10. चलना हमारा काम है और मानव बनो, मानव ज़रा
(शिवमंगल सिंह सुमन)
📚 पाठ सामग्री का संक्षिप्त परिचय
श्री शिवमंगल सिंह ‘सुमन‘ को प्रगतिवाद का एक प्रतिनिधि कवि माना जाता है। उनकी रचनाओं में असन्तोष और क्रान्ति के स्वर देखने को मिलते हैं, हालांकि उन्होंने प्रणय गीत भी लिखे हैं। प्रस्तुत संकलन में उनकी दो प्रमुख कविताएँ— ‘चलना हमारा काम है‘ और ‘मानव बनो, मानव ज़रा‘ — दी गई हैं।
- ‘चलना हमारा काम है‘ कविता सुमन जी के काव्य संग्रह ‘हिल्लोल‘ से ली गई है। यह कविता बताती है कि जीवन आशा और निराशा, सुख और दुःख का नाम है, और मनुष्य को कठिनाइयों की परवाह किए बिना उत्साह और हिम्मत से आगे बढ़ते रहना चाहिए।
- दूसरी कविता ‘मानव बनो, मानव ज़रा‘ उनके काव्य संग्रह ‘जीवन के गान‘ से ली गई है। इस कविता में कवि आत्मनिर्भर होने की बात करते हैं और कहते हैं कि किसी पर आसरा (निर्भर) करना सबसे बड़ी भूल है। कवि का संदेश है कि यदि जलना ही है तो मानवता के कल्याण के लिए जलो, ताकि धरती उपजाऊ बन सके।
📝 सप्रसंग व्याख्या
कविता 1: चलना हमारा काम है
पद्यांश 1
गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूँ दर–दर खड़ा
जब आज मेरे सामने
है रास्ता इतना पड़ा
जब तक न मंजिल पा सकूँ, तब तक न मुझे विराम है,
चलना हमारा काम है।।
प्रसंग: प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन‘ द्वारा रचित कविता ‘चलना हमारा काम है‘ से लिया गया है। इस अंश में कवि कर्मठता और निरंतर आगे बढ़ते रहने के भाव को अभिव्यक्त कर रहे हैं।
व्याख्या: कवि कहते हैं कि जब मेरे पैरों में चलने की तीव्र शक्ति भरी हुई है, तो मैं क्यों दर–दर (स्थिर) खड़ा रहूँ? जब मेरे सामने जीवन–पथ का इतना लम्बा रास्ता पड़ा हुआ है, तो रुकना उचित नहीं है। कवि दृढ़ संकल्प लेते हैं कि जब तक मैं अपनी मंज़िल को प्राप्त न कर लूँ, तब तक मुझे विश्राम नहीं करना है। इसलिए, निरंतर गतिशील रहना ही हमारा कर्तव्य है।
पद्यांश 2
कुछ कह लिया कुछ सुन लिया
कुछ बोझ अपना बंट गया
अच्छा हुआ तुम मिल गई
कुछ रास्ता ही कट गया
क्या राह में परिचय कहूँ, राही हमारा नाम है,
चलना हमारा काम है।।
प्रसंग: प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन‘ द्वारा रचित कविता ‘चलना हमारा काम है‘ से लिया गया है। इस अंश में कवि जीवन–यात्रा में मिलने वाले सहयात्रियों के महत्व को दर्शाते हैं।
व्याख्या: कवि जीवन–पथ पर मिले किसी सहयात्री से कहते हैं कि आपसे मिलकर कुछ अपनी बात कह ली और कुछ आपकी सुन ली, जिससे मेरे मन का कुछ बोझ कम हो गया। आपके मिलने से जीवन का कुछ रास्ता सहजता से कट गया। जब कोई मेरा परिचय पूछे तो मैं क्या कहूँ? मैं तो बस यही जानता हूँ कि मेरा नाम राही (यात्री) है। हमारा एक ही काम है: निरंतर चलते रहना।
पद्यांश 7 (अंतिम पद्यांश)
मैं तो फ़कत यह जानता
जो मिट गया वह जी गया
जो बन्दकर पलकें सहज
दो घूँट हँसकर पी गया
जिसमें सुधा–मिश्रित गरल, वह साकिया का जाम है
चलना हमारा काम है।।
प्रसंग: प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन‘ द्वारा रचित कविता ‘चलना हमारा काम है‘ से लिया गया है। इस अंश में कवि बलिदान और संघर्ष को स्वीकार करने वाले को ही सच्चा जीवन जीने वाला मानते हैं।
व्याख्या: कवि कहते हैं कि मैं तो केवल इतना ही जानता हूँ कि जिसने अपने लक्ष्य के लिए स्वयं को मिटा दिया (बलिदान दे दिया), वास्तव में वही जीवन जी पाया। जिस व्यक्ति ने आँखें बंद करके सरलता से उस ‘जाम‘ को हँसकर पी लिया, जिसमें अमृत (सुधा) के साथ–साथ विष (गरल/दुःख) भी मिला हुआ है। जीवन रूपी साकिया (शराब पिलाने वाले) द्वारा दिए गए इस जाम (चुनौतियों) को स्वीकार कर निरंतर चलते रहना ही हमारा काम है।
कविता 2: मानव बनो, मानव ज़रा
पद्यांश 1
है भूल करना प्यार भी
है भूल यह मनुहार भी
पर भूल है सबसे बड़ी
करना किसी का आसरा
मानव बनो, मानव ज़रा
प्रसंग: प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन‘ द्वारा रचित कविता ‘मानव बनो, मानव ज़रा‘ से लिया गया है। इस अंश में कवि मनुष्य को आत्मनिर्भर होने और दूसरों पर आश्रित न रहने का उपदेश दे रहे हैं।
व्याख्या: कवि कहते हैं कि जीवन में प्यार करना भी एक भूल है, और किसी की मनुहार (खुशामद) करना भी एक तरह की भूल है। परन्तु, सबसे बड़ी भूल यह है कि मनुष्य किसी दूसरे व्यक्ति का आसरा (सहारा/निर्भरता) करे। कवि मनुष्य को प्रेरित करते हुए कहते हैं कि हे मनुष्य! तुम ज़रा सच्चे मानव बनो, अर्थात् स्वाभिमानी और आत्मनिर्भर बनो।
पद्यांश 4 (अंतिम पद्यांश)
अब हाथ मत अपने मलो
जलना अगर ऐसे जलो
अपने हृदय की भस्म से
कर दो धरा को उर्वरा
मानव बनो, मानव जरा।
प्रसंग: प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन‘ द्वारा रचित कविता ‘मानव बनो, मानव ज़रा‘ से लिया गया है। इस अंतिम अंश में कवि मनुष्य को पश्चाताप छोड़कर त्याग और बलिदान से संसार को बेहतर बनाने की प्रेरणा दे रहे हैं।
व्याख्या: कवि कहते हैं कि अब पश्चाताप करते हुए हाथ मत मलो। अगर तुम्हें जलना (त्याग और बलिदान) ही है, तो ऐसे जलो कि तुम्हारे हृदय से उत्पन्न भस्म (बलिदान का परिणाम) से यह धरती उर्वरा (उपजाऊ) बन जाए। कवि का भाव यह है कि अपने जीवन का त्याग भी विश्व–कल्याण के लिए हो, जिससे मानवता तुम पर गर्व कर सके। हे मनुष्य! ज़रा सच्चे मानव बनो।
❓ अभ्यास प्रश्नों के उत्तर
भाग (क): लगभग 40 शब्दों में उत्तर दें
प्रश्न: 1. ‘चलना हमारा काम है’ कविता आशा और उत्साह की कविता है – स्पष्ट करें।
उत्तर: ‘चलना हमारा काम है‘ कविता आशा और उत्साह की कविता है क्योंकि यह मानती है कि जीवन में कठिनाइयाँ आना स्वाभाविक है। कवि हमें इन बाधाओं की परवाह किए बिना उत्साह और हिम्मत से जीवन–सफर जारी रखने तथा निराशा को त्यागकर निरंतर (शाश्वत) गतिशील रहने की प्रेरणा देते हैं। यह कविता जीवन को विश्राम नहीं, बल्कि एक गतिशील यात्रा मानती है।
प्रश्न: 2. ‘चलना हमारा काम है‘ कविता का सार लिखो।
उत्तर: इस कविता का सार यह है कि जीवन निरंतर गति (यात्रा) का नाम है, जिसमें आशा और निराशा, पाना और खोना लगा रहता है। मनुष्य को मंज़िल पाने तक विश्राम नहीं करना चाहिए और सभी बाधाओं को स्वीकार करते हुए उत्साहपूर्वक आगे बढ़ते रहना चाहिए। सच्चे राही वे ही हैं जो कठिनाई रूपी विष को भी हँसकर पी लेते हैं।
प्रश्न: 3. ‘मानव बनो, मानव ज़रा‘ कविता का शीर्षक क्या सन्देश देता है? स्पष्ट करें।
उत्तर: ‘मानव बनो, मानव ज़रा‘ शीर्षक यह सन्देश देता है कि मनुष्य को दीनता और पर–निर्भरता छोड़कर स्वाभिमानी, आत्मनिर्भर और शक्तिशाली बनना चाहिए। यह शीर्षक उसे दुःख में हाय–उफ़ करने या अश्रु बहाने के बजाय, अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानकर अपने बलिदान को विश्व–कल्याण में लगाने के लिए प्रेरित करता है।
प्रश्न: 4. ‘मानव बनो‘ मानव जरा‘ कविता का सार लिखें।
उत्तर: इस कविता का सार आत्मनिर्भरता पर बल देना है। कवि के अनुसार किसी पर आसरा (निर्भर) करना सबसे बड़ी भूल है। हमें अश्रु बहाने या हाथ फैलाने के बजाय अपनी शक्ति की हुँकार करनी चाहिए। यदि जलना ही है, तो केवल अपने लिए नहीं, बल्कि विश्व–कल्याण के लिए जलना चाहिए, जिससे मानवता लाभान्वित हो और धरती उर्वरा बन जाए।
भाग (ख): सप्रसंग व्याख्या करें
प्रश्न: 5.
मैं तो फ़कत यह जानता
जो मिट गया वह जी गाया।
जो बन्द कर पलकें सहज
दो घूँट हँस कर पी गया।
जिसमें सुधा मिश्रित गरल, वह साकिया का जाम है
चलना हमारा काम है।।
उत्तर: सप्रसंग व्याख्या
प्रसंग: प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन‘ द्वारा रचित कविता ‘चलना हमारा काम है‘ से लिया गया है। इस अंश में कवि जीवन में बलिदान, संघर्ष और चुनौतियों को सहर्ष स्वीकारने वाले व्यक्तियों के महत्व पर प्रकाश डालते हैं।
व्याख्या: कवि कहते हैं कि मैं तो बस यह जानता हूँ कि जिसने अपने लक्ष्य की राह में खुद को समर्पित कर दिया (मिटा दिया), सही मायने में उसी ने जीवन जिया है। जिसने जीवन रूपी साकिया (शराब पिलाने वाले) के उस जाम (चुनौती) को पलकें बंद करके, हँसते हुए सरलता से पी लिया, जिसमें अमृत (सुधा) और विष (गरल/दुःख) दोनों मिले हुए हैं, वही सच्चा यात्री है। जिसने संघर्षों और दुःखों को भी खुशी–खुशी स्वीकार किया, उसी ने जीवन का उद्देश्य प्राप्त किया।
प्रश्न: 6.
उफ हाय कर देना कहीं
शोभा तुम्हें देता नहीं
इन आँसुओं से सींच कर दो
विश्व का कण कण हरा
मानव बनो, मानव ज़रा
उत्तर: सप्रसंग व्याख्या
प्रसंग: प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन‘ द्वारा रचित कविता ‘मानव बनो, मानव ज़रा‘ से लिया गया है। इस अंश में कवि मनुष्य को निराशा और दुःख प्रकट करने के बजाय अपनी संवेदनाओं और शक्ति को रचनात्मक कार्यों में लगाने का उपदेश दे रहे हैं।
व्याख्या: कवि मनुष्य को प्रेरित करते हुए कहते हैं कि दुःख–पीड़ा होने पर ‘उफ़‘ या ‘हाय‘ जैसे शब्दों से विलाप करना तुम्हें शोभा नहीं देता है। तुम्हें अपने ये आँसू (संवेदनाएं और करुणा) व्यर्थ में नहीं गँवाने चाहिए। इसके बजाय, तुम इन आँसुओं (त्याग और परोपकार की भावना) से इस सम्पूर्ण विश्व के कण–कण को सींचकर हरा–भरा (समृद्ध और सुखी) कर दो। हे मनुष्य! तुम दीनता त्यागकर ज़रा सच्चे मानव बनो।