्म का पालन करते हुए ममता ने बिना किसी धर्म भेद के उस मुगल सिपाही को पहले पानी पिलाया और बाद में अपनी झोपड़ी में आश्रय दिया।
प्रश्न: 3. ममता ने अपनी झोपड़ी के द्वार पर आए अश्वारोही को बुलाकर क्या कहा ?
उत्तर- ममता ने कहा, “मैं नहीं जानती कि वह व्यक्ति शहंशाह था या साधारण मुगल। मैंने सुना था कि वह जाते हुए मेरा घर बनवाने की आज्ञा दे गया था। मैं जीवन भर अपनी झोपड़ी के खोदे जाने से डरती रही, पर अब मुझे कोई चिंता नहीं। मैं अपने चिर विश्राम-गृह में जा रही हूँ। अब तुम यहाँ मकान बनाओ या महल, मेरे लिए इसका कोई महत्व नहीं।”
प्रश्न: 4. हुमायूँ द्वारा दिए गए आदेश का पालन कितने वर्षों बाद तथा किस रूप में हुआ ?
उत्तर- हुमायूँ द्वारा दिए गए आदेश का पालन 47 वर्षों बाद उसके पुत्र अकबर द्वारा किया गया। वहाँ पर एक अष्टकोण मंदिर का निर्माण करवाया गया। उस मंदिर पर शहंशाह हुमायूँ के नाम का शिलालेख लगवाया गया। लेकिन अफ़सोस की बात है की वहाँ ममता का कहीं नाम नहीं था। For More PSEB study material Visit: – https://hindipunjab.com
प्रश्न: 5. मंदिर में लगाए शिलालेखा पर क्या लिखा गया ?
उत्तर- मंदिर में लगाए शिलालेख पर लिखा गया, “सातों देशों के नरेश हुमायूं ने एक दिन यहाँ विश्राम किया था। उनके पुत्र अकबर ने उसकी स्मृति में यह गगनचुंबी मंदिर बनवाया।” लेकिन हुमायूं को आश्रय देने वाली ममता का वहाँ कहीं नाम न था।
पाठ 8 अशिक्षित का हृदय
प्रश्न: 1 मनोहर सिंह ने नीम के पेड़ को गिरवी क्यों रखा?
उत्तर: मनोहर सिंह ने एक बार कुछ भूमि ठाकुर शिवपाल सिंह से लगान पर लेकर खेती करवाई। वर्षा न होने के कारण सब चौपट हो गया। फसल न होने के कारण वह ठाकुर शिवपाल सिंह को लगान न पहुँचा पाया। लगान न मिलने के कारण ठाकुर शिवपाल सिंह ने मनोहर सिंह का नीम का पेड़ गिरवी रखने को कहा। इस तरह मजबूर होकर उसको अपना नीम का पेड़ गिरवी रखना पड़ा।
प्रश्न: 2 ठाकुर शिवपाल सिंह नीम के पेड़ पर अपना अधिकार क्यों जताते हैं?
उत्तर: मनोहर सिंह ने ठाकुर शिवपाल सिंह से खेती करने के लिए कुछ रकम उधार ली थी। फसल न होने की वजह से मनोहर सिंह उसका ऋण चुका नहीं पाया। शिवपाल सिंह ने कहा कि अगर तुम पैसे नहीं लौटाओगे तो तुम्हारा यह नीम का पेड़ तब तक मेरा हो जाएगा। इस तरह ठाकुर शिवपाल सिंह नीम के पेड़ पर अपना अधिकार जमा रहा था।
प्रश्न: 3 मनोहर सिंह ठाकुर शिवपाल सिंह से अपने नीम के वृक्ष के लिए क्या आश्वासन चाहता था?
उत्तर: मनोहर सिंह जब ठाकुर शिवपाल सिंह का कर्ज न चुका पाया तो उसने अपना नीम का पेड़ ठाकुर के पास गिरवी रख दिया और कहा कि जब तक वह कर्ज नही चुका पाता, तब तक पेड़ ठाकुर का रहेगा लेकिन वह यह आश्वासन चाहता था कि वह उस पेड़ को कटवाएँगे नहीं ।
प्रश्न: 4 नीम के वृक्ष के साथ मनोहर सिंह का इतना लगाव क्यों था ?
उत्तर: मनोहर सिंह का नीम के वृक्ष के साथ बहुत लगाव ता। इसका मुख्य कारण यह था कि यह पेड़ उनके पिता जी के हाथ का लगाया हुआ था। इसके साथ उसका बचपन बीता था। इस पेड़ के उसके परिवार पर बहुत उपकार थे। वह इस पेड़ को अपने पिता की यादगार मानता था। इसलिए उसका वृक्ष के साथ लगाव होना स्वाभाविक था।
प्रश्न: 5 मनोहर सिंह ने अपना पेड़ बचाने के लिए क्या उपाय किया ?
उत्तर: मनोहर सिंह ने अपना पेड़ बचाने की बहुत कोशिश की लेकिन उसकी हर कोशिश विफल रही। अंत में उसने निश्चय किया कि वह अपने जीते जी पेड़ को काटने नहीं देगा। जब ठाकुर शिवपाल सिंह के मजदूर पेड़ को काटने के लिए आए तो मनोहर सिंह ने तलवार निकाल ली और उन्हें डरा धमका कर वापस लौटा दिया। इस तरह से उसने अपना पेड़ बचाने की कोशिश की ।
प्रश्न: 6 मनोहर सिंह की किस बात से तेजासिंह प्रभावित हुआ?
उत्तर : मनोहर सिंह ठाकुर शिवपाल सिंह के कर्ज में दबा हुआ था। उसका नीम के पेड़ से बहुत लगाव था क्योंकि वह उसके पिता के हाथ का लगाया हुआ था। वह किसी भी हालत में उसे कटने नहीं देना चाहता था। वह पेड़ की रक्षा के लिए मर मिटने को तैयार था। जब मनोहर सिंह ने अपनी यह बातें तेजासिंह को सुनाई तो उसकी इन बातों से तेजा सिंह बहुत प्रभावित हुआ । For More PSEB study material Visit: – https://hindipunjab.com
प्रश्न: 7 तेजासिंह ने मनोहर सिंह की सहायता किस प्रकार की?
उत्तर: तेजा सिंह मनोहर सिंह की सहायता करने के लिए पहले पच्चीस रुपये लेकर आया । जब उसके पिता को पता चला तो उसने वे रुपए वापस ले लिए। उसके बाद तेजा सिंह ने अपनी नानी की दी हुई सोने की अंगूठी मनोहर सिंह को दी जिस पर उसके पिता का कोई हक नहीं था। इस प्रकार तेजा सिंह ने मनोहर सिंह की सहायता करने की कोशिश की।
प्रश्न: 1 मनोहर सिंह का चरित्र चित्रण कीजिए।
उत्तर: मनोहर सिंह ‘अशिक्षित का ह्रदय‘ कहानी का मुख्य पात्र है। उसकी आयु 55 वर्ष के लगभग है। पहले वह फौज में नौकरी करता था। अब वह अकेला रहता है। उसका कोई सगा-संबंधी नहीं है। वह एक मेहनती व स्वाभिमानी व्यक्ति है। वह ठाकुर शिवपाल सिंह से कर्ज लेकर फसल उगाना चाहता था। लेकिन वर्षा न होने के कारण पैदावार नहीं हुई तथा वह ठाकुर का कर्ज नही चुका सका और अपना नीम का पेड गिरवी रख दिया। वह अत्यंत विनम्र हृदय वाला भावुक व्यक्ति है। उसको अपने पेड़ से बहुत लगाव है क्योंकि वह उसके पिता के हाथ का लगाया हुआ है। इसलिए जब ठाकुर पेड़ को कटवाना चाहता है तो उसे बहुत दु:ख होता है। वह किसी भी हालत में पेड़ को काटने देना नहीं चाहता तथा ठाकुर के जिद करने पर वह पेड़ के लिए मर मिटने को तैयार हो जाता है। तेजा सिंह पेड़ को बचाने में उसकी सहायता करता है तो वह उसे पेड़ का मालिक बनाने की घोषणा करता है। इस प्रकार वह एक सरल हृदय वाला अशिक्षित ग्रामीण व्यक्ति होते हुए भी अपनी महानता का परिचय देता है।
प्रश्न: 2 तेजा सिंह का चरित्र चित्रण कीजिए।
उत्तर: तेजा सिंह ‘अशिक्षित का ह्रदय‘ कहानी का एक पात्र है। वह 15 -16 वर्ष का एक बालक है। उसके पिता गाँव के एक प्रतिष्ठित किसान हैं। वह प्रकृति से प्रेम करने वाला एक भावुक बालक है। जब उसे पता चलता है कि मनोहर सिंह के पेड़ को कटवाया जा रहा है तो वह अपनी अँगूठी दे कर उसके ऋण को चुकाने में उसकी सहायता करता है। उसके प्रकृति प्रेम तथा साहसी स्वभाव को देखकर मनोहर सिंह अंत में अपना पेड़ उसके नाम करने की घोषणा करता है। अतः तेजासिंह के चरित्र में अत्यंत मानवीय गुण मौजूद हैं।
प्रश्न:: 3 ‘अशिक्षित का ह्रदय‘ कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: ‘अशिक्षित का हृदय‘ कहानी एक उद्देश्यपूर्ण कहानी है। इस कहानी में लेखक ने एक अशिक्षित ग्रामीण व्यक्ति मनोहर के सरल ह्रदय का परिचय दिया है। मनोहर सिंह को अपने नीम के पेड़ से बहुत लगाव है क्योंकि वह उसके पिता के हाथ का लगाया हुआ है। कर्ज न उतार पाने के कारण उसे पेड़ ठाकुर के पास गिरवी रखना पडता है। जब ठाकुर पेड़ को काटने की बात करता है तो उसके सरल हृदय को बहुत ठेस पहुँचती है। वह पेड़ की रक्षा के लिए मर मिटने को भी तैयार हो जाता है। इस तरह हमें इस कहानी से प्रकृति की रक्षा का संदेश मिलता है।
पाठ 9 दो कलाकार (मन्नू भंडारी)
प्रश्न: 1. अरुणा के समाज सेवा के कार्यों के बारे में लिखें ।
उत्तर: वह छात्रावास में रहते हुए सदा समाज सेवा के कार्यों में जुटी रहती है। वह वहाँ रहकर चपरासियों, दाइयों आदि के बच्चों को मुफ्त पढ़ाती है। बाढ़ पीड़ितों की सेवा के लिए बहुत दिन छात्रावास से बाहर रहती है। फुलिया के बीमार बच्चे की सेवा में दिन रात एक कर देती है। भिखारिन के मरने के बाद वह उसके दोनों बच्चों का पालन पोषण करती है।
प्रश्न: 2. मरी हुई भिखारिन और उसके दोनों बच्चों को उसके सूखे शरीर से चिपक कर रोते देख चित्रा ने क्या किया?
उत्तर: चित्रा जब वापस लौट रही थी तो उसने देखा कि भिखारिन मर चुकी है और उसके दोनो बच्चे उसके सूखे शरीर से लिपट कर रो रहे हैं। चित्रा के संवेदनशील मन से रहा नहीं गया। उसके अंदर का कलाकार जाग उठा। वह वहीं रुक गई और उस दृश्य को उसने कागज पर उतार कर एक चित्र का रूप दे दिया ।
प्रश्न: 3. चित्रा की हॉस्टल से विदाई के समय अरुणा क्यों नहीं पहुँच सकी?
उत्तर: जब चित्रा ने आकर अरुणा को मरी हुई भिखारिन और उसके रोते हुए बच्चों के बारे में बताया तो अरुणा यह सुनकर स्वयं को रोक नहीं पाई और वह उसी समय उस भिखारिन के बच्चों के पास पहुँच गयी। उन बच्चों को संभालने में व्यस्त होने के कारण ही वह चित्रा की विदाई के समय वहाँ पर पहुँच नहीं पाई।
प्रश्न: 4 प्रदर्शनी में अरुणा के साथ कौन से बच्चे थे ?
उत्तर: प्रदर्शनी में अरुणा के साथ जो दो बच्चे थे, वे उस मरी हुई भिखारिन के वही बच्चे थे जो अपनी माँ के मरने के बाद बेसहारा रह गये थे। जिन बच्चों का चित्र बनाकर चित्रा ने प्रसिद्धि प्राप्त की थी उन्हीं बच्चों को अरुणा ने माँ की तरह पाल पोस कर बड़ा किया था। प्रदर्शनी में अरुणा के साथ वही दोनो बच्चे थे।
प्रश्न: 1 ‘दो कलाकार‘ कहानी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : ‘दो कलाकार‘ मन्नू भंडारी द्वारा लिखित एक उद्देश्यपूर्ण कहानी है। इस कहानी में लेखक ने मानवीय गुणों को कला से बढ़कर माना है। कहानी में अरुणा और चित्रा दो सहेलियाँ हैं। चित्रा एक प्रसिद्ध चित्रकार है। वह अपने चित्रों से देश-विदेश में प्रसिद्धि पाती है। मरी हुई भिखारिन व उसके साथ चिपक कर रोते हुए बच्चों का चित्र बनाकर वह बहुत नाम कमाती है, लेकिन अरुणा उन्हीं बच्चों को पाल पोस कर बड़ा करती है और उन्हें माँ का प्यार देती है। इस कारण वह चित्रा से भी बड़ी कलाकार कहलाती है। अतः इस कहानी में लेखक का उद्देश्य यह बताना है कि कलाकार में मानवीय गुणों का होना अति आवश्यक है । For More PSEB study material Visit: – https://hindipunjab.com
प्रश्न: 2 ‘दो कलाकार‘ के आधार पर अरुणा का चरित्र चित्रण करें ।
उत्तर: अरुणा ‘दो कलाकार‘ कहानी की एक मुख्य पात्रा है। वह एक सच्ची समाज सेविका है। वह मानवीय गुणों से भरपूर है। छात्रावास में रहते हुए गरीबों, चपरासियों आदि के बच्चों को वह निशुल्क पढ़ाती है। किसी के दुख को देखकर द्रवित हो उठती है। फुलिया दाई के बीमार बच्चे की सेवा करती है। बच्चे की मृत्यु के पश्चात बहुत दु:खी होती है। इसी कारण वह अपनी प्रिय सहेली चित्रा की विदाई के समय भी नहीं पहुँच पाती। जिस भिखारिन के चित्र को बनाकर उसकी सहेली चित्रा देश-विदेश में ख्याति पाती है, अरुणा उन्ही बच्चों का माँ बनकर पालन-पोषण करती है। इस तरह वह अपनी महानता का परिचय देती है। इस प्रकार अरुणा अपने मानवीय गुणों के कारण चित्रा से भी बड़ी कलाकार बन जाती है ।
प्रश्न: 3 चित्रा एक मंझी हुई चित्रकार है‘, आप इस कथन से कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर: ‘चित्रा एक मंझी हुई चित्रकार है‘ हम इस कथन से पूर्णतया सहमत है। चित्रा को चित्रकला का बहुत शौक है। वह अपना अधिकतर समय चित्र बनाने में व्यतीत करती है। अत्यंत संवेदनशील होने के कारण वह अपने चित्रों में जान भर देती है। मरी हुई भिखारिन और उसके रोते हुए बच्चों का चित्र बनाकर वह देश- विदेश में प्रसिद्धि पाती है। उसकी कला संवेदनशीलता का उदाहरण है। इस तरह हम कह सकते हैं कि चित्रा एक मंझी हुई चित्रकार है ।
प्रश्न: 4 ‘दो कलाकार‘ कहानी के शीर्षक की सार्थकता को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर: ‘दो कलाकार‘ शीर्षक हमारे विचार में पूर्णतया सार्थक है। अरुणा और चित्रा दोनों सखियों को लेखिका ने दो कलाकार माना है। चित्रा अपनी चित्रकला के कारण एक कलाकार का दर्जा पाती है, वही अरुणा अपने मानवीय गुणों के कारण चित्रा से भी बड़ी कलाकार कहलाती है। जिस भिखारिन और उसके रोते हुए बच्चों का चित्र बनाकर चित्रा देश-विदेश में प्रसिद्धि पाती है, उन्हीं अनाथ बच्चों का पालन- पोषण कर अरुणा चित्र से भी बड़ी कलाकार कहलाती है। इस तरह इस कहानी का शीर्षक ‘दो कलाकार‘ एक उपयुक्त शीर्षक है।
पाठ 10 नर्स (लेखक: कला प्रकाश)
प्रश्न: 1. सरस्वती की परेशानी का क्या कारण था?
उत्तर: सरस्वती का बेटा अस्पताल में दाखिल था। उसका ऑप्रेशन हुआ था। सरस्वती उससे मिलने अस्पताल आई थी। उसका बेटा उससे लिपट कर रो रहा था। सरस्वती का बेटा उसे वहाँ से जाने नहीं दे रहा था। बेटा सरस्वती की कोई भी बात सुनने को तैयार नहीं था। बेटे का इस प्रकार रोना और तड़पना सरस्वती की परेशानी का कारण था।
प्रश्न: 2. सरस्वती ने नौ नंबर बैड वाले बच्चे से क्या मदद माँगी?
उत्तर: सरस्वती को नौ नंबर बैड वाला बच्चा ज्यादा समझदार और अकलमंद लग रहा था क्योंकि उसकी उम्र 10 वर्ष की थी। सरस्वती ने उसे पास बुला कर कहा कि वह महेश को अपनी बातों में लगाए। उसे कोई कहानी सुनाए ताकि वह वहाँ से बाहर जा सके। लड़के ने सरस्वती की बात मान ली और उसकी मदद को तैयार हो गया।
प्रश्न: 3. सिस्टर सूसान ने महेश को अपने बेटे के बारे में क्या बताया ?
उत्तर: जब सिस्टर सूसान ने महेश को रोते देखा तो उसने महेश को बताया कि उसका बेटा भी उसी की भांति रोता है। वह बहुत शैतान है। उसका नाम भी महेश है। वह अभी 3 महीने का है। उसने महेश को यह भी बताया कि आया जब उससे खेलती है यह गाना गाती है तो वह खुशी से हाथ पैर ऊपर नीचे करने लगता है, जैसे नाच रहा हो। महेश के पूछने पर वह बताती है कि उसके बेटे को अभी बोलना नहीं आता। इसलिए वह अभी अंगू-अंगू..गूं,गूं … बोलता है।
प्रश्न: 4. दूसरे दिन महेश ने माँ को घर जाने की इजाज़त खुशी-खुशी कैसे दे दी?
उत्तर: महेश ने अपनी माँ को घर जाने की इजाज़त खुशी-खुशी इसलिए दे दी थी क्योंकि सिस्टर सूसान के छोटे से बच्चे की बातें सुनकर उसने अपनी माँ के बारे में भी सोचा ।उसे अपनी छोटी बहन मोना के रोने की चिंता हुई। जिसे मम्मी पास वाले राजू के घर छोड़ कर आई थी ।वह नहीं चाहता था कि उसके रोने से माँ का कष्ट बड़े।
प्रश्न: 5. सरस्वती द्वारा सिस्टर सूसान को गुलदस्ता और उसके बबलू के लिए गिफ्ट पेश करने पर सिस्टर सूसान ने क्या कहा? For More PSEB study material Visit: – https://hindipunjab.com
उत्तर: सरस्वती द्वारा सिस्टर सूसान को गुलदस्ता और उसके बबलू के लिए गिफ्ट देने पर सिस्टर सूसान ने रंग-बिरंगे फूलों वाला गुलदस्ता तो ले लिया पर उसने अपने बबलू के लिए गिफ्ट नहीं लिया। उसकी तो अभी शादी हुई थी और ना ही उसकी कोई संतान थी। उसने तो महेश को बहलाने के लिए झूठ ही कहा था कि उसका छोटा-सा बबलू है।
प्रश्न: 1. सिस्टर सूसान का चरित्र-चित्रण अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: सिस्टर सूसान कहानी की प्रमुख पात्र है। वह ममत्व से परिपूर्ण है उसके चरित्र की विशेषताएँ निम्नलिखित है:-
एक अच्छी नर्स:- सिस्टर सूसान एक अच्छी नर्स है। वह अपने काम को वह व्यवसाय न समझ कर मानव सेवा समझती है।
ममतामयी नारी:- सिस्टर सूसान एक ममतामयी नारी है। वह अस्पताल के बच्चों को एक माँ के समान प्यार करती है।
कर्तव्यनिष्ठ:- सिस्टर सूसान एक कर्तव्यनिष्ठ नारी है। वह अस्पताल में आते ही बिना समय गवाएं बच्चों को देखना शुरु कर देती है और उन्हें जरूरी दवा भी पिलाती है।
पीड़ा को समझने वाली:- वह अस्पताल में आए बच्चों की पीड़ा को समझ कर अपने आप को उसी के अनुसार ढाल लेती है। वह बच्चों के मनोविज्ञान को समझती है ।
सेवाभाव से युक्त:- सूसान सेवाभाव से युक्त नारी है । बच्चे उसकी सहानुभूति को पाकर खुश हो जाते हैं।
अंतः सही अर्थों में सिस्टर सूसान एक ईमानदार और अच्छी नर्स और सेवा भाव से युक्त तथा ममतामयी नारी है ।
प्रश्न: 2. नर्स कहानी का उद्देश्य अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: नर्स कहानी ‘कला प्रकाश‘ जी द्वारा रचित है। यह एक सामाजिक कहानी है इस कहानी में कला प्रकाश जी ने सिस्टर सूसान, जो कि एक नर्स है, के माध्यम से यह बताया है कि रोगी को ठीक करने के लिए जितनी दवा की आवश्यकता है उतनी ही उसकी मनोवस्था को समझकर उसके अनुकूल व्यवहार करना भी है। लेखिका ने यह भी बताया है कि नर्स का सेवाभाव और अपनापन रोगी के लिए हितकारी हो सकता है। अतः कला प्रकाश जी का इस कहानी को व्यक्त करने का उद्देश्य यही रहा है कि नर्सिंग केवल एक व्यवसाय या पेशा नहीं है बल्कि मानव सेवा है। क्योंकि नर्स को रोगी की दशा के अनुकूल व्यवहार करना चाहिए। अंतः नर्स एक उद्देश्यपूर्ण और सामाजिक कहानी है।
पाठ 11 (i) माँ का कमरा
प्रश्न: 1. बेटे ने पत्र में अपनी माँ बसंती को क्या लिखा ?
उत्तर: बेटे ने अपनी माँ को पत्र में लिखा था कि उसकी तरक्की हो गई है। उसे उसकी कंपनी ने रहने के लिए बहुत बड़ी कोठी दे दी है। अब वह रहने के लिए उसके पास शहर में आ जाए उसे किसी तरह की कोई तकलीफ़ नहीं होगी।
प्रश्न: 2. पड़ोसन रेशमा ने बसंती को क्या समझाया ?
उत्तर: पड़ोसन रेशमा ने बसंती को समझाया कि उसे बेटे के पास रहने के लिए नहीं जाना चाहिए। शहर में रहने वाले बहू-बेटे बड़े बुजुर्गों को अपने पास रहने के लिए बुला तो लेते हैं पर उन्हें सम्मान से नहीं रखते हैं। उनसे नौकरों वाले काम करवाते हैं। उन्हें ठीक तरह से खाने पीने को भी नहीं देते।
प्रश्न: 3. बसंती क्या सोचकर बेटे के साथ शहर आई?
उत्तर: बसंती को अपने पुत्र पर भरोसा था। फिर भी पड़ोसन के डराने से वह मन ही मन भयभीत थी। अगले दिन जब बेटा उसे ले जाने के लिए स्वयं कार लेकर आ गया तो वह उसकी ज़िद के कारण शहर जाने के लिए तैयार हो गई। उसने सोच लिया था कि ‘जो होगा देखा जावेगा‘।
प्रश्न: 4. बसंती के कमरे में कौन कौन-सा सामान था?
उत्तर: बसंती के कमरे में डबल बैड बिछा हुआ था टी॰वी॰ पड़ा था। एक टेपरिकॉर्डर भी था। दो कुर्सियाँ पड़ी थी। बैड पर बहुत नर्म गद्दे थे। उसे अपना कमरा स्वर्ग जैसा सुंदर लग रहा था ।
प्रश्न: 5. बसंती की आँखों में आँसू क्यों आ गई ?
उत्तर बसंती की आँखों में खुशी के आँसू थे। उसे ऐसी संपन्नता भरा जीवन अब तक कभी प्राप्त नहीं हुआ था। वह अपने पुश्तैनी घर में जैसे-तैसे अकेली जीवन काट रही थी। अब बेटे और उसके परिवार के साथ सुख पूर्वक रह सकेगी। उसका बुढ़ापा आराम से कट जाएगा। उसके पुत्र ने आज के कुछ स्वार्थी पुत्रों जैसा व्यवहार नहीं किया था। इसलिए उसकी आँखों में खुशी के आँसू थे । For More PSEB study material Visit: – https://hindipunjab.com
प्रश्न: 6. माँ का कमरा कहानी का उद्देश्य क्या है?
उत्तर: माँ का कमरा कहानी ‘श्याम सुंदर अग्रवाल‘ द्वारा रचित है। इसमें लेखक ने आज के स्वार्थ भरे जीवन में बच्चों का हाल बताया है। जो बड़े होकर अपने माता-पिता के साथ नौकरों जैसा व्यवहार करते हैं। परंतु लेखक ने इस कहानी में बताया है कि आज भी ऐसे अनेक पुत्र हैं जो अपने माता-पिता का ध्यान रखते हैं तथा वे सोचते हैं कि यह वहीं माता-पिता हैं जिन्होंने हमें पढ़ा-लिखा कर बड़ा किया तथा हमारा पालन-पोषण किया। लेखक ने बसंती और उसके पुत्र के माध्यम से यह बताया है और लेखक का इस कहानी को व्यक्त करने का उद्देश्य भी यही है कि आज भी समाज में ऐसे अनेक युवक हैं जो अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं।
पाठ 11 (ii) अहसास (उषा.आर. शर्मा)
प्रश्न 1. दिवाकर बैंच पर बैठकर क्या सोच रहा था?
उत्तर: वह 2 साल पहले की घटना को याद कर उसी में खोया था। उसे याद आता है कि 2 साल पहले जब वह अपनी बड़ी मौसी के घर दिल्ली गया था, तब उसने वहाँ फन सिटी में कितना मज़ा किया। उस समय फन सिटी में कितना खेला-कूदा था। वहाँ उसने खूब मस्ती की थी। यही सब यादें उसके दिमाग में घूम रही थी।
प्रश्न 2. साँप को देखकर दिवाकर क्यों नहीं डरा?
उत्तर: शहर में आने से पहले दिवाकर गाँव के स्कूल में पढ़ता था। वहाँ उसने खेतों में कई बार साँप और अन्य जानवरों को देखा था। उसके लिए साँप को देखना कोई नई बात नहीं थी। इसके साथ-साथ वह एक साहसी,निडर और कर्मशील बालक था। इसलिए वह साँप को देखकर नहीं डरा।
प्रश्न 3. दिवाकर ने अचानक साँप को सामने देखकर क्या किया ?
उत्तर: दिवाकर ने जब साँप को देखा तब वह नहीं घबराया जबकि अन्य छात्र-छात्राएँ डर के मारे काँप रहे थे। किसी को कुछ सूझ नहीं रहा था ।ऐसे में दिवाकर ने बड़े ही धीरज से काम लिया। उसने बिना डरे और घबराए निडरता से अपनी वैसाखी से साँप को उठाकर दूर फेंक दिया । For More PSEB study material Visit: – https://hindipunjab.com
प्रश्न 4. दिवाकर को क्यों पुरस्कृत किया गया ?
उत्तर: दिवाकर को उसकी समझदारी और निडरता के कारण पुरस्कृत किया गया। शैक्षिक भ्रमण के समय जब अचानक से साँप छात्र-छात्राओं के सामने आ गया । तब सभी बच्चे डर गए परंतु दिवाकर ने अपनी सूझबूझ का परिचय देते हुए अपने विवेक और वैसाखी का सहारा लेकर साँप को दूर फेंक दिया था। उसकी इसी बहादुरी के कारण उसे प्रातः कालीन सभा में प्राचार्य महोदय द्वारा पुरस्कृत किया गया।
प्रश्न 5. लघु कथा ‘अहसास‘ का उद्देश्य क्या है ?
उत्तर: ‘अहसास‘ कहानी ऊषा•आर• शर्मा द्वारा रचित है। मानवतावाद का समर्थन करना उस का प्रमुख उद्देश्य है। अहसास कहानी शारीरिक चुनौतियों का सामना करने वाले बच्चों में आत्मविश्वास जगाने वाली एक प्रेरणादायक लघु कथा है। लेखिका का इस कहानी को व्यक्त करने का उद्देश्य ही यही रहा है कि शारीरिक चुनौतियों का सामना करने वाले बच्चों में आत्मविश्वास को जगाना और अपने आप को किसी से कम न समझ कर उनका हौंसला बढ़ाना।
प्रश्न 6. अहसास नामकरण की सार्थकता स्पष्ट करो।
उत्तर: इस कहानी में उषा• आर• शर्मा जी ने यह बताना चाहा है कि हमें उन बच्चों को उनकी योग्यता का अहसास करवाना चाहिए जो शारीरिक चुनौतियों से जूझ रहे हैं। कहानी में दिवाकर जो अपनी टाँग खो चुका था, अपने आप में अधूरेपन का अहसास करता था। जब प्रधानाचार्य द्वारा उसे इस बहादुरी और निडरता के लिए सम्मानित किया गया उसे अपने आप में पूर्णता का अहसास हुआ। अंत इस कहानी का शीर्षक बिल्कुल उपयुक्त एवं सार्थक है। लघु कथा शीर्षक अहसास से ही जुड़ी है।
पाठ 12 मित्रता (लेखक: आचार्य रामचंद्र शुक्ल)
प्रश्न 1. विश्वासपात्र मित्र को खजाना, औषधि और माता जैसा क्यों कहा गया है ?
उत्तर: लेखक ने विश्वासपात्र मित्र को खजाना, औषधि और माता जैसा कहा है। जैसे खजाना मिलने से सभी प्रकार की कमियां दूर हो जाती हैं इसी तरह विश्वासपात्र मित्र मिलने से भी सभी कमियाँ दूर हो जाती हैं। औषधि की तरह वह हमारी बुराइयों रूपी बीमारियों को ठीक कर देता है, इसलिए उसे औषधि कहा है। विश्वासपात्र मित्र में माता के समान धैर्य और कोमलता होती है, इसलिए उसे माता कहा गया है ।
प्रश्न 2. अपने से अधिक आत्मबल रखने वाले व्यक्ति को मित्र बनाने से क्या लाभ है ?
उत्तर: अपने से अधिक आत्मबल रखने वाले व्यक्ति को मित्र बनाने से बहुत लाभ हैं। ऐसा मित्र हमारे मनोबल को बढ़ाता है। उसकी प्रेरणा से हम अपनी शक्ति से अधिक काम कर लेते हैं । जिस प्रकार सुग्रीव ने राम से प्रेरणा पाकर अपने से अधिक बलवान बाली से युद्ध किया था। ऐसे मित्रों के होने से हम कठिन से कठिन काम को भी आसानी से कर लेते हैं ।
प्रश्न 3. लेखक ने युवाओं के लिए कुसंगति और सतसंगति की तुलना किससे की है और क्यों?
उत्तर: लेखक ने सत्संगति की तुलना सहारा देने वाली बाजु से की है जो हमें निरंतर उन्नति की ओर ले कर जाती है। इसके विपरीत कुसंगति की तुलना पैर में बंधी हुई चक्की से की है जो कि हमें निरंतर अवनति के गड्ढे में गिराती जाती है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह या सात पंक्तियों में दीजिए :-
प्रश्न 1. सच्चे मित्र के कौन-कौन से गुण लेखक ने बताए हैं ?
उत्तर: लेखक के अनुसार सच्चे मित्र में बहुत से गुण होते हैं। उसमें उत्तम वैद्य सी निपुणता, माता के समान धैर्य होता है। वह हमारे लिए खजाने के सामान होता है। सच्चा मित्र हमारा मार्गदर्शक होता है। वह हमारी रक्षा करता है। उस पर हम अपने भाई के समान विश्वास कर सकते हैं। वह हमारे संकल्पों को दृढ़ करता है और हर प्रकार से हमारी सहायता करता है।
प्रश्न 2. बाल्यावस्था और युवावस्था की मित्रता के अंतर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: बाल्यावस्था की मित्रता में एक मग्न कर देने वाला आनंद होता है। उसमें ईर्ष्या का भाव भी होता है। मधुरता, प्रेम और विश्वास भी बचपन की मित्रता में होते हैं। जल्दी ही रूठना और मनाना भी होता है। युवावस्था की मित्रता बाल्यावस्था की मित्रता की अपेक्षा अधिक दृढ़, शांत और गंभीर होती है। युवावस्था का मित्र सच्चे पथ-प्रदर्शक के समान होता है।
प्रश्न 3. दो भिन्न प्रकृति के लोगों में परस्पर प्रीति और मित्रता बनी रहती है। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर: दो भिन्न प्रकृति के लोगों में भी परस्पर प्रीति और मित्रता बनी रह सकती है। जैसे मुगल सम्राट अकबर और बीरबल दोनों अलग-अलग स्वभाव के होते हुए भी मित्र थे। अकबर नीति विशारद व विद्वान थे जबकि बीरबल एक मज़ाकिया स्वभाव वाले व्यक्ति थे। इसी प्रकार राम धीर और शांत स्वभाव के थे और लक्ष्मण उग्र स्वभाव के थे, लेकिन दोनों भाइयों में परस्पर प्रीति थी। इस प्रकार लेखक ने इन उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया है कि दो भिन्न प्रकृति वाले लोगों में परस्पर मित्रता हो सकती है ।
प्रश्न 4. मित्र का चुनाव करते समय हमें किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर मित्र का चुनाव करते समय हमें बहुत सी बातें ध्यान में रखनी चाहिए। उसके गुणों तथा स्वभाव को देखना चाहिए। केवल हंसमुख चेहरा, बातचीत का ढंग, चतुराई आदि देख कर किसी को मित्र नहीं बना लेना चाहिए। मित्र जीवन के कठिन समय में सहायता देने वाला होना चाहिए। उसमें माता के समान धैर्य तथा वैद्य के समान निपुणता होनी चाहिए। वह सच्चे पथ प्रदर्शक के समान होना चाहिए।
प्रश्न 5. “बुराई अटल भाव धारण करके बैठती है।” क्या आप लेखक की इस उक्ति से सहमत हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: लेखक का यह कथन पूर्णतया उचित है कि बुराई हमारे मन में अटल भाव धारण करके बैठ जाती है, जबकि अच्छी और गंभीर बातें हमें जल्दी समझ में नहीं आती। जैसे भद्दे और फूहड़ गीत, बचपन की सुनी गंदी गालियाँ हमें कभी नहीं भूलती। इसी तरह सिगरेट, शराब आदि की लत भी आसानी से नहीं छूटती। अन्य बुरी बातें भी हमारे मन में सहज ही प्रवेश कर जाती है तथा वह जल्दी दूर नहीं होती। अतः लेखक का यह कथन पूरी तरह ठीक है कि बुराई अटल भाव धारण करके बैठती है ।
मैं और मेरा देश
प्रश्न 1. लाला लाजपत राय के किस अनुभव ने लेखक की पूर्णता को अपूर्णता में बदल दिया ?
उत्तर: लेखक स्वयं को एक पूर्ण व्यक्ति समझता था। लाला लाजपत राय जी ने लेखक को बताया कि उनकी विदेशी यात्राओं के दौरान भारतवर्ष की गुलामी की लज्जा का कलंक उनके माथे पर लगा रहा। लाला लाजपत राय के इस अनुभव ने लेखक की पूर्णता को अपूर्णता में बदल दिया।
प्रश्न 2. स्वामी रामतीर्थ द्वारा फलों की टोकरी का मूल्य पूछने पर जापानी युवक ने क्या कहा?
उत्तर: स्वामी रामतीर्थ द्वारा फलों की टोकरी का मूल्य पूछने पर जापानी युवक ने कहा कि इन फलों का कोई मूल्य नही है। अगर आप इसका मूल्य देना ही चाहते हो तो अपने देश में जाकर किसी से यह मत कहिएगा कि जापान में अच्छे फल नहीं मिलते। वास्तव में उस व्यक्ति ने स्वामी जी को ऐसा कहते हुए सुन लिया था। और वह नहीं चाहता था कि उसके देश की बदनामी हो
प्रश्न 3. किसी देश के विद्यार्थी ने जापान में ऐसा कौन सा काम किया जिससे उसके देश के माथे पर कलंक का टीका लग गया?
उत्तर: किसी देश के विद्यार्थी ने जापान के पुस्तकालय से पुस्तक पढ़ने के लिए ली। उसने उस पुस्तक में से कुछ दुर्लभ चित्र फाड़कर रख लिए और पुस्तक वापस कर दी। उसकी इस हरकत के फलस्वरूप उसे जापान से निकाल दिया गया और साथ ही पुस्तकालय के नोटिस-बोर्ड पर यह लिखवा दिया गया कि उसके देश का कोई भी विद्यार्थी इस पुस्तकालय में प्रवेश नहीं कर सकता। इस प्रकार उस एक युवक ने अपने देश के माथे पर कलंक लगा दिया।
प्रश्न 4. लेखक के अनुसार कोई भी कार्य महान कैसे बन जाता है?
उत्तर: लेखक के अनुसार कोई भी कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता। अगर कार्य करने के पीछे शुभ भावना होती है तो कोई छोटे से छोटा कार्य भी महान बन जाता है। इसके विपरीत बुरी भावना के साथ किया गया बड़े से बड़ा कार्य भी हीन बन जाता है।
प्रश्न 5. शल्य ने कौन सा महत्वपूर्ण कार्य किया?
उत्तर: महाभारत के युद्ध के दौरान शल्य कर्ण का सारथी था। लेकिन वह वास्तव में अर्जुन के पक्ष में था। कर्ण जब कभी अपनी वीरता व जीत पर प्रसन्न होता तो शल्य अर्जुन की प्रशंसा करने लगता। इस तरह से कर्ण के मन में आत्मविश्वास की कमी आ गयी जो उसके भावी पराजय की नींव रखने में सफल हुई।
प्रश्न 6. शक्ति-बोध और सौंदर्य-बोध से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर: शक्ति बोध का अर्थ है देश को शक्तिशाली बनाना और सौंदर्य बोध से तात्पर्य है देश को सुंदर बनाना। हमारे देश को इन दो बातों की बहुत आवश्यकता है। इसके लिए हमारा कोई भी काम ऐसा न हो जो देश में कमज़ोरी व कुरुचि की भावना को बल दे। For More PSEB study material Visit: – https://hindipunjab.com
प्रश्न 7. हम अपने देश के शक्ति बोध को किस प्रकार चोट पहुंचाते हैं ?
उत्तर: जब हम सार्वजनिक स्थानों जैसे रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, क्लब आदि में अपने देश की कमजोरियों व कमियों का वर्णन करते हैं और दूसरे देश की तुलना में अपने देश को हीन कहते हैं और दूसरे देश को श्रेष्ठ कहते हैं, तब हम देश के शक्ति बोध को चोट पहुंचा रहे होते हैं।
प्रश्न 8. हम अपने देश के सौंदर्य बोध को किस प्रकार चोट पहुंचाते हैं ?
उत्तर: जब हम सार्वजनिक स्थानों पर गंदगी फैलाते हैं, सड़कों पर कूड़ा कर्कट फेंकते हैं, घर, दफ्तर, गली गंदा रखते हैं, कहीं पर समय से लेट पहुँचते हैं, इधर की बात उधर करते हैं; उस समय हम अपने देश के सौंदर्य बोध को चोट पहुँचाते हैं।
प्रश्न 9. देश की उच्चता और हीनता की कसौटी क्या है?
उत्तर: देश की उच्चता और हीनता की कसौटी उस देश में होने वाले चुनाव हैं। जिस देश के नागरिक चुनाव के समय बुद्धिमता और विवेक से सही व्यक्ति को मतदान करते हैं, वह देश उच्च होता है। इसके विपरीत जिस देश के नागरिक किसी लालच के वश में आकर गलत व्यक्ति को मतदान करते हैं, वह देश हीन होता है। अतः चुनाव ही देश की उच्चता और हीनता की कसौटी है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह या सात पंक्तियों में दीजिए ।
प्रश्न 1. लाला लाजपत राय जी ने देश के लिए कौन सा महत्वपूर्ण कार्य किया ? निबंध के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर: लाला लाजपत राय जी एक सच्चे देशभक्त थे। उन्होंने बहुत देशों की यात्राएं की। अपने विदेशी यात्राओं के दौरान भारत की गुलामी की लज्जा के कलंक को अनुभव किया। उन्होने देश की गुलामी पर बहुत से लेख व निबंध लिखे। अपने जोशीले भाषणों के द्वारा देश के लोगों में जोश की भावना और उत्साह पैदा किया और उन्हें देश की स्वतंत्रता के लिए आगे आने के लिए प्रेरित किया। इस तरह उन्होंने देश की आजादी के लिए अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये।
प्रश्न 2. तुर्की के राष्ट्रपति कमाल पाशा और भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से संबंधित घटनाओं द्वारा लेखक क्या संदेश देना चाहता है ?
उत्तर: तुर्की के राष्ट्रपति कमालपाशा ने एक साधारण व्यक्ति के द्वारा लाई गई शहद की हांडी को प्रेम पूर्वक स्वीकार किया। इसी तरह पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक साधारण किसान द्वारा उपहार में दी गई रंगीन सुतलियों की खाट को बहुत महत्व दिया। उनके द्वारा लाए गये यह दोनों उपहार बहुत कीमती नहीं थे, बल्कि उनकी स्नेह और प्रेम की भावना ने उपहारों को अनमोल बना दिया। अतः इन घटनाओं के द्वारा लेखक यह बताना चाहता है कि कोई भी कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता। कार्यों की महानता उस कार्य की पीछे छिपी हुई भावना में निहित होती है।
प्रश्न 3. लेखक ने देश के नागरिकों को चुनाव में किन बातों की ओर ध्यान देने के लिए कहा है ?
उत्तर: लेखक ने देश के नागरिकों को चुनाव में बहुत सी महत्वपूर्ण बातों की ओर ध्यान देने के लिए कहा है। देश के प्रत्येक नागरिक को अपने मत का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। उसे चुनाव में सूझबूझ से मतदान करना चाहिए। अपने बुद्धि व विवेक के अनुसार अच्छे गुणों वाले व्यक्ति को मत देना चाहिए। किसी भी लालच या लोभ के वश में आकर गलत व्यक्ति को मतदान नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से उन्हें बाद में पछताना पड़ सकता है। मतदान करते समय इन बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है।
पाठ 14 निबंध: राजेंद्र बाबू (लेखिका: महादेवी वर्मा)
प्रश्न 1 राजेंद्र बाबू को देखकर हर किसी को यह क्यों लगता था कि उन्हें पहले कहीं देखा है?
उत्तर: राजेंद्र बाबू का चेहरा और शरीर का गठन एक सामान्य भारतीय कृषक की तरह था। उनकी वेशभूषा भी सामान्य नागरिकों जैसी थी। उनका स्वभाव और रहन-सहन भी सामान्य था। वह देखने में सामान्य व्यक्ति जैसे ही लगते थे। इसलिए सभी को लगता था कि उन्हें पहले कहीं देखा है।
प्रश्न 2. जवाहरलाल नेहरू की अस्त व्यस्तता तथा राजेंद्र बाबू की सारी व्यवस्था किसका पर्याय थी?
उत्तर: पंडित जवाहरलाल नेहरू की अस्तव्यस्तता में भी व्यवस्था होती थी जबकि राजेंद्र बाबू की व्यवस्था में भी अस्त-व्यस्तता रहती थी। इसलिए यह दोनों एक-दूसरे का पर्याय थी अर्थात राजेन्द्र बाबू की व्यवस्था पंडित नेहरू जी की अस्तव्यस्तता तथा नेहरू जी की अस्तव्यस्तता राजेन्द्र बाबू की व्यवस्था का पर्याय थी।
प्रश्न 3. राजेंद्र बाबू की वेशभूषा तथा अस्त व्यस्तता से उनके निजी सचिव और सहचर चक्रधर बाबू का स्मरण लेखिका को क्यों हो आया?
उत्तर: राजेंद्र बाबू की वेशभूषा देखकर लेखिका को उनके निजी सचिव और सहचर चक्रधर बाबू का स्मरण हो आया था क्योंकि चक्रधर बाबू का रहन सहन भी राजेंद्र बाबू के सामान अस्त-व्यस्त था। चक्रधर बाबू तब तक मौजे नहीं बदलते थे जब तक उनके मौजों से पांचों उंगलियां बाहर नहीं निकलने लगती थी। जूतों के तलवों में सुराख होने तक वे जूते भी नही बदलते थे। वे अपने वस्त्र भी बिल्कुल जीर्ण शीर्ण होने तक नहीं बदलते थे। वे राजेंद्र बाबू के पुराने वस्त्रों को पहनकर ही वर्षों उनकी सेवा करते रहे। इसलिए लेखिका को राजेंद्र बाबू की वेशभूषा देखकर चक्रधर बाबू की याद हो आई ।
प्रश्न 4. लेखिका ने राजेंद्र बाबू की पत्नी को सच्चे अर्थों में धरती की पुत्री क्यों कहा है ?
उत्तर: राजेंद्र बाबू की पत्नी अत्यन्त सरल, क्षमाशील , ममतामयी, दयालु व त्यागमयी स्त्री थी । जमींदार परिवार की वधू होकर भी उन्हे अहंकार नहीं था। वह अत्यंत विनम्र स्वभाव की थी । धरती जैसे इन गुणों के कारण लेखिका ने उन्हें धरती की पुत्री कहा है।
प्रश्न 5. राजेंद्र बाबू की पौत्रियों का छात्रावास में रहन सहन कैसा था ?
उत्तर राजेंद्र बाबू की पौत्रियाँ छात्रावास में बहुत सादगी और संयम से रहती थी। वे सभी खादी के कपड़े पहनती थी। अपने कपड़े धोने व झाड़ू पोंछा करने का काम भी वे स्वयं ही करती थी। वे अपने गुरुजनों की सेवा भी करती थीं। उन्हें जरूरी सामान के लिए सीमित राशि ही दी जाती थी। इस तरह उनका रहन सहन अत्यन्त साधारण था।
प्रश्न 6. राष्ट्रपति भवन में रहते हुए भी राजेंद्र बाबू और उनकी पत्नी में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं हुआ। उदाहरण देकर स्पष्ट करें ।
उत्तर: राष्ट्रपति भवन में रहते हुए भी राजेंद्र बाबू और उसकी पत्नी में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं हुआ था। उनकी वेशभूषा तथा रहन सहन अत्यंत साधारण था। उनकी पत्नी स्वयं भोजन बनाती थी। अपने पति, परिवार तथा परिजनों को खिलाने के बाद ही स्वयं अन्न ग्रहण करती थी। वे उपवास की समाप्ति भी मिठाई आदि से नही बल्कि उबले हुए आलू खाकर ही करते थे। उनका रहन सहन सामान्य व्यक्ति की तरह था।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह – सात पंक्तियों में दीजिए :-
प्रश्न 1. राजेंद्र बाबू की शारीरिक बनावट, वेशभूषा और स्वभाव का वर्णन करें।
उत्तर: राजेंद्र बाबू का शरीर तथा हाथ- पैर लंबे थे। बाल काले, घने, छोटे-छोटे और कटे हुए थे। चौड़ा मुख, चौड़ा माथा, घनी भौहें, बड़ी-बड़ी आंखें, कुछ भारी नाक, कुछ मोटे और सुडौल होंठ, गेंहुआं रंग और बड़ी-बड़ी मूछें थी। वे खादी की मोटी धोती-कुर्ता, काला बंद गले का कोट, गांधी टोपी साधारण मौजे और जूते पहनते थे। उनका स्वभाव अत्यंत शांत था। वह सदा सादगी पसंद करते थे। अपने स्वभाव तथा रहन-सहन में में भारतीय किसान के समान थे। उनका खानपान भी अत्यंत साधारण था।
प्रश्न 2. पाठ के आधार पर राजेंद्र बाबू की पत्नी की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन करें ।
उत्तर: राजेंद्र बाबू की पत्नी एक सच्ची भारतीय नारी थी। वह धरती के समान सहनशील क्षमामयी, ममतामयी, दयालु एवं सरल थी। बिहार के जमीदार परिवार की वधु तथा स्वतंत्रता संग्राम के सुप्रसिद्ध सेनानी एवं भारत के प्रथम राष्ट्रपति की पत्नी होने का भी उन्हें अहंकार नहीं था। राष्ट्रपति भवन में भी स्वयं भोजन पकाती थी तथा पति और परिवार जनों को खिलाकर ही स्वयं अन्य ग्रहण करती थी। उनका खानपान और रहन-सहन बहुत साधारण था। उनका स्वभाव धरती मां के समान था।
प्रश्न 3. आशय स्पष्ट कीजिए :-
(क) सत्य में जैसे कुछ घटाना या जोड़ना संभव नहीं रहता वैसे ही सच्चे व्यक्तित्व में भी कुछ जोड़ना घटाना संभव नहीं है।
उत्तर: इन पंक्तियों का भाव यह है कि सत्य हमेशा सत्य ही रहता है। उसमें से कुछ भी घटाया या बढ़ाया नहीं जा सकता । इसी प्रकार एक सच्चे व्यक्ति में भी कुछ भी घटाना या बढ़ाना संभव नहीं है क्योंकि सच्चा व्यक्ति भी सत्य के समान सदैव एक ही रूप में नजर आता है ।
(ख) क्या वह सांचा टूट गया जिसमें ऐसे कठिन कोमल चरित्र ढलते थे।
उत्तर: इन पंक्तियों का भाव यह है कि राजेंद्र बाबू जैसे व्यक्ति आजकल देखने को नहीं मिलते। शायद ईश्वर से ऐसा सांचा टूट गया है जिन में राजेंद्र बाबू जैसे कोमल चरित्र वाले व्यक्तियों का निर्माण होता था। अर्थात आजकल भगवान ने राजेन्द्र बाबू जैसे लोगों का निर्माण करना बंद कर दिया है। आजकल के लोगों में उन जैसे व्यक्तित्व तथा गुणों का अभाव है ।
पाठ 15 सदाचार का तावीज (लेखक हरिशंकर परसाई)
प्रश्न 1. दरबारियों ने भ्रष्टाचार न दिखने का क्या कारण बताया?
उत्तर: दरबारियों के अनुसार दरबारियों ने भ्रष्टाचार न दिखने का एक कारण यह बताया कि वह बहुत बारीक होता है। उनकी आँखें महाराजा की विराटता को देखने की इतनी अधिक अभ्यस्त हो गई है उन्हें कोई बारीक चीज दिखाई नहीं देती । उनकी आँखों में तो सदा महाराज की सूरत बसी रहती है। इसलिए भ्रष्टाचार दिखाई नहीं देता।
प्रश्न 2. राजा ने भ्रष्टाचार की तुलना ईश्वर से क्यों की?
उत्तर: राजा ने भ्रष्टाचार की तुलना ईश्वर से इसलिए की क्योंकि भ्रष्टाचार अति सूक्ष्म है, वह दिखाई नहीं देता और वह सर्वव्यापी है। ये सब गुण एवं विशेषताएं तो ईश्वर में ही होती हैं। ईश्वर भी सर्वव्यापी होता है। वह किसी को दिखाई नहीं देता। इसलिए राजा ने भ्रष्टाचार की तुलना ईश्वर से की। For More PSEB study material Visit: – https://hindipunjab.com
प्रश्न 3. राजा का स्वास्थ्य क्यों बिगड़ता जा रहा था?
उत्तर: राजा के राज्य में भ्रष्टाचार बहुत तेज़ी से फैल रहा था। राजा को वह कहीं दिखाई भी नहीं दे रहा था। उसके दरबारियों को भी भ्रष्टाचार कहीं दिखाई नहीं दिया। इस तरह भ्रष्टाचार के फैलते जाने के कारण और इसे दूर करने का कोई हल नज़र न आने के कारण राजा का स्वास्थ्य बिगड़ता जा रहा था।
प्रश्न 4. साधु ने सदाचार और भ्रष्टाचार के बारे में क्या कहा?
उत्तर: साधु ने कहा कि भ्रष्टाचार और सदाचार दोनों व्यक्ति की आत्मा में होते हैं। वे बाहर से आने वाली वस्तु नहीं है। ईश्वर जब मनुष्य को बनाता है तब वह किसी आत्मा में ईमान की और किसी आत्मा में बेईमानी की कल को फिट कर देता है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी आत्मा के अनुसार ही कार्य करता है। इस कल में ईमान या बेईमानी के स्वर निरंतर निकलते रहते हैं। इसे आत्मा की पुकार कहा जाता है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी आत्मा की पुकार के अनुसार ही कार्य करता है।
प्रश्न 5. साधु को तावीज़ बनाने के लिए कितनी पेशगी दी गई ?
उत्तर: राज्य में फैले भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए दरबारियों के सुझाव पर एक साधु को तावीज़ बनाने का ठेका दे दिया गया। तावीज़ बनाने के लिए साधु को पाँच करोड़ रुपए पेशगी के तौर पर दिए गये। साधु ने राज्य के सभी कर्मचारियों के लिए तावीज़ बनाने की जिम्मेदारी ली।
प्रश्न 6. तावीज़ किस लिए बनवाये गये थे?
उत्तर: भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए तावीज़ बनाए गये थे। अपने दरबारियों के कहने पर राजा साधु से तावीज़ बनवाकर अपने कर्मचारियों की भुजाओं पर बंधवाना चाहता था जिससे वे सभी सदाचारी बन जाएं। पहले इसका कुत्ते पर प्रयोग किया गया था। तावीज़ गले में बांध देने से कुत्ता भी रोटी नहीं चुराता। इसी तरह व्यक्ति की भुजा में तावीज़ बांधने से भ्रष्टाचार नहीं रहता।
प्रश्न 7. महीने के आखिरी दिन तावीज़ में से कौन से स्वर निकल रहे थे ?
उत्तर: महीने के आखिरी दिन राजा वेश बदलकर एक कर्मचारी के पास काम करवाने गया। उसे पाँच रुपये का नोट दिखाया। उस कर्मचारी ने उस नोट को उसी समय वही पकड़ लिय। राजा ने कर्मचारी को पकड़कर पूछा कि क्या उसने तावीज़ नहीं बाँधा है। उसने तावीज़ बांधा हुआ था। जब राजा ने तावीज़ पर कान लगा कर सुना तो तावीज से आवाज़ आ रही थी कि ‘आज तो इकतीस तारीख है, आज तो ले लो।‘
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह या सात पंक्तियों में दीजिए:-
प्रश्न 1. विशेषज्ञों ने भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए क्या-क्या उपाय बताए ?
उत्तर: भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए विशेषज्ञों ने व्यवस्था परिवर्तन करने पर बल दिया। उन्होने कहा कि ऐसी नीतियां और कानून बनाए जाएं जिससे भ्रष्टाचार के अवसर ही समाप्त किए जा सकें। जब तक समाज में ठेकेदारी प्रथा विद्यमान है तब तक लोग अपना काम निकलवाने हेतु किसी न किसी अधिकारी को घूस खिलाते रहेंगे। इस तरह से रिश्वतखोरी व भ्रष्टाचार बढता रहेगा। यदि ठेकेदारी प्रथा को समाप्त कर दिया जाए तो समाज से घूसखोरी समाप्त की जा सकती है। हमें उन सभी कारणों की जाँच- पड़ताल करनी होगी जिनके कारण भ्रष्टाचार उत्पन्न होता है। इसके साथ ही सभी व्यक्तियों को पूरा वेतन दिया जाए। इस तरह से भ्रष्टाचार खत्म हो सकता है।
प्रश्न 2. साधु ने तावीज़ के क्या गुण बताए?
उत्तर: साधु ने तावीज़ के गुणों को बताते हुए कहा कि यह तावीज़ जिसकी भुजा पर बंधा होगा, उसमें बेईमानी नहीं आ सकती। वह गलत रास्ते पर नहीं चलेगा। यह तावीज़ उसे ईमानदारी के रास्ते पर चलने की प्रेरणा देता रहेगा। उसके मन से लालच आदि दूर हो जाएगा। वह चाह कर भी भ्रष्टाचार के चंगुल में नहीं फंस पाएगा। उसका आचरण एकदम शुद्ध और आत्मा एकदम पवित्र हो जाएगी। For More PSEB study material Visit: – https://hindipunjab.com
प्रश्न 3. ‘सदाचार का पाठ‘ में छिपे व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: ‘सदाचार का तावीज़‘ पाठ मूल रूप से एक व्यंग्यात्मक रचना है। इसके लेखक हरिशंकर परसाई एक व्यंग्यकार लेखक हैं। उनका कहना है कि केवल भाषणों, कार्यकलापों, पुलिसिया कार्यवाही, नैतिक स्लोगनों, वाद-विवाद आदि से कभी भी भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त नहीं किया जा सकता। भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त करने के लिए समाज में व्यक्ति को नैतिक स्तर पर दृढ़ करना होगा। इससे ही समाज और राष्ट्र का कल्याण होगा। देश के सभी कर्मचारियों को जब पर्याप्त वेतन दिया जाएगा, तब ही भ्रष्टाचार समाप्त हो सकता है। भ्रष्टाचार को समाप्त करना केवल एक व्यक्ति का काम नहीं बल्कि पूरे समाज की जिम्मेदारी है जिसे सभी को ईमानदारी से निभाना चाहिए।
पाठ 16 ठेले पर हिमालय (लेखक: डॉ० धर्मवीर भारती)
प्रश्न 1. लेखक को ऐसा क्यों लगा जैसे वे ठगे गये हैं?
उत्तर: लेखक कौसानी में कत्थूर की घाटी के अपार सौंदर्य को देखकर हैरान रह गया। वहाँ हरे मखमली कालीनों जैसे खेत, सुंदर गेरू की शिलाएँ काटकर बने हुए लाल रास्ते, किनारे सफेद पत्थर की पंक्ति, बेलों की लड़ियों सी नदियाँ सौंदर्य से परिपूर्ण थीं। यहाँ का सौंदर्य अति सुंदर, मोहक, सुकुमार और निष्कलंक था। ऐसी सुंदरता को देखकर लेखक को लगा जैसे वे ठगे गए हैं।
प्रश्न 2. सबसे पहले बर्फ दिखाई देने का वर्णन लेखक ने कैसे किया है?
उत्तर: लेखक को बर्फ बादलों के टुकड़े जैसी लगी थी जिसमें सफेद, रुपहला और हल्का नीला रंग शोभा दे रहा था। उसे ऐसा लगा जैसे घाटी के पार हिमालय पर्वत को बर्फ ने ढंक रखा हो। उसे ऐसे लग रहा था जैसे कोई बाल स्वभाव वाला शिखर बादलों की खिड़की से झाँक रहा हो।
प्रश्न 3. खानसामे ने सब मित्रों को खुशकिस्मत क्यों कहा?
उत्तर: खानसामे ने सब मित्रों को खुशकिस्मत इसलिए कहा क्योंकि उन्हें वहाँ आते पहले ही दिन बर्फ के दर्शन हो गए थे। उससे पहले 14 टूरिस्ट वहाँ आकर पूरा हफ्ता भर रुके , परंतु उन्हें बादलों के कारण बर्फ दिखाई नहीं दी।
प्रश्न 4. सूरज के डूबने पर सब गुमसुम क्यों हो गए थे ?
उत्तर: सूरज के डूबने पर सब गुमसुम इसलिए हो गए थे क्योंकि सूरज डूबने के साथ ही उनकी हिम दर्शन की इच्छाएं और आशाएं धूमिल हो गई थी। जिस हिम दर्शन की आशा में लेखक अपने मित्रों के साथ बहुत समय से टकटकी लगाकर देख रहे थे, वे उस से वंचित रह गए थे।
प्रश्न 5. लेखक ने बैजनाथ पहुंचकर हिमालय से किस रूप में भेंट की ?
उत्तर: लेखक ने बैजनाथ पहुँचकर देखा कि गोमती निरंतर प्रवाहित हो रही थी। गोमती की उज्ज्वल जल राशि में हिमालय की बर्फीली चोटियों की छाया तैर रही थी। लेखक ने नदी के इस जल में तैरते हुए हिमालय से भेंट की।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह या सात पंक्तियों में दीजिए:-
प्रश्न 1. कोसी से कौसानी तक में लेखक को किन-किन दृश्यों ने आकर्षित किया ?
उत्तर: कोसी से कौसानी तक लेखक को बहुत से प्राकृतिक दृश्य दिखाई दिए थे। इन दृश्यों ने लेखक को मंत्रमुग्ध कर दिया था। सोमेश्वर की हरी-भरी घाटी के उत्तर में ऊँची पर्वतमाला के शिखर पर कौसानी बसा हुआ था। नीचे पचास मील चौड़ी घाटी में हरे भरे कालीनों जैसी सुंदर वनस्पतियां फैली हुई थीं। घाटी के पार हरे खेत, नदियाँ और वन क्षितिज के नीले कोहरे में छिप रहे थे। बादल की एक टुकड़ी के हटते ही पर्वतराज हिमालय दिखाई दिया जो सुंदरता में अद्भुत था। ग्लेशियरों में डूबता सूर्य पिघले हुए केसर जैसा रंग दिखाने लगा था। बर्फ लाल कमल के फूलों जैसी प्रतीत होने लगी थी ।
प्रश्न 2. लेखक को ऐसा क्यों लगा कि वे किसी दूसरे ही लोक में चले आए हैं?
उत्तर: लेखक अपने मित्रों के साथ जैसे ही सोमेश्वर की घाटी से चला, उसे उत्तर दिशा में पर्वत शिखर पर कौसानी दिखाई दिया। सारी घाटी में अपार सुंदरता बिखरी हुई थी। सारी घाटी रंग बिरंगी दिखाई दे रही थी। हरे-भरे मखमली कालीन जैसे खेत थे। गेरू के लाल-लाल रास्ते थे। और बेलों की लडियों जैसी सुंदर नदियां थी। ऐसे अद्भुत दृश्यों को देखकर उसे ऐसा लगा जैसे वे किसी दूसरे ही लोक में चले आए हैं। For More PSEB study material Visit: – https://hindipunjab.com
प्रश्न 3. लेखक को ‘ठेले पर हिमालय‘ शीर्षक कैसे सूझा?
उत्तर: लेखक अपने मित्रों के साथ हिम दर्शन के लिए अल्मोड़ा यात्रा पर गये। लेखक अपने एक मित्र के साथ एक पान की दुकान पर खड़ा था, तभी ठेले पर बर्फ की सिल्ली लादे हुए बर्फ वाला आया । उस बर्फ में से भाप उड़ रही थी। लेखक क्षणभर उसे देखता रहा और उठती भाप में खोया सा रहा। उसे ऐसा अनुभव हो रहा था कि यहीं बर्फ तो हिमालय की शोभा है। इसी शोभा को देखने लेखक मित्रों के साथ कौसानी गया था । इस प्रकार उस बर्फ को देखकर ही लेखक को लगा कि ‘ठेले पर हिमालय‘ शीर्षक सार्थक है।
पाठ 17 श्री गुरु नानक देव जी (लेखिका डॉ. सुखविंदर कौर बाठ)
प्रश्न 1. साधुओं की संगति में रहकर गुरु नानक देव जी ने कौन-कौन से ज्ञान प्राप्त किए ?
उत्तर: साधुओं की संगति में रहकर गुरु नानक देव जी ने भारतीय धर्म का ज्ञान प्राप्त किया। आपने विभिन्न संप्रदायों, धर्म ग्रंथों और शास्त्रों का ज्ञान भी साधुओं की संगति में रहकर प्राप्त किया। राग विद्या भी आपने साधुओं की संगति में ही प्राप्त की थी।
प्रश्न 2. गुरु नानक देव जी ने यात्राओं के दौरान कौन-कौन से महत्वपूर्ण शहरों की यात्रा की थी ?
उत्तर: अपनी यात्राओं के दौरान गुरु नानक देव जी ने आसाम, लंका, ताशकंद ‘मक्का-मदीना आदि महत्वपूर्ण शहरों की यात्रा की थी। आपने हिमालय पर स्थित योगियों के केंद्रों की यात्रा की थी और इन यात्राओं के दौरान इन्होने हिंदू- मुसलमान सब को सही रास्ता दिखाया।
प्रश्न 3. गुरु नानक देव जी ने तत्कालीन भारतीय जनता को किन बुराइयों से स्वतंत्र कराने का प्रयास किया?
उत्तर: गुरु नानक देव जी के समय में भारतीय जनता में बहुत सी बुराइयाँ व्याप्त थी। जनता धार्मिक आडम्बरों से ग्रस्त थी। आपने उन्हें इन रूढ़ियों और आड़म्बरों से मुक्त कराने के लिए प्रयास किए। उन्हें सही रास्ता दिखाया।
प्रश्न 4. गुरु नानक देव जी की रचनाओं के नाम लिखिए ।
उत्तर: गुरु नानक देव जी की रचनाएँ ‘जपुजी साहिब’, ‘आसा दी वार’, ‘सिद्ध गोष्टी’, ‘पट्टी’ ,’ पहरे तिथि’, ‘बारह माह’ तथा ‘आरती’ आदि हैं। इन रचनाओं के अतिरिक्त वाणी, श्लोक, अष्टपदी सोहले आदि भी गुरु जी की रचनाएँ हैं।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह या सात पंक्तियो में दीजिए:-
प्रश्न 1. जिस समय गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ उस समय भारतीय समाज की क्या स्थिति थी ?
उत्तर: जिस समय गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ उस समय भारतीय समाज में बहुत सी बुराइयाँ व्याप्त थीं। भारत अनेक जातियों, संप्रदायों और धर्मों में बँटा हुआ था। लोग रूढ़ियों और आडंबरों का शिकार थे ।उनके विचार बहुत ही संकीर्ण थे। वह घृणित कार्यों में लगे रहते थे। धर्म के नाम पर दिखावे का बोलबाला था। शासक वर्ग अत्याचारी था। आम जनता का शोषण हो रहा था। दलितों पर भी बहुत अत्याचार होते थे। इस तरह से भारतीय समाज बहुत सी बुराइयों का शिकार था।
प्रश्न 2. गुरु नानक देव जी ने अपनी यात्राओं के दौरान कहाँ -कहाँ और किन-किन लोगों को क्या- क्या उपदेश दिए?
उत्तर: गुरु नानक देव जी ने सन् 1499 से 1522 ई. के बीच चारों दिशाओं की यात्राएं की, जिन्हें चार उदासियां कहा जाता है। इन यात्राओं में वे आसाम, लंका, ताशकंद, मक्का मदीना आदि स्थानों पर गए। इन यात्राओं में आपने मार्ग से भटके हुए सभी वर्ग के लोगों को सही मार्ग पर चलने का उपदेश दिया था। हिंदुओं और मुसलमानों सभी को अपने सहज सरल और मीठी निरंकारी भाषा से सहज धर्म का पालन करने का उपदेश दिया। उस युग के लोग आडंबरों, करामातों आदि में बहुत विश्वास रखते थे। आपने भोली भाली जनता को उपदेश देकर सही मार्ग दिखाया। आपने कश्मीर के पंडितों के साथ विचार-विमर्श किया। हिमालय के योगियों को भी सही धर्म सिखाया। हिंदू नेताओं को देश सेवा का उपदेश दिया। सभी को सांझे धर्म की शिक्षा दी। आपने अनेक फकीरों, सूफियों, संतो आदि से भी धार्मिक विचार विमर्श किए और लोगों को उपदेश देकर उन्हें सही रास्ता दिखाया। For More PSEB study material Visit: – https://hindipunjab.com
प्रश्न 3. गुरु नानक देव जी की वाणी की विशेषताएं अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: गुरु नानक देव जी की वाणी के 974 पद और श्लोक आदिग्रंथ में संकलित हैं। आपकी वाणी में अनेक विषयों पर चर्चा प्राप्त होती है। आपने सृष्टि, जीव और ब्रह्म के संबंध में लिखा है। आपने अकाल पुरुष के स्वरूप और स्थान का भी वर्णन किया है। आपने माया से दूर रहने तथा माया के बंधन काटने का उपदेश दिया है। शुद्ध मन से प्रभु का नाम जपने की प्रेरणा दी है। आपकी वाणी ‘जपुजी साहिब‘ में सिख सिद्धांतों का सार है। आपकी वाणी की शैली बहुत अद्भुत और अनूठी है।
पाठ 18 सूखी डाली – (उपेंद्रनाथ अश्क)
प्रश्न 1. एकांकी के पहले दृश्य में इंदु बिफरी हुई क्यों दिखाई देती है?
उत्तर- एकांकी के पहले दृश्य में इंदु बिफरी हुई इसलिए दिखाई देती है क्योंकि वह घर में अकेली ही सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी है ।दादा मूलराज उसे बहुत प्यार करतें हैं और वह सब की चहेती बन चुकी है।
प्रश्न 2. दादाजी करमचंद की किस बात से चिंतित हो उठते हैं?
उत्तर- जब दादा जी ने करमचंद से छोटी बहू के स्वभाव के बारे में सुना तो वह चिंतित हो उठे । छोटी बहू के अभिमान और घृणा भरे व्यवहार के कारण परिवार में परस्पर कलह की बातें होने लगीl छोटी बहू को लेकर बात-बात पर झगड़ा होने लगा। घर में सुख शांति खत्म होने लगी। जब दादा जी को यह पता चला कि छोटी बहू ने अपनी अलग घर बसाना चाहती है तो उन्हें संयुक्त परिवार के टूटने का डर लगने लगा इसी बात से चिंतित हो उठे।
प्रश्न 3. कर्मचंद ने दादाजी को छोटी बहू बेला के विषय में क्या बताया?
उत्तर – कर्मचंद ने दादा जी को छोटी बहू बेला के बारे में बताया कि वह बहुत अभिमानी है। वह अपने मायके के घर को ससुराल के घर से ज्यादा अच्छा मानती है। ससुराल के घर को घृणा की दृष्टि से देखती है। करमचंद दादा जी को बताते हैं कि वह मलमल के थान और रजाई जो वह लेकर आए थे मैं सभी ने रख लिए लेकिन छोटी बहू ने उन्हें रखने से इंकार कर दिया।
प्रश्न 4. परेश ने दादा जी के पास जाकर अपनी पत्नी बेला के संबंध में क्या बताया?
उत्तर- परेश में दादाजी के पास जाकर अपनी पत्नी बेला के संबंध में यह बताया कि बेला का अब इस घर में मन नहीं लगता। उसे कोई भी पसंद नहीं करता। वह सोचती है कि सब उसकी निंदा करते रहते हैं। उसे ताने देते हैं। वह समझती है कि वह अपनों में भी पराई बनकर रह गई है। वह आजाद जीवन जीना चाहती है। वह नहीं चाहती कि उसकी जिंदगी में कोई हस्तक्षेप करें। वह अपना अलग घर बसाना चाहती है जहां उसे कोई रोकने टोकने वाला न हो।
प्रश्न 5. जब परेश ने दादा जी से यह कहा कि बेला अपनी गृहस्थी अलग बसाना चाहती है तो दादाजी ने परेश को क्या समझाया?
उत्तर- जब परेश ने दादा जी से कहा कि बेला अपनी अलग गृहस्थी बसाना चाहती है तो दादा जी ने परेश को समझाया कि वह अपने जीते जी पूरे परिवार को एक वृक्ष की तरह ही देखना चाहते हैं। वह नहीं चाहते की परिवार टूटे। वह परिवार के सभी सदस्यों को समझाएंगे कि वह बेला को समझें। उसकी भावनाओं को समझें उसका सम्मान करें। वह अवश्य कोई ऐसा उपाय ढूंढ लेंगे जिस से को बेला को परायापन महसूस ना हो।
प्रश्न 6. एकांकी के अंत में बेला रूंधे कंठ से क्या कहते हैं?
उत्तर- एकांकी के अंत में बेला रूंधे कंठ से कहती है कि दादाजी आप परिवार रूपी इस पेड़ से किसी डाली का अलग होना पसंद नहीं करते तो क्या आप यह चाहेंगे कि वह डाल पेड़ से लगी लगी सूख कर मुरझा जाए ।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह: सात पंक्तियों में दीजिए:
प्रश्न 1. इंदु और बेला की कौन सी बात सबसे अधिक परेशान करती है। क्यों?
उत्तर -इंदु का स्वभाव घमंडी है ।अपने इसी स्वभाव के कारण वह अपने मायके को सबसे ऊपर समझती है ।उसके लिए बाकी सभी चीजें बेकार है। वह दूसरों को मूर्ख, गवार और असभ्य 3समझती है। बेला की यह बात इंदु को सबसे अधिक परेशान करती है क्योंकि इसी के कारण घर में शांति व एकता भंग हो रही थी और परिवार टूटने की कगार पर आ पहुंचा था।
प्रश्न 2. दादा जी छोटी बहू के अलावा घर के सभी सदस्यों को बुलाकर क्या समझाते हैं?
उत्तर- दादा जी छोटी बहु के अलावा घर के बाकी सदस्यों को बुलाकर समझाते हैं कि घर में जो कुछ भी हो रहा है उससे उनको बहुत दु:ख पहुंचा है। छोटी बहु का मन घर में नहीं लग रहा है। इसमें हम सभी का दोष है। छोटी बहु बड़े घर की बेटी है। हम सभी से ज्यादा पढ़ी लिखी है। वह अपने घर की लाडली है। कोई भी इंसान उम्र से बड़ा या छोटा नहीं होता। हर इंसान अपनी योग्यता और बुद्धि से बड़ा होता है। निश्चय ही छोटी बहु हम सब में अक्ल से बड़ी है। इसलिए हमको उसकी योग्यता का लाभ उठाना चाहिए। उसे सम्मान देना चाहिए उसका कहना मानना चाहिए। उस से सलाह लेनी चाहिए हमें उसे आगे पढ़ने लिखने का भी मौका देना चाहिए। हमारा यह परिवार एक बहुत बड़े वृक्ष के समान है हम सब उसकी डालियाँ है डालिया छोटी हो चाहे बड़ी सब छाया देती है मैं नहीं चाहता कोई भी डाली इससे अलग हो।
प्रश्न 3. एकांकी के अंतिम भाग में घर के सदस्यों के बदले हुए व्यवहार से बेला परेशान क्यों हो जाती है?
उत्तर- घर के सदस्यों के बदले हुए व्यवहार से बेला इसलिए परेशान हो जाती है क्योंकि उसे उनका यह बदला हुआ व्यवहार ज्यादा ही दिखावे वाला प्रतीत हो रहा था ।उसे लगता है कि शायद वह सभी उसके प्रति जानबूझकर ऐसा कर रहे हैं ।जब वह जाती है तो सब खड़े हो जाते हैं ।कोई भी उसके सामने नहीं हंसता। ना ही अधिक समय तक उससे कोई बात करता है ।उसे जाते ही सब डर से जाते हैं। सभी का यह औपचारिकता से भरपूर व्यवहार उससे अच्छा नहीं लग रहा था।
प्रश्न 4. मंझली बहू के चरित्र की कौन सी विशेषता इस एकांगी में सबसे अधिक दृष्टिगोचर होती है?
उत्तर मंझली बहू का स्वभाव हंसी मजाक करने वाला है ।इस एकांकी में उसके स्वभाव की यही विशेषता सबसे अधिक दृष्टिगोचर होती है। वह छोटी-छोटी बात पर हंसती मुस्कुराती रहती है। किसी के विचित्र व्यवहार पर हंसना और ठहाके लगाना उसके लिए आम सी बात है। परेश और बेला के मैं किसी बहस में वह इतना हंसती है और बेकाबू हो जाती है। उसकी हंसी बेला को और भी गुस्से में ला देती है।
प्रश्न 5. सूखी डाली एकांकी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर सूखी डाली एकांकी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि परिवार के सभी सदस्यों का को आपस में मिल जुल कर रहना चाहिए। एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए। हमें अपने बड़े बुजुर्गों का आदर करना चाहिए। उनके प्रति प्रेम व जिम्मेवारी का व्यवहार रखना चाहिए। हमारे बड़े बुजुर्ग जो भी हमें सलाह व सुझाव दें उन्हें बड़े प्यार से स्वीकार करके अपना लेना चाहिए। कोई भी इंसान उम्र में बड़ा या छोटा नहीं होता बल्कि योग्यता और बुद्धि से ही इंसान की पहचान होती है । हर व्यक्ति अपने अच्छे व्यवहार के कारण ही महान बनता है।
19 देश के दुश्मन (जयनाथ नलिन)
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन चार पंक्तियों में लिखिए:
प्रश्न 1. सुमित्रा क्यों कहती है कि अब उसका ह्रदय इतना दुर्बल हो चुका है कि जरा-सी भी आशंका से काँप उठता है।
उत्तर: पति के बलिदान को तो सुमित्रा ने दिल पर पत्थर रखकर सहन कर लिया था लेकिन अब उसकी देह जर्जर हो चुकी है। उसकी हिम्मत टूट चुकी है। वह अपने इकलौते पुत्र को खोना नही चाहती। अब उसका दिल इतना दुर्बल हो चुका है कि जरा सी आशंका से भी काँप उठता है।
प्रश्न 2. नीलम जयदेव से मान-भरी मुद्रा में क्या कहती है?
उत्तर: नीलम जयदेव से मान भरी मुद्रा में कहती है ‘मेरी तो राह देखते-देखते आँखें पथरा गई हैं, पर जनाब को मेरी परवाह तक नहीं कि किसी के दिल पर क्या बीत रही है।’
प्रश्न 3. जयदेव को गुप्तचरों से क्या समाचार मिला?
उत्तर: जयदेव को गुप्तचरों से समाचार मिला कि रात के अंधेरे में पुलिस पीकेट से एक डेढ मील दूर दक्षिण की तरफ से कुछ लोग बॉर्डर पार करने वाले हैं। ऐसा शक है कि वे सोना स्मगल करके ला रहे हैं।
प्रश्न 4. जयदेव ने अपनी छुट्टी कैंसिल क्यों करा दी थी?
उत्तर: जयदेव को गुप्तचरों से समाचार मिला कि रात के अँधेरे में पुलिस पीकेट से एक डेढ़ मील दक्षिण की तरफ से कुछ लोग सोना स्मगल करके बॉर्डर पार करने वाले हैं। जयदेव तस्करों को पकड़ने का यह अवसर हाथ से खोना नहीं चाहता था। इसलिए उसने अपनी छुट्टी कैंसिल करवा दी ।
प्रश्न 5. एकांकी में डी.सी. की किस संवाद से पता चलता है कि डीसी और जयदेव में घनिष्ठता थी?
उत्तर: डी.सी. जब कहता है ,” सर वर बैठा होगा ऑफिस की कुर्सी में। खबरदार ! जो यहाँ सर सर कहा। मैं वही तुम्हारा बचपन का दोस्त और क्लासमेट हूँ जिससे बिना हाथापाई किए रोटी हजम नहीं होती थी।”
डीसी के इस संवाद से उनकी जयदेव गहरी घनिष्ठता का पता चलता है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह या सात पंक्तियों में दीजिए:
प्रश्न 1. चाचा अपने बेटे बलुआ के विषय में क्या बताते हैं?
उत्तर: चाचा अपने बेटे बलुआ के विषय में बताते हैं कि वह भी बहुत लापरवाह है। वह भी दो-दो महीनों में चार पाँच चिट्ठी जाने के बाद ही एक आध पत्र लिखता है और उल्टे हमें ही शिक्षा देता है। वह बहुत व्यस्त रहता है। उसे समय नहीं मिलता। उसकी ड्यूटी बहुत कड़ी है। उसे बिल्कुल भी फुर्सत नहीं मिलती।
प्रश्न 2. चाचा सुमित्रा को अखबार में आई कौन सी खबर सुनाते हैं?
उत्तर: चाचा सुमित्रा को अखबार में आई यह खबर सुनाते हैं कि अखबार में जयदेव की वीरता और सूझबूझ की खूब प्रशंसा हुई है। उसने तस्करों से बड़ी बहादुरी से मोर्चा लिया और उनको मार भगाया था। उसने चार लोगों को अपनी गोलियों का निशाना बनाया और उनसे पाँच लाख रुपये का सोना छीन लिया।
प्रश्न 3. जयदेव ने तस्करों को कैसे पकड़ा? For More PSEB study material Visit: – https://hindipunjab.com
उत्तर: जयदेव ने तस्करों को पकड़ने का पक्का इरादा किया। जब वे आधी रात में चौकी से दो मील दूर एक खतरनाक घने ढाक के ऊबड़- खाबड़ रास्ते से बॉर्डर पार कर रहे थे, तभी उसने उन को चैलेंज किया। उन्होंने बदले में गोलियां चलाई । उनको चुनौती दी गी। तस्कर जीप लेकर भागने लगे किंतु दो तीन जीपों ने उनका पीछा किया। जयदेव ने अपने अचूक निशाने से उनकी जीप का पहिया उड़ा दिया। जीप लुढ़क कर एक गड्ढे में जा गिरी। तब उन्हें घेर कर पकड़ लिया गया।
प्रश्न 4. नीलम अपने पति से उलाहना भरे स्वर में क्या कहती है?
उत्तर: नीलम अपने पति से उलाहना भरे स्वर में कहती है कि मर्दों का दिल तो पत्थर होता है और विशेषकर रात दिन चोर डाकुओं तथा मौत से खेलने वालों तथा गोलियों की बौछार करने वालों का। नारी का हृदय तो सदा प्रेम से भरा रहता है।
प्रश्न 5. डी.सी. को अपने मित्र जयदेव और उनके परिवार पर गर्व क्यों होता है ?
उत्तर: डीसी को अपने मित्र जय देव और और उसके परिवार पर गर्व इसलिए होता है क्योंकि जयदेव में बड़ी वीरता और साहस से तस्करों का मुकाबला करके उनसे पांच लाख का सोना पकड़ा। उसे गवर्नर की तरफ से दस हज़ार रुपये का इनाम भी दिया गया। इस राशि को जयदेव ने शहीद पुलिस अफसरों की विधवाओं को देने की घोषणा की। जयदेव की इस वीरता और त्याग की भावना के कारण डी सी को जयदेव तथा उसके परिवार पर गर्व होता है।
प्रश्न 6. पुलिस और सेना के अफसरों को या सैनिकों के घरवालों को किन-किन मुसीबतों का सामना करना पड़ता है ?
उत्तर: पुलिस और सेना के अफसरों या सैनिकों के घर वालों को बहुत मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। उन्हें अपने बच्चों की जान की चिंता लगी रहती है। हर समय अपने बच्चों की कुशलता की ख़बर का इंतज़ार रहता है। अपने बच्चों के लिए चिंता रहती है कि वे कब लौट कर आएंगे। उनकी चिट्ठी न आने पर मन बहुत सी आशंकाओं से घिरा रहता है।
तैयार कर्ता – दीपक कुमार ‘दीपक’, हिंदी अध्यापक, सरकारी मिडिल स्कूल, कुदनी, संगरूर
संशोधन – डॉ.राजन, हिंदी मास्टर स.मि. स्कूल लोहारका कलां, अमृतसर
सहयोग – डॉ.सुमन सचदेवा, हिंदी अध्यापिका, स.ह. स्कूल (लड़के) मंडी हरजीराम, मलोट