पाठ 22: तत्सत
लेखक: जैनेन्द्र कुमार
(क) लगभग 60 शब्दों में उत्तर दें:
प्रश्न 1 पशु और पेड़–पौधे वन के नाम से भयभीत क्यों होने लगे थे?
उत्तर: वन के सभी जीव–जंतु और पेड़–पौधे ‘वन‘ के नाम से इसलिए भयभीत होने लगे थे, क्योंकि उन्हें शिकारियों (आदमियों) से पता चला था कि यह वन कोई स्थान नहीं, बल्कि एक आदमी है। बबूल ने बताया कि वह आदमी शेर–चीतों से भी ज्यादा डरावना होता है। वन के सभी घटक उस वन (आदमी) को जानना चाहते थे जो किसी को भी धोखा दे सकता था।
प्रश्न 2 शिकारी प्रमुख द्वारा अपने साथियों की सलाह न मानने का क्या कारण था?
उत्तर: शिकारी प्रमुख शुरू में अहंकार और स्वार्थ के भ्रम में था। वह जंगल को केवल अपने स्वार्थ का एक खंड मानता था। जब जंगल के जीव उसे डराने लगे और उसके साथी भ्रमित हुए, तो शिकारी प्रमुख को यह घमंड था कि वह इन भोले जीवों को अपनी गोलियों की बौछार से चुप करा देगा। उसकी व्यक्तिगत सत्ता का भ्रम उसे समग्रता (वन की एकता) के सत्य को स्वीकार करने से रोक रहा था।
प्रश्न 3 शिकारी जन पुन: वन में आए तो पशु वनस्पतियाँ भड़क उठीं, क्यों?
उत्तर: जब शिकारी पुन: वन में आए, तो सभी पशु–वनस्पतियाँ इसलिए भड़क उठीं, क्योंकि शिकारी उन्हें यह झूठ बता रहे थे कि वन दूर है या बाहर है और उन्हें उसका पता नहीं चलेगा। बबूल ने चिल्लाकर कहा कि यह तो धोखेबाज़ी और स्वार्थीपन है। वे शिकारी के इस झूठ को सहज प्राणियों को बहकाने का प्रयास मानकर क्रोधित हो गए, क्योंकि वे अब जान चुके थे कि वे सब मिलकर ही वन हैं।
(ख) लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें:
प्रश्न 4 ‘तत्सत‘ कहानी का सार अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर: ‘तत्सत‘ जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित एक गहन प्रतीकात्मक कहानी है, जो समग्रता के बोध और व्यक्तिगत सत्ता के भ्रम पर आधारित है। कहानी दो शिकारियों के जंगल में प्रवेश से शुरू होती है। उनकी बातचीत से जंगल के जीव (बबूल, बाँस, बड़ा दादा, शेर, साँप) यह निष्कर्ष निकालते हैं कि ‘वन‘ नामक कोई भयानक जीव है, जिसे आदमी कहते हैं, और वह शेर–चीतों से भी डरावना है।
जंगल के सभी जीव अपनी–अपनी समझ से ‘वन‘ को जानने की कोशिश करते हैं। वे अपनी अज्ञानता में यह नहीं जानते कि वे सब मिलकर ही ‘वन‘ हैं। अंत में, जब शिकारी (मनुष्य के स्वार्थ के प्रतीक) दोबारा आते हैं और झूठ बोलते हैं कि ‘वन‘ दूर है, तो जंगल के जीव–जंतु क्रोधित होकर ‘धोखेबाज़‘ और ‘स्वार्थी‘ कहकर उन्हें भर्त्सना करते हैं। शिकारी प्रमुख का अहंकार टूटता है, और वह स्वीकार करता है कि “हम सब जहाँ हैं, वही तो जंगल है“। कहानी का सार यह है कि देशहित के आगे निजी स्वार्थ तुच्छ है, और एकता व समग्रता का ज्ञान ही सच्चा सत्य है।
प्रश्न 5 ‘तत्सत‘ कहानी का उद्देश्य स्पष्ट करें।
उत्तर: ‘तत्सत‘ कहानी का मूल उद्देश्य मनुष्य को व्यक्तिगत स्वार्थ और अहंकार के भ्रम से मुक्त कराना और उसे समग्रता (अखंड अस्तित्व) का बोध कराना है।
लेखक ने पशुओं और वनस्पतियों के माध्यम से यह संदेश दिया है कि मनुष्य अपने अस्तित्व को ब्रह्मांड के एक खंड के रूप में देखता है, जबकि सत्य यह है कि सब कुछ एक–दूसरे से जुड़ा हुआ है। कहानी का उद्देश्य यह समझाना है कि जब तक वन के सदस्य स्वयं को अलग–अलग इकाई मानते हैं, वे भयभीत रहते हैं। शिकारी प्रमुख का अहंकार, जो निजी सत्ता का प्रतीक है, अंत में टूट जाता है। अंतिम ज्ञान यही मिलता है कि ‘हम सब जहाँ हैं, वही तो जंगल है‘। यह संदेश देता है कि यदि हम सब ‘हम एक हैं‘ इस सत्य को स्वीकार कर लेते हैं, तो कोई भी हमारा अहित नहीं कर सकता।
प्रश्न 6 ‘तत्सत‘ कहानी के नामकरण की सार्थकता पर प्रकाश डालें।
उत्तर: कहानी का शीर्षक ‘तत्सत‘ (अर्थात ‘वह सत्य है‘) अत्यंत सार्थक और प्रतीकात्मक है। कहानी का सम्पूर्ण ताना–बाना इस परम सत्य की खोज पर टिका है कि ‘वन‘ कहाँ है और क्या है। जंगल के जीव अज्ञानता में एक काल्पनिक और भयानक ‘वन‘ की तलाश करते हैं, जबकि उन्हें पता नहीं होता कि वे स्वयं ही वह सत्य हैं जिसकी वे तलाश कर रहे हैं।
‘तत्सत‘ शीर्षक उस अखंड सत्य की ओर इशारा करता है जो मनुष्य को अपनी समग्रता (कुल) में स्वीकार करना चाहिए। जब शिकारी अंततः भयभीत होकर स्वीकार करते हैं, “हम सब जहाँ हैं, वही तो जंगल है“, तब यह सिद्ध होता है कि ‘वह सत्य है‘ (तत्सत)। इस प्रकार, यह शीर्षक कहानी के दार्शनिक निष्कर्ष और केंद्रीय उद्देश्य को पूर्ण रूप से प्रकट करता है।
(ग) सप्रसंग व्याख्या करें:
प्रश्न 7 “जब छोटा था, तब इन्हें देखा था। इन्हें आदमी कहते हैं। इनमें पत्ते नहीं होते, तना ही तना है। देखा वे चलते कैसे हैं? अपने तने की दो शाखाओं पर ही चलते चले जाते हैं।“
प्रसंग: यह पंक्तियाँ जैनेन्द्र कुमार द्वारा लिखित कहानी ‘तत्सत‘ से ली गई हैं, जो ‘हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित है। यह कथन बड़े दादा नामक पुराने पेड़ द्वारा तब कहा गया जब शीशम ने उनसे शिकारी (आदमियों) के बारे में पूछा जो उनकी छाँव में विश्राम करके चले गए थे।
व्याख्या: बड़ा दादा यहाँ मनुष्य की शारीरिक संरचना का वर्णन पेड़ों के दृष्टिकोण से कर रहे हैं। पेड़ों के लिए आदमी एक अजीब और अप्राकृतिक प्राणी है। बड़ा दादा बताते हैं कि आदमियों में पेड़ों की तरह पत्ते नहीं होते, केवल तना (शरीर) ही होता है। वे उनकी चाल पर आश्चर्य व्यक्त करते हैं कि आदमी अपने तने की दो शाखाओं (पैर) पर ही कैसे चलते चले जाते हैं। यह संवाद यह उजागर करता है कि प्रकृति के अन्य जीवों के लिए मनुष्य का अस्तित्व कितना असामान्य और रहस्यमय है।
प्रश्न 8 “मालूम होता है, हवा मेरे भीतर के रिक्त में वन–वन–वन ही कहती हुई घूमती रहती है। पर ठहरती नहीं। हर घड़ी सुनता हूँ, वन है, वन है पर मैं उसे जानता नहीं हूँ। क्या वह किसी को धोखा है?”
प्रसंग: यह पंक्तियाँ जैनेन्द्र कुमार द्वारा लिखित कहानी ‘तत्सत‘ से ली गई हैं, जो ‘हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित है। यह कथन बाँस द्वारा तब कहा गया, जब वन के अन्य घटक उससे ‘वन‘ नामक भयानक जीव के बारे में पूछते हैं और वह अपनी समझ बताने की कोशिश करता है।
व्याख्या: बाँस यहाँ अज्ञानता और अधूरी समझ का प्रतीक है। बाँस खोखला (रिक्त) होता है। वह बताता है कि उसके भीतर से जब हवा गुजरती है, तो वह ‘वन‘ शब्द को दोहराती है, जिससे उसे हर घड़ी ‘वन‘ के अस्तित्व का आभास होता है। लेकिन चूँकि वह केवल सुनता है, जानता नहीं, इसलिए उसे संदेह होता है कि कहीं यह ‘वन‘ का विचार केवल एक धोखा तो नहीं है। यह संवाद दर्शाता है कि सतही ज्ञान या सुनी–सुनाई बातें हमें समग्र सत्य (तत्सत) तक नहीं ले जा सकतीं।
प्रश्न 9 “ओ सिंह भाई, तुम बड़े पराक्रमी हो। जानते कहाँ कहाँ छापा मारते हो। एक बात तो बताओ, भाई?”
प्रसंग: यह पंक्तियाँ जैनेन्द्र कुमार द्वारा लिखित कहानी ‘तत्सत‘ से ली गई हैं, जो ‘हिंदी पुस्तक 12′ में संकलित है। यह कथन बड़ा दादा (पुराना पेड़) द्वारा तब कहा गया, जब जंगल के सभी जीव–जंतु ‘वन‘ नामक भयानक जीव के बारे में चर्चा कर रहे थे, और बड़ा दादा ने शेर से पूछताछ शुरू की।
व्याख्या: बड़ा दादा यहाँ शेर (सिंह) को ‘पराक्रमी‘ कहकर उसकी प्रशंसा करते हैं, क्योंकि वह दूर–दूर तक शिकार करता है और उसकी पहुँच व्यापक है। बड़ा दादा को उम्मीद है कि यदि कोई भयानक जीव ‘वन‘ है जो शेर–चीतों से भी खतरनाक है, तो शेर ने अपने भ्रमण के दौरान उसे अवश्य देखा होगा। यह संवाद जंगल के जीवों की सामूहिक जिज्ञासा को दर्शाता है कि वह भयानक ‘वन‘ (आदमी) कहाँ है।