पाठ 23: ठेस (लेखक: फणीश्वर नाथ ‘रेणु’)

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पाठ 23: ठेस

लेखक: फणीश्वर नाथ रेणु

() लगभग 60 शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 1 ठेसकहानी की सार्थकता पर अपने विचार प्रकट करें

उत्तर:ठेसकहानी का नामकरण पूर्णतः सार्थक है, क्योंकि यह कहानी कारीगर सिरचन की भावनाओं को पहुंची गहरी चोट (ठेस) पर आधारित है सिरचन को उसकी कला और कारीगरी के लिए नहीं, बल्कि भोजन की माँग के लिए मँझली भाभी और चाची द्वारा चटोर या कामचोर कहकर अपमानित किया जाता है कलाकार के आत्मसम्मान पर लगी यह ठेस ही उसे काम अधूरा छोड़कर जाने पर विवश करती है

प्रश्न 2 ठेसकहानी के आधार पर सिरचन का चरित्र चित्रण करें

उत्तर: सिरचन जाति का कारीगर है जो चिक, शीतलपाटी और आसनी कुश बनाने में असाधारण कलाकार है वह काम के प्रति लगनशील है, लेकिन अत्यंत संवेदनशील है वह मुफ्त में काम करने को तैयार है, लेकिन अपने खाने के लिए अपमान (चटोर कहे जाने) को बर्दाश्त नहीं कर सकता उसका अंतिम कार्य (मानू को स्टेशन पर भेंट देना) उसकी कलाकार की उदारता और प्रेम भावना को दिखाता है

प्रश्न 3 सिरचन किस बात से नाराज़ होकर काम छोड़कर चला जाता है?

उत्तर: सिरचन मँझली भाभी के द्वारा किए गए अपमान से नाराज़ होकर काम छोड़कर चला जाता है मँझली भाभी ने उसे चटोर कहकर, और चाची ने उसे कामचोर तथा निकम्मा कहकर कोसना शुरू कर दिया था सिरचन को जब यह अहसास होता है कि उसे वहाँ केवल खाने के लिए अपमानित किया जा रहा है, तो उसके कलाकार के दिल को ठेस लगती है और वह शीतलपाटी को छूने की कसम खा लेता है

प्रश्न 4 लेखक मनमाने पर भी आने वाला सिरचन स्वयं ही मानू के लिए स्टेशन पर शीतलपाटी, चिक और एक जोड़ी आसनी कुश क्यों पहुँचाता है? स्पष्ट करें

उत्तर: सिरचन स्वयं मानू के लिए सामान इसलिए पहुँचाता है क्योंकि मानू ने हमेशा उसे आदर और सम्मान दिया था मानू का व्यवहार निस्वार्थ और मानवीय था, जिसके कारण सिरचन के कलाकार के मन में उसके प्रति गहरा स्नेह उत्पन्न हुआ सिरचन अपनी कारीगरी का मूल्य पैसे से नहीं, बल्कि आदर से आंकता था अपमान के बावजूद, सिरचन अपनी कला का सर्वश्रेष्ठ नमूना उस व्यक्ति को भेंट करना चाहता था जिसने उसे सम्मान दिया

() लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 5 ठेसकहानी का सार अपने शब्दों में लिखें

उत्तर:ठेसफणीश्वर नाथ रेणुद्वारा रचित एक आंचलिक कहानी है, जो ग्रामीण कारीगर सिरचन की कोमल भावनाओं और उपेक्षित जीवन पर केंद्रित है सिरचन चिक, शीतलपाटी, और आसनी कुश बनाने में निपुण है, लेकिन गाँव के लोग उसे कामचोर और चटोर समझते हैं, क्योंकि वह मजदूरी में मनपसंद पकवान (जैसे दही की कढ़ी) मांगता है

लेखक की छोटी बहन मानू की विदाई के लिए सिरचन को बुलाया जाता है काम के दौरान, मँझली भाभी उसे चटोर कहकर अपमानित करती हैं जब लेखक उसे मनाने जाता है और मोहर छाप वाली धोती का लालच देता है, तो सिरचन पत्नी की मृत्यु का हवाला देते हुए कहता है कि वह अब अपमानित होकर यह काम नहीं करेगा अपमान के कारण उसके कलाकार के मन को गहरी चोट लगती है और वह काम अधूरा छोड़ देता है कहानी के अंत में, सिरचन स्नेह और सम्मान के वशीभूत होकर, स्टेशन पर मानू को चुपचाप अपनी सर्वोत्तम कृतियाँ भेंट करता है यह कहानी कला और कलाकार के प्रति समाज की उपेक्षा को उजागर करती है

प्रश्न 6 ठेसकहानी कलाकार की संवेदनशीलता की कहानी है, स्पष्ट करें

उत्तर:ठेसकहानी सिरचन के चरित्र के माध्यम से कलाकार की संवेदनशीलता को प्रमुखता से दर्शाती है सिरचन एक कलाकार होने के नाते आत्मसम्मान को धन या मजदूरी से ऊपर रखता है

गाँव के लोग उसे चटोरकहते हैं क्योंकि वह पैसे की बजाय स्वादिष्ट भोजन की माँग करता है सिरचन के लिए अच्छा भोजन उसकी कला के प्रति आदर का प्रतीक है जब मँझली भाभी उसे चटोर कहकर उसकी कला का अपमान करती हैं, तो उसे इतनी गहरी चोट (ठेस) लगती है कि वह कहता है कि अब वह शीतलपाटी को छूकर कसम खाता है कि यह काम नहीं करेगा लेखक द्वारा दिए जा रहे लालच (धोती) को भी वह ठुकरा देता है यह सिद्ध करता है कि एक सच्चे कलाकार के लिए मानसम्मान ही उसकी असली पूंजी है सिरचन का अंतिम कार्य, मानू को बिना किसी प्रतिदान की आशा के भेंट देना, उसकी संवेदनशील और उदार भावना का प्रमाण है

() सप्रसंग व्याख्या करें:

प्रश्न 7 बड़ी बात है विटिया, बड़े लोगों की बस बात ही बड़ी होती है नहीं तो दोदो पटेर की पाटियों का काम सिर्फ खिसारी का सत्तू खिलाकर कोई करवाएगा भला? यह तुम्हारी माँ ही कर सकती हैं

प्रसंग: यह पंक्तियाँ फणीश्वर नाथ रेणुद्वारा लिखित कहानी ठेस से ली गई हैं, जो हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित है यह कथन मँझली भाभी द्वारा अपनी ननद से व्यंग्य के रूप में कहा गया है, जब वह सिरचन से चिक बनाने का काम करवाना चाहती थीं

व्याख्या: मँझली भाभी सिरचन के काम के बदले में लेखक की माँ की कंजूसी पर कटाक्ष कर रही हैं वह व्यंग्यात्मक ढंग से कहती हैं कि इतना बड़ा काम (दोदो शीतलपाटी) कोई भी कारीगर केवल खिसारी का सत्तू (एक सस्ता और निम्न श्रेणी का भोजन) खिलाकर नहीं करेगा उनके अनुसार, माँ ऐसा काम कराकर भी खुद को बड़े लोग समझती हैं यह संवाद मँझली भाभी की संकीर्ण मानसिकता, उपभोक्तावादी दृष्टिकोण, और सिरचन के प्रति उनके अनादर को स्पष्ट करता है, जिसे वह भोजन के लिए लालची (चटोर) समझती हैं

प्रश्न 8 बबुआ जी अब नहीं कान पकड़ता हूँ, अब नहीं मोहर छाप वाली धोती लेकर क्या करूँगा? कौन पहनेगा? ससुरी खुद मर गई, बेटेबेटियों को भी ले गई अपने साथ बबुआ जी मेरी घर वाली ज़िन्दा रहती तो मैं ऐसी दुर्दशा भोगता? यह शीतलपाटी को छूकर कहता हूँ, अब यह काम नहीं करूँगा

प्रसंग: यह पंक्तियाँ फणीश्वर नाथ रेणुद्वारा लिखित कहानी ठेस से ली गई हैं, जो हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित है यह कथन सिरचन द्वारा तब कहा गया जब लेखक उसे मनाने और काम पर लौटने के लिए मोहर छाप वाली धोती का लालच देते हैं

व्याख्या: सिरचन धोती लेने से इंकार कर देता है और अपने गहरे व्यक्तिगत दुःख को व्यक्त करता है वह कहता है कि अब इस धोती को कौन पहनेगा, क्योंकि उसकी पत्नी (जिसे वह ससुरीकहता है) मर चुकी है और बच्चों को भी साथ ले गई उसका मानना है कि अगर उसकी पत्नी जीवित होती, तो वह अपमान की ऐसी दुर्दशा (चटोर कहे जाने की) कभी नहीं भोगता सिरचन अंत में शीतलपाटी को छूकर कसम खाता है कि वह अब यह अपमानजनक काम नहीं करेगा यह संवाद सिरचन के हृदय की गहरी ठेस और उसके आत्मसम्मान की रक्षा की भावना को दर्शाता है

प्रश्न 9 खिड़की के पास खड़े होकर सिरचन ने हकलाते हुए कहायह मेरी ओर से है सब चीज़ है दीदी शीतलपाटी, चिक और एक जोड़ी आसनी कुश की गाड़ी चल पड़ी

प्रसंग: यह पंक्तियाँ फणीश्वर नाथ रेणुद्वारा लिखित कहानी ठेस के क्लाइमेक्स से ली गई हैं, जो हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित है यह कथन सिरचन द्वारा तब कहा गया, जब वह पिछली शाम का अपमान और काम को अधूरा छोड़कर, चुपचाप मानू को ससुराल के लिए विदा करने स्टेशन पर पहुँचता है

व्याख्या: सिरचन द्वारा दी गई यह भेंट निःस्वार्थ प्रेम और कलाकार के हृदय की उदारता का प्रतीक है सिरचन ने उन सभी अपमानों को भुला दिया जो उसे घर पर मिले थे, और केवल मानू के प्रति स्नेह के कारण, अपनी सर्वोत्तम कारीगरी (शीतलपाटी, चिक और आसनी कुश) बिना किसी पैसे के उपहार स्वरूप भेंट की उसका हकलाना उसके संकोच और प्रेम की भावना को दर्शाता है इस क्रिया से सिद्ध होता है कि सिरचन के लिए उसकी कला का सच्चा मूल्य स्नेह और सम्मान था, कि धन

 

 

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