पर उपदेश कुशल बहुतेरे
‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’ सूक्ति का अभिप्राय है कि इस दुनिया में दूसरों को उपदेश देने वाले बहुत हैं। अपने दोषों को लोग नज़रअंदाज़ कर देते हैं। इस तरह नज़रअंदाज़ करने से उनके दोष पक जाते हैं जबकि वे दूसरों के सामने इस तरह व्यवहार करते हैं मानो वे दूध के धुले हों। ऐसे लोग बात-बात में लम्बे चौड़े भाषण देने लग जाते हैं। ऐसा वे अपनी कमियों को छिपाने के लिए करते हैं। ऐसे लोग भूल जाते हैं कि उनके इस दिखावे को भी दूसरे लोगों द्वारा कहीं न कहीं नोट किया जाता है। जब ऐसे लोगों का पर्दाफाश होता है और सच्चाई सामने आती है तो पश्चाताप के सिवाय उनके पास कोई चारा नहीं रह जाता। ऐसे लोगों की बातों पर लोगों का विश्वास उठ जाता है। जिसने भी अपना आचरण सुधारा या जो आचरणवान सत्यनिष्ठ व्यक्ति हुए हैं, उनकी बातों पर दुनिया विश्वास करती है। महात्मा बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा था कि अपने दीपक स्वयं बनो अर्थात् सच्चे मन से अपने दोषों को दूर करके प्रकाशदीप बना जा सकता है।