पाठ 19: डॉ. संसार चन्द्र
(निबंध: शार्टकट सब ओर)
(क) लगभग 60 शब्दों में उत्तर दें
प्रश्न 1. शॉर्टकट को जीवन दर्शन के रूप में अपनाने का श्रीगणेश कब हुआ?
उत्तर: शॉर्टकट को जीवन दर्शन के रूप में अपनाने का श्रीगणेश एक प्राचीन कथा से माना जाता है। जब शिव और पार्वती ने अपने पुत्रों (कार्तिकेय और गणेश) को तीनों लोकों की परिक्रमा करने का कार्य दिया। गणेश ने शिव और पार्वती की परिक्रमा करके यह सिद्ध किया कि उन्होंने संपूर्ण लोकों की परिक्रमा कर ली है, और उन्हें ही सबसे पहले युवराज पद प्राप्त हुआ। इस प्रकार शॉर्टकट को मान्यता मिली।
प्रश्न 2. शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ रहे शॉर्टकट का वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर: शिक्षा के क्षेत्र में छात्र अब मूल पुस्तकों को पढ़ना छोड़कर, केवल कुंजियों (keys) और नोट्स पर निर्भर हो गए हैं। शिक्षा का मूल उद्देश्य गौण हो गया है। छात्र परीक्षा पास करने के लिए मॉडल पेपर या केवल एक घंटा पहले पढ़कर, या सिर्फ पाँच मिनट परीक्षा पेपर देखकर शॉर्टकट निकालने का प्रयास करते हैं। इससे शिक्षा प्रणाली में बटौड़ा लाइन (लंबी घुमावदार लाइन) का आविष्कार हुआ है।
प्रश्न 3. ‘शार्टकट सब ओर‘ में लेखक के व्यंग्य द्वारा शॉर्टकट के कुप्रभावों की ओर कैसे संकेत किया है?
उत्तर: लेखक ने व्यंग्य किया है कि शॉर्टकट अपनाने की होड़ ने समाज से गंभीरता समाप्त कर दी है। साहित्य में, मुक्तक रचना ने प्रबंध (दीर्घ रचना) की कमर तोड़ दी है। एकांकी नाटक बड़े नाटकों के प्राण हर रहा है, और छोटी कहानी बड़ी कहानी का गला दबोच रही है। यह प्रवृत्ति दर्शाती है कि समाज में हर चीज़ को संक्षेप (शार्ट) किया जा रहा है, जिससे ज्ञान की गहराई नष्ट हो रही है।
(ख) लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें
प्रश्न 4. ‘शार्टकट सब ओर‘ निबंध आज के युग का यथार्थ चित्रण है। इसमें जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में शॉर्टकट अपनाकर आगे बढ़ने की प्रवृत्ति का वर्णन कैसे किया गया है?
उत्तर: डॉ. संसार चन्द्र का यह निबंध आधुनिक समाज का यथार्थ चित्रण है, जहाँ शॉर्टकट दर्शन जीवन के हर क्षेत्र में हावी है। जीवन का संपूर्ण भूगोल शॉर्टकट के सहारे घूम रहा है। समाज में एक गंभीर दौड़ छिड़ गई है, जो कछुए और खरगोश की नहीं, बल्कि केवल खरगोशों की दौड़ है, जहाँ हर कोई जल्दबाजी में आगे निकलना चाहता है।
सामान्य जीवन: लोग लंबी–चौड़ी सड़कों को छोड़कर पगडंडियों का सहारा ले रहे हैं। खाने–पीने, पहनने और उठने–बैठने की हर चीज़ में शॉर्टकट का अधिकार है।
शिक्षा का क्षेत्र: छात्र मूल ज्ञान को छोड़कर केवल परीक्षा पास करने के लिए कुंजियों और नोट्स पर निर्भर हैं।
साहित्य और कला: साहित्य की विधाओं में भी शॉर्टकट आ गया है। मुक्ता रचना ने प्रबंध की कमर तोड़ दी है, और एकांकी तथा छोटी कहानी ने बड़ी रचनाओं को पीछे कर दिया है, जिससे हर साहित्यिक विधा को शार्ट किया जा रहा है।
यह निबंध दर्शाता है कि शॉर्टकट की यह प्रवृत्ति सफलता के लिए नहीं, बल्कि ज़िंदगी जीने की लालसा से उत्पन्न हुई है।
प्रश्न 5. ‘शार्टकट सब ओर‘ निबंध का सार अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर: ‘शॉर्टकट सब ओर‘ निबंध में लेखक डॉ. संसार चन्द्र ने आधुनिक जीवन में हर चीज़ को संक्षेप में निपटाने की अधीरता और जल्दबाजी पर व्यंग्यात्मक कटाक्ष किया है। लेखक बताते हैं कि शॉर्टकट को जीवन दर्शन के रूप में अपनाने का विचार गणेश की प्राचीन कथा से शुरू हुआ, जहाँ उन्होंने परिक्रमा का शॉर्टकट अपनाया।
लेखक शिक्षा, साहित्य और सामान्य व्यवहार के क्षेत्र में शॉर्टकट के कुप्रभावों को दर्शाते हैं। शिक्षा में छात्रों की निर्भरता कुंजियों और नोट्स पर बढ़ गई है। साहित्य में भी प्रबंध की जगह मुक्तक रचनाएँ ले रही हैं। लेखक कहते हैं कि आजकल हर कोई एक–दूसरे से आगे निकलने की होड़ में है, जिसे ‘सिर्फ खरगोशों की दौड़‘ कहा गया है।
लेखक का निष्कर्ष यह है कि शॉर्टकट सफलता नहीं दिलाता। लेखक आगाह करते हैं कि जीवन की लंबी मंज़िल तय करने के लिए शॉर्टकट ईर्ष्या (लालसा) से उत्पन्न होता है।
(ग) सप्रसंग व्याख्या करें
प्रश्न 6. “एक गंभीर दौड़ छिड़ गई है। हर कोई एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ में है। यह दौड़ कछुए और खरगोश की नहीं, बल्कि सिर्फ खरगोशों की दौड़ है।“
प्रसंग: यह गद्यांश ‘हिंदी पुस्तक 12′ से संकलित ‘शार्टकट सब ओर‘ नामक निबंध से लिया गया है। इस निबंध के लेखक डॉ. संसार चन्द्र हैं। इस अंश में लेखक आधुनिक युग की अत्यधिक प्रतिस्पर्धी और अधीर प्रवृत्ति पर व्यंग्य कर रहे हैं, जो शॉर्टकट अपनाने की ओर ले जाती है।
व्याख्या: लेखक कहते हैं कि आज के समाज में हर कोई एक–दूसरे से आगे निकलने की गंभीर प्रतिस्पर्धा में लगा हुआ है। वह इस होड़ को उस पुरानी कछुए और खरगोश की दौड़ से अलग बताते हैं, जहाँ कछुआ धैर्य के कारण जीतता था। लेखक के अनुसार, यह दौड़ अब केवल खरगोशों (तेज़ और अधीर लोगों) की है। इसका अर्थ है कि आज के लोग धैर्य और लंबी प्रक्रिया में विश्वास नहीं रखते, बल्कि वे परिणाम तक जल्दी से जल्दी, शॉर्टकट तरीके से, पहुँचने की लालसा रखते हैं।
प्रश्न 7. “मुक्ता रचना ने प्रबंध की कमर तोड़ दी है। एकांकी नाटक के प्राण हर रहा है। छोटी कहानी बड़ी का गला दबोच रही है। सच्चाई यह है कि साहित्य की प्रत्येक विधा को शिकंजे में कसकर शार्ट किया जा रहा है।“
प्रसंग: यह गद्यांश ‘हिंदी पुस्तक 12′ से संकलित ‘शार्टकट सब ओर‘ नामक निबंध से लिया गया है। इस निबंध के लेखक डॉ. संसार चन्द्र हैं। यहाँ लेखक साहित्य के क्षेत्र में शॉर्टकट और संक्षेप की प्रवृत्ति के कारण होने वाले नुकसान पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी कर रहे हैं।
व्याख्या: लेखक कहते हैं कि शॉर्टकट की प्रवृत्ति ने साहित्य में गहनता और विस्तार को समाप्त कर दिया है। अब मुक्तक रचनाएँ (छोटी रचनाएँ) प्रबंध (महाकाव्य या बड़ी, विस्तृत रचनाएँ) का स्थान ले रही हैं। इसी प्रकार, एकांकी नाटक (एक अंक वाले नाटक) पूर्ण नाटकों के महत्त्व को समाप्त कर रहे हैं, और छोटी कहानियाँ बड़ी कहानियों की प्रासंगिकता को कम कर रही हैं। लेखक निष्कर्ष निकालते हैं कि साहित्य की प्रत्येक विधा को कठोरतापूर्वक नियंत्रित (शिकंजे में कसकर) करके छोटा किया जा रहा है, क्योंकि आधुनिक पाठक के पास गंभीर और विस्तृत पठन के लिए समय नहीं है।
प्रश्न 8. “वे महाअनुभाव अपना समग्र कार्य–व्यापार आँखों के इशारों में चलाते हैं। इनके पास बात करने की फुर्सत कहाँ। किसी उर्दू शायर ने संभवतः इनकी इस अदा पर कुर्बान होकर ही यह शेर पढ़ा है – जमाने को फुर्सत नहीं गुफ्तगू की, अरु से सुखने इशारों के दिन हैं।“
प्रसंग: यह गद्यांश ‘हिंदी पुस्तक 12′ से संकलित ‘शार्टकट सब ओर‘ नामक निबंध से लिया गया है। इस निबंध के लेखक डॉ. संसार चन्द्र हैं। लेखक यहाँ उन लोगों पर व्यंग्य कर रहे हैं जो अत्यधिक व्यस्तता का ढोंग करते हैं और बातचीत (गुफ़्तगू) को शॉर्टकट में निपटाना चाहते हैं।
व्याख्या: लेखक उन लोगों का वर्णन करते हैं जो अपनी कथित व्यस्तता या शॉर्टकट की आदत के कारण सारा कार्य आँखों के इशारों में ही करते हैं। उनके पास दूसरे लोगों के साथ बातचीत करने का बिल्कुल भी समय नहीं होता। लेखक कल्पना करते हैं कि शायद किसी उर्दू शायर ने इन महानुभावों की इसी संक्षिप्तता (शॉर्टकट की अदा) पर मोहित होकर यह शेर कहा होगा। शेर का अर्थ है कि इस ज़माने में लंबी बातचीत (गुफ़्तगू) के लिए किसी के पास फ़ुर्सत (समय) नहीं है, इसलिए अब केवल इशारों में बात करने के ही दिन हैं।