13. जुगनू की दस्तक / जीने को कुछ मानी दे (डॉ. चंद्र त्रिखा)
डॉ. चंद्र त्रिखा एक संवेदनशील कवि, सशक्त ग़ज़लकार, प्रबुद्ध शिक्षाविद् तथा स्थापित पत्रकार के रूप में जाने जाते हैं। वे एक समर्पित पीढ़ी के प्रतिनिधि हैं, जिनके लिए साहित्य–सर्जन वास्तव में साधना रहा है। उन्होंने लगभग 30 वर्षों तक अध्यापन और पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रशंसनीय कार्य किया है। वर्तमान में, वे निदेशक हरियाणा साहित्य अकादमी के रूप में साहित्य साधक का कार्य कर रहे हैं। उनकी कविता जीवन और जगत की तमाम कड़वी और कसैली स्थितियों का चित्रण करती है, जिसमें वे एक और ज़िन्दगी के मायनों की तलाश करते हैं।
प्रस्तुत लघु कविताएँ (‘जुगनू की दस्तक‘ तथा ‘जीने को कुछ मानी दे‘) उनके काव्य संग्रह ‘दोस्त ! अब पर्दा गिराओ‘ से संकलित हैं। ‘जुगनू की दस्तक‘ आशा और प्रकाश का प्रतीक है, जो आतंक और निराशा के अंधकार में भी प्रेम और भाईचारे की स्थापना की बात करती है। वहीं, ‘जीने को कुछ मानी दे‘ कविता में कवि स्वयं, अपने मित्रों, और गुरुओं से जीवन के लिए नए अर्थ और सार्थकता की कामना करते हैं, ताकि यह धरती समृद्धि रूपी धानी चुनर ओढ़ सके।
2. सप्रसंग व्याख्या खंड
कविता: जुगनू की दस्तक
पद्यांश 1
नफ़रत की अंधी गुफ़ाओं में
कई बार काफ़ी होती है
एक जुगनू की भी दस्तक़
संभावनाओं की पतवारें
चलाते रहो साधियो !
किनारे आख़िर नज़रों से
बच नहीं पाएँगे।
प्रसंग: यह पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित डॉ. चंद्र त्रिखा द्वारा रचित कविता ‘जुगनू की दस्तक‘ से लिया गया है। यह उनकी काव्य संग्रह ‘दोस्त ! अब पर्दा गिराओ‘ से उद्धृत है। इन पंक्तियों में कवि घोर निराशा और नफ़रत के माहौल में आशा की छोटी सी किरण (जुगनू) के महत्व पर प्रकाश डालते हैं।
व्याख्या: कवि कहते हैं कि नफ़रत और द्वेष की अंधेरी गुफाओं (अंधी गुफ़ाओं में) में, आशा और प्रकाश के प्रतीक ‘जुगनू‘ की एक छोटी सी दस्तक (आगमन की आहट) ही काफी होती है। कवि अपने साथियों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि निराशा के सागर में भी संभावनाओं की पतवारें चलाते रहना चाहिए। यदि हम निरंतर प्रयास करते रहेंगे, तो सकारात्मक परिणाम (किनारे) हमारी नज़रों से अधिक समय तक बचे नहीं रह पाएँगे; सफलता अवश्य मिलेगी।
पद्यांश 2
कितनी ही असीम हो
यह काली नदी पर
सीमाओं की मौजूदगी को
नकार तो नहीं पाएगी।
बस इन्हीं सीमाओं के आस पास
मौजूद हैं हरे भरे जंगल
जहाँ प्रदूषण का, कहीं दूर तक नाम नहीं है।
प्रसंग: यह पद्यांश डॉ. चंद्र त्रिखा की कविता ‘जुगनू की दस्तक‘ से लिया गया है। इन पंक्तियों में, कवि आतंक और संत्रास (काली नदी) के विशाल फैलाव के बावजूद, प्रेम और मानवता की सीमित मगर सुरक्षित उपस्थिति पर ज़ोर देते हैं।
व्याख्या: कवि स्वीकार करते हैं कि आतंक और संत्रास की नदी (काली नदी) भले ही कितनी भी असीम (सीमा रहित) और विशाल क्यों न हो, लेकिन यह अपनी सीमाओं (हद) की मौजूदगी को पूरी तरह से नकार नहीं सकती। कवि कहते हैं कि इसी काली नदी की सीमाओं के इर्द–गिर्द अभी भी मानवता के हरे–भरे जंगल (शांति और समृद्धि) मौजूद हैं। ये वे स्थान हैं जहाँ दूषित वातावरण (प्रदूषण) और संत्रास का दूर–दूर तक कोई प्रभाव नहीं है। यह क्षेत्र भाईचारे और इंसानियत के किनारे की ओर इंगित करता है।
पद्यांश 3
आइए, करें कामना
साहित्य के अलाव की गर्मी
से अंकुरित हो नयी–पौध।
प्रसंग: यह अंश भी ‘जुगनू की दस्तक‘ कविता से है। इसमें कवि साहित्य की शक्ति और रचनात्मकता का आह्वान करते हैं, ताकि समाज में नई आशा और सकारात्मकता का संचार हो सके।
व्याख्या: कवि सभी को मिलकर कामना करने के लिए प्रेरित करते हैं। वे इच्छा व्यक्त करते हैं कि साहित्य रूपी अलाव (आग का ढेर) की गर्मी और ऊर्जा से, समाज में नए, सकारात्मक विचार और नई पीढ़ी (नयी–पौध) अंकुरित हों। यह कामना साहित्य द्वारा मानवता की भावना (‘वसुधैव कुटुंबकम्‘) की पुष्टि करने से संबंधित है।
कविता: जीने को कुछ मानी दे
पद्यांश 4
जीने को कुछ मानी दे
ऐसी एक कहानी दे।
सात समन्दर लेकर आ
प्यासा हूँ कुछ पानी दे।
धूप अभी तक नंगी है इसको चुनर धानी दे।
प्रसंग: यह पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित डॉ. चन्द्र त्रिखा द्वारा रचित कविता ‘जीने को कुछ मानी दे‘ से लिया गया है। इस कविता में कवि अपने मित्र, अपने साथी और अपने गुरु से जिंदगी के लिए नए अर्थ और मायने की कामना कर रहे हैं।
व्याख्या: कवि जीवन से आग्रह करते हैं कि उसे जीने के लिए कुछ अर्थ (मानी) मिलें और उसे एक नई, सार्थक कहानी मिले। कवि सात समुद्रों (समस्त वसुंधरा) की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि दुनिया प्यासी है, इसलिए वह पानी (शांति और तृप्ति) मांग रहे हैं। ‘धूप अभी तक नंगी है‘ का अर्थ है कि जीवन में अभी तक समृद्धि और उल्लास की कमी है। कवि चाहते हैं कि इस कमी को दूर करने के लिए इसे समृद्धि के प्रतीक धानी चुनर से ढक दिया जाए।
पद्यांश 5
भीगा है मन गाएगा
कोई ग़ज़ल पुरानी दे।
दे कुछ तू रब्ब जैसा है
लम्हे कुछ तूफ़ानी दे।
प्रसंग: यह पद्यांश डॉ. चंद्र त्रिखा की कविता ‘जीने को कुछ मानी दे‘ का अंतिम भाग है। इसमें कवि परिवर्तन की चाहत व्यक्त करते हुए जीवन में कुछ मौलिक और प्रभावी क्षणों (लम्हे) की मांग करते हैं।
व्याख्या: कवि कहते हैं कि उनका मन (भीगा हुआ मन) तभी गाएगा जब उसे कोई पुरानी (पारंपरिक या मूल) ग़ज़ल मिलेगी। इसका अर्थ है कि मन को शांत और सार्थक करने के लिए सादगी भरे या चिर–परिचित रास्ते की आवश्यकता है। कवि अपने संबोधन में कहते हैं कि तुम (मित्र/गुरु) ईश्वर के समान कुछ दो (‘रब्ब जैसा है‘)। वे कुछ ऐसे क्षणों (लम्हे) की मांग करते हैं जो जीवन में एक नया परिवर्तन ला सकें, कुछ तूफ़ानी (असामान्य, परिवर्तनकारी) क्षण दे सकें, जिससे जीवन को नया आयाम मिल सके।
3. अभ्यास प्रश्नोत्तर खंड
खंड (क) – लगभग 40 शब्दों में उत्तर दें
प्रश्न 1. ‘जुगनू की दस्तक‘ कविता का सार अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर. ‘जुगनू की दस्तक‘ एक आशावादी कविता है। इसमें नफ़रत और आतंक (काली नदी) के अंधेरे में भी जुगनू (आशा) की रोशनी के महत्व को दर्शाया गया है। कवि आह्वान करते हैं कि प्रेम और सीधापन की पतवारें चलाकर आतंक की नदी को पार किया जा सकता है। कविता वसुधैव कुटुंबकम् और मानवता की भावना को स्थापित करने की कामना करती है।
प्रश्न 2. ‘जुगनू की दस्तक‘ एक आशावादी प्रतीकात्मक कविता है, स्पष्ट करें।
उत्तर. यह प्रतीकात्मक है क्योंकि इसमें जुगनू को प्रकाश और आशा, तथा काली नदी को आतंक और संत्रास का प्रतीक माना गया है। कवि निराशा के माहौल में भी संभावनाओं की पतवारें चलाते रहने का संदेश देते हैं। वे मानते हैं कि साहित्य के अलाव की गर्मी से नई सकारात्मक पीढ़ी अंकुरित हो सकती है, जो घोर अंधकार में भी परिवर्तन की आशा जगाती है।
प्रश्न 3. ‘जीने को कुछ मानी दे‘ कविता में कवि क्या माँग रहा है? अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर. कवि अपने मित्र, साथी और गुरु से जीवन के लिए नए अर्थ और मायने (मानी) की मांग कर रहा है। वह ऐसे तूफ़ानी लम्हों की कामना करता है जिनसे ज़िन्दगी में एक मौलिक परिवर्तन आ जाए। कवि समस्त धरती की प्यास बुझाने के लिए सात समुद्रों के पानी के समान संसाधन और समृद्धि (धानी चूनर) की भी मांग कर रहा है।
प्रश्न 4. ‘जीने को कुछ मानी दे‘ कविता के शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालें।
उत्तर. शीर्षक पूरी तरह सार्थक है क्योंकि पूरी कविता जीवन को सार्थकता देने की इच्छा पर आधारित है। कवि का मूल भाव यही है कि जीवन नीरस या उद्देश्यहीन न हो। वह संसार की प्यास बुझाने, समृद्धि लाने (धानी चूनर) और बड़े तूफ़ानी परिवर्तन लाने वाले क्षणों की मांग करके जीवन को मूल्यवान (मानी) बनाना चाहता है।
खंड (ख) – सप्रसंग व्याख्या करें
प्रश्न 5. वह काली नदी ………. नयी पौध।
उत्तर 5. (कृपया खंड 2 में ‘जुगनू की दस्तक‘ के पद्यांश 2 और 3 की व्याख्या देखें, जिसमें ये पंक्तियाँ शामिल हैं।)
प्रश्न 6. जीने को कुछ ………. तूफ़ानी दे।
उत्तर 6. (कृपया खंड 2 में ‘जीने को कुछ मानी दे‘ के पद्यांश 4 और 5 की व्याख्या देखें, जिसमें ये पंक्तियाँ शामिल हैं।)