पाठ 15 सदाचार का तावीज (लेखक हरिशंकर परसाई)

9.4k Views
9 Min Read

 (क) विषय बोध

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए:-

प्रश्न 1  राजा ने राज्य में किस चीज के फैलने की बात दरबारियों से पूछी?

उत्तर:  राजा ने राज्य में भ्रष्टाचार फैलने की बात दरबारियों से पूछी ।

प्रश्न 2  राजा ने भ्रष्टाचार ढूँढ़ने का काम किसे सौंपा?

उत्तर:  राजा ने भ्रष्टाचार ढूँढ़ने का काम विशेषज्ञों को सौंपा।

प्रश्न 3 एक दिन दरबारियों ने राजा के सामने किसे पेश किया?

उत्तर: एक दिन दरबारियों ने राजा के सामने एक साधु को पेश किया।

प्रश्न 4  साधु ने राजा को कौन सी वस्तु दिखाई ?

उत्तर: साधु ने राजा को एक तावीज दिखाया ।

प्रश्न 5 साधु ने तावीज़ का प्रयोग किस पर किया ?

उत्तर:  साधु ने तावीज़ का प्रयोग कुत्ते पर किया ।

प्रश्न 6 तावीज़ों  को बनाने का ठेका किसे दिया गया?

उत्तर:  तावीज़ों को बनाने का ठेका साधु बाबा को दिया गया।

प्रश्न 7 राजा वेश बदलकर पहली बार कार्यालय कब गए थे?

उत्तर:  राजा वेश बदलकर पहली बार दो तारीख को कार्यालय गये थे।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन-चार पंक्तियों में दीजिए :-

प्रश्न 1 दरबारियों ने भ्रष्टाचार न दिखने का क्या कारण बताया?

उत्तर: दरबारियों के अनुसार दरबारियों ने भ्रष्टाचार न दिखने का एक कारण यह बताया कि वह बहुत बारीक होता है। उनकी आँखें महाराजा की विराटता को देखने की इतनी अधिक अभ्यस्त हो गई है उन्हें कोई बारीक चीज दिखाई नहीं देती । उनकी आँखों में तो सदा महाराज की सूरत बसी रहती है। इसलिए भ्रष्टाचार दिखाई नहीं देता।

प्रश्न 2 राजा ने भ्रष्टाचार की तुलना ईश्वर से क्यों की?

उत्तर: राजा ने भ्रष्टाचार की तुलना ईश्वर से इसलिए की क्योंकि भ्रष्टाचार अति सूक्ष्म है, वह दिखाई नहीं देता और वह सर्वव्यापी है। ये सब गुण एवं विशेषताएं तो ईश्वर में ही होती हैं। ईश्वर भी सर्वव्यापी होता है। वह किसी को दिखाई नहीं देता। इसलिए राजा ने भ्रष्टाचार की तुलना ईश्वर से की।

प्रश्न 3 राजा का स्वास्थ्य क्यों बिगड़ता जा रहा था?

उत्तर: राजा के राज्य में भ्रष्टाचार बहुत तेज़ी से फैल रहा था। राजा को वह कहीं दिखाई भी नहीं दे रहा था। उसके दरबारियों को भी भ्रष्टाचार कहीं दिखाई नहीं दिया। इस तरह भ्रष्टाचार के फैलते जाने के कारण और इसे दूर करने का कोई हल नज़र न आने के कारण राजा का स्वास्थ्य बिगड़ता जा रहा था।

प्रश्न 4 साधु ने सदाचार और भ्रष्टाचार के बारे में क्या कहा?

उत्तर: साधु ने कहा कि भ्रष्टाचार और सदाचार दोनों व्यक्ति की आत्मा में होते हैं। वे बाहर से आने वाली वस्तु नहीं है। ईश्वर जब मनुष्य को बनाता है तब वह किसी आत्मा में ईमान की और किसी आत्मा में बेईमानी की कल को फिट कर देता है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी आत्मा के अनुसार ही कार्य करता है। इस कल में ईमान या बेईमानी के स्वर निरंतर निकलते रहते हैं। इसे आत्मा की पुकार कहा जाता है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी आत्मा की पुकार के अनुसार ही कार्य करता है।

प्रश्न 5 साधु को तावीज़ बनाने के लिए कितनी पेशगी दी गई ?

उत्तर: राज्य में फैले भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए दरबारियों के सुझाव पर एक साधु को तावीज़ बनाने का ठेका दे दिया गया। तावीज़ बनाने के लिए साधु को पाँच करोड़ रुपए पेशगी के तौर पर दिए गये। साधु ने राज्य के सभी कर्मचारियों के लिए तावीज़ बनाने की जिम्मेदारी ली।

प्रश्न 6 तावीज़ किस लिए बनवाये गये थे?

उत्तर: भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए  तावीज़ बनाए गये थे। अपने दरबारियों के कहने पर राजा साधु  से तावीज़ बनवाकर अपने कर्मचारियों की भुजाओं पर बंधवाना चाहता था जिससे वे सभी सदाचारी बन जाएं। पहले इसका कुत्ते पर प्रयोग किया गया था। तावीज़ गले में बांध देने से कुत्ता भी रोटी नहीं चुराता। इसी तरह व्यक्ति की भुजा में  तावीज़ बांधने से भ्रष्टाचार नहीं रहता।

प्रश्न 7 महीने के आखिरी दिन तावीज़ में से कौन से स्वर निकल रहे थे ?

उत्तर: महीने के आखिरी दिन राजा वेश बदलकर एक कर्मचारी के पास काम करवाने गया। उसे पाँच रुपये का नोट दिखाया। उस कर्मचारी ने उस नोट को उसी समय वही पकड़ लिय। राजा ने कर्मचारी को पकड़कर पूछा कि क्या उसने तावीज़ नहीं बाँधा है। उसने तावीज़ बांधा हुआ था। जब राजा ने तावीज़ पर कान लगा कर सुना तो तावीज से आवाज़ आ रही थी कि आज तो इकतीस तारीख है, आज तो ले लो।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह या सात पंक्तियों में दीजिए:-

प्रश्न 1  विशेषज्ञों ने भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए क्या-क्या उपाय बताए ?

उत्तर: भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए विशेषज्ञों ने व्यवस्था परिवर्तन करने पर बल दिया। उन्होने कहा कि ऐसी नीतियां और कानून बनाए जाएं जिससे भ्रष्टाचार के अवसर ही समाप्त किए जा सकें। जब तक समाज में ठेकेदारी प्रथा विद्यमान है तब तक लोग अपना काम निकलवाने हेतु किसी न किसी अधिकारी को घूस खिलाते रहेंगे। इस तरह से रिश्वतखोरी व भ्रष्टाचार बढता रहेगा। यदि ठेकेदारी प्रथा को समाप्त कर दिया जाए तो समाज से घूसखोरी समाप्त की जा सकती है। हमें उन सभी कारणों की जाँच- पड़ताल करनी होगी जिनके कारण भ्रष्टाचार उत्पन्न होता है। इसके साथ ही सभी व्यक्तियों को पूरा वेतन दिया जाए। इस तरह से भ्रष्टाचार खत्म हो सकता है।

प्रश्न 2 साधु ने तावीज़ के क्या गुण बताए?

उत्तर: साधु ने तावीज़ के गुणों को बताते हुए कहा कि यह तावीज़ जिसकी भुजा पर बंधा होगा, उसमें बेईमानी नहीं आ सकती। वह गलत रास्ते पर नहीं चलेगा। यह तावीज़ उसे ईमानदारी के रास्ते पर चलने की प्रेरणा देता रहेगा। उसके मन से लालच आदि दूर हो जाएगा। वह चाह कर भी भ्रष्टाचार के चंगुल में नहीं फंस पाएगा। उसका आचरण एकदम शुद्ध और आत्मा एकदम पवित्र हो जाएगी।

प्रश्न 3सदाचार का पाठमें छिपे व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: सदाचार का तावीज़पाठ मूल रूप से एक व्यंग्यात्मक रचना है। इसके लेखक हरिशंकर परसाई एक व्यंग्यकार लेखक हैं। उनका कहना है कि केवल भाषणों, कार्यकलापों, पुलिसिया कार्यवाही, नैतिक स्लोगनों, वाद-विवाद आदि से कभी भी भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त नहीं किया जा सकता। भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त करने के लिए समाज में व्यक्ति को नैतिक स्तर पर दृढ़ करना होगा। इससे ही समाज और राष्ट्र का कल्याण होगा। देश के सभी कर्मचारियों को जब पर्याप्त वेतन दिया जाएगा, तब ही भ्रष्टाचार समाप्त हो सकता है। भ्रष्टाचार को समाप्त करना केवल एक व्यक्ति का काम नहीं बल्कि पूरे समाज की जिम्मेदारी है जिसे सभी को ईमानदारी से निभाना चाहिए।

(ख) भाषा बोध

प्रश्न 1 निम्नलिखित शब्दों के विपरीत शब्द लिखिए:-

एक         अनेक                    पाप              पुण्य

गुण        अवगुण                   विस्तार            संक्षेप

सूक्ष्म      स्थूल                    ईमानदारी          बेईमानी

प्रश्न 2  निम्नलिखित शब्दों के दो -दो पर्यायवाची लिखिए:-

राजा: नरेश, सम्राट, नृप 

सदाचार: शुद्ध आचरण , सद्व्यवहार            

पाठ 15 सदाचार का तावीज (लेखक हरिशंकर परसाई)

दिन:  दिवस, वार

मनुष्य:  नर, आदमी

कान:  कर्ण,  श्रवण

भ्रष्टाचार: बुरा आचरण, दुराचार

प्रश्न 3 निम्नलिखित वाक्यांशों के लिए एक शब्द लिखिए:-

अच्छे आचरण वाला: सदाचारी

बुरे आचरण वाला: दुराचारी

जो किसी विषय का ज्ञाता हो: विशेषज्ञ

हर तरफ फैला हुआ: सर्वव्यापी

जो दिखाई न दे: अदृश्य

जिसकी आत्मा महान हो: महात्मा

 

डॉ. सुमन सचदेवा, हिंदी अध्यापिका, स.ह. स्कूल (लड़के) मंडी हरजीराम, मलोट

Share This Article
Leave a review

Leave a Review

Your email address will not be published. Required fields are marked *