पाठ 12: निर्माण योजना (धर्मवीर भारती)
लेखक का संक्षिप्त साहित्यिक परिचय: धर्मवीर भारती समसामयिक काव्य चेतना के प्रतिनिधि कवि हैं। उनकी कविता में मध्यवर्गीय जीवन की कुंठा, बौद्धिकता और जागरूकता की ध्वनि मिलती है। उनका जन्म सन् 1926 ई. में इलाहाबाद में हुआ था और उन्होंने वहीं से एम.ए., टी.सी.पी., तथा पी–एच.डी. की उपाधियाँ प्राप्त कीं। वे प्रयोगवाद के समर्थक और नई कविता के प्रमुख हस्ताक्षर हैं। उनकी प्रमुख रचनाओं में ठंडा लोहा, अंधायुग, सात गीत वर्ष, तथा कनुप्रिया (प्रसिद्ध काव्य ग्रंथ) शामिल हैं। उन्हें भारतीय सरकार द्वारा ‘पद्म श्री‘ से अलंकृत किया गया है।
कविता का सारगर्भित परिचय : प्रस्तुत कविता ‘निर्माण योजना‘ कवि के संग्रह ‘सात गीत वर्ष‘ से ली गई है। कवि ने इसे ‘बाँध‘, ‘यातायात‘, ‘कृषि‘ तथा ‘स्वास्थ्य‘ चार भागों में विभक्त किया है। यह कविता घृणा की नदी को बाँधकर उसकी ताकत को प्रेम में बदलकर मानवता के कल्याण में लगाने, स्वच्छंद विचारधारा को फलने–फूलने का अवसर देने, तथा सामाजिक विषमता (भेदभाव) को मिटाकर खुशहाल समाज बनाने की बात करती है। अंत में, कवि अहंकार (अहम्) को त्यागने का आह्वान करते हैं।
2. सप्रसंग व्याख्या
इस खंड में कविता के चारों उपखंडों के अंशों की सप्रसंग व्याख्या की गई है।
1. बाँध
पद्यांश 1 (घृणा की नदी)
बाँधो।
नदी यह घृणा की है
काली चट्टानों के
सीने से निकलती है
अन्धी ज़हरीली गुफ़ाओं से
उबली है।
इसको छूते ही
हरे वृक्ष सड़ जायेंगे
नदी यह घृणा की है।
प्रसंग: यह पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित, धर्मवीर भारती द्वारा रचित कविता ‘निर्माण योजना‘ के पहले भाग ‘बाँध‘ से लिया गया है। इस अंश में कवि सामाजिक घृणा को एक विनाशकारी नदी के रूप में चित्रित करते हुए उसे नियंत्रित करने का आह्वान करते हैं।
व्याख्या: कवि समाज के लोगों से घृणा रूपी इस नदी को बाँधने (नियंत्रित करने) के लिए कहते हैं। यह घृणा धार्मिक संकीर्णता (काली चट्टानों) के हृदय से निकलती है और सांप्रदायिक रूढ़िवादिता (अन्धी जहरीली गुफाओं) से उबलकर आई है। कवि चेतावनी देते हैं कि इस घृणा के स्पर्श मात्र से ही जीवन की रचनात्मकता (हरे वृक्ष) नष्ट हो जाएँगी।
पद्यांश 2 (घृणा को शक्ति में बदलना)
लेकिन नहीं निरर्थक यह
बंधने से इसको भी अर्थ मिल जाता है।
इसकी ही लहरों में
बिजली के शक्तिवान घोड़े हैं सोये हुए।
जोतो उन्हें खेतों में, हलों में –
भेजो उन्हें नगरों में, कलों में –
बदलो घृणा को उजियाले में
ताकत में,
नये, नये रूपों में साधो–
बाँधो –
नदी यह घृणा की है।
प्रसंग: यह पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित, धर्मवीर भारती द्वारा रचित कविता ‘निर्माण योजना‘ के उपखंड ‘बाँध‘ से लिया गया है। यहाँ कवि घृणा की शक्ति को सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित कर मानवता के कल्याण में प्रयोग करने की बात करते हैं।
व्याख्या: कवि कहते हैं कि घृणा की यह शक्ति निरर्थक (जिसका कोई अर्थ न हो) नहीं है, क्योंकि नियंत्रित करने (बंधने) से इसे भी एक अर्थ मिल जाता है। इसकी लहरों में विकास की प्रचंड ऊर्जा (बिजली के शक्तिवान घोड़े) छिपी है। कवि इस ऊर्जा को कृषि (खेतों, हलों) और उद्योग (नगरों, कलों – यन्त्रों) में लगाने का निर्देश देते हैं। वे आह्वान करते हैं कि घृणा को उजाले (प्रेम/प्रकाश) और ताकत (रचनात्मक शक्ति) में बदलकर, उसे नए रूपों में साधकर, उसका उपयोग किया जाए।
2. यातायात
पद्यांश 3 (विचारों की स्वतंत्रता)
बिना किसी बाधा के
नित नई दिशाओं में
जाने की सुविधा दो।
बिना किसी बाधा के
श्रम के पसीने से
सिंची हुई फ़सलों को
खेतों से आँतों तक जाने की
सुविधा दो।
प्रसंग: यह पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित, धर्मवीर भारती द्वारा रचित कविता ‘निर्माण योजना‘ के दूसरे भाग ‘यातायात‘ से लिया गया है। यहाँ कवि स्वच्छंद विचारधारा (विचारों की स्वतंत्रता) और श्रम के फल के अबाध वितरण की बात करते हैं।
व्याख्या: कवि निर्माण योजना के इस दूसरे चरण में कहते हैं कि विचारों को बिना किसी बाधा (बाधा – रुकावट) के प्रतिदिन नई दिशाओं में विचरण करने की सुविधा मिलनी चाहिए। इसी प्रकार, बिना किसी रुकावट के, कठिन श्रम (श्रम के पसीने) से पैदा हुई फसलों को खेतों से लोगों की ‘आँतों तक‘ (अर्थात ज़रूरतमंदों तक) पहुँचने की सुविधा मिलनी चाहिए।
पद्यांश 4 (मन की स्वतंत्रता)
बिना किसी बन्धन के
हर चलते राही को
यात्रा में
अक्सर थक जाने पर
मनचाहे नये गीत गाने की
सुविधा दो।
कभी–कभी अजब–सी रहस्यमयी पुकारों पर
मन को अपरिचित नक्षत्रों की राहों
में जाकर खो जाने की
सुविधा दो।
प्रसंग: यह पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित, धर्मवीर भारती द्वारा रचित कविता ‘निर्माण योजना‘ के उपखंड ‘यातायात‘ से लिया गया है। इस अंश में कवि मनुष्य के मन और आत्मा की सृजनात्मक एवं वैचारिक स्वतंत्रता पर बल देते हैं।
व्याख्या: कवि कहते हैं कि जीवन के हर यात्री (राही) को बिना किसी बंधन के, अपनी जीवन यात्रा में यदि वह थक जाए, तो मनचाहे नए गीत गाने की सुविधा (अभिव्यक्ति की आजादी) मिलनी चाहिए। इसके अलावा, जब मन किसी रहस्यमय प्रेरणा (पुकारों) के कारण अनजाने (अपरिचित) लक्ष्यों की राहों में भटकना या खो जाना चाहे, तो उसे भी यह सुविधा दी जानी चाहिए।
3. कृषि
पद्यांश 5 (विषमता की समाप्ति)
कृषि ये फ़सलें काटो ……..
पिछले ज़माने में
बीज जो बोये विषमता के
आज वही साँपों की खेती उग आई है।
धरती को फिर से संवारो
क्यारी में बीज नये डालो
पसीने के, आँसू के,
प्यार के, हमदर्दी के,
प्रसंग: यह पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित, धर्मवीर भारती द्वारा रचित कविता ‘निर्माण योजना‘ के तीसरे भाग ‘कृषि‘ से लिया गया है। इस भाग में कवि सामाजिक भेदभाव (विषमता) को मिटाकर नए, प्रेमपूर्ण समाज की स्थापना का आह्वान करते हैं।
व्याख्या: कवि आह्वान करते हैं कि विषमता (विषमता – असमानता) की उन फसलों को काटो, जिनके बीज पिछले जमाने में बोए गए थे। इन बीजों के कारण आज समाज में नफरत (साँपों की खेती) फैल गई है। कवि धरती को पुनः संवारने और क्यारी में पसीने (श्रम), आँसू (संवेदनशीलता), प्यार और हमदर्दी (सहानुभूति) के नए बीज डालने का निर्देश देते हैं, ताकि समाज में खुशहाली आए।
पद्यांश 6 (वसुधैव कुटुंबकम्)
मेंड़ें मत बाँधो,
भूमि सबकी,
दर्द सबका है।
प्रसंग: यह पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित, धर्मवीर भारती द्वारा रचित कविता ‘निर्माण योजना‘ के उपखंड ‘कृषि‘ से लिया गया है। इसमें कवि सार्वभौमिक एकता और सामूहिक जिम्मेदारी का संदेश देते हैं।
व्याख्या: ‘मेंड़‘ का अर्थ खेतों को विभाजित करने वाली सीमा रेखाएँ हैं। कवि कहते हैं कि समाज और भूमि के बीच विभाजन रेखाएँ (मेंड़ें) मत बनाओ, क्योंकि यह भूमि (संपत्ति, राष्ट्र) सबकी है। इसी प्रकार, समाज में व्याप्त दुख–दर्द भी किसी एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि सबका साझा है। यह सभी के लिए सामूहिक जिम्मेदारी का संदेश है।
4. स्वास्थ्य
पद्यांश 7 (अहंकार से पीड़ित समाज)
वे सब बीमार हैं
वे जो उन्मादग्रस्त रोगी से
मंचों पर जाकर चिल्लाते हैं
बकते हैं
भीड़ में भटकते हैं
वात पित्त कफ़ के बाद
चौथे दोष अहम् से पीड़ित हैं।
प्रसंग: यह पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित, धर्मवीर भारती द्वारा रचित कविता ‘निर्माण योजना‘ का अंतिम भाग ‘स्वास्थ्य‘ है। इसमें कवि सामाजिक अहंकार और घमंड (अहम्) को एक गंभीर रोग के रूप में देखते हैं।
व्याख्या: कवि कहते हैं कि वे सभी लोग बीमार हैं जो पागलपन (उन्मादग्रस्त रेगी) से पीड़ित होकर मंचों पर चिल्लाते हैं, बकवास करते हैं या भीड़ में दिशाहीन होकर भटकते हैं। भारतीय चिकित्सा पद्धति में तीन शारीरिक दोष (वात, पित्त, कफ) बताए गए हैं। कवि कहते हैं कि ये लोग इन तीनों के अलावा चौथे दोष—अहम् (घमंड)—से पीड़ित हैं।
पद्यांश 8 (अहंकार के अस्पताल)
बस्ती–बस्ती में
नये अहम् के अस्पताल खुलवाओ।
वे सब बीमार हैं
डरो मत – तरस खाओ।
प्रसंग: यह पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित, धर्मवीर भारती द्वारा रचित कविता ‘निर्माण योजना‘ के उपखंड ‘स्वास्थ्य‘ से लिया गया है। यहाँ कवि अहंकार की बीमारी के उपचार के लिए एक प्रतीकात्मक समाधान प्रस्तुत करते हैं।
व्याख्या: कवि सुझाव देते हैं कि इस सामाजिक बीमारी के इलाज के लिए हर बस्ती (बस्ती–बस्ती) में ‘नये अहम् के अस्पताल‘ खुलवाए जाने चाहिए, जहाँ अहंकार को आत्म–सम्मान में बदला जा सके। कवि लोगों को सलाह देते हैं कि ऐसे बीमार लोगों से डरना नहीं चाहिए, बल्कि उन पर दया (तरस) खानी चाहिए, क्योंकि वे एक सामाजिक रोग से पीड़ित हैं।
3. अभ्यास प्रश्नोत्तर भाग
खंड क (लगभग 40 शब्दों में उत्तर दें)
प्रश्न 1. ‘बाँध बाँधना‘ निर्माण योजना का प्रथम चरण है। कवि किस प्रकार का बांध बांधकर कौन सी शक्ति पैदा करना चाहता है?
उत्तर. कवि घृणा रूपी नदी के पानी को बाँधकर उसे सही दिशा देने की बात करते हैं। यह घृणा काली चट्टानों (धार्मिक संकीर्णता) और अन्धी जहरीली गुफाओं (सांप्रदायिक रूढ़िवादिता) से निकलती है। इस शक्ति को बाँधकर, कवि इसे प्रेम, उजाले और रचनात्मक ताकत में बदलकर मानवता के कल्याण में प्रयोग करना चाहते हैं।
प्रश्न 2. ‘यातायात‘ में स्वच्छन्द विचारधारा को फलने फूलने का मौका देने की बात की गई है, इसे स्पष्ट करें।
उत्तर. ‘यातायात‘ में कवि चाहते हैं कि विचारों को बिना किसी बंधन या रुकावट (बाधा) के प्रतिदिन नई दिशाओं में जाने का अवसर मिले। इसका अर्थ है अभिव्यक्ति और मन की स्वतंत्रता। लोगों को श्रम का फल मिलने तथा मनचाहे नए गीत गाने की आजादी मिलनी चाहिए, यहाँ तक कि मन को अपरिचित लक्ष्यों की ओर भटकने की स्वतंत्रता भी मिले।
प्रश्न. ‘कृषि‘ में कवि ने विषमता, रूढ़िवादिता की फसलें काटने की बात की है। कवि किस प्रकार की खेती करना चाहता है और कैसे? स्पष्ट करें।
उत्तर. कवि विषमता (असमानता) की फसलों को काटने की बात करते हैं, क्योंकि उनसे साँपों की खेती (नफरत) उग आई है। कवि धरती को संवारकर क्यारी में पसीने (श्रम), आँसू (संवेदना), प्यार और हमदर्दी के नए बीज डालना चाहते हैं। इस प्रकार, वे भेदभाव को मिटाकर खुशहाल समाज (सुख की खेती) बनाना चाहते हैं।
प्रश्न 4. ‘स्वास्थ्य‘ में भारती जी ने निर्माण योजना के अन्तिम चरण के रूप में अहम् के शिकार रोगियों के लिए अस्पतालों की व्यवस्था करने की बात की है। कवि का विचार स्पष्ट करें।
उत्तर. कवि का मानना है कि मंचों पर चिल्लाने वाले और उन्मादग्रस्त लोग चौथे दोष—अहम् (घमंड) से पीड़ित हैं। यह निर्माण योजना का अंतिम पड़ाव है। कवि सुझाव देते हैं कि बस्ती–बस्ती में ‘नये अहम् के अस्पताल‘ खुलवाए जाएँ, जहाँ इन अहंकार के रोगियों का इलाज हो सके, और लोगों को उनसे डरने के बजाय तरस खाने की प्रेरणा मिले।
प्रश्न 5. ‘निर्माण योजना‘ कविता का सार लिखें।
उत्तर. यह कविता एक स्वस्थ समाज के निर्माण की प्रतीकात्मक योजना है। सार यह है कि घृणा को रचनात्मक शक्ति में बदला जाए, स्वच्छंद विचारधारा और अभिव्यक्ति को बढ़ावा दिया जाए। साथ ही, सामाजिक विषमताओं की फसलों को काटकर, श्रम, प्रेम और हमदर्दी के बीज बोए जाएँ। अंत में, अहंकार (अहम्) का त्याग कर धरती पर टिके रहने का आह्वान किया गया है।
खंड ख (सप्रसंग व्याख्या करें)
प्रश्न 6. बाँधों ……… घृणा की है।
उत्तर 6. (सप्रसंग व्याख्या खंड में पद्यांश 1 और 2 देखें।)
प्रश्न 7. ये फसलें …….. दर्द सबका है।
उत्तर 7. (सप्रसंग व्याख्या खंड में पद्यांश 5 और 6 देखें।)