पाठ 5. सखि, वे मुझसे कहकर जाते (मैथिलीशरण गुप्त)

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पाठ 5. सखि, वे मुझसे कहकर जाते (मैथिलीशरण गुप्त)

संक्षिप्त परिचय:

मैथिलीशरण गुप्त हिंदी साहित्य के द्विवेदी युग के प्रमुख कवि और राष्ट्रकविहैं प्रस्तुत कविता उनके प्रसिद्ध खंडकाव्य यशोधरासे ली गई हैइसमें महात्मा बुद्ध (सिद्धार्थ) की पत्नी यशोधरा की विरह वेदना और आत्मसम्मान को चित्रित किया गया है जब सिद्धार्थ बिना बताए सिद्धि प्राप्ति के लिए वन चले जाते हैं, तो यशोधरा अपनी सखी से अपने मन की पीड़ा व्यक्त करती है कि यदि वे बताकर जाते, तो वह उन्हें कभी नहीं रोकती, बल्कि खुशीखुशी विदा करती

पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

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सखि, वे मुझसे कहकर जाते,
कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथबाधा ही पाते?
मुझको बहुत उन्होंने माना;
फिर भी क्या पूरा पहचाना?
मैंने मुख्य उसी को जाना,
जो वे मन में लाते
सखि, वे मुझसे कहकर जाते ।।

प्रसंग:

प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित कविता सखि, वे मुझसे कहकर जातेसे लिया गया है इसके रचयिता राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी हैं यह पद्यांश यशोधराखंडकाव्य का अंश है इसमें यशोधरा अपनी सखी से अपने पति सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) के चुपचाप चले जाने पर दुख प्रकट कर रही है

व्याख्या:

यशोधरा अपनी सखी से कहती है कि हे सखी! मेरे पति मुझे सोता हुआ छोड़कर चुपचाप चले गए यदि वे मुझे बताकर जाते, तो क्या मैं उनके रास्ते की रुकावट (बाधा) बनती? यद्यपि उन्होंने मुझे बहुत मानसम्मान दिया, लेकिन मुझे लगता है कि वे मुझे पूरी तरह पहचान नहीं पाएमेरे लिए तो वही बात मुख्य थी, जो उनके मन में थी (यानी मैं उनकी इच्छा का ही पालन करती) इसलिए हे सखी! मुझे इस बात का गहरा दुख है कि वे मुझसे बिना कहे ही चले गए 6

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स्वयं सुसज्जित करके क्षण में,
प्रियतम को, प्राणों के पण में,
हमीं भेज देती हैं रण में,
क्षात्र धर्म के नाते
सखि, वे मुझसे कहकर जाते ।।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित कविता सखि, वे मुझसे कहकर जातेसे लिया गया है इसके रचयिता मैथिलीशरण गुप्त जी हैं इसमें यशोधरा एक क्षत्राणी के साहस और त्याग का वर्णन कर रही है

व्याख्या:
यशोधरा कहती है कि हम क्षत्रिय नारियाँ अपने पतियों को युद्ध के मैदान में भेजने से भी नहीं डरतीं जब युद्ध का समय आता है, तो हम स्वयं अपने हाथों से उन्हें सजाकर, क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए हँसतेहँसते प्राणों की बाजी लगाने के लिए रणभूमि में भेज देती हैंजब मैं उन्हें युद्ध के लिए भेज सकती थी, तो क्या तपस्या के लिए नहीं भेज सकती थी? हे सखी! वे मुझसे कहकर तो जाते

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हुआ यह भी भाग्य अभागा,
किस पर विफल गर्व अब जागा?
जिसने अपनाया था, त्यागा;
रहे स्मरण ही आते
सखि, वे मुझसे कहकर जाते ।।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित कविता सखि, वे मुझसे कहकर जातेसे लिया गया है इसके रचयिता मैथिलीशरण गुप्त जी हैं इसमें यशोधरा अपने दुर्भाग्य और विरह वेदना का वर्णन कर रही है

व्याख्या:
यशोधरा कहती है कि मेरा भाग्य इतना अभागा है कि मुझे उन्हें विदा करने का अवसर भी नहीं मिला 8अब मैं किस बात पर गर्व करूँ? मेरा वह गर्व भी विफल हो गया है जिन्होंने मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में अपनाया था, उन्होंने ही अब मुझे त्याग दिया हैअब तो केवल उनकी यादें ही शेष रह गई हैं जो बारबार रही हैं हे सखी! काश, वे मुझे बताकर जाते

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नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते,
पर इनसे जो आँसू बहते,
सदय हृदय वे कैसे सहते ?
गये तरस ही खाते
सखि, वे मुझसे कहकर जाते ।।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित कविता सखि, वे मुझसे कहकर जातेसे लिया गया है इसके रचयिता मैथिलीशरण गुप्त जी हैं इसमें यशोधरा पति के चोरीछिपे जाने का कारण खोज रही है

व्याख्या:
यशोधरा कहती है कि मेरे नेत्र उन्हें निष्ठुर (कठोर) कह रहे हैं क्योंकि वे मुझे छोड़कर चले गएपरन्तु, यदि वे मेरे सामने जाते तो मेरी आँखों से आँसू बहते उनका हृदय बहुत दयालु (सदय) है, वे मेरे आंसुओं को कैसे सहन कर पाते? इसलिए मुझे लगता है कि वे मुझ पर तरस खाकर ही चुपचाप गए हैं ताकि मुझे रोता हुआ देखना पड़ेफिर भी सखी, वे मुझसे कहकर जाते तो अच्छा होता

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जायें, सिद्धि पावें वे सुख से,
दुखी हों इस जन के दुःख से,
उपालम्भ दूँ मैं किस मुख से?
आज अधिक वे भाते
सखि, वे मुझसे कहकर जाते ।।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित कविता सखि, वे मुझसे कहकर जातेसे लिया गया है इसके रचयिता मैथिलीशरण गुप्त जी हैं इसमें यशोधरा पति की सफलता की कामना करती है

व्याख्या:
यशोधरा कहती है कि वे भले ही चले गए, अब वे सुखपूर्वक अपनी सिद्धि (तपस्या का फल) प्राप्त करेंवे मेरे दुःख से दुखी हों अब मैं उन्हें किस मुँह से उलाहना (शिकायत) दूँ? अपने लक्ष्य के प्रति उनके इस त्याग को देखकर आज वे मुझे पहले से भी अधिक अच्छे (प्रिय) लग रहे हैंहे सखी! बस कसक यही है कि वे मुझसे कहकर जाते

()
गये, लौट भी वे आवेंगे,
कुछ अपूर्वअनुपम लावेंगे
रोते प्राण उन्हें पावेंगे,
पर क्या गाते गाते ?
सखि, वे मुझसे कहकर जाते ।।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित कविता सखि, वे मुझसे कहकर जातेसे लिया गया है इसके रचयिता मैथिलीशरण गुप्त जी हैं इसमें यशोधरा भविष्य की कल्पना कर रही है

व्याख्या:
यशोधरा को विश्वास है कि वे गए हैं तो एक दिन लौटकर भी आएँगे और अपने साथ कुछ अनोखा और अनुपम (ज्ञान/निर्वाण) लेकर आएँगे लेकिन जब वे आएँगे, तो मेरे प्राण उन्हें रोते हुए ही पाएँगे क्या मैं उस समय खुश होकर गीत गाते हुए उनका स्वागत कर पाऊँगी? (भाव यह है कि उनके वियोग में मैं तब तक जीवित रहूँगी या नहीं, और यदि रही भी तो क्या मैं खुश हो पाऊँगी?) हे सखी! वे मुझसे कहकर जाते

अभ्यास प्रश्नउत्तर

() लगभग 40 शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 1. ‘सखि, वे मुझसे कहकर जातेकविता में यशोधरा को किस बात का दुःख है?

उत्तर: यशोधरा को इस बात का दुःख है कि उनके पति सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) तपस्या करने के लिए वन गए, लेकिन वे उन्हें बिना बताए चोरीछिपे गए यशोधरा को लगता है कि पति ने उसे मार्ग की बाधा समझा और उसके त्याग क्षत्राणी धर्म पर विश्वास नहीं किया

प्रश्न 2. ‘सखि, वे मुझसे कहकर जातेकविता का केन्द्रीय भाव अपने शब्दों में लिखो

उत्तर: इस कविता का केन्द्रीय भाव भारतीय नारी के त्याग, स्वाभिमान और बलिदान को दर्शाना है कवि ने बताया है कि नारी मोक्ष मार्ग में बाधा नहीं बल्कि सहयोगिनी है यशोधरा का उलाहना यह सिद्ध करता है कि नारी कर्तव्य पालन के लिए अपने प्रियतम को हँसतेहँसते विदा कर सकती है

() सप्रसंग व्याख्या करें:

प्रश्न 3.
नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते,
पर इनसे जो आँसू बहते,
सदय हृदय वे कैसे सहते ?
गए तरस ही खाते
सखि, वे मुझसे कहकर जाते

उत्तर:

(विद्यार्थी पद्यांश ()की व्याख्या देखें)

प्रसंग: प्रस्तुत पद्यांश मैथिलीशरण गुप्तद्वारा रचित कविता सखि, वे मुझसे कहकर जातेसे लिया गया है इसमें यशोधरा पति के बिना बताए जाने के कारण पर विचार कर रही है

व्याख्या: यशोधरा कहती है कि भले ही मेरे नेत्र उन्हें कठोर कह रहे हैं, लेकिन मेरे पति का हृदय बहुत कोमल है वे मेरे आँखों से बहते आंसुओं को देख नहीं पाते और विचलित हो जाते इसलिए, मुझे रोता हुआ देखना पड़े, इसी दया भाव (तरस) के कारण वे मुझे बिना जगाए चुपचाप चले गए

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