पाठ 17: विष्णु प्रभाकर
(निबंध: अगर ये बोल पाते : जलियाँवाला बाग)
(क) लगभग 60 शब्दों में उत्तर दें
प्रश्न 1. जलियाँवाले बाग में सभा का आयोजन किस उद्देश्य से किया गया?
उत्तर: जलियाँवाला बाग में वैशाखी के त्योहार के दिन, 13 अप्रैल 1919 को साढ़े चार बजे सभा का आयोजन किया गया था। इसका उद्देश्य शहर की बिगड़ती हुई स्थिति पर विचार करना था। लोग शांतिपूर्ण साधनों के माध्यम से शांति स्थापित करने की खोज करना चाहते थे, हालांकि सरकार ने पहले ही मार्शल लॉ का ऐलान कर दिया था।
प्रश्न 2. ब्रिटिश फौज के बाग में प्रवेश का चित्रात्मक वर्णन करो।
उत्तर: ब्रिटिश फ़ौज ने जनरल डायर के नेतृत्व में बाग में प्रवेश किया। उनके साथ घुड़सवार पुलिस और तोप के पीछे फौजी गाड़ी में मशीनगनें थीं। उनके बूटों की आवाज़ और मार्च के कारण वातावरण गूँज रहा था। सैनिकों ने चारों ओर मोर्चा लगा लिया और घुटने टेककर बंदूक में कारतूस भर लिए।
प्रश्न 3. जलियाँवाले बाग में गोलियों की बौछार से बचने के लिए लोगों ने क्या किया?
उत्तर: गोलियों की बौछार शुरू होते ही निहत्थे नागरिक अपनी जान बचाने के लिए बुरी तरह भागने लगे। वे पत्थरों, ईंटों और लाशों के ढेर के बीच से निकलने की कोशिश कर रहे थे। बहुत से लोगों ने गोलियों से बचने के लिए कुओं में छलांग लगा दी। कुओं में कूदने वालों की भीड़ इतनी थी कि वे नीचे गिरकर दब गए और मर गए।
(ख) लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें
प्रश्न 4. जलियाँवाला बाग में हुआ नरसंहार एक अमानवीय घटना थी। स्पष्ट करें।
उत्तर: जलियाँवाला बाग का नरसंहार इतिहास की सबसे बर्बर और अमानवीय घटनाओं में से एक था। 13 अप्रैल 1919 को, जनरल डायर फौज और मशीनगनों के साथ बाग में घुसा। उसने बिना कोई चेतावनी दिए लगभग बीस हज़ार निहत्थे लोगों पर गोली चलाने का आदेश दिया। बाग से बाहर निकलने का केवल एक ही रास्ता था, जो सैनिकों द्वारा घेर लिया गया था।
यह क्रूरता इसलिए अमानवीय थी क्योंकि सेना ने तब तक गोलीबारी जारी रखी जब तक उनके कारतूस समाप्त नहीं हो गए। इस गोलीबारी में हिंदू, मुस्लिम, सिख, मर्द, औरत और बच्चे सभी मारे गए। जान बचाने के लिए लोगों ने कुओं में छलांग लगाई, जहाँ भीड़ इतनी थी कि वे दम घुटकर मर गए। जनरल डायर का यह कार्य ब्रिटिश राज की पाशव सत्ता का प्रतीक था, जिसने मानवता और शांतिपूर्ण नागरिकों के जीवन के प्रति घोर उपेक्षा दिखाई।
प्रश्न 5. लेखक ने जलियाँवाले बाग में घायल हुए लोगों तथा मृत लोगों के परिजनों की मनोदशा का मार्मिक चित्रण किया है। स्पष्ट करें।
उत्तर: गोलीबारी रुकने के बाद, बाग में मृत्यु का साम्राज्य छा गया था। घायल व्यक्तियों की केवल सिसकियाँ, कराहें, और दर्द भरी आहें सुनाई दे रही थीं।
लेखक ने एक हिंदू युवक को देखा जो चुपचाप रो रहा था और अपने मृत भाई की लाश को अपनी टूटी टांगों के सहारे पीठ पर लादकर ले जा रहा था।
एक मुसलमान वृद्ध को देखा, जिसके इकलौते बेटे की लाश सामने पड़ी थी। उनका दुःख इतना गहरा था कि उनकी आँखों के आँसू सूख गए थे, और वे स्तब्ध खड़े थे।
लेखक को उस वीरंगना (बहादुर स्त्री) की याद आती है, जो रात के अँधेरे में लाशों के बीच अपनी गोद में पत्थर की मूर्ति रखे बैठी थी, और उसके साथ उसके तीन साल के लड़के और बारह साल की लड़की के शव थे।
इन दृश्यों ने परिजनों की निःशब्द, अपार पीड़ा को दर्शाया, जिसने बाग को भी जड़ (पत्थर–दिल) बना दिया।
(ग) सप्रसंग व्याख्या करें
प्रश्न 1. “ऊपर उड़ता हुआ एक हवाई जहाज – पाशव सत्ता का प्रतीक, नीचे में ……… मैं तो जड़ बनकर रह गया था।“
प्रसंग: यह गद्यांश (गद्य की विधा: निबंध) ‘हिंदी पुस्तक 12′ से संकलित ‘अगर ये बोल पाते: जलियाँवाला बाग‘ नामक पाठ से लिया गया है। इस निबंध के लेखक विष्णु प्रभाकर हैं। इन पंक्तियों में, जलियाँवाला बाग स्वयं अपनी त्रासदी बताते हुए नरसंहार के समय की भयावहता का वर्णन कर रहा है।
व्याख्या: बाग कहता है कि जब गोलीबारी चल रही थी, तो आसमान में उड़ता हुआ हवाई जहाज ब्रिटिश क्रूरता और पशुत्व की शक्ति (पाशव सत्ता) का प्रतीक था, जो नीचे हो रहे नरसंहार की निगरानी कर रहा था। नीचे, मैदान में चारों ओर मोर्चे लगाकर सैनिक गोलियाँ बरसा रहे थे और बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता भी घेर लिया गया था। यह भयावह, अकल्पनीय आक्रमण देखकर बाग (लेखक) इतना स्तब्ध और भयभीत हो गया कि वह स्वयं को जड़ (गतिहीन) महसूस करने लगा।
प्रश्न 2. “मरते हुए व्यक्तियों की सिसकियाँ और आहें बता रही थी कि ……… वह दृश्य तो नहीं देख पाता।“
प्रसंग: यह गद्यांश (गद्य की विधा: निबंध) ‘हिंदी पुस्तक 12′ से संकलित ‘अगर ये बोल पाते: जलियाँवाला बाग‘ नामक पाठ से लिया गया है। इस निबंध के लेखक विष्णु प्रभाकर हैं। यह अंश गोलीबारी रुकने के बाद की स्थिति का चित्रण करता है, जब बाग में केवल घायलों की पीड़ा और मृत्यु का सन्नाटा बाकी था।
व्याख्या: बाग (लेखक) कहता है कि गोलीबारी समाप्त होने के बाद, घायल और मर रहे लोगों की दर्द भरी सिसकियाँ और आहें चारों ओर सुनाई दे रही थीं। ये आवाज़ें बता रही थीं कि बाग में मौत का साम्राज्य फैला हुआ है। बाग अपनी जड़ता पर दुःख प्रकट करता है और कहता है कि वह आसानी से मरने वाला नहीं था, इसलिए उसे यह भयानक दृश्य अपनी आँखों से देखना पड़ा। बाग कामना करता है कि यदि वह मर गया होता, तो उसे यह करुण और भयावह दृश्य (जिसमें लाशों और घायलों का ढेर लगा था) नहीं देखना पड़ता।