ईमानदार लकड़हारा कहानी

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                         एक लकड़हारा था। एक बार वह नदी के किनारे एक पेड़ से लकड़ी काट रहा था। एकाएक उसके हाथ से कुल्हाड़ी छूटकर नदी मे गिर पड़ी। नदी गहरी थी। उसका प्रवाह भी तेज था। लकड़हारे ने नदी से कुल्हाड़ी निकालने की बहुत कोशिश की पर वह उसे नही मिली इससे लकड़हारा बहुत दु:खी हो गया। इतने देवदूत मे वहाँ से गुजरा लकड़हारे को मुँह लटकाए खड़ा देख कर उसे दया आ गई। वह लकड़हारे के पास आया और बोला चिंता मत करो। मैं नदी से तुम्हारी कुल्हाड़ी अभी निकाल देता हूँ। यह कहकर देवदूत नदी मे कूद पड़ा देवदूत पानी से निकला तो उसके हाथ मे सोने की कुल्हाड़ी थी।ईमानदार लकड़हारा कहानी

                      वह लकड़हारे को सोने की कुल्हाड़ी देने लगा। तो लकड़हारे ने कहा,”नहीं-नहीं यह कुल्हाड़ी मेरी नहीं है। मैं इसे नही ले सकता। ” देवदूत ने फिर नदी में डुबकी लगाई इस बार वह चाँदी की कुल्हाड़ी लेकर बाहर आया ईमानदार लकड़हारे ने कहा, “यह कुल्हाड़ी भी मेरी नहीं है।”

देवदूत ने तीसरी बार पानी मे डुबकी लगाई इस बार वह एक साधारण सी लोहे की कुल्हाड़ी लेकर बाहर आया। “हाँ यह मेरी कुल्हाड़ी है!” लकड़हारे ने खुश होकर कहा।

उस गरीब की ईमानदारी देखकर देवदूत बहुत प्रसन्न हुआ। उसने लकड़हारे को उसकी लोहे की कुल्हाड़ी दे दी। साथ ही उसने सोने और चाँदी की कुल्हाडि़याँ भी उसे पुरस्कार के रूप मे दे दीं।

शिक्षा -ईमानदारी से बढ़कर कोई चीज नहीं ।

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6 Reviews
  • Anonymous says:

    Good work

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    • Anonymous says:

      🤮

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  • Anonymous says:

    Good work…👍👍

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  • Anonymous says:

    good but its too short

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