पाठ 6 पाँच मरजीवे (कक्षा नौवीं)

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कवि -योगेंद्र बख्शी

(पद्यांशो की सप्रसंग व्याख्या)

1.                                            एक सुबह आनन्दपुर साहिब में जागी,

               कायरता जब सप्तसिंधु की धरती से भागी।

     धर्म -अधर्म के संघर्ष की रात।

     एक खालस महामानव।

     युग दृष्टा -युग सृष्टा स्ष्टा

                साहस का ज्वलंत सूर्य ले हाथ

                                              आह्वान कर रहा—–

                                              जागो वीरो जागो

               जूझना ही जीवन है- जीवन से मत भागो!

प्रसंग- यह पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक हिंदी पुस्तक-9′ में  संकलित पाँच मरजीवेशीर्षक कविता में से ली गई हैं।इसके कवि श्री योगेंद्र बख़शी जी हैं। इस कविता में कवि ने खालसा पंथ की रखी गई नींव की महान घटना का वर्णन बहुत सुंदर शब्दों में किया है।

व्याख्या- कवि योगेंद्र बख्शी जी का कहना है कि आनन्दपुर साहिब में एक दिन सुबह सूर्य के उदय होने के साथ ही पंजाब की धरती से डर भाग गया और बीती रात धर्म और अधर्म के बीच के संघर्ष की रात थी,उनकी लड़ाई की रात थी।उस दिन एक पवित्र आचरण वाले महान पुरुष जो युग को देखने वाले और युग का निर्माण करने वाले थे। साहस के जलते हुए सूर्य को हाथ में लेकर वे वीरों को बुला रहे थे। कहने का भाव है कि गुरु गोबिन्द  सिंह जी हाथ में चमकती हुई तलवार लेकर बलिदान के लिए वीरों को पुकार रहे थे। पंजाब के लोगों से ऐसा कह रहे थे कि हे वीरों अब जागो। वे कह रहे थे ।संघर्ष करने से ही जीवन का उद्देश्य सफल होता है। हे वीरों! संघर्ष से हमें मुख नहीं मोड़ना चाहिए। संघर्ष से भागना मतलब जीवन से भागना है। इसलिए डटकर संघर्ष करना चाहिए।

2.                          सन् सोलह सौ निन्यानवे की

वैशाखी की पावन बेला है

दशम नानक के द्वारे – आनन्दपुर में

दूर-दूर से उमड़े भक्तों – शिष्यों का

विशाल मेला है।

               प्रसंग यह पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक हिंदी पुस्तक- 9′ में संकलित पाँच मरजीवेनामक शीर्षक कविता में से ली गई हैं।इनके रचयिता श्री योगेंद्र बख़शी जी हैं।उन्होंने गुरु गोबिन्द सिंह जी के द्वारा खालसा पंथ की नींव की घटना का वर्णन बहुत ही सुंदर शब्दों में किया है।

               व्याख्या योगेंद्र बख्शी जी का कहना है कि सन् 1699 की वैशाखी का पवित्र समय था।जब दसवें गुरु गुरु गोबिन्द सिंह जी के द्वार पर आनंदपुर साहिब में दूर-दूर से भक्तों और शिष्यों का बहुत बड़ा मेला लगा हुआ था। अनेक लोग वहाँ श्रद्धा पूर्वक इकट्ठे  हुए थे।

3.                                            तेज पुंज गुरु गोबिन्द के हाथों में

                                          है नंगी तलवार

                                            लहराती हवा में बारम्बार

                                                अकाल पुरुष का है फरमान

                                             अभी तुरन्त चाहिए एक बलिदान

                                             अन्याय से मुक्ति दिलाने को

                                             धर्म बचाने, शीश कटाने को

                                             मरजीवा क्या कोई है तैयार?

                                             मुझे चाहिए शीश एक उपहार!

                                               जिसका अद्भुत त्याग देश की

                                               मरनासन्न चेतना में कर दे नवरक्त संचार

               प्रसंग- यह पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक हिंदी पुस्तक-9′ में संकलित पांच मरजीवे कविता में से ली गई हैं।इसके रचयिता डॉ. योगेंद्र बख्शी जी हैं। इन पंक्तियों में  कवि आनन्दपुर साहब में घटने वाली खालसा पंथकी नींव की घटना का वर्णन करते हैं।

               व्याख्या- गुरु गोबिन्द  सिंह जी ने पूरी सभा के सामने हाथ में तलवार पकड़ रखी थी। उसे वे बार-बार हवा में ऐसे लहरा रहे थे वह बोले कि मुझे परमात्मा का आदेश हुआ है। इसी समय मुगलों से अन्याय और अत्याचार से छुटकारा दिलवाने के लिए अपना सिर कटवाने के लिए और धर्म की रक्षा के लिए एक बलिदान की जरूरत है। क्या कोई ऐसा मरजीवा( मर कर जीने वाला) है जो अपना बलिदान देने को और अपना सिर कटवाने को तैयार है। मुझे एक सिर उपहार के रूप में चाहिए। भाव यह है कि गुरु गोबिन्द सिंह जी ने भरी सभा में एक बलिदान के लिए पुकार की थी। गुरु साहिब ने दोबारा कहा कि जो कोई वीर बलिदान देगा, उसके त्याग के परिणाम स्वरूप देश के लगभग नष्ट हो चुके प्राणों में नए खून का संचार होगा। भाव यह है कि इस बलिदान से देश में नई शक्ति एवं जोश का उदय या विकास होगा।

4.                                            सन्नाटा छा गया मौन हो रही सभा

                                               सब भयभीत नहीं कोई हिला

                                               फिर लाहौर निवासी खत्री दयाराम आगे बढ़ा

कृपाकर सौभाग्य मुझे दीजिए

                                               धर्म-रक्षा के लिए— भेंट है शीश गुरुवर!

प्राण मेरे लीजिए।”

प्रसंग- यह पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक हिंदी पुस्तक- 9′ में संकलित पाँच मरजीवे  कविता में से ली गई हैं।इन के रचयिता डॉ. योगेंद्र बख़शी जी हैं। उन्होंने गुरु गोबिन्द सिंह जी के द्वारा खालसा पंथ की रखी गई नींव की घटना का वर्णन बहुत ही सुंदर शब्दों में किया है। गुरु गोबिन्द सिंह जी शीश की पुकार करते हैं और उनकी ललकार सुनकर दयाराम खत्री उनके सामने प्राण देने के लिए आ जाता है।

               व्याख्या- कवि योगेंद्र बख्शी जी ने बताया है कि गुरु गोबिन्द सिंह जी जब अपने सिर की भेंट देने या प्राणों का बलिदान देने के लिए लोगों को ललकारते हैं तो पूरी सभा में चुप्पी छा जाती है। सभा में उपस्थित सभी लोग डर कर चुप बैठे रहते हैं। कोई भी अपने स्थान से हिलता नहीं। सब में शान्ति छा गई। सब में चुप्पी छा गई। सभी शांत हो गए।सब के सब डर गए। ऐसे विषम वातावरण में लाहौर का रहने वाला खत्री दयाराम गुरुजी की ओर बढ़ा और बोला,गुरु जी जीवन बलिदान करने का एक मौका मुझे दे दीजिए। धर्म की रक्षा के लिए मैं अपना सिर अर्पित करना चाहता हूँ। धर्म और जाति के लिए  मेरी जान आपकी सेवा में अर्पित है।इसे स्वीकार करें। यह मेरे लिए बहुत बड़े सौभाग्य की बात होगी।

5.                                            खिल उठे दशमेश उसकी बाँह थाम

                                            ले गए भीतर, बन गया काम

                                            उभरा स्वर शीश कटने का और फिर गहरा विराम!

                                             भयाकुल चकित चेहरे सभा के

                                            रह गए दिल थाम!

               प्रसंग- यह पंक्तियाँ  हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक हिंदी पुस्तक- 9′में संकलित पाँच मरजीवेकविता में से ली गई हैं। जिसके रचयिता श्री योगेंद्र बख़शी जी हैं। उन्होंने इन पंक्तियों में सभा में बैठे लोगों के डर वाली मानसिकता को प्रस्तुत किया है।

               व्याख्या- योगेंद्र बख़शी जी कहते हैं कि जब दयाराम बलिदान देने के लिए गुरुजी के पास गया तो गुरुजी बहुत खुश हुए।वे दयाराम को  उसकी बाँह पकड़ कर पर्दे के पीछे ले गए। उनका कुछ काम पूरा हो गया। तब तंबू के भीतर से शीश कटने की आवाज़ आई। उसके बाद एकदम से ठहराव- सा छा गया। सभा में बैठे लोग पूरी तरह से सहम गए थे। सबके चेहरों पर डर और चिंता के भाव थे। सब अपना कलेजा थाम कर बैठे हुए थे।

6.                                            रक्त रंजित फिर लिए तलवार

                                               आ गए गुरुवर पुकारे बारबार

                                               एक मरजीवा अपेक्षित और है

बड़े आगे कौन है तैयार!

               प्रसंग- यह पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक में संकलित पाँच मरजीवेकविता में से ली गई हैं। इसके रचयिता श्री योगेंद्र बख्शी जी हैं। वे कहते हैं कि गुरु गोबिन्द सिंह जी ने दयाराम को जब तंबू के अंदर ले जाकर दूसरे बलिदान करने वाले व्यक्तियों के लिए जनता के सामने पुकार की।तब कैसा दृश्य सामने आया।

               व्याख्या- कवि योगेंद्र बख़्शी जी कहते हैं कि दयाराम खत्री की बलि देखकर गुरुजी पर्दे के पीछे से हाथ में खून से सनी (भीगी) हुई तलवार लिए हुए बाहर आए और उन्होंने बार-बार सभा के सामने एक ही पुकार की। एक और बलिदान चाहिए अर्थात् ऐसे व्यक्ति की जरूरत है जो अपने प्राणों का बलिदान दे सके। जो इस बलिदान के लिए तैयार हो। वह आगे आए।

7.                                            प्राण के लाले पड़े हैं

                                               सभी के मन स्तब्ध से मानो जड़े हैं

                                             किंतु फिर धर्म राय बलिदान-व्रत-धारी

                                               जाट हस्तिनापुर का खड़ा करबद्ध

गुरु चरण बलिहारी!

                                               हर्षित गुरु ले गए भीतर उसे भी-

               लीला विस्मयकारी!

               प्रसंग- यह पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक हिंदी पुस्तक- 9′ में संकलित पाँच  मरजीवेनामक  कविता में से ली गई हैं। इसमें कवि योगेंद्र बख़शी जी ने गुरु जी द्वारा दूसरे बलिदान की पुकार सुनकर धर्म राय के आगे बढ़ने की घटना का वर्णन बहुत सुंदर शब्दों में किया है।

               व्याख्या- कवि योगेंद्र बख्शी जी कहते हैं कि जब गुरु साहब के द्वारा दूसरे बलिदान के लिए पुकार सुनी तो सभा के लोग बहुत घबरा गए।उन्हें अपने प्राण संकट में महसूस होने लगे। वह सब इस बात से हैरान हो गए और निर्जीव बनकर चुपचाप बैठे रहे।कुछ समय के लिए ऐसे लगा जैसे पूरी सभा जड़ हो गई हो, स्थिर हो गई हो। किंतु तभी बलिदान का व्रत धारण करने वाले हस्तिनापुर के जाट धर्म राय हाथ जोड़कर खड़े हो गए उन्होंने अपने आप को गुरु के चरणों में न्योछावर करने के लिए तैयार कर दिया।उसकी बात सुनकर गुरु जी बहुत खुश हुए और उसे भी बलिदान के लिए तंबू के अंदर ले गए। गुरु जी की यह लीला सबको हैरान कर देने वाली थी।

8.                                            टप टप टपक रहे रक्त बिंदु

गहरी लाल हुई चम चम तलवार—-

माँग रही बली बारंबार

                                               गुरुवर की लीला अपरंपार।

               प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक हिंदी पुस्तक –9′ में संकलित पाँच मरजीवेशीर्षक कविता में से ली गई हैं। योगेंद्र बख़्शी के द्वारा रचित इन पंक्तियों में गुरु गोबिन्द सिंह जी की अपार लीला का वर्णन किया गया है।

               व्याख्या- कवि कहते हैं कि गुरु जी की तलवार से लहू की बूँदें टप- टप टपक रही थी। उनकी तलवार खून से भरी होने के कारण लाल रंग की हो गई थी और उसकी चमक भी बड़ी हुई थी। वह तलवार बार-बार और बलिदान माँग रही थी। गुरु जी की इस लीला को जानना बहुत ही मुश्किल था। उनकी लीला का पार पाना कोई साधारण कार्य नहीं था। कहने का भाव है कि गुरु जी के कामों के पीछे क्या उद्देश्य छिपा था। उसे समझना बहुत कठिन था।

9.                                            बलिदानों के क्रम में एक-एक कर शीश कटाने

                                               बढ़ा आ रहा द्वारिका का मोहकम चंद धोबी

बिदर का साहब चंद नाई, पुरी का हिम्मत राय कहार

                  पाँच ये बलिदान अद्भुत चमत्कार!

      प्रसंग- यह पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक हिंदी पुस्तक –9′ में संकलित पाँच मरजीवेशीर्षक कविता में से ली गई हैं। योगेंद्र बख्शी ने इस पद्यांश में मोहकम चंद धोबी,साहब चंद और हिम्मत राय की कुर्बानियों का वर्णन किया है।

      व्याख्या- कवि योगेंद्र बख़शी जी बताते हैं कि जब गुरु साहिब ने बलिदान के लिए बार बार पुकार की तो बलिदानियों का यह क्रम जारी रहा। लोग अपना सिर कटवाने के लिए गुरुजी के पास आने लगे।इस कड़ी में द्वारिका के रहने वाले मोहकम चंद धोबी और उसके बाद बिदर के रहने वाले साहब चंद नाई आए और अंत में जगन्नाथ पुरी के रहने वाले हिम्मत राय कहार आए जिन्होंने अपने आप को गुरु जी के चरणों में समर्पित कर दिया। इनका बलिदान बहुत अधिक चमत्कारी और आश्चर्यजनक था। क्योंकि इनको मारा नहीं गया था। लोग ऐसा सोचते थे कि इन की बलि दे दी गई है। इन का सिर काट दिया गया होगा। लोगों को इस बात की बड़ी हैरानी हो रही थी ।

10.                लीला से पर्दा हटा गुरु प्रकट हुए

                  चकित देखते सब पांचों बलिदानी संग खड़े

                  गुरुवर बोले “मेरे पास प्यारे सिंघ

                  साहस, रूप,वेश,नाम में न्यारे सिंघ

                  दया सिंघ,धर्म सिंघ और मोहकम सिंघ

                  खालिस जाति खालसा के साहब सिंघ व हिम्मत सिंघ

                  शुभाचरण पथ पर निर्णय देंगे बलिदान

                  अब से पंथ “खालसा” मेरा ऐसे वीरों की पहचान। “

      प्रसंग यह पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक में संकलित पाँच  मरजीवेशीर्षक कविता में से ली गई हैं। इसके रचयिता श्री योगेंद्र बख़शी जी ने गुरु गोबिन्द सिंह जी के द्वारा खालसा पंथ की नींव रखने की घटना का सुंदर वर्णन किया है। इन पंक्तियों में पाँच बलिदानों के महत्व को भी दिखाया गया है।

व्याख्या कवि योगेंद्र बख़शी जी ने बताया है कि गुरु गोबिन्द सिंह जी ने जो लीला रची थी,उससे अब पर्दा हट गया। गुरुजी सामने आ गए। वे अकेले नहीं थे। अभी तो उनके साथ पाँच बलिदानी भी खड़े थे। उन बलिदानियों को देखकर सभी हैरान हो गए। गुरु जी  सबके सामने प्रकट होकर कहने लगे यह मेरे पाँच प्यारे सिंघ हैं। यह पाँचों साहस, हिम्मत, आकार, वेशभूषा आदि में सबसे अलग हैं। अब यह दया सिंघ, धर्म सिंघ, मोहकम सिंघ, साहिब सिंघ और हिम्मत सिंघ कहलाएंगे। उनके नाम के पीछे सिंघ लगेगा। इनकी जाति का नाम खालसा होगा। इन पाँच सिंघ साहिबों की तरह जो व्यक्ति अच्छे कामों के लिए और व्यवहार के लिए निडर होकर अच्छे रास्ते पर चलते हुए अपने बलिदान देंगे। वे वीर पुरुष कहलाएंगे।आज के बाद इस पंथ का नाम खालसापंथ होगा। सिंघ पुरुषों की पहचान वैसी ही होगी,जो ऊपर बताई गई है। यह पांच मरजीवे भी ऐसे ही पहनावा पहनेंगे और अच्छे रास्ते पर चलते हुए अपने जीवन को न्योछावर करेंगे।

अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर

(क) विषय-बोध

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक दो पंक्तियोँ में दीजिए

(i) कवि ने गुरु गोविंद सिंह जी के लिए किन- किन विशेषताओं का प्रयोग इस कविता में किया है?

उत्तर- पाँच मरजीवेकविता में कवि गुरु योगेंद्र बख़शी ने गुरु गोबिन्द सिंह जी के लिए गुरुवर युग-दृष्टा, युग- सृष्टा महामानव, दशमेश, तेजपुंज आदि विशेषणों का प्रयोग किया है।

(ii) कविता में दशम नानक किसे कहा गया है?

उत्तर – कविता में दशम नानक गुरु गोबिन्द सिंह जी को कहा गया है।

 (iii) 1699 का विशाल मेला कहाँ लगा था?

उत्तर – 1699 ई. में विशाल मेला आनन्दपुर साहिब में लगा था।

iv) मरजीवा शब्द का क्या अर्थ है?

उत्तर – मरजीवा से अभिप्राय है- मर कर जीने वाला। जैसे पाँच प्यारे या पाँच सिंघ जनता की नजर में मर गए थे। इन्होंने अपने जीवन का बलिदान दे दिया था। परंतु वास्तव में वे मरे नहीं थे, बल्कि जीवित थे।

(v) अकाल पुरुष का फरमान क्या था?

उत्तर- अकाल पुरुष का फरमान था कि अन्याय और अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए और धर्म की रक्षा के लिए एक व्यक्ति का बलिदान चाहिए।

(vi) पाँच मरजीवों के नाम लिखो।

उत्तर- लाहौर के खत्री दयाराम दया सिंह, हस्तिनापुर का जाट धर्म राय धर्म सिंह, द्वारिका का धोबी मोहकम चंद मोहकम सिंह, बिदर का नाई साहब चंद साहब सिंह तथा जगन्नाथपुरी का कहार हिम्मत राय हिम्मत सिंह यह पाँच मरजीवों के नाम हैं।

(vii) जो व्यक्ति न्याय के लिए बलिदान देता है, धर्म की रक्षा के लिए शीश कटा लेता है, उसे हम क्या कह कर पुकारते हैं?

उत्तर- जो व्यक्ति न्याय के लिए बलिदान देता है, धर्म की रक्षा के लिए शीश कटा लेता है। हम उसे मरजीवा कह कर पुकारते हैं क्योंकि वह मर कर भी जीवित रहता है।

(viii) गुरुजी ने वीरों की क्या पहचान बताई?

उत्तर- गुरु गोबिन्द सिंह जी के अनुसार अच्छे आचरण के रास्ते पर जो चलता है और उसी उद्देश्य के लिए अपना जीवन भी बलिदान दे देता है। वही सच्चा वीर होता है।

 (ix) धर्म – अधर्म के संघर्ष की रात का क्या अर्थ है?

उत्तर- इस पंक्ति का अर्थ है कि वह रात धर्म की रक्षा और अधर्म के विरोध के बारे में सोचने की रात थी।

2.निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए

उत्तर- इन पद्यांशों की व्याख्या पाठ के प्रारंभ में देखें।

(ख) भाषा –  बोध

1. शब्दांश + मूल शब्द अर्थ नवीन शब्द अर्थ

अ + न्याय  इंसाफ) अन्याय (इंसाफ के विरुद्ध कार्य)

वि + श्वास (साँस) विश्वास (भरोसा)

उपर्युक्त मूल शब्द (न्याय) में शब्दांश लगाने से अन्यायतथा श्वासमें विशब्दांश लगाने से विश्वासनवीन शब्द बने हैं तथा उनके अर्थ में भी परिवर्तन आ गया है। ये तथा वि  उपसर्ग हैं।  अतएव जो शब्दांश किसी शब्द के शुरू में जुड़ कर उसके अर्थ में परिवर्तन ला देते हैं, वे उपसर्ग कहलाते हैं।

प्रश्न- निम्नलिखित शब्दों में से उपसर्ग तथा मूल शब्द अलग अलग करके लिखिए

शब्द                          उपसर्ग                            मूलशब्द

अधर्म                                                       धर्म

अतिरिक्त                          अति                             रिक्त

उपहार                             उप                               हार

प्रकट                           प्र                               कट

2. मूल शब्द (अर्थ) + शब्दांश = नवीन शब्द (अर्थ)

 सन्न (स्तब्ध, चुप ) + आटा = सन्नाटा( स्तब्धता, चुप्पी )

 कायर ( डरपोक ) + ता = कायरता ( डरपोकपन )

उपर्युक्त मूल शब्द सन्नमें आटालगाने से सन्नाटातथा कायरशब्द में तालगाने से सन्नाटातथा कायरतानवीन शब्द बने हैं तथा उनके अर्थ में भी परिवर्तन आ गया है।ये आटातथा ताप्रत्यय हैं।

अतएव जो शब्दांश किसी शब्द के अंत में जुड़कर उनके अर्थ में परिवर्तन ला देते हैं, वे प्रत्यय कहलाते हैं।

प्रश्न- निम्नलिखित शब्दों में से प्रत्यय तथा मूल शब्द अलग अलग करके लिखिए:-

शब्द                मूल शब्द                         प्रत्यय

वैशाखी                 वैशाख        +           

निवासी                 निवास         +           

बलिदानी                 बलिदान       +            

बलिहारी                  बलिहार       +            

लेखन:- रजनी बजाज, हिंदी अध्यापिका, स. स. स. स. बहिमन दीवाना, बठिंडा

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1 Review
  • Vansh Brar says:

    Vansh Brar

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