पाठ 20: गुरु गोबिंद सिंह (लेखक: डॉ. धर्मपाल मैनी)
(क) लगभग 60 शब्दों में उत्तर दें:
प्रश्न 1 ‘ज़फ़रनामा‘ के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर: ‘ज़फ़रनामा‘ गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा फ़ारसी कविता में लिखा गया एक पत्र है, जिसे उन्होंने औरंगज़ेब को भेजा था। यह पत्र तब लिखा गया जब गुरु जी दीना (दक्षिणी भारत) में ठहरे हुए थे। इस पत्र के माध्यम से गुरु जी ने औरंगज़ेब को उसकी धार्मिकता, संकीर्णता और अत्याचारों के लिए कड़ी फटकार लगाई थी। यह पत्र एक उत्कृष्ट और अद्भुत खत माना जाता है।
प्रश्न 2 गुरु जी के मानवीय दृष्टिकोण का परिचय कैसे मिलता है? अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर: गुरु जी के मानवीय दृष्टिकोण का परिचय उनके व्यापक और सहज आत्मीय भाव से मिलता है। यह तब स्पष्ट होता है जब उन्होंने अपने भाई कहलाए जाने वालों को कहा था कि प्रत्येक को जल पिलाओ, चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान, मित्र हो या शत्रु। उन्होंने शत्रुओं को भी बुरा–भला कहने से मना किया था। पुत्रों के बलिदान के बाद भी उनका व्यापक दृष्टिकोण दिखाई दिया जब उन्होंने कहा, “चार मुए तो क्या हुआ जीवित कई हज़ार“।
प्रश्न 3 बंदा बैरागी कौन था? गुरु जी से उसकी भेंट का अपने शब्दों में वर्णन करें।
उत्तर: बंदा बैरागी (माधव दास) गोदावरी नदी के किनारे दक्षिण में रहने वाला एक वैरागी और योगी था। गुरु जी दक्षिण में प्रचार के दौरान उनसे मिले। गुरु जी के विचारों से प्रभावित होकर बंदा बैरागी उनका शिष्य बन गया। गुरु जी ने उसे अत्याचार का विनाश करने और अपने कर्तव्य को निभाने के लिए पंजाब भेजा।
(ख) लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें:
प्रश्न 4 गुरु गोबिंद सिंह के जन्म के समय की परिस्थितियों का वर्णन करते हुए उनके बाल्यकाल का वर्णन करें।
उत्तर: गुरु गोबिंद सिंह का जन्म सन 1666 में पटना में हुआ था, जब उनके पिता गुरु तेग बहादुर थे। उस समय देश की परिस्थितियाँ अत्यंत कठिन थीं। सत्रहवीं शताब्दी में औरंगज़ेब के अत्याचार से सारी भारतीय जनता दुःखी थी, और वह हिंदू धर्म की रक्षा के लिए उद्गार कर रहे थे।
बाल्यकाल से ही गुरु गोबिंद सिंह, जो तब गोबिंद राय थे, बहादुरी के खेल खेलते थे और आत्मविश्वासी स्वभाव के थे। उन्होंने अपने जीवन के पहले पाँच वर्ष पटना में बिताए। एक बार जब एक नवाब की सवारी आती देखी, तो खेलने वाले बच्चों को सलाम करने का आदेश दिया गया, जिसे गोबिंद राय ने स्वयं करने से मना कर दिया। इस छोटी–सी घटना से उनके अंदर छिपे हुए स्वाभिमान, साहस और निर्भीकता का पता चलता है। जब वे पाँच वर्ष के हुए, तो सिक्खों का एक दल उन्हें लेकर पंजाब के आनंदपुर साहिब पहुँचा।
प्रश्न 5 ‘खालसा पंथ की साजना‘ गुरु जी के जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना है, अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर: खालसा पंथ की साजना गुरु गोबिंद सिंह के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटना है, जिसे उन्होंने 1699 ई. की वैशाखी के दिन आनंदपुर साहिब में किया। इस साजना का उद्देश्य जाति, धर्म और देश की रक्षा करना और लोगों में एक अद्भुत सामूहिकता और नौकरत्व का संचार करना था।
गुरु जी ने खुलेआम घोषणा की कि धर्म की रक्षा के लिए कुछ व्यक्तियों के बलिदान की आवश्यकता है। उन्होंने तलवार निकालकर सिर माँगे। इस आह्वान पर पाँच सिरों का बलिदान देने वाले पाँच प्यारों को तैयार किया। इन पाँचों को अमृत पिलाकर गुरु जी ने ‘खालसा पंथ‘ की नींव रखी। बाद में, गुरु जी ने स्वयं उन पाँचों से अमृत लेकर खालसा पंथ में दीक्षित हुए। इस पंथ के निर्माण ने गुरु जी को भक्ति और शक्ति का मेल करने वाला सिद्ध कर दिया, जिसने धर्म को एक आध्यात्मिक प्रधान परंपरा से वीरता का पाठ पढ़ाने वाला बना दिया।
(ग) सप्रसंग व्याख्या करें:
प्रश्न 6 गुरु जी को चिंतित देखकर बालक गोबिंद राय ने कारण पूछा। कारण सुनकर बालक गोबिंद एकदम बोल उठा, “पिता जी, आपसे बढ़कर महान व्यक्ति कौन हो सकता है?”
प्रसंग: यह मार्मिक पंक्तियाँ डॉ. धर्मपाल मैनी द्वारा रचित जीवनी साहित्य ‘गुरु गोबिंद सिंह‘ से ली गई हैं, जो ‘हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित है। यह कथन बालक गोबिंद राय (जो बाद में गुरु गोबिंद सिंह बने) द्वारा अपने पिता गुरु तेग बहादुर से तब कहा गया, जब वे औरंगज़ेब के अत्याचारों को रोकने के लिए किसी महान व्यक्ति के बलिदान की आवश्यकता पर विचार कर रहे थे।
व्याख्या: गुरु तेग बहादुर इस निष्कर्ष पर पहुँचे थे कि हिंदू धर्म की रक्षा के लिए एक महान व्यक्ति के बलिदान की आवश्यकता है। बालक गोबिंद राय ने जब अपने पिता की चिंता का कारण सुना, तो उन्होंने बिना सोचे–समझे यह उत्तर दिया कि पिता जी, आपसे बढ़कर महान व्यक्ति कौन हो सकता है जो इस धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दे सके। बालक का यह कथन दर्शाता है कि वह न केवल पिता के प्रति अपार प्रेम रखता था, बल्कि उसमें बलिदान और त्याग की भावना भी थी। गुरु तेग बहादुर ने अपने पुत्र का उत्तर सुनकर निश्चित कर लिया कि उनका उत्तराधिकारी अत्याचार का विरोध करेगा।
प्रश्न 7 इसी समय वे स्वयं गुरु गोबिंद राय से गुरु गोबिंद सिंह बन गए। इस प्रकार गुरु नानक की परम्परा में जो धर्म अब तक आध्यात्मिक प्रधान था, उसे गुरु ने वीरता का पाठ भी पढ़ा दिया।
प्रसंग: यह पंक्तियाँ डॉ. धर्मपाल मैनी द्वारा लिखित निबंध ‘गुरु गोबिंद सिंह‘ से ली गई हैं, जो ‘हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित है। यह कथन लेखक ने खालसा पंथ की स्थापना (1699 ई.) के बाद गुरु जी के चरित्र और सिखी परंपरा में आए मौलिक बदलाव के संदर्भ में कहा है।
व्याख्या: लेखक समझाता है कि खालसा पंथ की साजना के साथ ही, गोबिंद राय ने अपना नाम बदलकर गुरु गोबिंद सिंह रख लिया। यह परिवर्तन केवल नाम का नहीं था, बल्कि यह सिखी परंपरा के उद्देश्य में एक बड़ा बदलाव था। गुरु नानक की परंपरा में धर्म अब तक मुख्यतः आध्यात्मिक विषयों पर केंद्रित था। लेकिन गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना करके, जहाँ भक्ति को महत्व दिया, वहीं तलवार उठाकर अन्याय के विरुद्ध युद्ध करने की वीरता का पाठ भी इस धर्म को पढ़ा दिया। इस प्रकार, गुरु गोबिंद सिंह ने धर्म में शक्ति और भक्ति का सुंदर समन्वय किया।
प्रश्न 8 गुरु जी ने इन 40 शूरवीरों को चालीस मुक्ते की उपाधि दी और उस स्थान का नाम, जहाँ वे वीर शहीद हुए, ‘मुक्तसर रखा‘।
प्रसंग: यह पंक्तियाँ डॉ. धर्मपाल मैनी द्वारा लिखित निबंध ‘गुरु गोबिंद सिंह‘ से ली गई हैं, जो ‘हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित है। यह कथन उस घटना से संबंधित है जब आनंदपुर साहिब में गुरु जी का साथ छोड़ने वाले 40 सिख, मुग़लों की सेना से युद्ध करते हुए वापस गुरु जी के पास आए और वीरगति को प्राप्त हुए।
व्याख्या: ये चालीस सिख वे थे जिन्होंने पहले आनंदपुर साहिब में मुगलों के लंबे घेरे से तंग आकर गुरु जी को ‘बेदावा‘ (रिश्ता तोड़ने का पत्र) लिखकर साथ छोड़ दिया था। बाद में, उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और वे मरण–पयंत गुरु जी के लिए लड़ने आए। जब ये युद्ध के मैदान में शहीद हुए, तो गुरु जी ने उन्हें ‘चालीस मुक्ते‘ (चालीस मुक्त हुए) की उपाधि दी। जिस स्थान पर ये वीर शहीद हुए थे, उसका नाम बाद में ‘मुक्तसर‘ रखा गया, जो उनके बलिदान को अमर करता है।
प्रश्न 9 ‘इन पुत्रन सीस पर वार दिए सुत चार। चार मुए तो क्या हुआ जीवित कई हज़ार।‘
प्रसंग: यह पंक्तियाँ डॉ. धर्मपाल मैनी द्वारा लिखित निबंध ‘गुरु गोबिंद सिंह‘ से ली गई हैं, जो ‘हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित है। यह कथन गुरु गोबिंद सिंह ने अपने चारों साहिबजादों की शहीदी के बाद, अपनी माता को दिया था, जब उन्होंने पुत्रों की मृत्यु के विषय में पूछा।
व्याख्या: गुरु गोबिंद सिंह के चारों पुत्र युद्धों में या मुग़ल सूबेदार द्वारा शहीद कर दिए गए थे। माता द्वारा पुत्रों की मृत्यु के बारे में पूछने पर, गुरु जी ने यह कहकर सहनशीलता, त्याग और व्यापक दृष्टिकोण का प्रदर्शन किया। वह अपनी माता से कहते हैं कि उन्होंने अपने चारों पुत्रों को बलिदान कर दिया, लेकिन इसके बदले में उनका दुःख क्या है? उनका दुःख छोटा है, क्योंकि जो खालसा पंथ उन्होंने सजाया है, पंथ के सभी सिंह उनके हजारों जीवित पुत्र हैं। यह उत्तर गुरु जी के असीम धैर्य और व्यापक आत्मीय दृष्टिकोण को प्रदर्शित करता है।